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intestinal juice control in hindi आंत्रीय रस का नियंत्रण क्या है , आहार नाल द्वारा स्रावित विभिन्न हार्मोन्स कौन कौनसे है
पढ़िए intestinal juice control in hindi आंत्रीय रस का नियंत्रण क्या है , आहार नाल द्वारा स्रावित विभिन्न हार्मोन्स कौन कौनसे है ?
आंत्रीय रस का नियंत्रण (Control of intestinal juice ) : आंत्रीय रस का तंत्रिका तन्त्र द्वारा नियंत्रण नहीं होता है। इसका नियंत्रण केवल हारमोन के द्वारा ही होता है, जैसे ही भोजन काइन के रूप में ग्रहणी से आंत्र में प्रवेश करता है उसी समय आंत्र की श्लेष्मिक सतह से एन्टोरोक्राइनन (enterocrinin) एवं ड्यूओक्राइनिन (duocrinin) नामक हारमोन्स का स्त्रावण करता है। ये हारमोन्स आंत्र की सतह में उपस्थित लीबरकुहन प्रगुहिकाओं में उत्तेजित करते हैं जिससे आंत्रीय रस या सक्कस एण्टेरीकस का स्त्रावण होता है। आहारनाल में उपस्थित विभिन्न हारमोन्स को निम्न तालिका द्वारा दर्शाया जा सकता है :
तालिका 2.6 : आहार नाल द्वारा स्त्रावित विभिन्न हारमोन्स
हारमोन | स्रोत
| निर्माण हेतु संवेदन | कार्य
|
(i) गैस्ट्रिन | आमाशय | आमाशय में भोजन की उपस्थिति | जठर रस स्त्रावण को उत्तेजित करना |
(ii) एन्टेरोगैस्ट्रेन
| छोटी आंत्र | आंत्र में वसीय अमलों की उपस्थिति करना | HCL एवं जठर रस स्त्रावण को मंद |
(iii) कोलीसिस्टोकाइनिन | छोटी आंत्र | ग्रहणी में भोजन की उपस्थिति
| पित्ताशय को पित्त रस स्त्रावण हेतु उत्तेजित करना
|
(iv) पेंकिओजाइ मिन | छोटी आंत्र | ग्रहणी में भोजन की उपस्थिति | अग्नाशय से अग्नाशयी रस का स्त्रावण करना |
(v) सिक्रेटिन | छोटी आंत्र | ग्रहणी भोजन की उपस्थिति | अग्नाशय से अग्नाशयी रस का स्त्रावण करना |
(vi) एन्टोरोकाइनिन
| छोटी आंत्र | आंत्र में भोजन की उपस्थिति | आंत्रीय रस के स्त्रावण को उत्तेजित करना |
(vii) ड्यूओक्राइनिन | छोटी आंत्र | आंत्र में भोजन की उपस्थिति | आंत्रीय रस के स्त्रावण को उत्तेजित करना ।
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- भोजन का अवशोषण (Absorption of food) : भोजन का अर्न्तग्रहण (ingestion) एवं पाचन (digestion) आहार नाल में होने वाली महत्त्वपूर्ण क्रियाएँ होती है। भोजन के पश्चात् आहार नाल के द्वारा इसका अवशोषण ( absorption ) किया जाता है। भोजन का अवशोषण निम्न क्रियाओं द्वारा होता है :
(1) मुख द्वारा अवशोषण (Absorption from mouth) : सामान्यतया मुँह से भोजन के किसी भी अंश का अवशोषण नहीं होता है। कुछ दवाईयाँ जैसे आइसोप्रेनेलीन ग्लिसराइल ट्राइनाइट्रेट (isoprenaline glyceryltrinitrile) मुँह में उपस्थित श्लेष्म सतह द्वारा अवशोषित होकर रूधिर में पहुँच जाती है।
(2) आमाशय द्वारा अवशोषण (Absorption from stomach) : आमाशय में अवशोषण की क्रिया काफी सीमित होती है। इसकी सतह के द्वारा जल, ग्लूकोस एवं एल्कोहॉल का अवशोषण किया जाता है। ये पदार्थ आमाशय की सतह से अवशोषित होकर शिरीय रूधिर (venous blood) में आते हैं।
(3) आंत्र द्वारा अवशोषण (Absorption by intestine): छोटी आंत्र से पचित भोजन का सबसे अधिक मात्रा में अवशोषण किया जाता है। ऐसा देखा गया है कि भोजन की कुल मात्रा का 90 प्रतिशत भाग आंत्र की सतह के द्वारा अवशोषित किया जाता है। आंत्र से भोजन के अवशोषण का आधार तल (surface area) श्लेष्म सतह के वृत्ताकार वलनों (circular folds) एवं स्सांकुरों (villi) द्वारा बहुत अधिक बढ़ जाता है। रसांकुर की एपीथिलियल कोशिकाओं पर अनेक सूक्ष्म रसांकुर (microvilli) पाये जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि सूक्ष्मरसांकुरों की उपस्थिति के कारण आंत्र द्वारा अवशोषण का आधार तल 600 गुणा बढ़ जाता है। रसांकुरों का परिमाण 0.2 से 1.0 मि.मी. होता है। प्रत्येक रसांकुर में रक्त कोशिकाओं (blood capillaries) का जाल पाया जाता है। इसके मध्य एक लैक्टियल वाहिनी (lacteal vassel ) पाई जाती है। लेक्टियल वाहनी द्वारा वसा (fat) का तथा रक्त वाहिनी द्वारा प्रोटीन्स एवं कार्बोहाइड्रेट्स का अवशोषण होता है। प्रत्येक रसांकुर में एक पतली धमनिका ( arteriole) द्वारा रूधिर प्रवेश करता है तथा एक शिरिका ( venule) द्वारा इससे बाहर निकलता है। सभी शिरिकाएँ ( venules) आपस में मिलकर यकृत निर्वाहिका शिरा ( hepatic portal vein) का निर्माण करती है। यह शिरा यकृत (liver) में खुल जाती है जहाँ पर भोजन में आवश्यक परिवर्तन होता है।
(i) कार्बोहाइड्रेट्स का अवशोषण (Absorption of carbohydrates) : अधिकांश जन्तुओं में कार्बोहाइड्रेट पाचन के अन्तिम उत्पाद मोनोसैकेराइड्स जैसे ग्लूकोस, फ्रक्टोस, मेन्नोस, पेन्टोस इत्यादि होते हैं। इनमें से फ्रक्टोस, मेन्नोस एवं पेन्टस शर्कराऐं निष्क्रिय परिवहन गैलेक्टोस, (passive transport) द्वारा अवशोषित कि जाती है, जबकि ग्लूकोस एवं गैलेक्टोस सक्रिय परिवहन (active transport) द्वारा अवशोषित किये जाते हैं। आंत्र की सतह द्वारा ग्लूकोस के अवशोषण की दर 120 ग्रा/घण्टे होती है। इस प्रकार अवशोषित सरल शर्कराएँ यकृत के रूधिर द्वारा विभिन्न एपिथीलियल कोशिकाऐं कोशिकाओं को स्थानान्तरित कर दी जाती है। कोशिकाओं में ऑक्सीकरण द्वारा ऊर्जा की प्राप्ति होती है। आवश्यकता से अधिक ग्लूकोस का अवशोषण Nat की उपस्थिति पर निर्भर करता है।
स्थानान्तरण के समय शर्करा एक गतिशील वाहक (mobile carrier) के साथ मिलकर शर्करा – वाहक सम्मिश्रण (sugar carrier complex) का निर्माण करती है। यह सम्मिश्रण शर्करा को प्लाज्मा झिल्ली में उपस्थित वसा अवरोधक (lipid barrier) से पार करके कोशिका के कोशिकाद्रव्य में ले है। वाहक को इस कार्य हेतु ऊर्जा ( energy) की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा AT Pase एन्जाइम द्वारा कोशिका झिल्ली में उपस्थिति ATP से प्राप्त होती है।
एक अन्य मत के अनुसार ऐसा माना जाता है कि अवशोषण के समय शर्करा फॉस्फोरिक अम्ल के साथ मिलकर एक हेक्सोज फॉस्फेट (hexose phosphate) का निर्माण करती है। रूधिर के द्वारा स्थानान्तरित होने के पूर्व ही हेक्सोस फॉस्फेट अपघटित हो जाता है जिससे रूधिर के हेक्सोस फॉस्फेट के स्थान पर हेक्सोस देखा जाता है। शर्करा अथवा कार्बोहाइड्रेट्स से अवशोषण की दर विभिन्न करकों (factors) द्वारा प्रभावित होती है। इनमें थायरोक्सिन हारमोन, पीयूष ग्रन्थि के अग्र पिण्ड द्वारा स्त्रावित हारमोन, विटामिन बी सम्मिश्र, श्लेष्म सतह की स्थिति एवं कार्बोहाइड्रेट का सम्पर्क में रहने का समय इत्यादि प्रमुख है।
(ii) प्रोटीन्स का अवशोषण (Absorption of proteins) : आहार नाल में भोजन के साथ आयी प्रोटीन्स विभिन्न पाचक रसों में उपस्थित विभिन्न प्रकार के प्रोटीएज (protease) एन्जाइम द्वारा अमीनो अम्लों में अपघटित हो जाती है। अमीनों अम्लों का अवशोषण आंत्र की सतह में उपस्थित अग्र आन्त्र योजनी शिरा ( anterior meseneric vein) की रूधिर वाहिनियों द्वारा होता है। यहाँ से अमीनो अम्ल यकृत निर्वाहिमा उपतंत्र द्वारा यकृत में ले जाये जाते हैं। अमीनों अम्ल ( प्राकृतिक प्रकार) का अवशोषण अपने प्रकाशीय समावयवों (optical isomers) की अपेक्षा अधिक शीघ्रता से होता है। गिब्सन एवं वीजमान (Gibson and Weisman. 1951) के अनुसार अमीनों अम्लों का अवशोषण वरणात्मक रासायनिक विधि (selective chemical process) द्वारा होता है। D-अमीनों, निष्क्रिय परिवहन द्वारा तथा L अमीनों अम्ल, सक्रिय परिवहन द्वारा अवशोषित किये जाते हैं। इनके अनुसार-अमीनों अम्ल के परिवहन तन्त्र में एक वाहक का सम्मिश्र (complex of carrier), एक विशिष्ट अम्ल तथा Nat होते हैं। विटामिन B. L- अमीनों अम्लों सक्रिय परिवहन में आता है। इसकी कमी होने पर L-अमीनों अम्लों के अवशोषण की दर कम हो जाती है ।
कभी-कभी डाइपेप्टाइड (dipeptides) भी सूक्ष्म मात्रा में आंत्र की एपिथील कोशिकाओं द्वारा अवशोषित किये जाते हैं। सम्पूर्ण प्रोटीन्स भी कोशिका (pinocytosis) की विधि द्वारा अवशोषित की जाती है परन्तु यह क्रिया बहुत कम देखी जाती है। प्रोटिओजेज तथा पेप्टोन्स घुलनशील अवस्था में होते हुए भी आंत्र श्लेष्मिका कोशिकाओं द्वारा अवशोषित नहीं किये जाते हैं।
(iii) वसाओं का अवशोषण (Absorption of fats ) : भोजन में उपस्थित वसा विभिन्न प्रकार के पाचक रसों में उपस्थित लाइपेज (lipase) एन्जाइम द्वारा आहार नाल में ग्लिसरॉल, डाइग्लिसराइड्स, मोनोंग्लिसराइड्स तथा वसीय अम्लों में परिवर्तित कर दिये जाते हैं। ग्लिसरॉल के पानी में घुलनशील होने के कारण इसके अवशोषण में कोई भी परेशानी नहीं होती है। वसीय अम्लों का अवशोषण उनके अणुभार पर निर्भर करता है। कम अणुभार वाले वसीय अम्ल का जलस्रोत (hydrophilic ) प्रकृति के होते हैं जो आंत्र की एपिथीलियल कोशिकाओं के मध्य उपस्थित अग्र योजनी शिरा की वाहनियों द्वारा अवशोषित कर लिये जाते हैं। उन आण्विक भार वाले वसीय मोनोग्लिसराइड्स, अम्ल जलविरागी (hydrophobic) होते हैं। इस प्रकार के वसीय अम्ल, डाइब्लिसराइड्स एवं काइलोमाइक्रोन (chiolomicrons) का अवशोषण सक्रिय परिवहन द्वारा रसांकुरों की कोशिकाओं द्वारा ही होता है। अधिकांश वसीय उत्पाद लसीका वाहिनियों (lymph vessles) द्वारा अवशोषित किये जाते हैं। यह पदार्थ यहाँ से लसीका तन्त्र (lymphatic system) में होते हुए अन्त में वक्षीय लसीका वाहिनी (thoracic lymph vessel) द्वारा कृत में पहुँच जाते हैं।
काइलोमाइक्रोन का व्यास लगभग 0.1 होता है तथा ये 2% प्रोटीन 7% फॉस्फोलिपिड 9% एवं 82% ट्राइग्लिसराइड से मिलकर बनते हैं। पायसीकृत वसा के कणों का व्यास 0.1 से 0.5p होता है तथा ये मिसेलस (micelles) कहलाते हैं। इनका अवशोषण बिना जल अपघटन के इसी रूप में होता जाता है। कभी-कभी पित्त नलिका अवरूद्ध (biliary obstruction) एवं यकृत दुष्कार्य (Liver dysfunction) के कारण अवशोषित वसा का सूत्र के साथ बाहर निष्कासन होने लगता है। इसे काइल्यूरिआ (chyluria) कहा जाता है। कभी-कभी वसा बाहर निकलकर प्लूरल द्रव्य (Pleural fluid) में आती है जिससे काइलोथोरेक्स (chylothorax ) नामक दशा उत्पन्न होती है।
वसा कं अवशोषण हेतु विभिन्न मत प्रस्तुत किये गये हैं। इनमें से मुख्य धारणायें निम्न हैं (A) प्राचीन मत (Old views ) : सन् 1990 से पूर्व ऐसा माना जाता था कि वसाओं का अवशोषण आंत्रीय सतह द्वा उनके वसीय अम्लों तथा ग्लिसरॉल में परिवर्तन के पश्चात् ही होता है ।
इसके बाद यह माना जाने लगा कि वसाओं का अवशोषण सूक्ष्म पायसीकृत कणों (emulsified particles) के रूप में होता है।
(B) पेलुगर का मत (Peluger’s view) : पेलुगर के अनुसार आंत्री कोशिकाओं द्वारा किसी भी पायसीकृत वसा का अवशोषण नहीं होता है तथा शरीर में सभी वसाओं के अवशोषण के पूर्व उनका अपघटन होने आवश्यक होता है।
(C) वसा अपघटनी परिकल्पना (Lipolytic hypotesis) : इस परिकल्पना के अनुसार वसा साबुन (soaps) के रूप में अवशोषित किया जाता है। अग्नाशयी लाइपेज के द्वारा प्राकृतिक वसा को वसीय अम्ल एवं ग्लिसरॉल में अपघटित किया जा है। इस प्रकार प्राप्त वसीय अम्लों का साबुनीकरण (saponification) अथवा पित्त लवणों की जलानुवर्ती क्रिया (hydrotropic action) ग्लिसरॉल के साथ आंत्र की एपिथीलीयल कोशिकाओं द्वारा अवशोषित किया जाता है। इन द्वारा जल में घुलनशील (soluble) बनाया जाता है। साबुनीकृत (saponified) वसीय अम्लों को कोशिकाओं में फॉस्फोलिपिड एवं ट्राइग्लिसराइड्स के साथ मिलकर जटिल ( complex) या संयुग्मित ( conjugated) वसाओं का निर्माण करते हैं। ये जटिल वसाऐं लसीका एवं वक्षीय वाहिनियों द्वारा रूधिर में पहुँचा दी जाती है।
(D) विभाजक परिकल्पना (Partition hypothesis) : इसे फ्रेजर (Frazer. 1940) ने प्रस्तुत किया था। इसके अनुसार वसाओं का अवशोषण जल अपघटनीय (hydrolyzed) एवं पायसीकृत ( emulsified) रूप में किया जाता है। फ्रेजर के अनुसार वसा छोटे बिन्दुओं (droplets) के रूप में आंत्रीय कोशिकाओं की सतह पर उपस्थित छिद्रों द्वारा इन कोशिकाओं के अन्दर प्रवेश करती है।
(E) आधुनिक मत ( Recent views ) : आधुनिक मतानुसार जटिल वसाओं (complex fats) का निर्माण अवशोषण के पश्चात होता है। ये लसीका वाहिनियों में देखी जाती है।
(iv) जल का अवशोषण (Absorption of water): जल का अवशोषण आमाशय में प्रारम्भ होता है परन्तु अधिकांशतया यह आंत्र एपिथीलियम सतह के द्वारा ही अवशोषित किया जाता है। सामानय मनुष्य में लगभग 15 से 20 लीटर जल एक दिन में अवशोषित किया जाता है। जल का अवशोषण मुख्यतया परासरण (Osmosis) की विधि द्वारा होता है। भोजन का परासरणीय दाब (osmotic : pressure) सामान्यतया काइम ( chyme) की अपेक्षा अधिक होता है।
(v) खनिज लवणों का अवशोषण (Absorption of mineral salts) : कार्बनिक खाद्य पदार्थों के साथ-साथ कुछ अकार्बनिक लवण भी आंत्र की उपकलीय कोशिकाओं द्वारा अवशोषित किये जाते हैं। क्षारीय धातुओं (alkaline metals) के लवण रूधिर में आंत्र की उपकला द्वारा अवशोषित किये जाते हैं। ये लवण अंतराकोशिकीय स्थानों (intercelluar spaces) द्वारा अवशोषिता नहीं किये जाते हैं। हैलोइड अम्ल (haloid acid) के लवण सल्फेट एवं कार्बोनेट की अपेक्षा अधिक अच्छी प्रकार से अवशोषित किये जा सकते हैं। Na. K. एवं CI- आयन शीघ्रता से परन्तु Mg एवं SO, आयन धीरे-धीरे अवशोषित किये जाते हैं।
(vi) विटामिन का अवशोषण (Absorption of vitamins) : जल में घुलनशील विटामिन जैसे विटामिन बी सम्मिश्र (बी) को छोडकर) एवं विटामिन ‘सी’ आंत्र की सतह द्वारा आसानी से विसरित हो सकते हैं। विटामिन बी12 के अवशोषण हेतु एक विशिष्ट तंत्र आवश्यक होता है । आमाशय में यह विटामिन, अतर् ग्रन्थियों द्वारा स्त्रावित इंट्रिमिक कारक (intrinsic factors) के साथ संयुग्मित हो जाता है। अवशोषण के पश्चात् रूधिर में विटामिन बी, इंट्रिसिक कारक से पृथक हो जाता है।
सारणी 2.7 : पाचन तंत्र के विभिन्न भागों में अवशोषण का सारांश
मुख | आमाशय | छोटी आंत | बड़ी आंत |
कुछ औषधियां जो मुख और जिव्हा की निचली सतह के म्यूकोसा के संपर्क में आती हैं। वे आस्तरित करने वाली रूधिक कोशिकाओं में अवशोषित हो जाती हैं ।
| जल, सरल शर्करा, एल्कोहॉल, आदि का अवशोषण होता है । | पोषक तत्वों के अवशोषण का प्रमुख अंग । यहां पर पाचन की क्रिया पूरी होती है और पाचन के अंतिम उत्पाद, जैसे- ग्लूकोस, फ्रक्टोस, वसीय अम्ल, ग्लिसेराल, और ऐमीनो अम्ल का म्यूकोसा द्वारा रक्त प्रवाह ओर लसीका में अवशोषण होता है ।
| जल, कुछ खनिजों ओर औषधि का अवशोषण होता है । |
वसा में घुलशील विटामिन जैसे विटामिन A, D, E एवं K मिसेलस में घुलकर आंत्र की श्लेष्मिका सतह से सरल विसरण (simple diffusion) द्वारा अवशोषित किये जाते हैं। इन विटामिनों का अवशोषण पित्त रस की उपस्थिति में शीघ्रता से होता है।
(4) बड़ी आंत्र द्वारा अवशोषण (Absorption from large intestine) : बड़ी आंत्र द्वारा सामान्यतया किसी भी खाद्य पदार्थ का अवशोषण नहीं किया जाता है क्योंकि काइल जब बड़ी आंत्र में पहुँचता है तब तक इसमें कोई अवशोषण के योग्य पदार्थ नहीं बच पाता है। बड़ी आंत्र में जल का अवशोषण होता है। कुछ दवाइयाँ एवं खनिज लवण भी इस धारा में अवशोषित किये जा सकते हैं परन्तु अवशोषण काफी धीरे होता है।
अवशोषण के अतिरिक्त बड़ी आंत्र का कार्य श्लेष्म का स्त्रावण (mucous seretion) केल्शियम, लोह, भारी धातुओं एवं दवाईयों का उत्सर्जन एवं जवाणुओं द्वारा सैल्यूलोस का अपघटन इत्यादि भी होता है।
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