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एत्माद्दौला का मकबरा किसने बनवाया था , एतमाद उद-दौला का मकबरा कहां स्थित है , itmad-ud-daulah in hindi

itmad-ud-daulah in hindi एत्माद्दौला का मकबरा किसने बनवाया था , एतमाद उद-दौला का मकबरा कहां स्थित है ?

एत्मादुदौला का मकबरा (1626) नूरजहां द्वारा बनवाया गया था। यह पूरी तरह संगमरमर का बना है और इस पर जड़ाई का सुंदर काम किया गया है। यह अकबर और शाहजहां की शैलियों के बीच एक सम्पर्क सेतु का काम करता है। दोनों शैलियों की इस सम्मिश्र शैली ने नाजुक और परिष्कृत स्वरूप ग्रहण कर लिया है। इसकी पूरी सतह पर मूल्यवान पत्थरों का जड़ाऊ काम बहुत ही दर्शनीय है। खुर्सान के प्रधानमंत्री ख्वाजा मुहम्मद शरीफ के बेटे और नूरजहां के पिता मिर्जा गियास बेग को एतमादुदौला या ‘महान खजांची के नाम से जागा जाता है और उन्हें यह नाम उनके दामाद सम्राट जहांगीर द्वारा दिया गया। 1622 और 1628 के बीच जहांगीर की पत्नी नूरजहां ने अपने पिता का सुंदर मकबरा बनवाया जो यमुना नदी के बायीं ओर स्थित है। इसके नीचे की ओर आरामबाग, चीनी का रौजा जैसे अन्य प्रसिद्ध स्मारक हैं।
चारों ओर से ऊंची दीवारों से घिरे 165 मीटर के विशाल बगीचा परिसर के मध्य में स्थित यह मुख्य मकबराए मुगलकालीन चार बाग मकबरा शैली का प्रतीक है। इसके पूर्व में इसका भव्य प्रवेश द्वार बनाया गया है। नदी के तट पर केंद्रीय कक्ष और गलियारे के साथ एक ऐसा ही भव्य जलमण्डल बनाया गया है। इस बगीचे की सिंचाई नदी तट पर खड़ी की गई पानी की टंकियों से लघु जलमार्गों के माध्यम से की जाती थी।
लाल बलुआ पत्थर के ऊंचे चबूतरे पर बना यह मकबरा वग्रकार है। मुख्य मकबरे के केंद्रीय मेहराब के सामने इस चबूतरे पर चार टैंक हैं और प्रत्येक छोर पर बीच में एक-एक फव्वारा है।
एतमादुद्दौला का यह मकबरा, उस समय की सजावटी पद्धति, रूपों तथा शैलियों की प्रदर्शनी का उत्कृष्ट नमूना है। ऐसा माना जाता है कि जड़ाऊ कार्य के इस उत्कृष्ट नमूने के बाद ही ताजमहल में ऐसा सजावटी कार्य किया गया। मकबरे के तल को कई लम्बी पट्टियों और बाॅर्डरों से सजाया गया है सीधे और लम्बे पैनल भी बना, गए हैं।
मकबरे में ज्यामितीय तथा पच्चीकारी के साथ-साथ जागवरों की आकृतियां भी बनाई गई हैं। इनमें मयूर की आकृति का अधिक प्रयोग किया गया है। इस्लामी कला में मानव-आकृतियां इस्तेमाल नहीं होती परंतु यहां सजावटों में मानव-अकृतियों का भी उपयोग किया गया है। कई गुलदस्तों में छतरी की सजावट की गई है और गुलदस्ते के अंदर एक मानव आकृति को रखा गया है। अतः कहा जा सकता है कि एतमादुद्दौला का यह मकबरा सजावटी जड़ाऊ कला के साथ-साथ मुगल स्थापत्य के संक्रमण काल का उत्कृष्ट नमूना है। अब्दुल रहीम खानखाना का मकबरा हुमायूं के मकबरे और ताज महल के बीच एक महत्वपूर्ण सूत्र का काम करता है। लाहौर के पास शाहदरा (पाकिस्तान) में जहांगीर का मकबरा एक बाग के बीचोंबीच बना हुआ है। इसकी प्रमुख अलंकरण विशेषताएं हैं संगमरमर की सतह पर समृद्ध जड़ाऊ काम, चमकीली पालिशदार टाइलें और चित्रकारी।
अकबर की सबल, शक्तिशाली आरंभिक मुगल शैली आगे चलकर शाहजहां काल में सुंदर और लाव.यपूर्ण हो गई। उसका युग संगमरमर की इमारतों का था। स्वाभाविक रूप से सतह अलंकरण की तकनीक संगमरमर पर उपरत्नों के कलात्मक जड़ाऊ काम में परिवर्तित हो गई। उसमें फूल, पत्तियां बनने लगीं। निर्माण शैली में संरचनात्मक रूप से भी बदलाव आया मेहराब का वक्र या घुमाव बहुदलीय आकार का हो गया। स्तंभों के आधारों पर बेलबूटों की पच्चीकारी होने लगी। शाहजहां के भवनों के गुम्बद अपने उभरे हुए स्वरूप में आंखों को बहुत अच्छे लगते हैं। शाहजहां ने अपनी निर्माण गतिविधियां आगरा के किले मंे बदलाव लाने से शरूु की।ं दीवान-ए-खास महल सदंुर दाहे र े स्तभ्ं ाा ंे वाल े बले बटू ांे की पच्चीकारी से सजा था जिसमें उत्तर भारत में पहली बार बंगाल की वक्ररेखी कार्निस उपयोग में लाई गईं थी। शीश महल आदि में संगमरमर का बहुत कलात्मक काम किया गया है। किले में सबसे अधिक प्रभावशाली इमारत मोती मस्जिद (1655) है। लाल बलु, पत्थर के आधार मंच पर स्थित इस मस्जिद में तीन सुंदर गुम्बद हैं। दिल्ली (शाहजहांनाबाद) स्थित लाल किला मोटी दीवारों से घिरा शानदार निर्माण है। दीवारों में जगह-जगह ऊंचे बुर्जों पर छतरीदार गुम्बदों का सिलसिला है। इसमें जागे के दो मुख्य द्वार हैं दिल्ली गेट और लाहौरी गेट। अंदर बने महल अपने सममित नियोजन के कारण विशिष्ट लगते हैं। बीच में एक सजावटी संगमरमरी गहर है, जिसमें ढालू प्रपति और सीढ़ीदार झरने हैं। दीवान-ए-खास समृद्ध और विविध शैलियों में सजाया गया है उपरत्नों का जड़ाऊ काम, कम उभार वाले बेलबूटों तथा फूलों की पच्चीकारी स्वर्ण तथा अन्य रंगों की सजावट है। दीवान-ए-खास में एक शानदार सिंहासन, एक सफेद संगमरमर की छतरी वाले पैवेलियन जैसी संरचना है सिंहासन के फलकों पर मूल्यवान रंगीन पत्थरों के जड़ाऊ काम में एक जगह आरफियस को अपनी वीणा के साथ चित्रित किया गया है। यह माना जाता है कि यह काम यूरोपीय कलाकार आस्टिन द बोर्दे ने किया होगा। दिल्ली की जामा मस्जिद (1656) दुनिया की सबसे भव्य मस्जिदों में से एक है। इबादतगाह का अग्र भाग लाल बलु, पत्थर और सफेद संगमरमर से मढ़ा हुआ है और तीन सुंदर गुम्बदों पर (जो सफेद संगमरमर से बने हैं) काले संगमरमर की धारियों से सजावट की गई है यह संरचना संपूर्ण मस्जिद को सौंदर्य और गौरव प्रदान करती है।
शाहजहां युग की तथा भारतीय-इस्लामिक वास्तुकला की सबसे शानदार इमारत आगरा के ताजमहल को माना जाता है (1647-48)। इसे शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज महल के मकबरे के रूप में बनवाया था। जिसकी मृत्यु 1631 में अपने चैदहवें बच्चे को जन्म देते समय हुई थी। इसका स्वरूप फारसी उस्ताद ईसा ने तैयार किया था। इसे पूरा होने में 14 वर्ष का समय लगा था। आज इसे दुनिया की सबसे प्रसिद्ध इमारतों में से एक माना जाता है। यह भवन एक टैरेस पर बना है जिसके कोनों पर बहुत ही सुंदर मीनारें खड़ी हैं। मकबरे की इमारत आयाम और आकार की दृष्टि से अपने में बहुत सादी है। वास्तुकला की दृष्टि से अपने रूप में यह हुमायूं के मकबरे की तरह है। लेकिन इसके प्रत्येक भाग का लयात्मक विन्यास और जिस दक्ष ढंग से ताजमहल का हर भाग एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है वह इसे एक महान कलाकृति का रूप प्रदान करता है। ताज के अप्रतिम सौंदर्य के पीछे इसकी निर्माण सामग्रियों का चुनाव और साज-सज्जा की प्रक्रिया भी है। जिस तरह का संगमरमर उपयोग में लाया गया है वह प्रकाश के साधारण परिवर्तन के प्रति भी अत्यंत संवेदनशील हैं, इस तरह ताज में हर समय हर क्षण का बदलता रंग रूप प्रतिबिम्बित होता रहता है। मुख्य आकर्षण जालियों की विशेष कारीगरी, उपरत्नों की जड़ाई, वानस्पतिक साज-सज्जा,पच्चीकारी व फूल-पत्तों की रंगकारी है। सबके रूप सुंदर और रंग आंखों को आनंद देने वाले हैं। यह कहा जाता है कि ताज चाहे कितना भी सुंदर क्यों न लगता हो, अगर उसे उसके सुंदर परिवेश से अलग कर दिया जाए तो उसका सौंदर्य और आकर्षण आधा रह जाएगा। इसके अलंकृत उद्यान, सरों वृक्षों की लम्बी कतारें, फब्बारों से सज्जित गहरें और ऊंचाई पर बना हुआ कमल ताल ये सब ताज महल के सामान्य वास्तु शिल्प में इस तरह एकरूप हो गए हैं कि उन्होंने इस मकबरे को एक अप्रतिम सौंदर्य प्रदान कर दिया है।
शाहजहां के बाद मुगल वास्तुकला में शैली और भवनों की संख्या दोनों ही दृष्टियों से गिरावट आई। कलाओं के प्रति औरंगजेब की विशेष अरुचि ने भी निसंदेह इस गिरावट में अपना योगदान दिया होगा। परवर्ती मुगल वास्तुकला का सबसे महत्वपूर्ण भवन औरंगजेब की पत्नी रबिया दुर्रानी का मकबरा है। यह औरंगाबाद में स्थित है। कुल मिलाकर वास्तुकला की दृष्टि से यह एक अत्यंत ही सामान्य भवन है। हालांकि इसमें काफी कलाकारी की गई है और इसके चारों ओर सुंदर उद्यान बना हुआ है। लाल किले में औरंगजेब द्वारा निर्मित मोती मस्जिद चमकदार सफेद संगमरमर की सुंदर इमारत है, जिसमें पूर्ववर्ती कुशल शिल्पकारी की झलक दिखाई देती है। यह कहा जा सकता है कि औरंगजेब की मृत्यु के साथ ही मुगल वास्तुकला के पतन की प्रक्रिया भी अपने निम्नतम स्तर तक जा पहुंची।