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ह्रदय की कार्य प्रणाली क्या है ? मानव का ह्रदय कैसे कार्य करता हैं कार्डियकआउटपुट human heart working mechanism in hindi

human heart working mechanism in hindi ह्रदय की कार्य प्रणाली क्या है ? मानव का ह्रदय कैसे कार्य करता हैं कार्डियकआउटपुट ?

ह्रदय की कार्य प्रणाली : दो venae cavae द्वारा अनऑक्सीकृत रूधिर शरीर के विभिन्न भागों से दायें आलिन्द में आता है | दूसरी तरफ बायाँ आलिन्द , फेफड़ों से पल्मोनरी शिरा द्वारा शुद्ध रक्त प्राप्त करता है | जब आलिन्द भर जाते है तो ये संकुचित होते हैं और रक्त को आलिन्द निलय –पट द्वारा सम्बन्धित निलय में डाल देते हैं | त्रिवलन और द्विवलन कपाट निलयों में रक्त को गाइड करते हैं | संकुचन की तरंग के साथ रक्त महाधमनी और पल्मोनरी शिरा में ना लौटे इसके लिए संकुचन आलिन्द के अग्र सिरे में होता है और निलयों की तरफ पास होता है | इस प्रकार रक्त आगे पुश किया जाता है | निलयों का संकुचन बंद रूधिर में दबाव उत्पन्न करता है | निलयों के संकुचन के समय त्रिवलनी और द्विवलनी कपाट के पल्ले आगे की ओर धकेले जाते हैं | परिणामस्वरूप सम्बन्धित आलिन्द निलय छिद्र बंद हो जाता है | जब निलयों में दबाव अधिक हो जाता है तो यह aortae के आधार पर स्थित अर्द्धचंद्राकर कपाट खुल जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप अशुद्ध रूधिर दायें निलय से पल्मोनरी संचरण में प्रवाहित होता है और बाएँ निलय से महाधमनी चाप (aortic arch)में प्रवाहित होता है | निलयों में दबाव , aorta में प्रवाहित स्तर से निम्न हो जाता है तो अर्ध कपाट की सहायता से पट बंद हो जाता है | पल्मोनरी aorta अनाक्सीकृत रूधिर फेफड़ों में ले जाता है , जहाँ एओर्टिक चाप ऑक्सीकृत रूधिर (शुद्ध रूधिर) को शरीर के समस्त भागों में वितरित कर देता है |

ह्रदय चक्र : इसमें आराम के समय 70-72 बार प्रति मिनट की दर से ह्रदय के एकान्तरित संकुचन (सिस्टोल) और शिथिलन (डायस्टोल) शामिल होते हैं | ह्रदय चक्र में तीन अवस्थाएँ होती हैं –

  • आलिन्दीय संकुचन : इसमें आलिन्दों का संकुचन (सिस्टोल) होता है , जिसमें रक्त सम्बन्धित निलयों में प्रेषित कर दिया जाता है | यहाँ आलिन्दों से बड़ी शिराओं में रक्त का वापस प्रवाह नहीं होता क्योंकि यहाँ अग्रमहाधमनी और कोरोनरी साइनस की ओपनिंग पर कपाट उपस्थित होते हैं | आलिन्दीय सिस्टोल 1 सेकंड का समय लेता हैं जबकि आलिन्दीय डायस्टोल 0.7 सेकंड का समय लेता है |
  • निलयी सिस्टोल : इसमें आलिन्द का शिथिलन (atrial diastole)और निलयों का संकुचन (निलयी सिस्टोल) होता हैं | निलयी सिस्टोल के कारण निलयों में रक्त पर दबाव आलिन्दों की तुलना में बढ़ जाता है | आलिन्द निलयी कपाट निलय से आलिन्द में रक्त के पुन: प्रवाह को रोकने के लिए तेजी से बंद होता है | निलयी सिस्टोल के प्रारंभ होने पर आलिन्द निलय कपाट के बंद होने से प्रथम ह्रदय ध्वनि उत्पन्न होती है जिसे “Lubb” कहते हैं | यह निम्न पिच और लम्बे समय (16 सेकंड) की होती हैं |

निलयों में दबाव बढ़ता और तब बड़ी धमनियों (pulmonary and aortic arches), में दाब बढ़ता है इसलिए अर्धचंद्राकार कपाट खुलता है और रक्त महाधमनियों में प्रवेश करता है | अनाक्सीकृत रूधिर दायें निलयों से पल्मोनरी चाप में प्रवेश करता है जो इसे फेफड़ों में ले जाता है | ऑक्सीकृत रक्त बाएँ निलय से एओर्टिक चाप में प्रवेश करता है जो कि रक्त को शरीर के समस्त भागों में ले जाता है | निलयी संकुचन लगभग 0.3 सेकंड का समय लेता है जबकि निलयी डायस्टोल लगभग 0.5 सेकंड का समय लेता है |

  • संयुक्त डायस्टोल : निलयी सिस्टोल निलयी डायस्टोल द्वारा अनुसरित किया जाता है | आलिन्द पहले से ही डायस्टोल में होता है तो ह्रदय के समस्त प्रकोष्ठ डायस्टोलिक अवस्था में प्रवेश करते हैं | यह पूर्ण कार्डियक डायस्टोल अथवा संयुक्त डायस्टोल कहलाता है | निलय विश्राम की अवस्था में होते हैं और निलय में दबाव कम हो जाता है | महाधमनियों से निलयों में रक्त के पुन: प्रवाह को रोकने के लिए अर्धचन्द्राकर कपाट तेजी से बंद होते हैं | निलयी डायस्टोल के प्रारंभ होने के समय अर्धचन्द्राकार कपाट का तेजी से बंद होना दूसरी ह्रदय ध्वनि उत्पन्न करता है जिसे dubb अथवा डायस्टोलिक ध्वनि कहते हैं | यह सिस्टोलिक ध्वनि से निम्न पिच और कम समयकाल (10 सेकंड) की होती है |

पूर्ण कार्डियक डायस्टोल के दौरान रक्त महाशिराओं से आलिन्द में प्रवाहित होता है | धीरे धीरे निलयों में दबाव कम होता जाता है और अन्त में आलिन्द दबाव से रहित हो जाता है | आलिन्द निलयी कपाट खुलता है और रक्त आलिन्द से शिथिल निलयों में प्रवेश करने लगता है | सम्पूर्ण कार्डियक डायस्टोल 0.4 सेकंड का समय लेता है | ह्रदय ध्वनि एक उपकरण द्वारा सुनी जा सकती है जिसे stethoscope कहते है |

कार्डियकआउटपुट(ह्रदयीनिर्गम)

यह ह्रदय से एक मिनट में महाधमनियों में प्रवाहित (ejected) रक्त का आयतन है , यह मिनट आयतन भी कहलाता है | इसकी गणना ज्वारीय आयतन (स्ट्रोक आयतन) के उत्पाद और ह्रदय धड़कन की दर के रूप में की जाती है | ज्वारीय आयतन एक ह्रदय धड़कन के दौरान पम्प किये गए रक्त का आयतन है |

कार्डियक आउटपुट = ज्वारीय आयतन x ह्रदय दर

= 70 ml x 70-72 times/minute

= लगभग 5 लीटर

ह्रदय दर में परिवर्तन , उम्र , लिंग , आकार , तापमान और प्रतिवर्ती क्रिया के कारण होता रहता है | व्यायाम के दौरान ह्रदय दर 150 प्रति मिनट और ज्वारीय आयतन 150 ml से अधिक हो जाता है |

रक्त की ventricular filling को तीन अवस्थाओं में विभाजित कर सकते हैं –

  • प्रथम तीव्र भराव : निलय के डायस्टोल के प्रारंभ होने के साथ अन्तरानिलय दबाव क्षीण होता है और AV ध्वनि – ह्रदय की तीसरी ध्वनि उत्पन्न होती है |
  • डायस्टेसस / slow filling : रक्त की प्रथम तीव्र rushing के बाद रक्त धीमी दर पर निलय में प्रवेश करता है – diastasis.
  • दूसरा तीव्र भराव : यह आलिन्द के सिस्टोल के साथ उत्पन्न होता है जो कि निलयों में रक्त का तीव्र प्रवाह उत्पन्न करता है | इसके कारण ह्रदय की 4th ध्वनि उत्पन्न होती है |
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