JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: indian

विचारधारा क्या है , अर्थ , प्रकार , ideology in hindi , meaning , definition , types , योग विचारधारा , न्याय

ideology in hindi , meaning , definition , types , योग विचारधारा , न्याय विचारधारा क्या है , अर्थ , प्रकार किसे कहते हैं ?

दर्शन
परिचय
प्राचीन भारतीय साहित्य में दर्शन की लम्बी परम्परा रही है। कई दार्शनिक जीवन और मृत्यु के रहस्यों तथा इन दोनों शक्तियों के परे स्थित संभावनाओं का पता लगाने में रत रहे हैं। प्रायः उनके द्वारा प्रतिपादित दर्शन तथा धार्मिक संप्रदाय एक-दूसरे को आच्छादित करते हैं। राज्य तथा वर्ण-विभाजित सामाजिक व्यवस्था के भारतीय उप-महाद्वीप का मुख्य आधार बन जाने के बाद विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं के बीच के अंतर स्पष्ट होने लगे। सभी दार्शनिक विचारधाराएँ इस बात पर सहमत हुईं कि मनुष्य को निम्नलिखित चार लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयास करना चाहिएः

जीवन के लक्ष्य अर्थ लक्ष्यों पर प्रबंध
अर्थ आर्थिक साधन या धन अर्थशास्त्रा में अर्थव्यवस्था से संबंधित मुद्दों पर चर्चा की गई है।
धर्म सामाजिक व्यवस्था का राज्य से संबंधित मुद्दों की चर्चा धर्मशास्त्रा में की गई है।
विनियमन
काम शारीरिक सुख-भोग या प्रेम कामशास्त्रा/कामसूत्रा की रचना यौन विषयों पर विस्तार से प्रकाश डालने के लिए की गयी थी।
मोक्ष मुक्ति दर्शन से सम्बद्ध कई ग्रन्थ हैं, जिनमें मुक्ति की चर्चा भी की गयी है।
यद्यपि सभी विद्वानों ने यह प्रतिपादित किया कि मनुष्य को इन्हीं चार लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए, जीवन का मुख्य उद्देश्य जीवन तथा मृत्यु चक्र से मुक्त होना है। धीरे-धीरे कुछ विचारधाराओं में मुक्ति के साधनों को लेकर भिन्न मत हो गए तथा ईसाई युग के प्रारम्भ तक दो दर्शन धाराएं उत्थान की ओर अग्रसर थीं। ये विचारधाराएँ निम्नलिखित थींः

परम्परागत या रूढ़िवादी विचारधाराएं
इस विचारधारा का मानना था कि वेद ज्ञान के सर्वोच्च ग्रन्थ हैं जिनमें मुक्ति का रहस्य निहित है। उन्होंने वेदों की प्रमाणिकता पर प्रश्न नहीं उठाए। इनकी छः उप-विचारधाराएं थीं, जिन्हें षड्/षड दर्शन कहा गया।

धर्म-विरोधी विचारधाराएं
ये वेदों की मौलिकता में आस्था नहीं रखते तथा ईश्वर के अस्तित्व पर प्रश्न खड़े करते हैं। ये तीन मुख्य उप-विचारधाराओं में विभाजित हैंः बौद्ध, जैन एवं लोकायत दर्शन।

परम्परावादी विचारधाराओं के अंतर्गत छः मुख्य उप-विचारधाराएं निम्नलिखित हैंः
सांख्य विचारधारा
यह दर्शनशास्त्र की प्राचीनतम विचारप(ति है तथा इसकी नींव सांख्य सूत्रा के रचयिता माने जाने वाले कपिल मुनि ने रखी थी। ‘सांख्य’ का शाब्दिक अर्थ ‘गिनना’ होता है। यह विचारधारा विकास के दो चरणों से हो कर गुजरी, जो निम्नलिखित थींः

मूल सांख्य दृष्टिकोण नवीन सांख्य दृष्टिकोण
इस दृष्टिकोण्ंा को प्राचीन सांख्य दर्शन का रूप समझा जाता यह दृष्टिकोंण चैथी शताब्दी में प्राचीनतम सांख्य विचारधा
है तथा प्रथम शताब्दी में इसकी उत्पत्ति हुई समझी जाती है। रा के नए तत्वों के साथ विलय का परिणाम माना जाता है।
उनका मानना था कि ब्रह्माण्ड की सृष्टि के लिए किसी दैवी उनका तर्क था कि ब्रह्माण्ड की सृष्टि के लिए प्रकृति
कारक की उपस्थिति अनिवार्य नहीं थी। के तत्वों के साथ पुरुष या आत्मा की उपस्थिति
अनिवार्य थी।
उन्होंने ब्रह्माण्ड की सृष्टि के संबंध में तर्कपूर्ण तथा उन्होंने ब्रह्माण्ड की सृष्टि के संबंध में एक आध्यात्मिक
वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रतिपादित किया। दृष्टिकोण का प्रतिपादन किया।
उन्होंने यह भी तर्क प्रस्तुत किया कि इस विश्व का अस्तित्व उनका तर्क था कि विश्व की सृष्टि प्रकृति तथा
प्रकृति के कारण ही है। आध्यात्मिक तत्वों के मिश्रण से हुई।
इस दृष्टिकोण को दर्शनशास्त्रा की भौतिक विचारधारा इस दृष्टिकोण का संबंध दर्शनशास्त्रा के अपेक्षाकृत अधिक
समझा जाता है। आध्यात्मिक विचारधारा से माना जाता हैं।

दोनों ही विचारपद्धतियों का यह तर्क था कि ज्ञान प्राप्ति के द्वारा ही मुक्ति संभव है। ज्ञान का अभाव भी मानव की दुर्दशा का मूल कारण है।
यह विचारधारा द्वैतवाद में विश्वास रखती है, यथा. आत्मा तथा पदार्थ दो पृथक् सत्ताएं हैं। यह अवधारणा सभी वास्तविक ज्ञान का आधार है। इस ज्ञान को तीन मुख्य संकल्पनाओं के द्वारा प्राप्त किया जा सकता हैः
ऽ प्रत्यक्षः अनुभूति
ऽ अनुमानः निष्कर्ष
ऽ शब्दः श्रवण
यह विचार पद्धति अन्वेषण की अपनी वैज्ञानिक प्रणाली के लिए प्रसि( रही है। इस दर्शन में यह तर्क दिया गया कि प्रकृति तथा पुरुष वास्तविकता का आधार हैं तथा वे पूर्ण एवं स्वतंत्रा हैं। चूँकि पुरुष ;च्नतनेींद्धए पुरुष ;डंसमद्ध विशेषताओं से अधिक सामीप्य रखता है, यह चेतना से संबंधित है तथा इसे बदला या परिवर्तित नहीं किया जा सकता। इसके ठीक विपरीत, प्रकृति की तीन मुख्य विशेषताएं होती हैंः विचार, गति तथा रूपांतरण। ये लक्षण इसे नारी की रूपाकृति से सादृश्य प्रदान करते हैं।

योग विचारधारा
योग विचारधारा का शाब्दिक अर्थ दो मुख्य सत्ताओं का योग है। उनका मानना है कि मानव यौगिक तकनीकों के शारीरिक प्रयोग तथा ध्यान का प्रयोग कर मुक्ति प्राप्त कर सकता है। कहा जाता है कि, इस तकनीक के प्रयोग से पुरुष प्रकृति से पृथक हो जाता है तथा अंततः मुक्ति को प्राप्त होता है। योग तथा इस विचारधारा की उत्पत्ति का प्रतिपादन ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में पतंजलि के योगसूत्रा में हुआ है।
इस विचारधारा के मूर्त या भौतिक पहलू विभिन्न मुद्राओं में किये गए व्यायाम हैं, जिन्हें आसन भी कहा जाता है। श्वास संबंधी बहुत-से व्यायाम भी होते हैं जिन्हें प्राणायाम कहते हैं। मुक्ति या स्वतन्त्राता प्राप्त करने के अन्य साधन हैंः

स्वतंत्राता प्राप्त करने के साधन इसे प्राप्त करने के साध्य/मार्ग
यम स्व-नियंत्रण का अभ्यास करना
नियम व्यक्ति के जीवन को संचालित करने वाले नियमों का अवलोकन तथा पालन
प्रत्याहार कोई विषय या वस्तु का चयन
धारणा मन को स्थिर करना (किसी नियत बिंदु पर)
ध्यान उपर्युक्त चयनित विषय पर ध्यान एकाग्र करना
समाधि मन तथा पिंड का विलय ही स्व के पूर्ण रूप से विच्छेद होने का कारण है।

योग विचारधारा इन तकनीकों का समर्थन करती है चूँकि इससे मनुष्यों को अपने मन, शरीर तथा ज्ञानेन्द्रियों पर नियंत्राण करने में सहायता मिलती है। उनके अनुसार इन व्यायामों से तभी सहायता मिलती है जब एक पथ-प्रदर्शक, परामर्शक तथा गुरु के रूप में ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास किया जाए। उनसे व्यक्ति को सांसारिक विषयों से ध्यान ने तथा मुक्ति के लिए आवश्यक एकाग्रता प्राप्त करने में मदद मिलती है।

न्याय विचारधारा
जैसा कि इस विचारधारा के नाम से ही स्पष्ट है, इसमें मुक्ति प्राप्त करने के लिए तर्कपूर्ण चिंतन पर विश्वास किया जाता है। वे जीवन, मृत्यु तथा मुक्ति को ऐसे रहस्यों के रूप में देखते हैं जिन्हें तर्कपूर्ण तथा विश्लेषणात्मक चिंतन के द्वारा हल किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, उनका यह तर्क होता है कि वास्तविक ज्ञान प्राप्त कर ही मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। माना जाता है कि इस विचारधारा की रचना गौतम के द्वारा की गयी थी, जिन्हें न्याय सूत्र के रचयिता के रूप में भी देखा जाता है।
उनका मानना है कि निष्कर्ष, श्रवण तथा उपमा जैसे तर्कसम्मत साधनों का प्रयोग कर मनुष्य किसी समस्या या कथन की सत्यता की जांच कर सकता है। उदाहरण के लिए, निम्नलिखित प्रकार की समस्याओं से सामना होने परः
ऽ जंगल में आग लगी हुई है
ऽ क्योंकि धुंआ उठता दीख रहा है
ऽ धुंआ उठने वाली हर चीज में आग का घटक होता है।
ईश्वर की अवधारणा के संबंध में उनका तर्क है कि ब्रह्माण्ड की सृष्टि ईश्वर के माध्यम से हुई है। उनका ये भी मानना था कि ईश्वर ने न केवल ब्रह्माण्ड की रचना की है बल्कि वह इसका पालन व संहार भी करता है। यह दर्शन सतत् रूप से सुनियोजित तर्क-वितर्क तथा चिंतन पर बल देता है।

वैशेषिक विचारधारा
वैशेषिक विचारधारा ब्रह्माण्ड की भौतिकीयता में विश्वास करता है। इसे ब्रह्माण्ड की संचालक यथार्थपरक तथा वस्तुपरक दर्शन माना जाता है। वैशेषिक दर्शन के मूल ग्रन्थ की रचना करने वाले कणाद इस विचारधारा के संस्थापक समझे जाते हैं। उनका तर्क है कि इस ब्रह्माण्ड का हर पदार्थ पांच मुख्य तत्वों . अग्नि, वायु, जल, पृथ्वी तथा आकाश से बना है। इन स्थूल तत्वों को द्रव्य भी कहा जाता है। उनका यह भी मानना है कि वास्तविकता के कई वर्ग होते हैं, उदाहरण के लिए, कार्य, भाव, श्रेणी, समवाय, सार तथा विशिष्ट लक्षण।
चूँकि इस विचारधारा का दृष्टिकोण अत्यंत वैज्ञानिक है, इसके द्वारा आणविक सिद्धांत का विकास भी हुआ, यथा . सभी भौतिक वस्तुएं अणुओं से निर्मित हैं। वे इस तर्क के आधार पर इस ब्रह्माण्ड की घटना की व्याख्या करते हैं कि अणु तथा परमाणु मिल कर पदार्थ का निर्माण करते हैं जो मूर्त रूप से दृश्य या स्पर्शयोग्य प्रत्येक वस्तु का आधार है।
यही विचारधारा भारतीय उप-महाद्वीप में भौतिकी के आरम्भ के लिए भी उत्तरदायी थी। इस विचारधारा को इस ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति की यांत्रिक प्रक्रिया का प्रतिपादक माना जाता है।
ऽ जहां तक ईश्वर की बात है, वैज्ञानिक चिंतन पद्धति का पक्ष लेते हुए भी वे ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास करते हैं तथा उसे मार्ग-दर्शक सिद्धांत मानते हैं।
ऽ उनका यह भी विश्वास है कि यह ब्रह्माण्ड कर्म के सिद्धांतों के बल पर संचालित होता है, यथा – प्रत्येक वस्तु मानव के कर्मों पर आधारित है। हमें अपने कर्मों के अनुसार पुरस्कृत या दण्डित किया जाता है।
ऽ ईश्वर हमारे कर्मों के गुण-दोषों के संबंध में निर्णय करते हैं तथा तद्नुसार मनुष्य को स्वर्ग या नरक में स्थान मिलता है।
ऽ वे निर्वाण या मुक्ति में भी विश्वास करते थे, किन्तु यह विषय एक चक्रीय प्रक्रिया के रूप में ब्रह्माण्ड की सृष्टि तथा विनाश के समानांतर था तथा इसका निर्णय ईश्वर की इच्छाओं पर निर्भर करता था।

Sbistudy

Recent Posts

सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है

सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…

20 hours ago

मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the

marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…

20 hours ago

राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi

sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…

2 days ago

गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi

gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…

2 days ago

Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन

वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…

3 months ago

polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten

get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…

3 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now