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IPM के घटक और लक्षण क्या होते है ? ipm factors and characteristics of management in hindi
ipm factors and characteristics of management in hindi IPM के घटक और लक्षण क्या होते है ?
IPM के प्रमुख लक्षण
रब (1970) ने पीड़क-प्रबंधन के प्रमुख लक्षणों को सूचीबद्ध किया है जो आईपीएम के लक्षणों के ही समान हैं। ये लक्षण हैं रू
ऽ अधिक ध्यान स्थानीय पीड़कों के नियंत्रण पर नहीं बल्कि समस्त पीड़क-समस्याओं की ओर देना।
ऽ प्रत्यक्ष उद्देश्य पीड़क के बाहुल्य के माध्य स्तर को अपेक्षाकृत नीचे रखना।
ऽ इस बात का महत्व कि समस्या को कम करना सामान्य और लंबी अवधि वाला होता है। इस बात पर चिंतन कि पीड़क के उन्मूलन की बजाए पीड़क-समष्टि का ष्प्रबंधनष् आवश्यक है।
IPM के घटक
आईपीएम की पद्धतियाँ उन सुयोजित प्रोग्रामों की एक श्रृंखला पर निर्भर होती हैं जो उत्पादनतंत्र में महत्वपूर्ण पीड़कों पर लागू होते हैं। प्रत्येक प्रोग्राम को अनुशंसा आकलन-विधि कहते हैं जिनकी कल्पना एक ऐसे सेतु के रूप में की जा सकती है जिसे पीड़कों को अधिक क्षति पहुँचाए बगैर पार किया जा सकता है। यह सेतु, जो चित्र 5.1 में दर्शाया गया है, एक आधार-चाप (सूचना एवं तकनीकें), अनेक ऊर्ध्वाधर स्तंभों (तरीके) और एक पथ-सतह (नुकसानों से बचना) का बना होता है।
सेतु की आधार-चाप में अनेक तत्व होते हैं और वह मूलभूत सूचना (जिसकी जानकारी होनी चाहिए) तथा तकनीकों का निरूपण करती
है जिनकी जरूरत किसी पीड़क का प्रबंधन करने में पड़ती है। बायीं तरफ के तत्व पीड़क के बारे में जीववैज्ञानिक सूचना के द्योतक हैं,
तथा दायीं तरफ के तत्व उन विधियों के द्योतक हैं जिनकी इस सूचना को प्राप्त करने के लिए आवश्यकता होती है।
जीववैज्ञानिक सूचना में ये आँकड़े शामिल होते हैं कि व्यष्टि कीट किस प्रकार अपना भोजन ग्रहण करते हैं, वृद्धि करते हैं, परिवर्धन करते हैं, जनन करते हैं, और एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं और अपना विस्तार करते हैं तथा उनकी आवासीय आवश्यकताएँ क्या होती हैं। पीड़क-प्रबंधन में कीट के जीवन चक्र की सुभेद्य (vulnerable) अवस्थाओं को विशेष रूप से तलाश रहती है ताकि उसका लाभ उठाकर कीट नियंत्रण किया जा सके। उनके मौसमी चक्र के साथ-साथ पीड़क की परिवर्धन-दरों का भी अध्ययन किया जाता है ताकि पीड़क के पाए जाने के बारे में फसल की जीववैज्ञानिक घटनाओं के साथ संबंध की भविष्यवाणी की जा सके।
समष्टि गतिकी (Population dynamics), IPM के लिए आवश्यक जीववैज्ञानिक सूचना प्राप्त करने का एक दूसरा महत्वपूर्ण तत्व है। इससे उन बलों (प्राकृतिक शत्रु. मौसम, आहार और आवास) की व्याख्या की जानकारी मिलती है जो इन बलों की विशेषता बताते हुए और संख्याओं को गणितीय मॉडल के रूप में प्रस्तुत करते हुए समष्टि में परिवर्तन लाते हैं। इन मॉडलों को जो संघटक समीकरणों के बने होते हैं, प्रायरू संगठित कर लिया गया है ताकि वे पारितंत्र का निरूपण कर सकें और ये कंप्यूटर-अनुकरण के लिए प्रोग्रामित कर लिए गए हैं। माना जाता है कि इस प्रकार के अनुकरण विविध पर्यावरणों में समष्टि-गतिकी को समझने में सहायक होते हैं। समष्टि गतिकी सूचना का गठन व्यवहार, जीवन-चक्र और मौसमी चक्र को समझने पर होता है, और इसके आधार पर प्रसनों और प्रकोपों की भविष्यवाणी की जा सकती है। इससे उन पर्यावरण-परक कारकों का भी संकेत मिलता है जिन्हें पीड़क-महत्व को कम करने के लिए उपयोग में लाया जा सकता है।
आधारी चाप में स्पीशीज की पहचान, उन्हें पालना अथवा उनका संवर्धन करना और उनका प्रतिचयन करना जैसी विधियाँ शामिल हैं। पहचान करते समय स्पीशीज को सही-सही नाम देना तथा उसका वर्गीकरण किया जाता है। क्योंकि प्रत्येक स्पीशीज भिन्न-भिन्न प्रकार से व्यवहार करती है, अतः यह आवश्यक हो जाता है कि उनकी पहचान एकदम ठीक-ठीक हो। किसी स्पीशीज के बारे में जीववैज्ञानिक सूचना प्राप्त करने के लिए न केवल पीड़क को पालने, उसके संवर्धन करने की दक्षता लाभकारी होती है, बल्कि पूरी तरह से प्रकृति में पीड़क के पाए जाने पर निर्भर रहने के मुकाबले में प्रयोगशाला और फील्ड प्रयोगों में प्रबंधन तरीकों को भी अधिक तीव्रता से प्राप्त किया जा सकता है।
प्रतिचयन तकनीकें और विभिन्न प्रोग्राम, प्च्ड में विशिष्ट प्रकार से महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। इन तरीकों से समष्टि-गतिकी अध्ययनों के लिए अनुमान संख्याओं का पता चलता है और बाद में प्रबंधन-निर्णयों के लिए समष्टि का मूल्यांकन करने में मदद मिलती है।
पीड़क-प्रबंधन-आधारी चाप का सबसे प्रमुख तत्व जैव अर्थशास्त्र हैय जैव अर्थशास्त्र का मतलब है पीड़कों की संख्या और उनसे होने वाली क्षति के बीच संबंध । जैव अर्थशास्त्र पीड़क और परपोषी फसल के बारे में जीववैज्ञानिक सूचना, प्रतिचयन प्रोग्राम और अर्थशास्त्र को परस्पर जोड़ते हैं। जैवअर्थशास्त्र का निर्धारण अधिकाशंतरू पीड़क-पौधे और पीड़क-पशु संबंधों की जानकारी पर तथा इस बात पर कि फसल किस प्रकार पीड़क द्वारा होने वाली क्षति के साथ अनुक्रिया करती है निर्भर करता है। पीड़क-सघनताएँ, और बाजार-मानों तथा पीड़क-प्रबंधन-लागतों के हिसाब रखने से आर्थिक-क्षति और आर्थिक आरंभन सीमा को विकसित करने में मदद मिलती है।
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बोध प्रश्न 1
प) समाकलित पीड़क प्रबंधन की परिभाषा दीजिए।
पप) हमें पीड़क-प्रबंधन की आवश्यकता क्यों है?
पपपद्ध किन्हीं तीन पहलुओं की सूचीबद्ध कीजिए जिनके कारण फसल-परिरक्षण के उपागम में परिवर्तन आए हैं।
पअ) बताइए कि निम्नलिखित कथन सही (T) हैं या गलत (F)
क) पीड़कों का उन्मूलन करना संभव नहीं है, उनका तो केवल प्रबंधन किया जा सकता है ताकि वे आर्थिक-क्षति स्तर के नीचे ही
रहें। (गलत / ध्सही)
ख) पीड़कों का विकास पौधों के और उनके प्राकृतिक शत्रुओं के विकास से स्वतंत्र रूप से हुआ है। (गलतध्सही)
ग) पीड़कनाशी-समस्या सामाजिक समस्या नहीं है। (गलत / सही)
उत्तरमाला –
1. प) पीड़क-प्रबंधन पीड़क-नियंत्रण क्रियाओं का सुविचारित इस्तेमाल है जिससे अनुकूल आर्थिक, पारिस्थितिक और सामाजिक परिणाम प्राप्त होंगे।
पप) पीड़क-प्रबंधन की हमें इसलिए आवश्यकता पड़ती है क्योंकि मनुष्य ने रासायनिक पीड़कनाशियों पर अधिक निर्भर रह कर प्रकृति-संतुलन को काफी हद तक बदलना चाहा है।
पपप) अच्छे पर्यावरण के लिए सामान्य दिलचस्पी, हमारे भोजन और रेशा-उत्पादन तंत्रों को होने वाले तीव्र पीड़क-क्षति के खतरे, पंरपरागत फसल-संरक्षण-कार्यक्रमों की बढ़ती हुई लागत, पीड़कनाशियों के अविवेक पूर्ण इस्तेमाल से होने वाले विषैले खतरे और स्वतंत्र तथा प्रायरू संकीर्णता पर आधारित फसल-संरक्षण पद्धतियों की नकारात्मक परस्पर क्रियाएँ ।
पअ) क) T
ख) F
ग) F
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