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पुजारी तथा पैगम्बर के बीच के अंतर क्या है | पुजारी और पैगम्बर में अंतर priest and prophet difference in hindi
priest and prophet difference in hindi पुजारी तथा पैगम्बर के बीच के अंतर क्या है | पुजारी और पैगम्बर में अंतर ?
पैगम्बर (The Prophet)
धार्मिक विशेषज्ञों के रूप में पुजारी व ओझा की प्रकृति का अध्ययन कर लेने के बाद जो कि विविध व महत्वपूर्ण कार्य करते हैं विशेषकर पारलौकिक जगत के संबंध में, आइये हम पैगम्बर के बारे में जानें। पैगम्बर भी एक प्रकार का धार्मिक विशेषज्ञ है पर पुजारी अथवा जादूगर (ओझा) जैसा नहीं। उसकी मान्यता किसी धार्मिक आंदोलन के नेता (गुरू) के रूप में है न कि किसी धार्मिक आंदोलन के अंदर अपनी भूमिका निभाने वाले कार्यकर्ता के रूप में। पैगम्बर नये विश्व-धर्मों का स्रोत भी रहे हैं तथा इस्लाम व जोरोस्ख अथवा किसी धार्मिक पंथ के मुखिया भी रहे हैं जैसे कि बौद्ध धर्म में। सर्वप्रथम आइये हम जानें कि पैगम्बर के बारे में वेबर का विचार क्या है।
पैगम्बर के बारे में वेबर के विचार (Weber on the Prophet)
धर्म पर अपनी पुस्तक में वेबर ने एक पूरा अध्याय पैगम्बर को समझने में समर्पित किया है। उसकी परिभाषा के अनुसार, पैगम्बर एक ऐसा व्यक्ति है जो अपने चामत्कारिक गुणों के कारण कोई धार्मिक सिद्धांत अथवा दैवी आदेश प्रतिस्थापित करने में समर्थ है। पुजारी और पैगम्बर के बीच सबसे बड़ा अंतर यह है कि पैगम्बर अपने कार्य को श्व्यक्तिगत स्तर पर प्राप्त ईश्वरीय आदेश के तौर पर लेता है तथा अपना अधिकार व्यक्तिगत रहस्योद्घाटन अथवा ज्ञान-प्राप्ति तथा करिश्मा अथवा असाधारण गुणों के कारण प्राप्त करता है। पैगम्बर के कार्य का मुख्य उद्देश्य ज्ञान-प्राप्ति के रूप में प्राप्त ईश्वरीय/दैवीय ज्ञान अथवा सिद्धांत को आगे बढ़ाना है। बहुधा पैगम्बर अपने अधिकार को स्थापित करने के लिए चमत्कारों का प्रयोग करता है। पैगम्बर प्रायः तभी एक सफल तथा सम्मानित रहता है जब तक उसकी अपने उद्देश्य की विशिष्टता को सिद्ध करने तथा उसके प्रति विश्वास उत्पन्न करने की योग्यता बनी रहती है।
पैगम्बर कष्ट-निवारण तथा उपदेश/सलाह देने का कार्य भी करते हैं। वेबर इस ओर ध्यान दिलाता है कि पैगम्बर प्रायः किसी संगठन के सदस्य नहीं होते तथा न ही अपने विचारों के लिए कोई आर्थिक पुरस्कार अथवा सहायता प्राप्त करते हैं। वे कोई व्यावसायिक भी नहीं होते तथा उसके अनुयायी या आम लोग भी केवल इसलिए उसका अनुसरण करते हैं क्योंकि वे उसमें अथवा उसकी बातों में विश्वास रखते हैं। पैगम्बर इस तरह की शिक्षाए देते हैं जो बहुधा किसी धार्मिक मत अथवा पंथ अथवा एक पूरे धार्मिक आंदोलन के लिए मार्ग दर्शन का कार्य करती हैं। पैगम्बर शिक्षाएं देने के अतिरिक्त धार्मिक तथा दर्शन-ज्ञान का शिक्षक भी हैं।
सरल शब्दों में, पैगम्बर को ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा जा सकता है जो ईश्वर की इच्छा को आगे बढ़ाने का माध्यम है तथा उसकी आज्ञा का पालन उसके कार्य की नैतिक पवित्रता के कारण किया जाता है। वह ऐसा व्यक्ति भी हो सकता है जो मोक्ष प्राप्त करने का उदाहरण प्रस्तुत करता है जैसे बुद्ध। इस प्रकार के उदाहरण आधारित करने वाले पैगम्बरवाद का रूप भारत में विशेष रूप से पाया जाता है।
पैगम्बर: एक सर्वेक्षण (The Prophet : An Overview)
लगभग सभी विश्व धर्मों के संदर्भ में किसी न किसी रूप में पैगम्बर का उभरना पाया जाता है। इस अनुभाग में हम संक्षेप में पैगम्बर की कुछ विशेषताओं तथा कुछ उदाहरणों का अध्ययन करेंगे जिसे हमने वेबर के कार्य के रूप में मोटे तौर पर पहले ही देखा है। हम देख चुके हैं कि पैगम्बर किसी संस्था से संबंध नहीं रखता तथापि वह पूरी तरह से किसी व्यक्तिगत मिशन पर हो सकता है। अतः हम इस संबंध में संगठन की प्रकृति का विश्लेषण नहीं करेंगे। पैगम्बर प्रकृति के आधार पर अलग धर्मों व समाजों में अपने मिशन की प्रकृति के आधार पर भिन्नता लिए हुए है। इसी ने उन शिक्षाओं की प्रकृति भी निर्धारित की है, जो उन्होंने दीं। यह ध्यान देने योग्य है कि भारत की अपनी धार्मिक परंपराओं में पैगम्बर का वर्ग मौजूद नहीं है। इससे हमारा अभिप्राय यह है कि मूसा, ईसा मसीह अथवा मोहम्मद जैसे पैगम्बर जो मानवजाति के लिए संदेश अथवा ईश्वरीय आदेश लाते हैं का विचार भारत में मौजूद नहीं है। वस्तुतः हम उन्हें भारतीय जनजातीय संदर्भ में भी नहीं पाते जैसे कि हम ओझा को पाते हैं।
तथापि हम भारत में पैगम्बर का एक अन्य वर्ग पाते हैं जहाँ वह अपनी भविष्य में देख सकने, दिव्य-दृष्टि का प्रयोग करने तथा समय व काल की सीमाओं से परे विचरण करने की योग्यता के आधार पर भविष्यवाणी करते हैं। हम यहां ऐसे ही एक पैगम्बर का उदाहरण ऊपर वर्णित जानकारी को स्पष्ट करने के लिए प्रस्तुत करते हैं।
सत्य साईं बाबा: एक उदाहरण (Sathya Sai Baba : An Example)
सत्य साईं बाबा को आधुनिक भारत के सर्वाधिक प्रसिद्ध चमत्कार करने वाले तथा इष्ट-संत के रूप में माना जाता हैं। उन्हें अपने पहनावे व रूप के कारण आसानी से पहचाना जा सकता है। उनके भक्तों का एक बड़ा भाग भारत के उच्च जाति, मध्यम तथा अवर मध्यम वर्ग से आता है। उन्हें इष्ट के रूप में माना जा सकता है क्योंकि वह अपने भक्तों की अर्चना स्वीकार करते हैं तथा बदले में आशीर्वाद तथा समृद्धि प्रदान करते हैं। पर इससे भी बढ़ कर वह अपनी चमत्कार करने तथा सच सिद्ध होने वाली भविष्यवाणियाँ करने की योग्यता के कारण जाने जाते हैं। ऐसा विश्वास है कि केवल सत्य साईं बाबा के सच्चे अनुयायी तथा उनमें विश्वास रखने वाले ही उन्हें पहचान पाने में समर्थ हैं। उनके अनुयायियों द्वारा उन्हें अवतार अथवा पृथ्वी पर ईश्वर के ही एक प्रकाश के रूप में मानते देखा जा सकता है।
सत्य साईं बाबा को यह विशिष्ट सामाजिक पद उनके द्वारा नेतृत्व प्रदान किसी धर्म के मुखिया के रूप में नहीं वरन उनकी असाधारण योग्यताओं तथा चामत्कारिक व्यक्तित्व की सच्चाई के परिणामस्वरूप प्राप्त है। 1926 में आंध्र प्रदेश के एक गांव में उनका जन्म भी पारलौकिक घटना के रूप में देखा जाता है जिसका कारण है उस समय घटित हुई अद्भूत व रहस्यमयी बातें जैसे कि उनके बिस्तर के नीचे अचानक एक नाग का प्रकट होना । ऐसा माना जाता है कि वह तेरह वर्ष, की उम्र में दैवीय शक्ति के प्रभाव में आए तथा उन्होंने चमत्कार करने आरंभ कर दिये तथा बाद में अपने को ‘सांई बाबा‘-लोगों को बचाने वाला-तथा पूर्व संत शिरडी के साईं बाबा के अवतार के रूप में बताया।
1940 में वह अपने परिवार से अलग हो गए तथा संत के रूप में जीवन बिताना तथा भक्तों को स्वीकार करना आरंभ किया। अब तक उन्होंने राख अथवा विभूति तथा अन्य वस्तुएं उत्पन्न करना आरंभ कर दिया था। वैसे तो वह अपने चमत्कारों के कारण प्रसिद्ध हुए फिर भी वह अपनी कष्ट-निवारण तथा इलाज की योग्यता के कारण भी जाने गए। 1950 में उनके गांव के जन्म-स्थान पर एक आश्रम की स्थापना की गई तथा उन्हें पूरे भारत में एक विशाल अनुयायी-समूह के साथ ईश्वरीय व्यक्ति (देव पुरुष) के रूप में जाना गया। ध्यान देने योग्य विशेष बात यह है कि उनके अनुयायी अथवा भक्त उनके साथ उनके वचनों अथवा कार्यों के कारण नहीं वरन उनके एक ईश्वरीय व्यक्ति (देव पुरुष) के रूप में अपने विश्वास के कारण थे। वह समाधि तथा दैवीय शक्ति के प्रभाव में जाकर अनुयायी के कष्ट का निवारण उस कष्ट को अपने ऊपर लेकर करने के लिए जाने जाते हैं।
उन्होंने यह भी भविष्यवाणी की है कि उनके बाद साईं बाबा का एक और अवतार होगा तथा वह अगली बार कर्नाटक में जन्म लेगा। वह अपने को शिव तथा शक्ति का अवतार बताते है तथा उनके पथ का प्रतीक शिव के गिर्द घूमता है, हालांकि पथ तथा उसकी सदस्यता स्वयं अत्यधिक संदिग्ध है। वह इस पंथ के केंद्रीय चामत्कारिक व्यक्तित्व के रूप में प्रतिष्ठित तथा ऐसे आधुनिक पैगम्बर व गुरू हैं जो किसी सिद्धांत का प्रचार नहीं करते। संदेह नहीं कि जो उनमें विश्वास रखते हैं, उनके अनुयायी हैं तथा जो लोग उनमें विश्वास नहीं रखते वे उन्हें नहीं मानते।
बोध प्रश्न 3
प) पैगम्बर कौन हैं? पाँच पंक्तियों में वर्णन कीजिए।
पप) पुजारी तथा पैगम्बर के बीच के अंतर को पाँच पंक्तियों में स्पष्ट कीजिए ।
बोध प्रश्नों के उत्तर
बोध प्रश्न 3
1) पैगम्बर ऐसा व्यक्ति है जो अपने चामत्कारिक व्यक्तित्व तथा गुणों के आधार पर नेतृत्व प्रदान करने तथा अनुयायियों को प्राप्त करने की योग्यता रखता है। पैगम्बर किसी नेतृत्व/आर्थिक कारणों के कारण नहीं वरन दैवीय मिशन के रूप में अथवा व्यक्तिगत प्रेरणा के आधार पर कार्य करता है। पैगम्बर किसी मिशन का नेता अथवा किसी विश्व-धर्म का संस्थापक हो सकता है। सरल शब्दों में, पैगम्बर को ईश्वरीय इच्छा के माध्यम अथवा संदेशवाहक के रूप में देखा जाता है।
2) पुजारी तथा पैगम्बर में अंतर यह है कि पुजारी ऐसा धर्म-विशेषज्ञ है जो किसी संगठन से संबंधित है तथा दूसरों के लिए रीति व अनुष्ठानों का कार्य करता है, जबकि पैगम्बर एक स्वंतत्र व्यक्ति हैं, पैगम्बर लोगों के लिए अनुष्ठान करने जैसा कोई कार्य नहीं करता तथा वह अपने समान के किसी संगठन का सदस्य भी नहीं होता, अपितु, वह किसी धार्मिक संगठन को नेतृत्व प्रदान करने वाला अवश्य हो सकता है। दूसरे जहाँ पुजारी अपना अधिकार किसी वंश-विशेष में जन्म के कारण अथवा विशेष ज्ञान व दीक्षा
शब्दावली
ब्रह्मचर्य (Brahmcharya) ः धार्मिक भावनाएं रखने वाले हिंदू के जीवन का वह पहला चरण जहाँ वह कुंआरे रह कर शिक्षा प्राप्त करने के कार्य में लगा रहता है।
करिश्मा (Charisma) ः निश्चित पारलौकिक अथवा दैवीय गुण अथवा दैवीय कृपा से प्राप्त विशिष्टता।
दिव्य-दृष्टि (Clairvoyance) ः मस्तिक के धरातल पर देख सकने की योग्यता
पंथ (Cult) ः धार्मिक पूजा की एक पद्धति
सिद्धांत (Doctrine) ः धार्मिक विश्वास पर आधारित
नीतिशास्त्र (Ethics) ः आदर्शों के विज्ञान पर आधारित
झाड़-फूंक (Exorcism) ः किसी के शरीर में प्रविष्ट अच्छी अथवा बुरी आत्मा को स्तुति अथवा अनुष्ठान द्वारा निकालने की प्रक्रिया
गृहस्थ (Grihastha) ः जीवन का दूसरा चरण, गृहस्थी के संचालन के रूप में
अद्वैतवाद (Monotheistic) ः सिद्धांत जो केवल एक ही ईश्वर के होने में विश्वास करता है।
अनेकवाद (Polytheism) ः ऐसा सिद्धांत जो एक से अधिक ईश्वरों के अस्तित्व में विश्वास करता है।
सन्यास (Sanyasa) ः जीवन का वह अंतिम चरण जहां व्यक्ति भौतिक संसार को त्याग देता है।
जादू-टोना (Sorcery) ः कुछ प्राप्त करने के लिए जादुई कलाओं का प्रयोग करना।
वानप्रस्थ (Vanaprastha) ः कर्तव्यों को पूरा करने के बाद एकांत में ध्यान व तप करने के लिए प्रस्थान करना।
कुछ उपयोगी पुस्तकें
बॉब, लारेंस ए, 1986य रिडम्पटिव एनकाऊंटरर्स: थ्री मार्डन स्टाइल्स इन दि हिंदू ट्रेडीशनः आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस: दिल्ली
एल्विन वरियर, 1955, दि रिलिजन ऑफ एन इंडियन ट्राइब, आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेसः दिल्ली
फुल्लर, क्रिस्टोपर जे. 1990, सखेंटस् ऑफ दि.गाडेस: दि प्रीस्टस आफ ए साउथ इंडियन टेंपल, आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस: दिल्ली
मदान, टी.एन. 1991य रिलिजन इन इंडिया, आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस: दिल्ली
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