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बौद्धिक प्रभाव : समाजशास्त्र या समाज पर बौद्ध प्रभाव का वर्णन कीजिये क्यों दीखता है intellectual revolution impact on society

intellectual revolution impact on society in hindi effect on sociaty  बौद्धिक प्रभाव : समाजशास्त्र या समाज पर बौद्ध प्रभाव का वर्णन कीजिये क्यों दीखता है ?

बौद्धिक प्रभाव
जैन (1989ः 1) के अनुसार आधुनिक सामाजिक नृशास्त्र दो विशिष्ट परंपराओं का सम्मिश्रण है। एक ओर तथ्यपरक, आनुभाविक नृजातीय परंपरा है, (जिसके बारे में आपने पिछली दो इकाइयों में पढ़ा है) तो दूसरी ओर समाज को एक समग्रता के रूप में देखने वाले (holistic) विश्लेषण की परंपरा है। पहले का प्रतिनिधित्व ब्रिटिश और अमरीकी सामाजिक नृशास्त्र करता है तो दूसरे का फ्रांसीसी समाजशास्त्र, जिस पर एमिल दर्खाइम हावी रहा। रैडक्लिफ-ब्राउन के सामाजिक नृशास्त्र पर इन दोनों परंपराओं की छाप है। सबसे पहले यह देखें कि रैडक्लिफ-ब्राउन के विचारों पर क्षेत्रीय शोधकार्य की परंपरा का क्या प्रभाव पड़ा।

 क्षेत्रीय शोधकार्य की परंपरा
रैडक्लिफ-ब्राउन जिन दिनों कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में पढ़ रहा था, उन दिनों वह विश्वविद्यालय एक बौद्धिक संपन्नता के दौर से गुजर रहा था। शिक्षक और विद्यार्थी निस्संकोच विचार-विमर्श और वाद-विवाद करते थे। रैडक्लिफ-ब्राउन 1904 में डब्ल्यू. एच. आर. रिवर्स का पहला नृशास्त्रीय विद्यार्थी हुआ। रिवर्स और हैडन प्रसिद्ध टोरेस स्ट्रेट्स अभियान में भाग ले चुके थे, जिसके विषय में आपने इकाई 23 में पढ़ा है।

रैडक्लिफ-ब्राउन ने रिवर्स और हैडन के मार्गदर्शन में क्षेत्रीय शोधकार्य शुरू किया। उसके अध्ययन का पहला क्षेत्र अंडमान द्वीपसमूह था। इस प्रकार रैडक्लिफ-ब्राउन ब्रिटिश वैज्ञानिक नृशास्त्र की आनुभाविक परंपरा में शामिल हो गया। इस काल में हुए अनुभवों का प्रभाव रैडक्लिफ-ब्राउन के सभी कामों पर जीवन पर्यन्त बना रहा।

‘‘द एलिमेंट्री फार्मस ऑफ द रिलिजसं लाइफ” नामक एमिल दर्खाइम की महत्वपूर्ण कृति ने ब्रिटिश विद्वानों को अत्यधिक प्रभावित किया। रैडक्लिफ-ब्राउन उनमें से एक था। आइयें देखें कि वह दर्खाइमीय विचारधारा की ओर क्यों आकृष्ट हुआ।

 दर्खाइमीय परम्पराः रैडक्लिफ-ब्राउन में बौद्धिक परिवर्तन
इस पाठ्यक्रम के खंड 3 में एमिल दर्खाइम के योगदानों का व्यवस्थित विश्लेषण किया गया है। ऐडम कूपर (1975ः 54) के शब्दों में दर्खाइमीय परंपरा ने वैज्ञानिक पद्धति दी। साथ में इस धारणा की पुष्टि की कि सामाजिक जीवन सुव्यवस्थित होता है जिसका बखूबी विश्लेषण किया जा सकता है और जो किसी हद तक वैयक्तिक भावनाओं से परे होता है। दर्खाइम को पूरी आस्था थी कि मनुष्य के लिए एक पूर्णतया व्यवस्थित समाज में एक ऐसा जीवन जीना संभव होगा जिसमें व्यक्ति तथा समाज दोनों का महत्व होगा। ऐसा समाज सावयवी एकात्मता पर आधारित होगा। (सावयवी एकात्मता के लिए देखिए खंड 3 की इकाई 1)

जैसा कि आपको मालूम है कि दर्खाइम ‘सामाजिक तथ्यों‘ का अध्ययन समाजशास्त्रीय पद्धति से करने के पक्ष में था। वह बिना किसी पूर्वाग्रह के निष्पक्ष रूप से इन तथ्यों का अध्ययन करने की बात करता था। उस के विचार में समाज वस्तुतरू एक प्रकार की नैतिक व्यवस्था है। सामूहिक चेतना (collective consciousness) की अवधारणा उसके अध्ययन का महत्वपूर्ण भाग है। दर्खाइम समाजशास्त्र को एक सामान्य विज्ञान की ही तरह निष्पक्ष और ठोस विज्ञान के रूप में श्विकसित करना चाहता था। इन सभी विचारों ने रैडक्लिफ-ब्राउन को आकृष्ट किया। दर्खाइमीय समाजशास्त्र तथा रैडक्लिफ-ब्राउन का सामान्य विज्ञान के लिए आकर्षण, दोनों के योग से रैडक्लिफ-ब्राउन के मन में भविष्य के लिए आदर्श समाज की संकल्पना उभरी।

संक्षेप में दर्खाइमीय परंपरा का रैडक्लिफ-ब्राउन के अध्ययनों पर यह प्रभाव पड़ा कि वह नृजाति विवरणशास्त्री (मजीदवहतंचीमत) से समाजशास्त्री बन गया। रैडक्लिफ-ब्राउन ने विभिन्न समाजों के बारे में जानकारी इकट्ठा करने के साथ-साथ इस जानकारी का समाजशास्त्रीय ढंग से विश्लेषण करने का प्रयास किया। आइए, अब हम रैडक्लिफ-ब्राउन द्वारा विकसित सामाजिक सरंचना की महत्वपूर्ण अवधारणा का अध्ययन करें। लेकिन उससे पहले बोध प्रश्न 1 के उत्तर लिखिए।

बोध प्रश्न 1
एक शब्द में उत्तर दें।
क) इसने रैडक्लिफ-ब्राउन को सबसे पहले सामाजिक नृशास्त्र का प्रशिक्षण दिया।……………………………
ख) क्षेत्रीय शोधकार्य को इसने नयी दिशा दी।………………….
ग) इस विश्वविद्यालय में रैडक्लिफ-ब्राउन ने सामाजिक नृशास्त का अध्ययन किया।……………………….
घ) इस द्वीपसमूह में रैडक्लिफ-ब्राउन ने अपना पहला क्षेत्रीय शोधकार्य आरंभ किया।………………………
ड) एक फ्रांसीसी समाजशास्त्री जिसने रैडक्लिफ-ब्राउन को प्रभावित किया ।…………………………………..

 बोध प्रश्नों के उत्तर
बोध प्रश्न 1
क) रिवर्स
ख) मलिनॉस्की
ग) केम्ब्रिज
घ) अंडमान
ड.) दर्खाइम

सारांश
इस इकाई का विषय था– रैडक्लिफ-ब्राउन द्वारा विकसित ‘सामाजिक संरचना‘ की अवधारणा। सबसे पहले हमने उन बौद्धिक प्रभावों की चर्चा की जिन्होंने रैडक्लिफ-ब्राउन के सामाजिक नृशास्त्र को अपनी विशेष पहचान या अस्मिता प्रदान की। इस संदर्भ में हमने क्षेत्रीय शोधकार्य और दर्खाइमी-परंपरा का उल्लेख किया।

इस इकाई के मुख्य विषय पर चर्चा करते हुए हमने सामाजिक संरचना और सामाजिक संगठन की व्याख्या की। सामाजिक संस्थाओं, जो संरचनात्मक विवरण के महत्वपूर्ण अंग हैं, पर भी ध्यान दिया गया। हमने यह भी देखा कि किस तरह सामाजिक संरचना में एक साथ परिवर्तनशीलता और निरंतरता है। इस संदर्भ में हमने समाज के संरचनात्मक रूप की चर्चा की।

इन विचारों को स्पष्ट करने के लिये हमने रैडक्लिफ-ब्राउन द्वारा प्रस्तुत पश्चिमी ऑस्ट्रेलियाई जनजातियों के संरचनात्मक विवरण पर नजर डाली। क्षेत्र, जनजाति, ‘मोइटी‘, ‘टोटम‘, जैसे संरचनात्मक आधारों की हमने चर्चा की।

 शब्दावली
दीक्षा समारोह इसके द्वारा समूह के युवकों को विधिवत प्रौढ़ स्तरीय सामाजिक जीवन में शामिल किया जाता है। इस स्तर के विशेष अधिकार और दायित्व होते हैं। (उदाहरण के लिये हिंदुओं में जनेऊ धारण करना दीक्षित होने का प्रतीक है।)
सावयविक एकात्मता दर्खाइम द्वारा विकसित अवधारणा। यह एक प्रकार की सामाजिक एकात्मता (ेवबपंस ेवसपकंतपजल) है (वतहंदपब ेवसपकंतपजल) जिसमें वैयक्तिकता और वैयक्तिक सृजनशीलता को पनपने का पूरा अवसर मिलता है।

 कुछ उपयोगी पुस्तकें
रैडक्लिफ-ब्राउन, ए.आर., 1958. सोशल स्ट्रक्चर. एम.एन. श्रीनिवास (सं.) मेथड इन सोशल एंथ्रोपॉलोजी. युनिवर्सिटी ऑफ शिकागो प्रेसः शिकागो

संरचना की अवधारणा – रैडक्लिफ-ब्राउन
इकाई की रूपरेखा
उद्देश्य
प्रस्तावना
बौद्धिक प्रभाव
क्षेत्रीय शोधकार्य की परम्परा
दर्खाइमीय परम्पराः रैडक्लिफ-ब्राउन में बौद्धिक परिवर्तन
रैडक्लिफ-ब्राउन द्वारा विकसित सामाजिक संरचना की अवधारणा
सामाजिक सरंचना और सामाजिक संगठन
सामाजिक सरंचना और सामाजिक संस्थाएं
सरंचनात्मक निरंतरता (structural continuity) और संरचनात्मक रूप (structural
form)
पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में संरचनात्मक व्यवस्था
क्षेत्रीय आधार
जनजातियाँ
मोइटी (moieties)
टोटम समूह
सारांश
शब्दावली
कुछ उपयोगी पुस्तकें
बोध प्रश्नों के उत्तर

उद्देश्य
इस इकाई को पढ़ने के बाद आपके लिए संभव होगा
ऽ उन बौद्धिक प्रभावों का उल्लेख करना जिनकी सहायता से रैडक्लिफ-ब्राउन के सामाजिक नशास्त्र का विशिष्ट स्वरूप तैयार हुआ
ऽ रैडक्लिफ-ब्राउन द्वारा विकसित ‘सामाजिक संरचना‘ तथा उससे संबंधित अन्य अवधारणाओं की व्याख्या करना
ऽ रैडक्लिफ-ब्राउन द्वारा प्रस्तुत एक उदाहरण के माध्यम से इन अमूर्त अवधारणाओं को भली-भाँति समझना।

प्रस्तावना
पिछली दो इकाइयों में आपने ब्रोनिस्लॉ मलिनॉस्की के कुछ महत्वपूर्ण योगदानों के विषय में पढ़ा। आइए, अब हम मलिनॉस्की के समकालीन प्रतिस्पर्धी ए आर रैडक्लिफ-ब्राउन के काम के बारे में पढ़े। रैडक्लिफ-ब्राउन मलिनॉस्की से तीन वर्ष बड़ा था और उसकी मृत्यु के बाद ग्यारह वर्ष तक जीवित रहा। वे दोनों अपने समकालीन ब्रिटिश सामाजिक नृशास्त्र पर छाये रहे। ऐडम कूपर (1975ः 51) के अनुसार “मलिनॉस्की रीति रिवाजों के पीछे मानवीय रुचि के प्रति अपनी जीवंत जागरूकता के कारण सामाजिक नृशास्त्र में एक नया यथार्थवाद लाया जबकि रैडक्लिफ-ब्राउन ने नये क्षेत्रीय शोधकर्ताओं की सहायता के लिए स्पष्ट, ठोस और व्यवस्थित अवधारणाओं का समावेश किया।‘‘ इस इकाई में हमने इन्हीं अवधारणाओं में से एक अर्थात् सामाजिक संरचना का अध्ययन किया है।

अपने काम को कुछ अधिक सरल बनाने के लिए पहले हमने संक्षेप में उन बौद्धिक प्रभावों का अध्ययन किया है जो रैडक्लिफ-ब्राउन के सामाजिक नृशास्त्र का विशिष्ट स्वरूप तैयार करने में सहायक हुए। यह इकाई का पहला भाग (24.2) होगा। दूसरे भाग (24.3) में इस इकाई के मुख्य विषय अर्थात् रैडक्लिफ-ब्राउन द्वारा सामाजिक संरचना के विश्लेषण की चर्चा की जाएगी।

तीसरे और अंतिम भाग (24.4) में पश्चिमी आस्ट्रेलिया की कुछ जनजातियों की संरचनात्मक विशेषताओं का विश्लेषण किया जायेगा, जिनका अध्ययन रैडक्लिफ-ब्राउन ने किया था। इन ठोस उदाहरणों द्वारा अमूर्त अवधारणाएं स्पष्ट हो सकेंगी।

 

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