1. असीमाक्षी पुष्पक्रम (Racemose Inflorescence ) : इसमें मुख्य अक्ष अनिश्चित रूप से बढ़ता है तथा पुष्प पाशर्व में अग्राभिसारी क्रम में लगे रहते है।
उदाहरण : मूली , सरसों , घास , केला , सहतूत आदि।
2. ससीमाक्षी पुष्पक्रम (Cymose Inflorescence) : इस प्रकार के पुष्प क्रम में मुख्य अक्ष सिमित वृद्धि वाला होता है और शीर्ष पर एक पुष्प बन जाने के कारण शीर्ष की वृद्धि रुक जाती है। शीर्षस्त पुष्प के नीचे शाखाएँ निकलती है व उनके शीर्ष पर भी पुष्प बन जाता है। पुष्प पुष्पीय अक्ष पर तलाभिसारी क्रम में लगे रहते है।
उदाहरण – गुडहल , मकोय , पॉपी , चमेली ,आक आदि।
पुष्प (Flower)
सममिति के आधार पर पुष्प :
ये तीन प्रकार के होते है –
1. त्रिज्या सममिति पुष्प : जब किसी पुष्प को किसी भी तल से दो बराबर भागो में विभक्त किया जा सके तो उसे त्रिज्या सममित पुष्प कहते है।
उदाहरण – सरसों , धतूरा।
2. एक व्यास सममित पुष्प : जब पुष्प को केवल उर्ध्वाधर तल से दो बराबर भागों में विभाजित किया जा सके तो उसे एक व्यास सममित पुष्प कहते है।
उदाहरण – मटर , अकेसिया , चना , गुलमोहर आदि।
3. असममित पुष्प : जब पुष्प को किसी भी तल से दो बराबर भागो में विभक्त नहीं किया जा सके तो उसे असममित पुष्प कहते है।
उदाहरण – केना।
पुष्पीय उपांगो की संख्या के आधार पर पुष्प :
1. त्रितयी पुष्प : जब पुष्पीय उपांग तीन के गुणक में हो तो उसे त्रितयी पुष्प कहते है।
2. चतुष्तयी पुष्प : जब पुष्पयी उपांग चार के गुणक में हो तो उसे चतुष्तयी पुष्प कहते है।
3. पंचतयी पुष्प : पुष्पयी उपांग पांच के गुणक में होती है तो उसे पंचतयी पुष्प कहते है।
सहपत्र की उपस्थिति के आधार पर पुष्प :
1. सह्पत्री पुष्प : जब पुष्प के साथ सहपत्र उपस्थित हो तो उसे सह्पत्री पुष्प कहते है।
2. सहपत्रहीन पुष्प : जब पुष्प के साथ सहपत्र अनुपस्थित हो तो उसे सहपत्रहीन पुष्प कहते है।
बाह्यदल , दल पुमंग व अंडाशय की सापेक्ष स्थिति के आधार पर
पुष्प तिन प्रकार के होते है –
1. अधो जायांगता (हाइपोगाइनस) : इस प्रकार के पुष्प जायांग पुष्पासन के सर्वोच्च स्थान (शीर्ष) पर होता है , बाकी अन्य अंग नीचे होते है , ऐसे पुष्पों में अंडाशय उधर्ववृत्ति होता है।
उदाहरण – सरसों , गुडहल , धतूरा।
2. परिजायांगता (पेरीगाइनस) : इस प्रकार के पुष्प में जायांग पुष्पासन के मध्य में होता है , शेष अन्य भाग पुष्पसन के किनारे पर पाये जाते है।
ऐसे पुष्पों में अंडाशय अर्धअधोवृति होता है।
उदाहरण – मटर , गुलाब।
3. अधिजायांगता (एपीगाइनस) : ऐसे पुष्पों में अण्डाशय पुष्पासन में धंसा रहता है तथा अंग पुष्पासन के शीर्ष भाग से निकलते है। इनमे अण्डाशय अधोवर्ती होता है। उदाहरण – सूरजमुखी , अमरुद , लोकी , गेंदा आदि।
पुष्प के भाग
1. कोरस्पर्श : पुष्प दलों के सिरे एक दूसरे को स्पर्श करते है , उदाहरण – सरसों , आक।
2. व्यावर्तित : जब प्रत्येक दल अपने पास वाले दल से एक ओर से ढका हो तथा दूसरी ओर पास वाले दल के एक किनारे को ढकता हो। उदाहरण – भिन्डी , कपास , गुडहल।
3. कोरहादी : दल के इस विन्यास में एक दल के दोनों किनारे ढके हुए होते है , शेष दलों के एक एक सिरे ढके हुए होते है , उदाहरण : गुलमोहर , केसिया , अमलताश।
4. वेक्जलरी : पांच दलों में पक्ध दल सबसे बढ़ा होता है जिसे ध्वजक कहते है। दो पाशर्व पंख कहलाते है व दो सबसे अन्दर संयुक्त होते है तल कहलाते है।
उदाहरण – मटर , चना , सेम , चावल , मूंग आदि।
(inflorescence meaning in hindi) पुष्पक्रम की परिभाषा क्या है ? अर्थ किसे कहते है , फूलना के प्रकार :
प्रत्येक जाति के पुष्पीय पौधे पर पुष्प कुछ निश्चित क्रम में व्यवस्थित होते है। पौधे की शाखा के शीर्ष पर पुष्प के उत्पन्न होने और व्यवस्थित होने की विधि (ढंग) को “पुष्पक्रम” कहते है। पुष्पक्रम का अक्ष पुष्पाक्ष कहलाता है।
(1) एकल पुष्प : ये वे पुष्प होते है जो पुष्पक्रम में समूह में नहीं होते है बल्कि अकेले होते है। एकल पुष्प दो प्रकार के होते है –
(i) एकल शीर्षस्थ : अकेला शीर्षस्थ पुष्प मुख्य तने या उसकी शाखाओं के शीर्ष पर विकसित होता है , उदाहरण पॉपी।
(ii) एकल कक्षस्थ : ये पुष्प पत्ती (उदाहरण : पिटुनिया) के कक्ष में या पुष्पावलि वृन्त के शीर्ष (उदाहरण : चाइना रोज = शू पुष्प = हिबिस्कस रोजा – सिनेनसिस) पर अकेले पाए जाते है।
(2) असीमाक्षी पुष्पक्रम : असीमाक्षी या अनिश्चित वृद्धि का पुष्पक्रम पाशर्व या कक्षस्थ पुष्प रखता है जो अग्राभिसारी क्रम (आधार की ओर पुराने और शीर्ष पर नए) में उत्पन्न होते है। असीमाक्षी पुष्पक्रम के विभिन्न प्रकार नीचे दिए गए है –
(a) सरल रेसीमोस पुष्पक्रम
(i) टिपिकल रेसीम (=रेसीम) : अशाखित , लम्बवत पुष्पावलि वृन्त या सवृन्त पुष्पों को अग्राभिसारी रूप से धारण करता है। उदाहरण डेल्फीनियम (लार्कस्पर) , मूली , ल्युपिनस , लाइनेरिया।
(ii) कॉरिम्ब : नीचे स्थित पुष्प के वृतंक के जरा से लम्बवन और पुष्पावलि वृंत के जरा छोटा होने के कारण सभी अग्राभिकारी रूप से विन्यसत पुष्प समान स्तर पर आ जाते है , उदाहरण : इबिरिस आमारा , (कैणडीटफ्ट)
(iii) कॉरिम्बोस रेसीम : पुष्पावलि वृंत के ऊपर वृद्धि बिंदु के नजदीक के पुष्प कॉरिम्ब के समान और नीचे की ओर के पुष्प रेसीम के समान व्यवस्थित होते है। यद्यपि नीचे फूलों के पेडिकल लम्बे होते है , उदाहरण : सरसों।
(iv) अम्बेल : इन्वोल्युकर के साथ नीचे की ओर अत्यधिक छोटे पुष्पावलि वृन्त के चारों ओर पेडीसिलेट पुष्प अपकेन्द्री रूप से व्यवस्थित होते है , उदाहरण : सेन्टेला (= हाइड्रोकोटाइल) एशियायाटिका (ब्रह्मी भूटी)
(v) स्पाइक : अवृन्त (अर्थात सवृन्त रहित) पुष्प अग्राभिसारी रूप से उत्पन्न होते है , उदाहरण – कैलिसस्टीमोन (वॉटल ब्रश ) , एकायरेंथस , एकीरैन्थीज , एडाथोडा।
(vi) स्पाइकलेट : यह कॉम्पैक्ट स्पाइक होता है। जिसमे कुछ पुष्प अक्ष पर उत्पन्न होते है। जिसे रेकीला कहते है तथा दो स्केल्स (ब्रेक्टस) के द्वारा घिरे होते है , जिसे ग्लूम कहते है। जैसे गेहूँ , जौ , जई , घास आदि।
(vii) स्ट्रोविलाई : यह स्पाइक होता है जिसमे चिरस्थाई और झिल्लीयुक्त ब्रेक्ट होता है , उदाहरण : हुम्मुलस (होप)
(viii) मंजरी : कॉम्पैक्ट एकलिंगी स्पाइक सामान्यतया लटका हुआ होता है , उदाहरण : मोरस (शहतूत) , सैलिक्स (विलो) , पोपूलस (पोपलर) , बेटुला (ब्रिच) , क्यूरकस (ओंक)
(ix) स्पैडिक्स : मांसल स्पाइक निपत्रों के साथ ढके रहते है जिसे स्पेडिक्स कहते है , उदाहरण – मक्का , केला आदि।
(x) कैपिटुलम (रेसीमोस मुण्डक , एंथोडियम) : पुष्पावलि वृन्त चपटा होता है जो आशय को बनाता है जो अपकेन्द्री रूप से विन्यसत ब्रेक्ट के इन्वोल्युकर के द्वारा घिरे पुष्पक या अवृन्त पुष्प को धारण करता है। उदाहरण : कोजमोस , जिनिया , टेगीरस , क्रायसेंथियम , सोनकस , एजीरेटम। पुष्पक टिब्रियूलर अथवा लिग्यूलेट हो सकते है। कैपिटूला होमोगैमस / पुष्पक के एक प्रकार के साथ उदाहरण : सोनकस अथवा जिनिया में केवल लिग्यूलेट और वर्नोनिया में केवल टयुब्यूलर। सूरजमुखी (हैलीएन्थस एनस) हेट्रेरोगेमस के साथ दोनों लिग्यूलेट मादा रश्मि पुष्पक या ट्ब्यूलर इन्टरसेक्सुअल बिम्ब पुष्पक होते है।
(b) संयुक्त असीमक्षी पुष्पक्रम
(i) संयुक्त रेसीम : रेसीम्स , रेसीम पर अग्राभिसारी रूप से उत्पन्न होते है , उदाहरण : केसिया फेस्टुला , डीलोनिक्स रेजिया।
(ii) संयुक्त कोस्मिब : कॉरिम्बोस क्रम में अक्ष कॉरिम्बस की संख्या को धारण करता है उदाहरण : पाइरस , फूलगोभी .फूलगोभी (ब्रैसिका ओलिरोसिया किस्म बोट्रिटिस) अपरिपक्व पुष्पक्रम को प्रदर्शित करती है।
(iii) संयुक्त अम्बेल : बहुत से अम्बेल अम्बेलीयेंट क्रम में सामान्य बिंदु से विकसित होते है। यह लक्षण कुल अम्बेलीफेरी का है। इन्वोल्युकर (मदर अम्बेल के नीचे) और इन्वोल्यूमिल (प्रत्येक अम्बेलीयुली के नीचे) उपस्थित हो सकते है। उदाहरण : धनियाँ , सोफ़ , गाजर , जीरा।
(iv) संयुक्त स्पाइक : उदाहरण : अमेरेंथ्रस स्पाइनोसस।
(v) संयुक्त स्पाइकलेट : उदाहरण : गेंहू।
(vi) संयुक्त स्पेडिक्स : उदाहरण : खजूर , नारियल।
(vii) पेनिकल ऑफ़ स्पाइकलेट : उदाहरण – ज्वार , चावल , जई।
(3) सीमाक्षी पुष्पक्रम : अधिक अथवा कम चपटा शीर्ष , निश्चित वृद्धि अथवा निर्धारित वृद्धि का विस्तृत पुष्पक्रम होता है (अर्थात केन्द्रीय पुष्प अधिक परिपक्व होते है) यहाँ मुख्य अक्ष , पुष्प में परिवर्तित हो जाता है।
(a) एकल शाखी समीमाक्ष : पुष्प अक्ष सिम्पोडियल होता है। वृद्धि बिंदु , फूल में रुक जाती है , आगे पाशर्व शाखाओं के द्वारा वृद्धि सतत होती रहती है , यह भी पुष्प में रुक जाती है।
(i) घोंघाकार अथवा कुण्डलिनीरूप एकलशाखी : पुष्प एक तरफ उत्पन्न होते है , बिगोनिया , ड्रोसेरा। एक ड्रीपेनियम (एक तल में पुष्प ) या बोंसट्रिक्स (विभिन्न तलों में पुष्प ) हो सकते है।
(ii) वृश्चिकी एकलशाखी : पुष्प दोनों ओर एकांतर क्रम में उत्पन्न होते है। उदाहरण : टेकोमा , फ्रिसिया , हीलियोट्रोपियम। राइपिडियम वृश्चिकी समीमाक्ष होता है जिसमे सभी पुष्प एक तल (सोलेनम नाइग्राम) में उत्पन्न होते है जबकि सिनसिनस में पुष्प विभिन्न तलो में उत्पन्न होते है।
चाइना रोज का एकल कक्षस्थ पुष्प को अकेला पुष्प एकल शाखी समीमाक्ष समझा जाता है।
(b) द्विशाखी : पुष्प अक्ष की वृद्धि दो शाखाओं के द्वारा होती रहती है जबकि जनक अक्ष का वृद्धि बिंदु पुष्प में परिवर्तित हो जाता है। उदाहरण : डाईएन्थस (गुलाबी)
पुष्पों की व्यवस्था या तो बेसीपेटल (यदि अक्ष लम्बा) या सेंट्रीफ्यूगल (यदि अक्ष छोटा) होती है।
(c) बहुशाखी : पुष्प अक्ष की दो से अधिक शाखाओं की वृद्धि होती रहती है जबकि जनक अक्ष पुष्प में परिवर्तित हो जाता है। उदाहरण : कैलाट्रोपिस , हेमिलिया। पुष्पों की व्यवस्था सामान्यतया सेंट्रीफ्यूगल होती है।
(d) साइमोस मुण्डक : अभिकेन्द्रीय रूप से विन्यस्त पुष्पों की संख्या आशय के चारों ओर उत्पन्न होती है उदाहरण : एन्थोसिफेलस केडम्बा (कादाम) | अकेशिया , मिमोसा और एलविजिया में भी इसी प्रकार का पुष्पक्रम पाया जाता है लेकिन इन्हें पुष्पों के अभिकेन्द्रीय विन्यास के कारण कैपिटेट या स्पाइक मुण्डक समझा जाता है।
(e) स्केपीगेरस साइम अम्बेल : प्याज में , पुष्पदंड एक या अधिक स्पेथ के द्वारा ढके हुए अम्बीलेट साइम को धारण करता है।