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एकीकृत कीट प्रबंधन के उपकरणों का वर्णन IPM की युक्तियाँ (तरीके) ipm method of pest control in hindi

ipm method of pest control in hindi एकीकृत कीट प्रबंधन के उपकरणों का वर्णन IPM की युक्तियाँ (तरीके) ?

 IPM की प्रमुख रणनीतियाँ
पीड़क-प्रबंधन की संकल्पनाओं का उपयोग उस रणनीति के विकास के साथ हुआ जिसका अर्थ है पीड़क-समस्या को समाप्त करने के लिए एक व्यापक योजना।

पीड़कों के प्रबंधन के लिए प्रमुख पाँच रणनीतियाँ अपनायी जाती हैं –
1. निरोध (Prevention) – इस रणनीति का अभिप्राय है पीड़कों का उन क्षेत्रों में आगमन अथवा संस्थापन जो अभी तक संक्रमित नहीं है। इसमें अंतर्निहित क्षेत्र एक विशाल भौगोलिक क्षेत्र भी हो सकता, जैसे कि एक महाद्वीप, अथवा एक छोटा-सा क्षेत्र, जैसे कि एक खेत।
2. अस्थायी अपशमन (Temporary alleviation) – यह रणनीति एक आपातकालीन आधार पर विशिष्ट नियंत्रण-विधियों का प्रयोग करती है ताकि स्थानीकृत पीड़क-प्रस्फोट को अस्थायी तौर पर सीमित कर दे।
3. खेत के भीतर समष्टियों का प्रबंधन (Management foithin field population) – प्रबंधन खेत के भीतर स्थानिक पैमाने (within field spatial scale) पर लगातार करना पड़ता है क्योंकि पीड़क एक क्षेत्र में भली भांति संस्थापित हो चुका होता है। आज के प्रचलित अधिकांश IPM कार्यक्रमों की यही मानक रणनीति है।
4. सकल क्षेत्र में पीड़क-प्रबंधन (Area-wide pest management) – अधिकांश पीड़क-समस्याओं का समाधान खेत के भीतर स्तर पर ही कर लिया जाता है। कुछ पीड़कों के लिए, प्रबंधन क्षेत्रीय स्तर तक करना चाहिए ताकि समष्टि-नियमन प्राप्त किया जा सके, विशेष रूप से अनेक वाइरस रोगों के संदर्भ में और कुछ चल कीटों के संदर्भ में। इस रणनीति को सकल क्षेत्र पीड़क-प्रबंधन कहते हैं और इसमें पीड़क के समस्त परिसर के भीतर आने वाले लोगों के सहयोग की आवश्यकता होती है।
5. उन्मूलन (Eradication) – किसी क्षेत्र से संपूर्ण पीड़क समष्टि का विलोपन, उन्मूलन कहलाता है यदि सामान्यतरू उसे गंभीरतम परिस्थितियों में लागू किया जाए। हालांकि, यह तर्क भी दिया जाता है कि उन्मूलन IPM की रणनीति के अंतर्गत नहीं आता क्योंकि उसके पारिस्थितिक आधार को अपूर्ण माना जाता है।

पीड़क-प्रबंधन के चिंतन के अंतर्गत प्राकृतिक नियंत्रक बलों को, अर्थात् प्राकृतिक शत्रु और पादप प्रतिरोध को बढ़ाने की रणनीति से काम लिया जाता है और इसमें ऐसे अन्य तरीकों का लाभ उठाया जाता है जिनमें कम-से-कम अस्त व्यस्तता हो और इसे केवल तभी काम में लिया जाता है जब फल का इतना नुकसान हो कि की जाने वाली कार्यवाही की संगतता सही ठहराई जा सके। इसमें पीड़क-प्रबंधन की एक बड़ी समस्या निहित है और वह है आर्थिक घाटे की भविष्यवाणी कैसे की जाए, और व्यष्टि पीड़कों और विशेष रूप से पीड़क-सम्मिश्रों की आर्थिक आरंभन सीमा किस प्रकार निर्धारित की जाए।

आर्थिक आरंभन सीमा का प्रतिपादन एक जटिल प्रक्रिया है, और पीड़क-नियंत्रण के आर्थिक पहलुओं के बारे में अधिक जानकारी की आवश्यकता होती है, विशेषतरू लाभों और जोखिमों, शोध-विकल्पों और सामाजिक रणनीतियों के संदर्भ में।

विषयिक और अंतर विषयिक उपागमरू नियंत्रक विधियों का समाकलन इस अनुमति के आधार पर किया जाना चाहिए कि व्यष्टि पीड़क-स्पीशीज जटिल पारितंत्र का मात्र एकल घटक होती है और यह कि घटकों के बीच अंतरक्रियाएं उन कृत्रिम रेखाओं को लाँघ जाती हैं जिन्हें फसल के बचाने में अंतनिर्हित वर्गिकी से संबंधित विषयों ने बनाया है। अतरू समाकलित पीड़क-प्रबंधन के विकास और क्रियान्वन के लिए विषयिक और अंतर विषयिक दोनों ही उपागमों की आवश्यकता होती है। कीटवैज्ञानिकों, अपतृण वैज्ञानिकों, सूत्रकृमि वैज्ञानिकों और पादप रोग वैज्ञानिकों को, जिन्हें मोटे तौर पर पीड़कों और उनके नियंत्रण के बारे में जानकारी होती है, समाकलित नियंत्रण की संकल्पना दक्षता प्राप्त करनी चाहिए। आधुनिक कंप्यूटर टेक्नॉलॉजी और “सिस्टम ऐनालिसिसश्श् (system analysis) एक ऐसा माध्यम प्रस्तुत करते हैं जिसके जरिए अनेक विषयों से मिलने वाली अत्यधिक जटिल सूचना का समाकलन किया जा सकता है और उसे व्यापारिक रणनीति में संश्लेषित किया जा सकता है।

पीड़क-प्रबंधन में कृषि पारितंत्र-विश्लेषण और मॉडलिंग की दो महत्वपूर्ण उपयोगिताएँ हैं –
1. सिस्टम ऐनालिसस से उन क्षेत्रों को पहचानने में मदद मिलती है जिनमें अतिरिक्त जानकारी की आवश्यकता होती है।
2. फसलों और पीड़कों के भविष्यसूचक मॉडलों से विशेषज्ञों को अधिक आर्थिक आरंभन सीमाओं के निर्धारण में और भविष्यवाणी करने में सहायता मिलती है कि ये अवसीमाएँ कब प्राप्त होंगी। पीड़क-प्रबंधन की रणनीतियों के विकास करने में मॉडलिंग का प्रमुख योगदान होगाय हालांकि समाकलित नियंत्रण का क्रियान्वयन और विकास जटिल मॉडलों जो बहुत महत्वपूर्ण होंगे, के बिना ही चल सकता है और चल रहा है।
सिस्टम ऐनालिसिस के बारे में विस्तार में आप इस पाठ्यक्रम की इकाई 8 में पढ़ेंगे।

IPM की युक्तियाँ (तरीके)
उपयुक्त रणनीति को विकसित करने के बाद, रणनीति को क्रियान्वित करने के लिए विधियों का चयन करना होता है जिन्हें आमतौर से ष्तरीकेश् कहा जाता है। आप इकाई 5 के चित्र 5.1 को पहले ही देख चुके हैं। कृपया इस चित्र को एक बार फिर से देखें । आप देखेंगे कि सेतु आरेख के आधारी चाप पर अनेक स्तंभ टिके हुए हैं जो प्च्ड में प्रयुक्त होने वाले तरीकों का निरूपण करते हैं। हालांकि, यदि केवल एक ही स्तंभ अथवा तरीका हो तो सेतु बहुत टिकाऊ नहीं होगा। चित्र में दिखाए गए अनेकों तरीकों को मिला जुला कर इस्तेमाल किया जाता है ताकि पीड़कों से होने वाली क्षति कम हो जाए।
इस पाठ्यक्रम में प्रत्येक तरीके पर अलग-अलग विचार किया गया है, लेकिन समझ लेना चाहिए कि प्च्ड में पीड़क संदमन के सभी उपयुक्त तरीकों को मिला-जुलाकर प्रयुक्त किया जाता है (चित्र 6.4)। पीड़कों के प्रबंधन के लिए मूलभूत रूप से भिन्न तीन उपागम हैं।

क) पीड़क जीवों में हेर-फेर रू इस उपागम में ऐसे तरीके अपनाए जाते हैं जिसका या तो पीड़क जीव पर सीधा ही प्रभाव पड़ता है अथवा उसका व्यवहार इस प्रकार बदल जाता है कि उसके कारण होने वाले नुकसानों को स्वीकार किया जा सकता है।

ख) परपोषी पौधों में हेर-फेर – इसमें जो तरीके अपनाए जाते हैं उनमें मानों पीड़क-आक्रमण के लिए परपोषी पौधा अधिक सह्य हो जाता है अथवा फसल को ही बदल दिया जाता है जिस पर पीड़क आक्रमण ही नहीं करता।

ग) पर्यावरणपरक हेर-फेर – इन तरीकों से पर्यावरण इस प्रकार बदल जाता है ताकि पीड़क-समष्टियों की वृद्धि क्षति पहुँचाने के स्तरों तक नहीं हो पाती। पर्यावरण को पीड़क के लिए कम उपयुक्त बना दिया जाता है, परपोषी के लिए अधिक उपयुक्त बना दिया जाता है, अथवा पीड़क के प्राकृतिक शत्रुओं के लिए अधिक सहायक बना दिया जाता है।

क) पीड़क में हेर-फेर –
सीधे ही पीड़क जीवों में हेर-फेर करने में प्रयुक्त किए जाने वाले तीन उपागम ये हैंरू निरोधन, पीड़कनाशी और गैरपीड़कनाशी तरीके।
.
निरोधन रू निरोधन IPM प्रोग्रामों का एक प्रमुख घटक है। नए क्षेत्रों में पीड़कों के पहुँचने को राष्ट्रीय स्तर पर अथवा क्षेत्रीय स्तर पर कानून बनाकर रोका जा सकता है ताकि विशिष्ट पीड़क उन क्षेत्रों में न फैल सकें। लेकिन पीड़क-निरोधन को फार्म-स्तर पर अनावश्यक रूप से बिना किसी नियमों-कानूनों को बनाए भी लागू किया जा सकता है। निरोधन के बारे मे विस्तार से आप खंड 4 की इकाई 16 में पढ़ेंगे।

पीड़कनाशी – पीड़कनाशी वे रसायन होते हैं जो पीड़कों पर सीधा विषैला प्रभाव डालते हैं। अधिकांश पीड़कनाशी लक्ष्य पीड़क (पीड़कों) के लिए प्राणघातक होते हैं, हालांकि अघातक वृद्धि नियामक रसायनों को भी पीड़कनाशियों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। पीड़कनाशियों के इस्तेमाल और नियमन का खंड 3 की इकाई 12 में वर्णन किया गया है।

जैविक नियंत्रण रू जैविक नियंत्रण में एक जीव को किसी अन्य जीव के नियंत्रण के लिए इस्तेमाल किया जाता है। लाभकारी अथवा प्रतिद्वन्दी जीव पीड़क-समष्टि की सघनता को इतना कम कर देता है कि फिर आर्थिक घाटे नहीं होते। जैविकी नियंत्रण के बारे में विस्तार से इकाई 13 में वर्णन किया गया है।

व्यवहारपरक नियंत्रण – पीड़क का व्यवहार इस प्रकार बदला जा सकता है कि वह फसल को अधिक नुकसान न पहुँचा पाये। पीड़क व्यवहार का बदलाव केवल उन्हीं पीड़कों में संभव है जो बाहरी उद्दीपन की अनुक्रिया स्वरूप सक्रिय रूप से अपना व्यवहार रूपातंरित कर लेते हैं।

भौतिक और यांत्रिक नियंत्रण – भौतिक क्रिया, जैसे कि उखाड़ना, काटना, कुचलना, अथवा ताप अथवा शीत के उपयोग को सीधे ही पीड़क के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है।
आवास-रूपांतरण के कुछ पहलुओं को भौतिक नियंत्रण के रूप में माना जा सकता है, क्योंकि इस तरीके का लक्ष्य भौतिक पर्यावरण को बदल देना है (उदाहरण के लिए तापमान, आर्द्रता अथवा वायुवेग पीड़क-प्रबंधन के लिए भौतिक और यांत्रिक तरीकों पर चर्चा इकाई 10 में की गई है)।

ख) फसल (परपोषी) पौधे में हेर-फेर –
पीड़क-प्रबंधन के लिए मानों सस्य तरकीबों से अथवा परपोषी पौधे के प्रतिरोध के जरिए फसल के पौधों को रूपांतरित किया जा सकता है।

सस्य तरीके रू इसमें उन विधियों का रूपांतरण अंतनिर्हित है जिन्हें फसलों के उगाने में इस्तेमाल किया जाता है ताकि पीड़क की सफलता घट जाए अथवा पीड़क को बर्दाश्त करने के लिए फसल की क्षमता बढ़ जाए। इस विषय का वर्णन इकाई 11 में किया गया है।
परपोषी पादप-प्रतिरोध रू इसमें फतल के जीनोटाइप को बदल दिया जाता है ताकि वह क्षति को बर्दाश्त कर सके अथवा पादप-लक्षणों के जीनीय परिवर्तन के जरिए पीड़क जीव की जनन-प्रक्रिया का निवारण कर सके। (एक प्रबंधन-तरकीब के रूप में परपोषी पादप-प्रतिरोध का वर्णन इकाई 14 में किया गया है)।

ग) पर्यावरणपरक हेर-फेर –
पर्यावरणपरक हेर-फेर को दो स्तरों पर प्राप्त किया जा सकता है रू

सूक्ष्म आवास, जैसे कि फसल कैनोपी के भीतर आर्द्रता को बदला जा सकता है ताकि पीड़क जीव भली भांति फल–पनप न सके, इसमें भौतिक प्रक्रियाएँ शामिल हैं, और इसीलिए इसे भौतिक तरीकों के अंतर्गत माना जाता है। पर्यावरणपरक हेर-फेर को अपेक्षाकृत बड़े भौगोलिक क्षेत्रों में भी खेत (क्षेत्र) के भीतर और उसके आसपास दोनों के ही आवासों को बदल कर लागू किया जा सकता है।

बोध प्रश्न 2
प) IPM के संदर्भ में J.k नीति’ और ‘r तरीका ‘ के बीच अंतर बताइए।
पप) विभिन्न उपागमों को इस्तेमाल करके पीड़कों का प्रबंधन किस प्रकार किया जा सकता है?

Sbistudy

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