JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: sociology

मानववादी किसे कहते है | मानवता को परिभाषित कीजिए सिद्धांत क्या है Humanism in hindi meaning

Humanism in hindi meaning definition मानववादी किसे कहते है | मानवता को परिभाषित कीजिए सिद्धांत क्या है ?

भारत में समाजशास्त्र और सामाजिक नशास्त्र का उदय
समाजशास्त्र के उदय से पहले सामाजिक विचारकों, दार्शनिकों और प्रशासकों ने भारतीय समाज और उसके विभिन्न पहलुओं (जैसे न्याय, परिवार धर्म, जाति इत्यादि) को समझने का प्रयास किया।

भारत में समाजशास्त्र का विकास भारतशास्त्र (Indology) के विद्वानों के योगदान से जुड़ा हुआ है। इनमें से हेनरी मेन, एल्फ्रेड लायल इत्यादि के नाम लिए जा सकते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत को अपनी सामाजिक संस्थाओं की रक्षा करनी चाहिए। भारत के लोगों पर इन संस्थाओं को नष्ट करके परकीय (alien) जीवन पद्धति नहीं लादी जानी चाहिए। वे भारत की सांस्कृतिक और साहित्यिक परंपराओं की महानता का आदर करते थे।

भारतविदों के अलावा अंग्रेजी प्रशासकों ने भी भारतीय जनसमुदायों, प्रजापतियों और संस्कृति का विस्तृत अध्ययन किया। इस जानकारी का उपयोग जनगणना रिपोर्ट, इम्पीरियल गेजेटियर, डिस्ट्रिक्ट गेजेटियर इत्यादि के अतिरिक्त अन्य पुस्तकों और प्रबंधों में हुआ जो आज भी समाजशास्त्रियों और नृशास्त्रियों के लिए उपयोगी हैं।

समाजशास्त्र इंग्लैंड की तुलना में फ्रांस और जर्मनी में अधिक विकसित था। अमेरीकी विश्वविद्यालयों में इसका महत्व और अधिक था। भारतीय विश्वविद्यालयों में समाजशास्त्र के साथ-साथ नृशास्त्र का विकास होता रहा। भारत के संदर्भ में समाजशास्त्र और नृशास्त्र को अलग करना संभव नहीं है, हांलाकि उनकी पद्धतियां (methods) भिन्न हैं। सामान्यतया, समाजशास्त्र में शहरी औद्योगिक वर्गों पर और नृशास्त्र में जातियों, जनजातियों और समुदायों पर काम हुआ है। समाजशास्त्री नृशास्त्री भी हो सकते हैं और नृशास्त्री समाजशास्त्री हो सकते हैं। इन दोनों क्षेत्रों में काम करने वालों को नृजातीय समाजशास्त्री कहा जा सकता है। ये लिखित और साहित्यिक जानकारी के साथ-साथ मौखिक परंपराओं और अपने अनुसंधान या खोज द्वारा प्राप्त जानकारी का भी प्रयोग करते हैं। इसके कारण, जातियों, जनजातियों और क्षेत्रों के विषय में खोज आपस में संबद्ध है। समाजशास्त्र और नृशास्त्र एक दृष्टि से समान हैं, दोनों आनुभाविक आँकड़ों पर आधारित हैं। दोनों उन मानव समूहों से संबंधित हैं जो ग्रामीण या शहरी दोनों हो सकते हैं। अंग्रेजी राज में नृशास्त्र विज्ञान के क्षेत्र में जे. एच. हटन, एडवर्ड थर्स्टन, एच. रिजले, एल. एस. एस ओ‘ माली इत्यादि ने इस संबंध में कई पुस्तकें लिखी। सर हेनरी मेन और डब्ल्यू. एच. बेडन पावेल ने भारतीय ग्रामीण समाज पर कई लेख लिखे। ‘‘डिस्ट्रिक्ट गेजेटियरों‘‘ में भारतीय समाज के आर्थिक और नृजातीय पहलू प्रस्तुत किए गए थे। भारतीय समाजशास्त्रियों के प्रबंध ग्रंथों (उदाहरण के रूप में घुर्ये के लेखों) में ऐसी जानकारी का काफी उपयोग हुआ है।

इन दो इकाइयों में (भारत में समाजशास्त्र का इतिहास और विकास प् और प्प् में) उन भारतीय लेखकों का उल्लेख किया जाएगा जो भारतीय समाजशास्त्र में अग्रणी थे। इस इकाई में यह देखा जा सकता है कि पाश्चात्य और भारतीय बौद्धिक विकास में काफी अंतर था। पाश्चात्य बुद्धिजीवियों का प्रयास यह था कि विचार को धर्मनिरपेक्ष बनाया जाए तथा ईसाई चर्च की निरंकुशता के विरुद्ध आवाज उठाई जाए। इसके विपरीत भारत में वैचारिक स्वतंत्रता पर धर्म की कोई रोक-टोक नहीं थी।

पाश्चात्य देशों से अंतःसंबंधों ने भारतीय समाज विज्ञान में रचनात्मक काम करने की प्रेरणा दी। आइए, अब हम संक्षेप में उपभाग 4.6.1 में समाजशास्त्र और सामाजिक नृशास्त्र के बीच तथा उपभाग 4.6.2 में समाजशास्त्र तथा भारतशास्त्र (Indology) के बीच संबंध क्रमशरू देखें।

 समाजशास्त्र और सामाजिक नृशास्त्र के बीच संबंध
जैसा कि पिछली इकाई में बताया गया है कि भारत में समाजशास्त्र और सामाजिक नृशास्त्र के बीच गहरा संबंध है। इन दोनों विषयों के उदय और विकास में राष्ट्रीय आंदोलन का प्रमुख योगदान था। राष्ट्रीय आंदोलन अंग्रेजी साम्राज्यवाद का परिणाम था। व्यवस्थित संचार व्यवस्था, यातायात और मुद्रण के कारण पश्चिमी देशों का असर और भी अधिक हुआ।

आधुनिक कानून व्यवस्था और पाश्चात्य शिक्षा के कारण भारतीयों में आत्म बोध की भावना पैदा हुई। एक तरफ लोग धर्म, जाति, जनजाति, क्षेत्र जैसे पहलुओं को महत्व देने लगे और दूसरी तरफ एकता की नयी भावना भी जागृत हुई। इन सामाजिक परिवर्तनों से नई समस्याएं सामने आई (श्रीनिवास एवं पाणिनी 1986ः 18)।

समाजशास्त्र और सामाजिक नृशास्त्र की जड़ें उस काल तक जाती हैं जब अंग्रेजी अधिकारियों ने यह अनुभव किया था कि शासन चलाने के लिये भारत की संस्कृति और सामाजिक जीवन की जानकारी पाना आवश्यक है। 1769 में हेनरी वेरेल्स्ट (बिहार और बंगाल के गवर्नर) ने अपने भूराजस्व अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे जाने-माने परिवारों से उनके रीति-रिवाजों की जानकारी प्राप्त करें। सरकारी अधिकारियों के अलावा मिशनरियों ने भी उस समय के समाज के बारे में बहुमूल्य जानकारियां प्राप्त की। मैसूर में एक फ्रेंच मिशनरी एब्ब दुबो ने ‘‘हिन्दू मैनर्स, कस्टमस एण्ड सेरेमनीज (Hindu Manners] Customs and Ceremonies) 1816 नामक महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी। इस पुस्तक में उन्होंने उन लोगों के जीवन, रीति-रिवाजों और धार्मिक अनुष्ठानों के बारे में लिखा है जिनके साथ वे रहते थे। उन्होंने जातियों का और जातियों से आपसी संबंधों का भी अध्ययन किया।

1871 में पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर जनगणना की गई। 1901 में सर हर्बर्ट रिजले ने भारत का नृजातीय सर्वेक्षण किया जो जनगणना का एक हिस्सा था। जनगणना के आँकड़े शासकीय नीति के साधन बने। इनका उपयोग करके विभिन्न समूहों के बीच दीवारें खड़ी की गई। उदाहरण के लिए शासकीय नीति के अनुसार अनुसूचित जातियों को अन्य हिंदू जातियों में नहीं गिना गया (श्रीनिवास एवं पाणिनी 1986ः 20)।

आपने पहले ही पढ़ा है कि किस तरह समाजशास्त्र और सामाजिक नृशास्त्र के विषय भारतीय विश्वविद्यालयों में स्थापित हुए। यद्यपि इससे पहले भी अनेक भारतीय और विदेशी विद्वानों ने इस क्षेत्र में योगदान दिया। इनमें ब्रजेन्द्रनाथ सील, पैट्रिक गेडिस, डब्ल्यू.एच.आर. रिवर्स, एल. के. अनंतकृष्ण ऐय्यर और एस.सी. रॉय के नाम लिए जा सकते हैं। बी. एन. सील कलकत्ता में दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक थे। वे उन प्रारम्भिक विद्वानों में से एक थे जिन्होंने विश्वविद्यालयों का ध्यान समाजशास्त्र की तरफ आकर्षित किया। वे उन एकतरफी विकासवादी सिद्धांतों का खंडन करते थे जिनके अनुसार समाज भी जीव विकास की तरह ही सहज आदिम अवस्था से जटिल औद्योगिक अवस्था तक विकसित हुआ है (इस सिद्धांत का अच्छा उदाहरण हर्बर्ट स्पेंसर के विचारों में पाया जाता है। अधिक जानकारी के लिये इस खंड की इकाई 2 पढ़िए)।

विकासवादी सिद्धांत को मानने वालों का यह मत था कि अन्य समाजों की तरह भारतीय समाज भी विकास की निचली सीढ़ी में था। बीसवीं शताब्दी का यूरोपीय समाज इस सीढ़ी में सबसे ऊंचा था। यूरोपीय विद्वानों का यह मत उनके पक्षपात को साफ दिखलाता था कि उनका समाज सबसे श्रेष्ठ और विकसित है जबकि विश्व के अन्य समाज के लोग विकास की विभिन्न अवस्थाओं में ही हैं।

सर बी. एन. सील ने अपनी पुस्तक, कम्पैरेटिव सोशियोलॉजी (Comparative Sociology) में इस मत को अस्वीकार करते हुए भारतीय संस्कृति के पक्ष में बहुत कुछ लिखा और व्याख्यान भी दिये दिखें कर एण्ड बार्न्स 1961ः 1142) । उन्होंने पहले कलकत्ता विश्वविद्यालय तथा उसके बाद मैसूर विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र को एक विषय के रूप में प्रारंभ किया।

मुबंई में समाजशास्त्र आरंभ करने का उत्तरदायित्व पैट्रिक गेडिस का था। 1919 में उनके नेतृत्व में समाजशास्त्र और नागरिकशास्त्र विभाग खोला गया। यह भारतीय समाजशास्त्र के विकास में एक महत्वपूर्ण घटना थी। गेडिस जाने माने समाजशास्त्री, ल प्लाय से प्रभावित थे। वे संस्कृति और वातावरण संबंधी मानवीय भूगोल और नगर योजना, विशेषकर शहरी ह्रास जैसी समस्याओं से जुड़े थे। उन्होंने कलकत्ता, इंदौर और दक्षिण के मंदिरों वाले शहरों (temple cities) की नगर योजना का अध्ययन किया था जो बहुमूल्य माना जाता है। अनेक भारतीय विद्वानों पर उनका प्रभाव था। जी. एस. घुर्ये एवं राधाकमल मुकर्जी के समाजशास्त्रीय लेखन में गेडिस का प्रभाव नजर आता है (श्रीनिवास एवं पाणिनी 1986ः 25)।

यद्यपि इन विद्वानों ने समाजशास्त्र को स्थापित किया लेकिन समाजशास्त्र की नींव को मजबूत बनाने में डी.एन. मजुमदार और एन.के. बोस का महत्वपूर्ण योगदान है। लखनऊ विश्वविद्यालय के डी.एन मजुमदार ने कलकत्ता विश्वविद्यालय में नृशास्त्र का अध्ययन किया था। उन्होंने नृशास्त्र (anthropology) और सामाजिक नृशास्त्र (social anthropology) में विस्तृत कार्य किया। उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों की प्रजातियों, जनजातियों और संस्कृतियों का अध्ययन किया। उनकी विशेष अभिरुचि सांस्कृतिक परिवर्तन की समस्याओं और जनजातियों की समस्याओं तथा उनके रूपांतरण में थी। ग्रामीण सर्वेक्षणों के लिए उन्होंने लखनऊ के पास एक गांव का सर्वेक्षण किया जो भारत के आरंभिक ग्रामीण सर्वेक्षणों में से एक है। उन्होंने कानपुर शहर का भी सर्वेक्षण किया।

एन. के. बोस भी कलकत्ता विश्वविद्यालय के छात्र थे, जिनका समाजशास्त्र के विकास में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वे राजनैतिक और सामाजिक कार्यकर्ता तो थे ही, साथ ही 1947 में महात्मा गांधी की नोआखली (अब बांग्लादेश में) यात्रा के दौरान उनके व्यक्तिगत सहायक भी थे। 1959 से 1964 तक भारत के नृशास्त्र सर्वेक्षण (Anthropological Survey of India) के निदेशक रहे और 1967 से 1970 तक भारत सरकार के अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के कार्यालय के आयुक्त (Commissioner) भी रहे। भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के अध्ययन में इनका विशेष योगदान रहा जिसमें उन्होंने ऐतिहासिक दृष्टिकोण अपनाया। वे गाँधी के सिद्धांतों से प्रभावित थे और बाद में उन्होंने गाँधीवादी का आलोचनात्मक विश्लेषण भी किया। हिंदू शोमाजेर गोढ़न, जो बांग्ला भाषा में है, उनकी सर्वश्रेष्ठ कृति मानी जाती है (श्रीनिवास एवं पाणिनी 1986ः31)।

इस खंड में हमने भारत में समाजशास्त्र और नृशास्त्र के बीच संबंधों के उदय और विकास के विषय में बताया है। आइए, इसी संदर्भ में समाजशास्त्र और भारतशास्त्र (Indolgy) के बीच के संबंधों को देखें। वस्तुतः देखा जाए तो ये दोनों विषय एक दूसरे से अलग नहीं हैं, कई भारतशास्त्र की कृतियां समाजशास्त्रीय या सामाजिक नृशास्त्रीय कृतियां जैसी ही हैं। पूर्ण रूप से स्पष्ट करने के लिए ही हमने इनका अलग-अलग उपभागों में विवेचन किया है।

सोचिए और करिए 2
आप अपने पड़ोस के किन्हीं ऐसे दो व्यक्तियों को चुनिए जिन में से एक पंडित या मौलवी हो अर्थात् उसे अपने धर्म और धर्मग्रंथों का ज्ञान हो और दूसरा वह जिसने समाजशास्त्र, राजनीतिशास्त्र या अर्थशास्त्र आदि जैसे विषयों में कम से कम स्नातक स्तर तक औपचारिक शिक्षा पाई हो।
इन दोनों व्यक्तियों से निम्नलिखित प्रश्न पूछिए।
1 भारतीय समाज भौतिकवादी है अथवा आध्यात्मवादी?
2 हमारे समाज के मार्गदर्शक नियम और मूल्य क्या हैं?
इन दोनों व्यक्तियों के विचारों पर एक पृष्ठ का एक नोट लिखिए जिसमें (प) इनके विचारों की समानता, (पप) असमानता का विवरण हो। यदि संभव हो तो अपने अध्ययन केन्द्र के अन्य विद्यार्थियों के नोट से इसकी तुलना कीजिए।

समाजशास्त्र और भारतशास्त्र के बीच संबंध
भारत में समाजशास्त्र के विकास का श्रेय सर विलियम जोन्स, हेनरी मेन, एल्फ्रेड लायल, मैक्स मूलर और अन्य कई प्राच्यविदों (Orientalists) को है। इन लोगों ने भारत की समृद्ध प्राचीन संस्कृति और दार्शनिक परंपरा का अध्ययन किया। इन्हीं कारणों से ये लोग भारतविद (Indologists) माने जाते हैं। भारतशास्त्र (जैसा कि नाम से स्पष्ट है) भारत और उसकी संस्कृति के अध्ययन को कहते हैं।

सर विलियम जोन्स ने 1787 में ‘एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल‘‘ की स्थापना की। यहां पर उन्होंने संस्कृत और भारतशास्त्र का अध्ययन आरंभ किया। इनकी इस सोसायटी का कार्य एक । ऐसी पत्रिका का प्रकाशन करना था जो संस्कृत, तुलनात्मक विधिशास्त्र (न्याय शास्त्र), तुलनात्मक मिथकों आदि जैसी नृशास्त्र और भारतशास्त्र संबंधी विषयों में पाठको की रुचि पैदा कर सके। मैक्समुलर जैसे विद्वानों ने संस्कृत सीख कर पुराने महाकाव्यों और साहित्यिक कृतियों के अनुवाद में सहायता की जिसे भारतवासी करीब-करीब भूल चुके थे।

संस्कृत के ज्ञान ने भारत की महान सांस्कृतिक और दार्शनिक परंपरा को समझने में सहायता दी। जब अंग्रेजी शासक अधिकांश शिक्षित भारतीयों का उपहास कर रहे थे उस समय संस्कृत के इस ज्ञान ने भारतीयों के स्वाभिमान को फिर से जगाया।

भारतविदों ने प्राचीन कानून और समाज का सावधानी से अध्ययन किया। हेनरी मेन भारत आए और उन्होंने 1871 में विलेज कम्यूनिटीज इन द ईस्ट एंड द वेस्ट नाम की एक पुस्तक लिखी। इनके अलावा कार्ल मार्क्स और मैक्स वेबर आदि ने भी भारतीय सामग्री का उपयोग किया। वेबर ने धर्म के अध्ययन के लिए जनगणना रिपोर्टों में उपलब्ध नृजातीय सामग्री का उपयोग भी किया (श्रीनिवास एवं पाणिनी 1988ः 22)।

हम पहले ही भारतीय दर्शन-कला और संस्कृति के विवरण को प्रस्तुत करने वाली भारतविदों की कृतियों के विषय में बता चुके हैं। कुमारस्वामी, बी. के. सरकार, राधाकमल मुकर्जी, जी. एस. घुर्ये, डी. पी. मुकजी आदि कुछ ऐसे उदाहरण हैं जिन्होंने अपनी कृतियों में इसे अभिव्यक्त किया है। पहले दो चिंतकों के विषय में हमने आपको इस इकाई में जानकारी दी है। राधाकमल मुकर्जी, डी. पी. मुकर्जी और जी. एस. घुर्ये के विषय में और उनके योगदान के विषय में जानकारी आपको अगली इकाई में दी जाएगी।

शब्दावली
अद्वैत शंकराचार्य का वह वेदांतिक दर्शन जो एक ईश्वर के अस्तित्व पर विश्वास करता है।
मंच (forum) एक ऐसी सभा या कार्यक्रम जो कि सामाजिक-राजनैतिक या आर्थिक जैसे सार्वजनिक विषयों पर विचार-विमर्श करे।
मानववादी (humanistic) वह विचारधारा या कार्यप्रणाली जो मनुष्य की प्रकृति, गरिमा और उसके आदर्शों पर आधारित हो
आदर्शवादी (idealist) वह व्यक्ति जिसकी विचारधारा या व्यवहार, दृष्टा या अव्यवहारिक लक्ष्यों के आदर्शों पर आधारित हो अथवा कला, दर्शन या साहित्य में आदर्शवाद पर आधारित हो।
मूर्तिपूजा मूर्ति अथवा ईश्वर की प्रतिमा की पूजा
मध्यम वर्ग इस इकाई में इसका अर्थ आर्थिक रूप से मध्यम वर्ग लोगों से नहीं है बल्कि उस वर्ग से है जो (अंग्रेजी राज में) पढ़े-लिखे सुशिक्षित वर्ग के थे।
मिशनरी वे ईसाई धर्म प्रचारक जो भारत में ईसाई धर्म का प्रचार करने, उसकी शिक्षा देने और भारतवासियों को उसमें दीक्षित करने के उद्देश्य से आए थे।
बहुविध नृजातीय एक ऐसा समाज जिसमें संस्कृतियों, धर्मों, भाषाओं की विविधता हो, जैसे भारत
(multi&ethnic)
प्राच्यविद (orientalist) वे विद्वान जो पूर्वी (प्राच्य) संस्कृतियों जैसे चीन, भारत, पाकिस्तान आदि का अध्ययन करते हैं
अत्याचार (persecution) धर्म, जाति, वर्ग के आधार पर भेदभाव रखना या अत्याचार करना
तर्कसंगत (rationality) यह एक ऐसी वैचारिक व्यवस्था है जो तर्क को ज्ञान का एकमात्र आधार मानती है।
वेदांत यह हिन्दू धर्म की वेदों पर आधारित अद्वैतवादी (एक ईश्वर में विश्वास) प्रणाली है जिसके अनुसार आत्मा व परमात्मा एक ही
कुछ उपयोगी पुस्तकें
ऊमन टी.के. एंड मुखर्जी, पी.एन. (संपादित) 1986. इंडियन सोशियोलॉजी पापुलर प्रकाशनः मुंबई
बेकर, हावर्ड, एंड बार्न्स, एच.ई. 1961. सोशल थॉट्स फ्राम लोर टू सांइस. तीसरा संस्करणरू वाल्यूम 3. डोवर पब्लिकेशनः न्यूयार्क (पृष्ठ 1135-1148)

बोध प्रश्नों के उत्तर
बोध प्रश्न 1
प) भारतीय दर्शन की छः मुख्य धाराएं हैं
योग, सांख्य, न्याय, वैशेषिक, वेदांत और मीमांसा।

Sbistudy

Recent Posts

सारंगपुर का युद्ध कब हुआ था ? सारंगपुर का युद्ध किसके मध्य हुआ

कुम्भा की राजनैतिक उपलकियाँ कुंमा की प्रारंभिक विजयें  - महाराणा कुम्भा ने अपने शासनकाल के…

4 weeks ago

रसिक प्रिया किसकी रचना है ? rasik priya ke lekhak kaun hai ?

अध्याय- मेवाड़ का उत्कर्ष 'रसिक प्रिया' - यह कृति कुम्भा द्वारा रचित है तथा जगदेय…

4 weeks ago

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

2 months ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

2 months ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

3 months ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

3 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now