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Categories: Biology

वसा एवं तेल के प्रमुख गुण क्या है (Important properties of Fats and Oils in hindi)

(Important properties of Fats and Oils in hindi) वसा एवं तेल के प्रमुख गुण क्या है ?

व्युत्पन्न लिपिड (Derived lipids)

ये विभिन्न लिपिडो के जलापघटन के फलस्वरूप बने उत्पाद अथवा लिपिड के समान संरचना युक्त पदार्थ जैसे स्टीरोल इत्यादि होते हैं जिनमें स्टीरोल मुख्य हैं। (sterol), कैरोटिनोइड (carotenoids), वाष्पशील तेल (essential oil) कीटोन (ketones), हाइड्रोकार्बन (hydrocarbon)

स्टीरोल मोम की भांति ठोस होते है तथा रासायनतः ये एल्कोहल के रूप में अथवा वसा अम्लों के ऐस्टर के रूप में होते हैं। इन सभी में एक चार वलयों से बना साइक्लोपैंटानोपरहाइड्रोफीनेन्थ्रीन (cyclopentanoperhydrophenanthrene) अथवा स्टीरेन नामक मुख्य घटक होता है। ये ट्राइटरपीनाइड समूह के अर्न्तगत आते है तथा पादपों, जंतुओं एवं सूक्ष्म जीवों में कोशिका झिल्ली एवं कोशिकाओं में पाये जाते हैं। स्टीरोल का साबुनीकरण नहीं किया जा सकता ।

पालक से स्पाइनेस्ट्रीरोल (spinasterol), पत्तागोभी से स्टिग्मास्टीरोल (stigmasterol) एवं तथा अनाज के बीजों में साइटोस्टीरोल (sitosterol) कुछ उदाहरण है। जन्तुओं में कॉलेस्टीरोल (cholesterol), टेस्टोस्टीरोन (testosterone) एवं प्रोजेस्टोरीन (progesterone) इत्यादि स्टीरोल आमतौर पर पाये जाते हैं। इनमें से अनेक हार्मोन तथा विटामिन डी के पूर्वगामी भी होते हैं । यीस्ट एवं कवकों में अर्गोस्टीरोल (ergosterol) पाया जाता है जो पराबैंगनी किरणों में अर्गोकैल्सीफरॉल (ergocalciferol) अर्थात विटामिन D2 में परिवर्तित हो जाता है।

पादप स्टीरोल में अपेक्षाकृत अधिक संख्या में पार्श्व श्रृंखलाए होती हैं जो C-24 पर बनती है एवं एक अथवा दो कार्य परमाणुओं से बनती है। इसके अतिरिक्त C-13 एवं C-17 पर भी कुछ प्रतिस्थापी (substituents) समूह होते हैं। कैराटिनाइड वसा विलायकों (solvents) में घुलनशील होते हैं अतः इन्हें भी लिपिड के अर्न्तगत माना जाता है। इस कैरोटिन (carotenes) जैन्थोफिल ( xanthophyll) आते हैं।

कैरोटीन दीर्घ श्रृंखला युक्त असंतृप्त रैखिक हाइड्रोकार्बन होते हैं तथा C40  H56  द्वारा निरूपित किया जाता है। इनमें स्थल पर द्विबन्ध होते हैं अतः यह पोलीइन श्रृंखला (polyene chain) कहलाती है। उदाहरण B- कैरोटीन । जैन्थोफिल वास्तव में एल्कोहल एवं कीटोन (ketones) होते हैं तथा इनमें कार्बन व हाइड्रोजन के अतिरिक्त ऑक्सीजन ये कैरोटीनोल (carotenols) भी कहलाते हैं।

वाष्पशील तेल (essential oils) भी वसा में विलेय होते है इसके कारण इन्हें लिपिड के अंतर्गत माना जाता है। इनमें से अधिकांश टरपीन्स (terpenes) होते हैं जो आइसोप्रीन, आइसोपैन्टीन अथवा बैन्जीन से व्युत्पन्न होते है। विशिष्ट महक अनेक पादपों जैसे चीड (pine), पुदीना (mint), गुलाब (rose). नींबू (lemon) एवं यूकेलिप्टस इत्यादि में पाये जाते हैं।

वसा एवं तेल के प्रमुख गुण (Important properties of Fats and Oils)

भौतिक एवं रासायनिक गुण इस प्रकार हैं-

भौतिक गुण (Physical properties)

(i) सतृप्त वसा सामान्य तापमान पर ठोस एवं असंतृप्त वसा तरल के रूप में होती है। (ii) शुद्ध वसा एवं तेल लगभग रंगहीन एवं गन्धहीन होते हैं।

(ii) ये जल में अविलेय होते हैं एवं कार्बनिक विलायकों जैसे ईथर, क्लोरोफार्म, बैंन्जीन, एसीटोन इत्यादि में विलेय (soluble) है।

(iv) इमल्सीकारकों (emulsifiers) जैसे गोंद, साबुन, इत्यादि एवं जल के साथ हिलाने पर इनका इमल्सीकरण (emulsificaton) हो जाता है।

(v) इन का विशिष्ट गुरूत्व (sepcific gravity) जल के मान से कम होने के कारण ये जल की सतह पर तैरते रहते

(vi) ये उष्मा रोधी (insulators) होते हैं।

(vii) इनका गलनांक इनके घटक अम्लों की श्रंखला की लंबाई (chain length) एवं उनकी संतृप्तता (saturation) पर निर्भर करता है। श्रंखला की लंबाई (> C103) संतृप्ता बढ़ने के साथ-साथ गलनांक भी बढ़ता जाता है। असंतृप्त वसा अम्लों का आधिक्य होने पर ये सामान्य ताप पर भी तरल अवस्था में होते हैं।

  1. रासायनिक

    गुण (Chemical properties)

(i) जल अपघटन (Hydrolysis)

वसा एवं तेल का एल्कली (alkali) अथवा लाइपेज़ एन्जाइम द्वारा अपघटन होता है तथा वसा अम्ल एवं ग्लिसरोल बनते हैं।

लाइपेज़ की उपस्थिति में पहले कार्बन से वसा अम्ल विलग होते है तथा बाद में B कार्बन पर क्रिया होती है इससे ट्राइग्लिसराइड से पहले द्विग्लिसराइड, फिर मोनोग्लिसराइड एवं अंत में ग्लिसरोल बनते हैं।

(ii) आक्सीकरण (Oxidation)

वायु की उपस्थिति में रखने पर धीरे-धीरे इन का आक्सीकरण एवं जल अपघटन भी होता है। आक्सीकरण सामान्यतः द्विबन्ध को प्रभावित करता है तथा छोटी श्रृंखला युक्त अम्ल कीटोन एवं एलडिहाइड बनते हैं। इसके साथ ही जल अपघटन से भी वसा अम्ल बनते हैं इनमें से कुछ वाष्पशील (volatile) होते है। इनके कारण वसा का स्वाद (taste) एवं महक ( odour) खराब हो जाते हैं इस प्रक्रिया को विकृतगंधिता (rancidity) कहते हैं तथा वसा विकृतगंधी (rancid) कहलाती है।

(iii) साबुनीकरणी (Saponification)

वसा को तीव्र एल्कली जैसे NaOH एवं KOH इत्यादि विलयन के साथ मिला कर गरम करने पर ग्लिसरोल (glycerol) एवं वसा अम्ल के सोडियम अथवा पोटाशियम लवण बनते हैं जिन्हें साबुन (soap) कहते हैं। यह प्रक्रिया साबुनीकरण (saponi fication) कहलाती है।

 (iv) हाइड्रोजिनीकरण (Hydrogenation)

वसा अथवा तेल में निकल (Nickel) धातु की उपस्थिति में उच्च दाब पर हाइड्रोजन गैस प्रवाहित करने पर द्विबन्ध कार्बन पर हाइड्रोजन परमाणु जुड़ जाते हैं इसे हाइड्रोजिनीकरण कहते हैं। इस विधि द्वारा व्यावसायिक स्तर पर वनस्पति घी (vegetable ghee) बनाया जाता है।

वसा के मुख्य रासायनिक स्थिरांक (Important chemical constants of fats)

वसा के रासायनिक संगठन एवं रासायनिक गुणों पर आधारित कुछ स्थिरांक विभिन्न विशिष्ट वसा एवं लिपिडों के लिए निश्चित होते हैं। इनमें से कुछ निम्न हैं-

  1. साबुनीकरण मान (Saponificaton value) – 1 ग्राम वसा के साबुनीकरण के लिए आवश्यक KOH की मिलीग्राम में मात्रा को साबुनीकरणमान कहते हैं। इससे वसा अम्लों की श्रंखला की लंबाई का अनुमान लगाया जा सकता है। उच्च अणुभार युक्त वसा का साबुनीकरण मान कम होता है।

इसके लिए मानक एल्कोहली KOH विलयन में वसा की निश्चित मात्रा मिलाकर बाद में अप्रयुक्त KOH की मात्रा टाइट्रेशन (titration) के द्वारा ज्ञात की जाती है। इससे साबुनीकरण के लिए प्रयुक्त (consumed ) KOH का मान निकाला जा सकता है।

  1. एसिड मान (Acid value) वसा की । ग्राम मात्रा में उपस्थित स्वतंत्र वसा अम्लों को उदासीन करने के लिए आवश्यक KOH की मात्रा (मिलीग्राम) एसिडमान कहलाती है। सामान्यतः उच्च गुणवत्ता वाले तेल एवं वसा में इनका मान कम होता है।
  2. आयोडीन मान (Iodine value) – वसा की 100g मात्रा द्वारा अवशोषित आयोडीन की मात्रा (ग्राम) आयोडीन मान कहलाती है। यह वसा की असंतृप्ता का परिचायक है। उच्च आयोडीन मान का अर्थ हैं वसा में अधिक असंतृप्त वसा अम्लो की उपस्थिति घी अथवा मक्खन का आयोडीन मान मूंगफली तेल सूरजमुखी तेल से बहुत कम होती है।
  3. रीचर्ट-मीस्ल मान (Reichert-Meissl value)- 5g वसा के साबुनीकरण के पश्चात् उपस्थित जल में विलेय वाष्पशील वसा अम्लों को उदासीन करने के लिए आवश्यक 0.INKOH की मात्रा (mL) रीचर्ट – मीस्ल मान कहलाती है। यह मक्खन एवं घी की शुद्धता मापने के लिए महत्वपूर्ण है। मक्खन के लिए यह मान तेल की अपेक्षा कम (28-30) होता है।
  4. एसिटाइल मान (Acetyl value): । g वसा के एसिटाइलेशन के बाद साबुनीकरण के फलस्वरूप प्राप्त एसीटिक अम्ल ‘के उदासीनीकरण के आवश्यक KOH की मात्रा (mg) उसका एसिटाइलमान कहलाता है। इससे वसा में उपस्थित हाइड्रॉक्सी (OH) समूहों के बारे में ज्ञात होता है।

इसके अतिरिक्त कुछ भौतिक गुण यथा गलनांक (melting point), अपवर्तनांक (refractive index). श्यानता (Viscosity) साथ लाल रंग देना भी वसा एवं तेल की पहचान के लिए उपयोगी होते हैं।

लिपिड का जैविक एवं व्यावसायिक महत्त्व (Biological and commercial significance of lipids )

जैविक महत्त्व (Biological significance )

  1. कोशिका संगठन (Cellular organization)- लिपिड विशेषकर फास्फोलिपिड, ग्लाइकोलिपिड, लिपोप्रोटीन, स्टीरोल इत्यादि संरचनात्मक लिपिड (structural lipids) हैं एवं कोशिका तथा कोशिकांग कलाओं (membranes of cell and मुख्य घटक हैं। सेरिब्रोसाइड ( cerebrosides) एवं स्फिंगोसाइड (sphingoside ) मस्तिष्क तथा तंत्रिकाओं की कोशिकाओं के महत्त्वपूर्ण संरचनात्मक घटक हैं तथा तंत्रिका में आवेग (impulse) के संचरण को सहायता करते हैं। इस प्रकार ये कोशिका संगठन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

2.उर्जा स्त्रोत (Energy source)- लिपिड उर्जा के अच्छे स्त्रोत हैं एवं प्रोटीन अथवा कार्बोहाइड्रेट की अपेक्षा अधिक उष्मा प्रदान करते है । 1 g वसा के पूर्ण आक्सीकरण से लगभग 9 Kcal उर्जा मिलती है।

  1. भोजन संग्रहण (Reserve food)- वसा, तेल अथवा लिपिड पादपों ने यह मुख्यतया बीजों में तथा जंतुओं में एडिपोज ऊतक (adipose tissue) में पाये जाते है। पादपों में इस का उपयोग बीजांकुरण एवं पादपक (seedling) वृद्धि के समय किया जाता है। जंतुओं में इसका उपयोग उष्मा रोधी परत के साथ शीत निद्रा (hibernation) के समय उर्जा स्त्रोत के रूप में भी किया जाता है।
  2. उष्मारोधी परत (Insulation layer)—- जंतुओं में त्वचा के नीचे भीतरी अंगों के चारों और वसा की परत उष्मारोधी (heat insulator) के रूप में कार्य करती है।
  3. अंगों की सुरक्षा (Protection of organs)- वसा पदार्थों की एडिपोज परत एक कुशन एवं स्नेहक (fushion and lubricant) के रूप में कार्य करती है तथा हृदय, फेफड़े, आंतों, वृक्क जैसे आंतरिक अंगों को सुरक्षा प्रदान करती है व प्रघात (shock) से बचाती है।
  4. हार्मोन एवं विटामिन (Hormones and Vitamins) – विभिन्न प्रकार के हार्मोन, कोलिक अम्ल (cholic acids) व विटामिन (जैसे विटामिन D ) का संश्लेषण स्टीरोल (यथा कॉलेस्टीरोल) एवं वसा अम्ल व्युत्पन्न रसायनों (fatty acid derivatives) से होता है ।
  5. वाहक के रूप में (As carriers )- लिपिड अनेक ऐसे पदार्थो के लिए वाहक का कार्य करते हैं जो लिपिड में घुलनशील भी कुछ लिपिड विलेय होते हैं जैसे वसा में विलेयकारी विटामिन (विटामिन A, D एवं E इत्यादि । कोशिका झिल्ली के पार पदार्थों के संवहन में लिपिड सहायक होते हैं।
  6. रक्षीपरत (Protective layer)- मोम पादपों, पक्षियों, कीटों एवं फर युक्त जन्तुओं में जलरोधी परत (water barrier) रूप में पायी जाती है। पादपों में यह जल रोधी प्रकृति एवं रासायनिक निष्क्रियता के कारण मुख्यतः फलों एवं पत्तियों पर रक्षी परत के रूप में कार्य करती है ।

व्यावसायिक महत्त्व (Commercial significance)

1.अनेक पादपों के बीजों में संचित लिपिड को खाद्य तेल के रूप में उपयोग किया जाता है जैसे मूंगफली, सरसो, करडी एवं सूरजमुखी इत्यादि।

  1. कुछ पादपों के बीजों से विलगित तेल (जैसे अरंडी (Ricinus ) एवं अलसी (linseed ) इत्यादि) को विभिन्न उद्योगों के रूप में उपयोग होता है।
  2. लौंग तेल, नीम तेल, अरंड का तेल इत्यादि औषधि के रूप में उपयोग होता है।
  3. खाद्य तेलों को हाइड्रोजनीकरण (hydrogenation) के द्वारा वनस्पति घी के रूप में उपयोग करते हैं।
  4. मोम का उच्च गलनांक, रासायनिक निष्क्रियता एवं जल में अविलेयता के कारण इन्हें फर्नीचर की पालिश करने के लिए उपयोग किया जाता है।

इसके अतिरिक्त भी अनेक व्यावसायिक उपयोग हेतु लिपिड का प्रयोग किया जाता है।

लिपिड का आक्सीकरण (Oxidation of lipids)

वसा के आक्सीकरण में तीन चरण होते हैं-

  1. वसा का अपघटन
  2. ग्लिसरोल का पाइरूवेट में परिवर्तन व आक्सीकरण III वसा अम्लों का आक्सीकरण
  3. वसा का अपघटन ( Breakdown of lipid )

प्राकृतिक परिस्थिति में लाइपेज एन्जाइम, जल अपघटन (hydrolysis) द्वारा वसा लिपिड को आक्सीकरण से पूर्व वसा अम्ल एवं ग्लिसरोल में परिवर्तित कर देता है यह प्रक्रिया तीन चरणों में पूरी होती है तथा सबसे पहले ∝ कार्बन पर क्रिया होती है तब B कार्बन पर अभिक्रिया होती है।

  1. ग्लिसरोल का पाइरूवेट में परिवर्तन एवं आक्सीकरण

(Conversion of glycerol to pyruvate and its oxidation)

ग्लिसरोल ATP से अभिक्रिया कर ग्सिलरोल फास्फेट बनाता है जो आक्सीकरण द्वारा ग्लिसरैलडिहाइड 3PO में परिवर्तित हो जाता है यह पाइरूवेट में बदल जाता है तथा TCA चक्र द्वारा इसका पूर्ण आक्सीकरण हो जाता है। इसके बारे में श्वसन में विस्तार से दिया गया है अन्यथा ग्लाइकोलिसिस की विपरीत प्रक्रिया द्वारा ग्लूकोज एवं फ्रक्टोज अथवा ग्लाइकोजन भी बन सकता है।

III. वसा अम्लों का आक्सीकरण (Oxidation of fatty acids)

अम्लों का आक्सीकरण मुख्यतः दो परिपथों के माध्यम से होता है 1. B आक्सीकरण एवं 2. आक्सीकरण ।

  1. वसा अम्लों का B आक्सीकरण (B oxidation of fatty acids)- इस परिपथ की खोज नूप (F. Knoop) द्वारा 1904 में जंतुओं में की गई थी। बाद में पादप ऊतकों में भी इससे संबंधित एन्जाइम की उपस्थिति पायी गई !

वसा अम्लों का B ऑक्सीकरण माइटोकॉन्ड्रिया में होता है तथा तीन चरणों में पूरा होता है।

  1. यह जंतुओं एवं अधिकांश पादपों में होता है। इस प्रक्रिया में बारम्बार 2 कार्बन युक्त एकक (2 carbon unit) एसिटाइल कोएन्जाइम A (Acetyl CoA) के रूप में निकलते है।

2.Bऑक्सीकरण के फलस्वरूप बने एसिटाइल समूह का सिट्रिक एसिड चक्र (TCA चक्र) द्वारा पूर्ण आक्सीकरण होता

  1. ऑक्सीकरण तथा TCA चक्र दोनों में NADPH एवं FADH, बनते हैं। इनका पूर्ण ऑक्सीकरण इलैक्ट्रान परिवहन तंत्र (electron transport system) के माध्यम से होता है तथा ऊर्जा ATP के रूप में उपलब्ध होती है।

वसा अम्ल सामान्यतः कोशिका द्रव्य (cytoplasm) में होते हैं जबकि 3 ऑक्सीकरण में आवश्यक एन्जाइम माइटोकोन्ड्रिया की भीतरी झिल्ली (inner membrane of mitochondria) में पाये जाते हैं। अतः वसा अम्लों के भीतर प्रविष्ट होने के लिए सक्रिय (activate) करना पड़ता है।

वसा अम्लों का सक्रियण एवं माइटोकोन्ड्रिया में प्रवेश (Activation and entry of fatty acids in mitochondria) (i) वसा अम्ल के सक्रियता (activation) के लिए वसा अम्ल ATP से वांछित ऊर्जा लेते हुए कोएन्जाइम से जुड़ कर फैटी एसाइल CoA (fatty acyl CoA) बनाते हैं।

R—CH2—RH2COOH + ATP + CoA – SH एसाइल थायोकाइनेज़ R-CH2-CH2-C-S-CoA+AMP+PPi इसके बाद यह विशिष्ट वाहक प्रोटीन कार्निटिन से जुड़कर माइटोकोन्ड्रिया के बाहर से भीतर की ओर स्थानांतरित हो जाता है।

ऑक्सीकरण (Oxidation)

(ii) विहाइड्रोजनीकरण (Dehydrogenation)- इस प्रक्रिया में वसा अम्ल के a एवं B कार्बन से जुड़े हाइड्रोजन परमाणु निकल जाते है तथा ट्रांस ap- असंतृप्त वसा एसाइल CoA बनता है। इसके लिए एसाइल CoA डिहाइड्रोजिनेज एवं FAD की आवश्यकता होती है।

(C16)R—CH2—CH2—C – S. CoA  एसाइल CoA डिहाइड्रोजिनेज़  FADH2

संतृप्त वसा एसाइल CoA    ट्रांस a-b असंतृप्त वसा एसाइल CoA

इस प्रक्रिया के लिए तीन प्रकार के डिहाइड्रोजिनेज एन्जाइम पाये जाते हैं जिनमें से एक दीर्घ श्रंखला युक्त वसा अम्लों (C14-C18) पर अभिक्रिया करते हैं तथा शेष मध्यम अथवा छोटी श्रंखला पर अभिक्रिया करते हैं ।

(iii) इस असंतृप्त वसीय एसाइल CoA में द्विबन्ध स्थल पर (at double bond) एक अणु जल का जुड़ जाता है एवं

यह एन्जाइम इनोइल हाइड्रेज (Enoyl hydrases) की उपस्थिति – हाइड्रोक्सी एसाइल CoA (B-hydroxyl acyl CoA) में परिवर्तित हो जाता है

(iv) अब इस में से हाइड्रोजन का एक अणु NAD+ एवं B-कीटोएसाइल थायोलेज़ (B-ketoacyl thiolase) एन्जाइम की mi fireap कार्बन से अलग हो जाता है एवं कीटो वसा एसाइल CoA (B keto fatty acyl CoA) बन जाता है।

(v) B आक्सीकरण के अंतिम चरण में 3 कीटो वसा एसाइल CoA से एसिटाइल CoA एन्जाइम B कीटोएसाइल थायोलेज़ की उपस्थिति में अलग हो जाता है एवं वसा एसाइल CoA अणु बनता है। जिसमें परमाणुओं की संख्या पहले से दो कम होती है अर्थात C-18 से C – 16 ही रह जाती है।

यह प्रक्रिया (step ii से v तक) बार बार चलती रहती है एवं प्रत्येक चक्र में एक एसिटाइल CoA निकलता जाता है उदाहरण के तौर पर पाल्मिटिक वसा अम्ल [CH3 (CH2) 14 COOH] के पूर्ण आक्सीकरण के फलस्वरूप 8 एसिटाइल CoA बनते हैं ।

CH3(CH2)14COOH + ATP +7NADH+ + 7FAD + 7H2O + 8 CoASH

पाल्मिटिक अम्ल

8CH3C—S CoA +AMP+PPi + 7NADH +7H+ + 7FADH2

8 एसिटाइल CoA

एसिटाइल CoA का आक्सीकरण सिट्रिक एसिड चक्र (TCA चक्र) द्वारा होता है अथवा बीजांकुरण के समय ग्लाइऑक्सेलेट चक्र के माध्यम से इसका उपापचय होता है। TCA चक्र में प्रविष्ट करने पर विभिन्न क्रियाओं से होते हुये इसका पूर्ण आक्सीकरण हो जाता है तथा CO2. H2O एवं ऊर्जा प्राप्त होते हैं । ग्लाइऑक्सेलेट चक्र के बारे में आगे बताया गया है ।

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