IPM की परिभाषा क्या होती है ? what is ipm definition in hindi आई पी एम किसे कहते है अर्थ मतलब लक्षण

what is ipm definition in hindi IPM की परिभाषा क्या होती है ? आई पी एम किसे कहते है अर्थ मतलब लक्षण ?

IPM की परिभाषा
आरंभ में समाकलित नियंत्रण शीर्षक का कीटनाशियों के इस रूप में इस्तेमाल के लिए आविष्कार किया गया था ताकि वह कीटों के जैविक नियंत्रण के साथ संगत कर सके। PM की संकल्पना को सबसे पहले 1960 के दशक में समाकलित नियंत्रण के विचार के रूप में विकसित किया गया, और तब से इसे अधिकतर समाज ने व्यापक रूप में स्वीकार कर लिया है।

निम्नलिखित भाग में IPM की विभिन्न परिभाषाएँ दी गई हैं –
समाकलित पीड़क-प्रबंधन पर बनाए गए पैनल के विशेषज्ञों ने इसकी परिभाषा इस प्रकार दी है रू एक ऐसा पीड़क-प्रबंधन-पर्यावरण-तंत्र जो पीड़क-स्पीशीज के साहचर्य और समष्टिगतिकता के संदर्भ में सभी उपयुक्त तकनीकों और विधियों का एक यथासंभव सुसंगत तरीके से इस्तेमाल करता है और पीड़क-समष्टि को आर्थिक क्षति पहुँचाने वाले स्तरों से नीचे बनाए रखता है।
अथवा
समाकलित पीड़क-प्रबंधन की परिभाषा इस प्रकार भी दी जा सकती है, उपलब्ध पीड़कनियंत्रण तकनीकों का सुसंगत तरीके से चयन और इस्तेमाल ताकि पीड़क-समष्टि को आर्थिक क्षति स्तर के नीचे रखा जा सके तथा उपयुक्त पारिस्थितिकीय आर्थिक और सामाजिक परिणाम सुनिश्चित बने रहें। जिन पीड़क नियंत्रण तकनीकों को एक साथ इस्तेमाल किया जाता है वे परस्पर सुसंगत हों, उदाहरण के लिए विस्तृत स्पेक्ट्रम पीड़कनाशी पीड़कों के प्राकृतिक. शत्रुओं के लिए भी हानिकारक होते हैं इसलिए इन दोनों को सुसंगत विधियों नहीं माना जा सकता। इसलिए इस प्रकार की परस्पर विरोधी विधियों से बचने का ध्यान रखना चाहिए।
अथवा
समाकलित पीड़क-प्रबंधन पीड़क-समस्याओं से निपटने के एक पारिस्थितिक उपागम के रूप में जाना जाता है, क्योंकि इसमें पीड़क को इस प्रकार नियंत्रण में रखने के लिए जोर दिया जाता है ताकि पारितंत्र के अन्य जैविक संघटक, जैसे कि पीड़क के प्राकृतिक शत्रु, मानव-समुदाय और वन्य जीव. आदि को किसी प्रकार की हानि न पहुँचे और पर्यावरण सामान्यतरू परिरक्षित बना रहे।
पीड़क-प्रबंधन इस आधार पर कार्य करता है कि सभी पीड़क-समष्टि-स्तर फसलों के लिए क्षतिकारक नहीं होते और फसलें पीड़कों से होने वाली कुछेक क्षतियों के लिए. हमेशा ही क्षतिपूर्ति कर लेती हैं। इसके अतिरिक्त पीड़कों के प्राकृतिक शत्रुओं की उत्तरजीविता के लिए कुछ पीड़क-समष्टि की हमेशा आवश्यकता होती है।

इससे आर्थिक क्षति स्तर (EIL) की संकल्पना सामने आई, जिससे नियंत्रण-उपायों के अनुचित उपयोग से बचने में मदद मिलती है। नियंत्रण-उपायों के म्प्स् पर आधारित उपयोग से लागत-लाभ अनुपात अनुकूल होता है। पीड़क प्रबंधन के मूल में यह बात भी होती है कि पीड़क-नियंत्रण-तरीके सामाजिक दृष्टि से भी स्वीकार्य होने चाहिए और किसानों की सामर्थ्य के भीतर होने चाहिए। इस प्रकार IPM में पीड़क-नियंत्रण के पारिस्थितिक, आर्थिक और सामाजिक पहलुओं का ध्यान रखा जाता है। पीड़क-समस्याओं के लिए यह एक समग्र उपागम है जिसके अंतर्गत हमारा लक्ष्य होता है सभी पीड़कों से अपनी उपयोगी वस्तुओं की सुरक्षा और स्वस्थ फसलों का उत्पादन।

पीड़क-प्रबंधन पीड़क-नियंत्रण क्रियाओं का एक सुविचारित चयन और इस्तेमाल है जिससे अनुकूल आर्थिक, पारिस्थितिक और सामाजिक परिणाम प्राप्त हो सकें। पीड़क-नियंत्रण के तरीकों में तीन पहलू शामिल हैं रू

प) पीड़क-वृद्धि का मॉनीटरन,
पप) पीड़कनाशियों का सुविचारित इस्तेमाल
समाकलित पीड़क-प्रबंधन पीड़क-नियंत्रण का आर्थिक दृष्टि से और पारिस्थितिक दृष्टि से निर्दोष तरीके का अनुकूलतम उपयोग है।

समाकलित पीड़क-प्रबंधन (IPM) क्या है
IPM की चर्चा करने से पहले, आइए पीड़क-प्रबंधन की बात करें।

पीड़क-प्रबंधन की अनेक परिभाषाएँ हैं। पीड़क-प्रबंधन की सरल परिभाषा श्पीड़क-समष्टि में इस प्रकार हेर-फेर ताकि उससे मनुष्य को
स्वीकार न कर सकने वाले नुकसान न हो पाएँ है”, अस्पष्ट है और उसमें IPM संकल्पना का सार निहित नहीं है।

कृषि में पीड़क-प्रबधंन ऐसा होना चाहिए ताकि उससे स्वस्थ फसल हो और पर्यावरण भी जीवनक्षम बना रहे। लोक-स्वास्थ्य में पीड़क प्रबंधन से अभिप्राय है कि मनुष्य और उसके पालतू जंतु सुरक्षित बने रहें और जिस पर्यावरण में वे रहते हैं वह उपयुक्त बना रहे। हाल ही के दशकों में जो प्रगति हुई है और जिनसे लोगों को अधिक भोजन और कृषि के अन्य उत्पाद उपलब्ध होने लगे हैं, उनसे इस बात की पुष्टि होती है कि वैज्ञानिक टैक्नोलॉजी को अपनी सुविधा के लिए विकसित करने में और उसके हेर-फेर करने में मनुष्य सक्षम है। हालांकि, अनुभव से बारंबार यह सिद्ध हो चुका है कि टैक्नोलॉजी का विकास और उसमें हेर-फेर केवल अल्पकालीन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया जाता है। टैक्नोलॉजी के विकास कार्यों के इन दुर्भाग्यपूर्ण परिणामों के कारण ही IPM के लिए मूलाधार प्रस्तुत हुआ है। इनमें से एक विकास तो दूसरे विश्वयुद्ध के तुरंत बाद हमारे सामने उभर कर आया और वह था DDT और अन्य पीड़कनाशियों का प्रारंभ ।

अत्यधिक प्रभावी ऑर्गेनो-क्लोरीन आधारित पीड़कनाशियों, जैसे DDT और क्लोरीनित हाइड्रोकार्बन, फॉस्फेट और कार्बामेट किस्मों कार्बामेट, पीड़कनाशियों का वह समूह है जिनके बारे में आप खंड 4 में पढ़ेंगे) से बाद में विकसित अनेक यौगिकों की खोज के साथ पीड़क-नियंत्रण के एक नए युग का प्रारंभ हुआ। कम लागत से अधिक उपज प्राप्त होने के कारण, विकसित देशों के फॉर्मों में कृषि के पीड़कों के नियंत्रण में जो क्रांति आई उसके शीघ्र ही प्राथमिक साधन बन गए। ठीक इसी समय लगभग पूर्ण मशीनीकरण, संश्लेषित उर्वरकों का भारी उपयोग और संकर तथा अन्य अधिक उपज देने वाली किस्मों का इस्तेमाल भी आरंभ हो गया। इसके परिणामस्वरूप अत्यधिक प्रभावी कृषि से उत्पन्न फसल का आधिक्य, माल की कम कीमत और इस प्रकार उपभोक्ताओं के लिए सस्ता भोजन मिलने के हाल की के सुविदित इतिहास का शुभारंभ संभव हो सका। अन्य शब्दों में कहें तो कृषि क्षेत्र में हुए इन विकासों के कारण हरित क्रांति (green revolution) चरितार्थ हो सकी।

IPM के सभी वर्णन में तीन तत्व शामिल हैं
ऽ अनेक तरीकों (उदाहरण के लिए प्राकृतिक शत्रु, प्रतिरोधी किस्में और कीटनाशी) का संगत तरीके से उपयोग।
ऽ पीड़क-समष्टियों को उस स्तर के नीचे बनाए रखना जो आर्थिक क्षति पहुँचाते हैं, और
ऽ पर्यावरण की गुणवत्ता को बनाए रखना।

 पीड़क-समस्याओं को तीव्र करने वाले कारक
सस्य फसलों की पीड़क-समस्याएँ कारकों के एक सम्मिश्र के कारण गंभीर और तीव्र हो जाती हैं रू
कुछेक कारकों का संबंध उन तरीकों (प्राथमिक रसायन और परपोषी प्रतिरोध) के सीमित आधारों से था जिन्हें इस्तेमाल किया जाता था। अनेक मामलों में इन तरीकों से लक्ष्य पीड़कों का नियंत्रण नहीं हुआ, अन्य पीड़कों के नियंत्रण में व्यवधान पड़ा, तथा स्पीशीज पर तत्कालीन प्राकृतिक नियंत्रण का कोई प्रभाव नहीं रहा और वे पीड़क बन गईं।
ऽ कुछ उदाहरणों में, रसायनों ने फसल पौधों की कार्यिकी को प्रतिकल रूप से बदल दिया मानव-स्वास्थ्य के लिये आपदाएँ उत्पन कर दी, परागणकर्ता और, अन्य वांछित वन्य जीवों को नष्ट कर दिया, और अन्य प्रकार से अवांछित प्रभाव उत्पन्न किए।
ऽ पिछले वर्षों में कृषिपारितंत्रों पर अधिक से अधिक उत्पादन करने का जो दबाव रहा है उसके कारण उनमें बहुत तेजी के साथ विकास हुए और पीड़कों के लिए नए-नए पर्यावरण उत्पन्न हो गए।

उपरोक्त कारकों के परिणामस्वरूप कषिपारितंत्रों पर पीडकों का प्रायः और अधिक प्रभाव पड़ने लगा। जुताई, जल-प्रबंधन, फसलों की विविधताओं, निषेचन और सस्य विज्ञान की अन्य विधियों में हुए परिवर्तनों का पीड़क-प्रभाव पर अत्यधिक असर पड़ा, जिसके फलस्वरूप यह हुआ कि पीड़क-स्पीशीज की बहुलता बढ़ गई। कृषि-उत्पादन पद्धतियों की बढ़ती हुई जटिलता और तीव्रता के साथ-साथ अनेक कृषि फसल की स्पीशीजों में घटती आनुवंशिक विविधता का मिला जुला असर यह हुआ कि फसलों के लिए नई-नई आपदाएँ बढ़ती गईं। फसल-संरक्षण की समस्याओं की तीव्रता और बढ़ती हुई जटिलताओं के साथ-साथ भारी मात्रा में रसायनों के प्रयोग से होने वाले पर्यावरणपरक, वित्तीय और स्वास्थ्य संबंधी आपदाओं के कारण फसलसंरक्षण के महत्व में और स्वीकार्य समाधानों के लिए पारिस्थितिकी के स्थूल उपागम में अधिक दिलचस्पी बढ़ने लगी। इसके अलावा, इस संदर्भ में पीड़क-प्रबंधन, विस्तार और फील्ड क्रियान्वयन प्रोग्रामों के लिए बढ़ती हुई आर्थिक सहायता का भी बहुत महत्व है।

 

पीड़कनाशी समस्या एक सामाजिक समस्या है रू पोषण, स्वास्थ्य और पर्यावरण की गुणवत्ता के सामाजिक उद्देश्य को प्रचलित फसल पद्धतियों के जरिए नहीं बल्कि समाकलित पीड़क-प्रबंधन के जरिए अधिक प्रभावी ढंग से प्राप्त किया जा सकता है। समस्या के समाधान मानवों के व्यवहार में परिवर्तनों से आएगा। किसान चयनात्मक रूप से पीड़कनाशियों का इस्तेमाल कम करेंगे, उस पीड़कनाशी का चयन करेंगे जिसका स्पेक्ट्रम-प्रभाव अधिक सीमित है, और नए जैविकी तथा अन्य नियंत्रण-विधियों का उपयोग करेंगे। कीटों और अपतृणों (जिनमें प्रतिरोध जैसे अनुकूलन शामिल हैं) का और रसायनों का मूलभूत व्यवहार अपरिवर्तित बना रहेगा।