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कन्हेरी की गुफाएं किसने बनवाई ? कन्हेरी गुफाएं कहां है kanheri caves history in hindi architecture
kanheri caves history in hindi architecture build by whom कन्हेरी की गुफाएं किसने बनवाई ? कंहेरी गुफाएं कहां है ?
कन्हेरी की गुफायें – मुम्बई के निकट कन्हेरी का प्राचीन नाम कृष्णगिरि था। यहां की पहाड़ी में सैकड़ों गुफायें भिक्षुओं के आवास के लिये बनाई गयी थी। ये विभिन्न आकार-प्रकार की हैं। हीनयान मत के अंतिम काल में इनका निर्माण प्रारंभ हुआ था। सातवाहन राजाओं के समय में अधिकांश गुफायें उत्कीर्ण करवायी गयी थी। कार्ले गुहा-समूह से इनकी काफी समानता है। चैत्यगृह भी कार्ले के अनुकरण पर बना है। गृहमुख के सामनेएक बड़ा प्रांगण है जो कहीं अन्यत्र नहीं मिलता। इसके एक ओर अलंकृत वेदिका तथा इसके ऊपर हाथ उठाये हुए यक्ष मूर्तियां खुदी हुई हैं। साथ ही इन्हें अनेक प्रकार के पशुओं तथा लताओं से सुसज्जित किया गया है। प्रांगण के दोनों किनारों पर बने स्तम्भों के सिरों पर यक्ष मूर्तियां, चैकी तथा सिंह बनाये गये हैं। सामने की ओर दुतल्ला बरामदा है। भीतरी मण्डप 86’x40’x38′ के आकार में है। जिसमें 34 स्तम्भ हैं। स्तम्भों के शीर्ष मूर्तियों से अलंकृत हैं। गर्भगृह में 16 फीट व्यास का गोल स्तूप स्थापित है। चैथी शती से कन्हेरी महायान बौद्ध धर्म का केन्द्र बन गया। तदनुसार गुफाओं के अलंकरण में विभिन्नता आ गयी।
प्रश्न: सातवाहन कालीन नासिक बौद्ध गुहा स्थापत्य
उत्तर: नासिक गोदावरी नदी तट पर स्थित एक प्रसिद्ध बौद्ध स्थल था। यहां कुल 17 गुफायें खोदी गयी जिनमें एक चैत्यगृह तथा शेष 16 विहार गफायें हैं। प्रारंभिक विहार हीनयान मत से संबंधित हैं। सबसे प्राचीन छोटे आकार का है। इसका भीतरी मण्डप (14′ x 14′) वर्गाकार है। इसके तीन और दो-दो चैकोर कक्ष बने हैं। बाहरी मुख्यमण्डप में अठपहलू दो स्तम्भ बने हए हैं। गहा में अंकित एक लेख से पता चलता है कि सातवाहन नरेश कृष्ण (ई.पू. दूसरी शती) ने इसका निर्माण करवाया था। तीन बडे गहा विहार क्रमशः नहपान, गौतमीपुत्र शातकर्णि तथा यज्ञश्री शातकर्णि के समय के हैं। गौतमीपत्र के विहार में 18 कमरे हैं। इसके बरामदे में छः अलंकृत स्तम्भ हैं। जिनके शीर्ष पर वृषभ, अश्व, हाथी आदि पशुओं की आकतियां बनी हैं। यज्ञश्री के विहार का विशाल मण्डप 61 फुट लम्बा है। भीतर तथा बाहर की ओर इसका विस्तार क्रमशः 44 फुट तथा 37 फट है। इसके तीन ओर आठ कक्ष बनाये गये हैं। मण्डप के पीछे गर्भगृह तथा उसके सम्मुख दो अलंकत स्तम्भ बनाये गये हैं। इसी में आसीन मुद्रा में बुद्ध की एक बड़ी प्रतिमा भी उत्कीर्ण है जिनके अगल-बगल अनचरों की आकृतियां हैं। यहां अंकित एक लेख के अनुसार इस गुहा का निर्माण श्वासु नामक किसी महिला ने करवाया था। वह संभवतः यज्ञश्री के सेनापति की पत्नी थी। नासिक की अन्य गुफायें महायान मत से प्रभावित हैं।
नासिक गहा विहारों में बना एकाकी चैत्य संभवतः ईसा पूर्व पहली शताब्दी के मध्य उत्कीर्ण करवाया गया था। इसके भीतरी मण्डप में सीधे स्तम्भ लगे हैं तथा दुतल्ला मुखमण्डप वास्तु कला का सुन्दर नमूना प्रस्तुत करता है। नीचे के तल्ले में गोल प्रवेश-द्वार तथा ऊपरी तल्ले में बड़ा झरोखा बनाया गया है। यहां उत्कीर्ण लेखों में दानकर्ताओं के नाम दिये गये हैं। मण्डप के चैकोर स्तम्भों पर चैकोर अण्डभाग के ऊपर अत्यन्त सुन्दर एवं कलात्मक मूर्तियां उत्कीर्ण की गयी हैं तथा स्तम्भों को नीचे पूर्ण कुम्भों में बारीकी के साथ नियोजित किया गया है। नासिक चैत्यगृह को पाण्डुलेणं कहा जाता है। इसमें एक संगीतशाला भी बनाई गयी थी। चैत्य के प्रवेश द्वार की परिछना
कला से यह सूचित होता है कि इसका निर्माण अत्यन्त निपुण कलाकारों द्वारा किया गया था।
प्रश्न: कार्ले का चैत्य भारत के सर्वाधिक एवं भव्य स्मारकों में से एक है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: महाराष्ट्र के पुणे जिले में स्थित भोरघाट नामक पहाड़ी पर कार्ले की गुफायें खोदी गयी हैं। कलात्मक दृष्टि से ये सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। यहां एक भव्य चैत्यगृह तथा तीन विहार हैं।
यह चैत्यगृह सबसे बड़ा और सबसे सुरक्षित दशा में है। यह मुख्य द्वार से पीछे के द्वार तक 124 फुट 3 इंच लम्बा. फुट 5 इंच चैड़ा तथा 46 फुट ऊँचा है। इसके सामने का भाग दुमंजिला है। ऊपरी मंजिल में प्रकाश के लिये बडा वाताया तथा निचली मंजिल में तीन द्वार हैं। द्वार के सामने का भाग स्त्री-पुरुषों की आकृतियों से सजाया गया है। मण्डप हो पार्श्ववीथियों (aisles) से अलग करते हुए 37 स्तम्भ हैं जिनमें पन्द्रह-पन्द्रह मण्डप के दोनों ओर पंक्तिबद्ध खडे हैं तथा शेष सात स्तूप को घेरे हुए हैं। मंडप के दोनों ओर के स्तम्भ भव्य नक्काशी से युक्त हैं जबकि शेष सादे हैं। विराट कण्ठहार जैसे शोभायमान ये स्तम्भ कलात्मक सौष्ठव में अद्वितीय हैं। नक्काशी युक्त स्तम्भों के आधार चैकियों पर स्थापित पूर्ण कुम्भों में पिरोये गये हैं तथा ऊपर के भाग भी औंधे घड़ों से अलंकृत हैं जो लहराती हुई पद्य पंखुड़ियों से आच्छादित हैं। शीर्ष भाग की चैकियों पर. हाथी, घोड़े आदि पर आसीन दम्पत्ति मूर्तियां उत्कीर्ण की गयी हैं। कुछ में केवल स्त्री-मूर्तियां ही हैं। ये सब रूप शिल्प की दृष्टि से अत्युत्कृष्ट हैं। चैत्यगृह के सामने अर्ध-मण्डप तथा उसके सामने ओट के रूप में दीवार बनाई गयी है। सबसे आगे विशाल स्तम्भ के ऊपर चार सिंह एक दूसरे से पीठ सटाये हुए विराजमान हैं जो अशोक के सारनाथ सिंहशीर्ष की याद दिलाता है।
इस प्रकार काले चैत्य प्राचीन भारत के सर्वाधिक सुन्दर तथा भव्य स्मारकों में से है। इसमें एक लेख खुदा है जिसके अनुसार श्वैजयन्ती के भूतकाल नामक श्रेष्ठि ने सम्पूर्ण जम्बूद्वीप में उत्कृष्ट इस शैलगृह को निर्मित करवाया था। चैत्यगृह के विलक्षण वास्तु विन्यास एवं तक्षण को देखते हुए कहा जा सकता है कि निर्माता का यह दावा निर्मूल नहीं है। संभवतः कार्ले चैत्य का निर्माण पुलुमावी के शासनकाल (ईसा की दूसरी शती के मध्य) करवाया गया था।
कार्ले के तीन विहारों का निर्माण साधारण कोटि का है। दूसरा तथा तीसरा विहार क्रमशः त्रिभूमिक तथा द्विभूमिक है। चैथे गुहा विहार में हरफान नामक पारसीक का नाम अंकित है जिसने इसे दान में दिया था।
प्रश्न: पूर्वी भारत के जैन गुहा विहार
उत्तर: पूर्वी भारत के विहार – पश्चिमी भारत के ही समान पूर्वी भारत में भी पर्वत गुफाओं को काटकर विहार बनवाये गये। इनमें उड़ीसा की
राजधानी भुवनेश्वर के समीप स्थित उदयगिरि तथा खण्डगिरि के गुहा विहारों का उल्लेख किया जा सकता है। उदयगिरि में 19 तथा खण्डगिरि में 16 गुफायें हैं। उदयगिरि की प्रमुख गुफायें – रानीगुम्फा, मंचपुरी, गणेशगुम्फा, हाथीगुम्फा तथा व्याघ्रगुम्फा हैं। खण्डगिरि की प्रमुख गुफायें हैं – नवमुनिगुम्फा, देवसभा, अनन्तगुम्फा आदि। इन गुफाओ का निर्माण कलिंग के चेदि वंशी शासक खारवेल (ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी) ने जैन भिक्षुओं के आवास हेतु करवाया था।
उदयगिरि की रानीगुम्फा सबसे बड़ी है। यह दुतल्ली है। प्रत्येक तले में मध्यवर्ती कक्ष तथा आंगन है। आंगन के तीन और कमरें बनाये गये हैं। इसमें कई मनोहर दृश्यों का अंकन हुआ है। इनमें प्रेमाख्यान तथा स्त्री-अपहरण जैसे दृश्य भी है। गणंशगुम्फा में आखेट के दृश्य, उदयन-वासवदत्त एवं दुष्यन्त-शकुन्तला जैसे कथानकों के दृश्य उत्कीर्ण किये गये है। विविध प्राकृतिक, दृश्यों, शालभंजिका, कल्पवृक्ष आदि का भी चित्रण है।
खण्डगिरि की अनन्तगुम्फा के सम्मुख अलंकृत बरामदा सात स्तम्भों पर टिका हुआ है। गुहा भित्ति पर गजलक्ष्मी, कमल, नाग मिथुन, विद्याधर युगल आदि के दृश्य हैं। कमल पर खड़ी देवी लक्ष्मी की मूर्ति सबसे विशिष्ट है। इसमें दो हाथी दवा का अभिषेक करने की मुद्रा में दिखाये गये हैं। उल्लेखनीय है कि उड़ीसा की गुफाओं में किसी प्रकार के चैत्य अथवा स्तूप नहीं दिखाये गये हैं जैसा कि पश्चिमी भारत में गुफाओं में मिलते हैं। इनमें उत्कीर्ण कुछ चित्र रिलीफ स्थापत्य क अच्छे उदाहरण हैं। इस प्रकार संस्कृति के प्रत्येक क्षेत्र में सातवाहनयुगीन दक्षिण भारत ने उल्लेखनीय प्रगति की थी।
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