मानव जीनोम परियोजना क्या है , human genome project in hindi , लक्ष्य , महत्व , कारण विशेषताएं बताइए

पढ़िए मानव जीनोम परियोजना क्या है , human genome project in hindi , लक्ष्य , महत्व , कारण विशेषताएं बताइए ?

मानव जीनोम परियोजना (Human Genome Project)

आप यह जान चुके है कि जीवों के सारे गुण उनके DNA में पाए जाने वाले नाइट्रोजनी क्षारों के अनुक्र (Sequence of nitrogenous bases) पर र्भिर करता है। भिन्न-भिन्न जीवों या विभिन मानवों में पाया जाने वाला DNA अनुक्रम अलग-अलग होता है। विभिन्न प्रकार के आनुवंशिक रोगों से निदान के लिए वैज्ञानिकों ने मानव जीनोम परियोजना की परिकल्पना की। मानव कोशिका में मिलनेवाले सभी 46 क्रोमोसोम के संपूर्ण DNA अनुक्रम को पता लगाने की महत्त्वाकांक्षी योजना 1990 में शुरू हुई। आनुवंशिक अभियांत्रिक तकनीकों (Genetic Engineering Tehcniques) में निरन्तर विकास होने से DNA खंड को विलगित करना एवं इसका क्लोन तैयार किया जाना अब संभव हो गया है। मानव जीनोम परियोजा (Human genom project, HGP) एक बहुत बड़ी योजना है जो विभिन्न मानव हितकारी उद्देश्यों को ध्यान में रखकर तैयार की गई है।

मनुष्य के जीनोम में 3164.7 मिलियन नाइट्रोजनी क्षार के जोड़े हैं। इस प्रकार के वृहत आंकड़ों की गणना एवं उसके विश्लेषण में उच्च गतिकीय संगणक साधनों (High Speed-Computational devices) की जरूरत होती है। जीवविज्ञान के इस क्षेत्र के जैव सूचनाविज्ञान (Bioinformatics) कहते हैं। इस विज्ञान के तहत जीवों के जीनोम संबंधित आंकड़ों का संग्रह, विश्लेषण एवं इसके उपयोग की जानकारी प्राप्त होती है।

मानव जिनोम परियोजना के लक्ष्य (Goals of the Human Genome Project)

मानव जीनोम परियोजना को शुरू करने के पीछे निम्नलिखित लक्ष्य को ध्यान में रखा गया था ।

  1. मानव कोशिका में पाए जाने वाले DNA में अवस्थित सभी जीनों (लगभग 20,000) के बारे में जानकारी प्राप्त करना.
  2. सभी मानव DNA के निर्माण में लगे नाइट्रोजनी क्षार युग्मों (लगभग 3 बिलियन) के अनुक्रमों का निर्धारण करना ।
  3. प्राप्त जानकी का आंकड़ों के रूप में संग्रहण करना ।
  4. सभी आंकड़ों का विश्लेषण करना ।
  5. विश्लेषण के लिए नए-नए तकनीकों का उपयोग करना एवं
  6. इस योजना में आने वाले कानूनी, सामाजिक, नैतिक या अन्य मुद्दों के बारे में विचार कर निर्णय लेना ।

मानव जिनोम परियोजना को अमेरिकी ऊर्जा विभाग (US Department of Energy, US) एवं राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान (National Institute of Health, US) द्वारा समन्वित किया गया था। शुरू के कुछ वर्षों तक ब्रिटेन के वेलकम न्यास (Wellcome Trust, UK) की इस परियोजना में मुख्य भागीदारी रही। बाद में फ्रांस, जापान, जर्मनी, चीन एवं अन्य देशों ने भी इस परियोजना को सहयोग दिया। 1990 से शुरू होकर 2003 में यह परियोजना पूरी हो गई। कुल मिलाकर 13 वर्षों तक यह परियोजना सफलतापूर्वक चलीं। अलग-अलग मनुष्यों के DNA में पाई जाने वाली विभिन्नताओं (Variations) के बारे में इससे अच्छी जानकारी प्राप्त हुई। इन विभिन्नताओं से उत्पन्न होने वाली अनेक बीमारियों को जानने, उपचार करने एवं कुछ सीमा तक रोकने में सहायता मिली। इससे मानव जीवविज्ञान के सुरागों को समझने में मदद मिली। गैरमानवीय जीवों के DNA अनुक्रमों की जानकारी से उनकी प्राकृतिक क्षमताओं का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में करना संभव हुआ है। इससे मुख्यतः कृषि, ऊर्जा – उत्पादन, पर्यावरण-संरक्षण, स्वास्थ्य-सुरक्षा आदि से संबंधित चुनौतियों को हल करने में सफलता मिल सकती है। मानव जीनोम के अतिरिक्त अन्य जीवों, जैसे बैक्टीरिया, यीस्ट, ड्रोसोफिला (फलमखी), धान के पौधे आदि के जीनोम की भी जानकारी प्राप्त की गई है। इन जीवों के DNA अनुक्रमों की जानकारी से विभिन्न मानव कल्याणकारी कार्यों की असीम संभावनाएँ अत्यन्त हुई हैं।

एच.जी.पी. की कार्य प्रणालियाँ (Methodologies of HGP)

एच. जी. पी. में दो मुख्य तरीकों का उपयोग किया जाता है। पहली विधि के अन्तर्गत उन सभी जीनों की पहचान की जाती है जो RNA के रूप में व्यक्त होते हैं। इसे व्यक्त अनुक्रम घुंडी (Expressed sequence tags, or ESTs) कहा जाता है। दूसरी विधि में जीन के सभी अनुक्रमों (कोडिंग एवं नॉनकोडिंग) की जानकारी प्राप्त की जाती है एवं इसके विभिन्न खण्डों के कार्यों को निर्धारित किया जाता है। इसे अनुक्रम टिप्पण (Sequence annotation) कहा जाता है। अनुक्रमण करने के लिए कोशिका के पूर्ण DNA को सर्वप्रथम विलगित कर छोटे-छोटे खंडों (Fragments) में काटा जाता है। आप जानते हैं कि DNA कुंडली एक लंबी संरचना है जिसके अनुक्रम में तकनीकी परेशानी होती है। अतः इसे छोटे खंडों में परिणित करना आवश्यक है। DNA के इन खंडों का क्लोन तैयार करने के लिए उचित होस्ट (Host) एवं खास संवाहकों (Specialized vectors) का उपयोग किया जाता है। क्लोनिंग से प्रत्येक DNA के प्रवर्धन में सहायता मिलती है। इससे DNA अनुक्रों की जानकारी प्राप्त करने में आसानी होती है। बैक्टीरिया एवं यीस्ट सामान्य तौर पर होस्ट के रूप में प्रयुक्त होते हैं जबकि संवाहकों को बी.ए.सी. (Bacterial artificial chromosomes, BAC) एवं वाइ. ए. सी. (Yeast artificial chromosome, YAC) कहा जता है।

DNA खंडों को अनुक्रमण स्वचालित DNA अनुक्रमक (Automated DNA sequencer) द्वारा किया जता है। यह अनुक्रमक फ्रेडरिक सेंगर (Frederick Sanger) के द्वारा विकसित विधि के सिद्धान्त पर कार्य करता है। सेंगर ने ही प्रोटीन में मौजूद एमीनों अम्लों को निर्धारित करने की विधि का विकास किया है। DNA अनुक्रमण से ज्ञात अनुक्रों को एक-दूसरे में स्थित ओबर लैपिंग (Overlapping) के आधार पर व्यवस्थित किया जाता है। ओवर लैपिंग खंडों का निर्माण अनुक्रमण के लिए आवश्यक है। अनुक्रमण से जो आंकड़ा उपलब्ध होता है उसे पंक्तिबद्ध करेन के लिए कम्प्यूटर–आधारित विशेष प्रोग्राम (Program) की जरूरत पड़ती है।

DNA अनुक्रमों की प्राप्त जानकारी को प्रत्येक गुणसूत्र के साथ निर्धारित किया गया । क्रोमोसोम 1 का अनुक्रमण मई 2006 में पूर्ण हुआ। यह मानव के 22 जोड़े. अलिंग क्रोमोसोम (Autosome) एवं 2 लिंग क्रोमोसोम (X एवं Y) में अंतिम था। जीनोम का आनुवंशिक एवं भौतिक नक्शा तैयार करना एक चुनौतपूर्ण कार्य था। प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएज पहचान स्थल (Recognition sites of restriction endonuclease) के बहुरूपण (Polymorphism) की जानकारी तथा कुछ दोहराए गए DNA अनुक्रमों (माइक्रोसैटेलाइट) के ज्ञान से यह तैयार किया गया।

एच. जी. पी. की मुख्य विशेषताएँ (Important features of HiGP)

मानव जीनोम परियोजना की मुख्य विशेषताएँ निम्नांकित हैं।

  1. मनुष्य के जीनोम में 3164.7 मिलियन नाइट्रोजनी क्षार पाए जाते हैं।
  2. हर एक जीने में करीबन 3000 नाइट्रोजनी क्षार रहते हैं, लेकिन इनके आकार में भिन्नता पाई जाती है। मनुष्य के जीनोम में पाई जाने वाली सबसे बड़ी जीन डिस्ट्रॉफिन (Dystrophin) है। इसमें 2.4 मिलियन क्षार विद्यमान रहते हैं।
  3. पहले की अनुमानित जीनों की संख्या (80,000 से 1,40,000) की तुलना में काफी कम (30,000) जीन पाए गए है। सभी मनुष्यों में पाए जाने वाले न्यूक्यिोटाइड्स 99.9 प्रतिशत एक जैसे थे यानि लगभग एकसमान थे ।
  4. 2 प्रतिशत से कम जीनोम द्वारा ही प्रोटीन का कूटलेखन या कोडिंग (Coding) होता है।
  5. जितने जीनों की खोज हो पाई है उनमें 50 प्रतिशत से अधिक जीनों के कार्यों की जानकारी नही हो सकी है।
  6. मनुष्य के जीनोम का एक बड़ा हिस्सा पुनरावृत्ति अनुक्रमों (Repetitive sequences) से निर्मित होता है।
  7. DNA में पुनरावृत्ति, अनुक्रमों की संख्या कभी-कभी सौ से हजार तक होती है। इनका कार्य कूटलेखन में सीधे तौर पर नहीं होता है, लेकिन क्रोमोसोम की संरचना, गतिकीय एवं विकास के बारे में इनसे जानकारी मिलती है।
  8. मानव जीनोम के विस्तृत अध्ययन से यह ज्ञात हुआ है कि क्रोमोसोम 1 में सबसे अधिक जीन (2968) पाए जाते हैं जबकि Y क्रोमोसोम में सबसे कम जीन (231) रहते हैं।

9.मानव जीनोम में लगभग 1.4 मिलियन जगहों पर वैज्ञानिकों ने अलग इकहरा क्षार का पता लगाया है। इसे एकल न्यूक्लियोटाइड बहुरूपता (Single nucleotide polymorphism, SNP) कहा जाता है। इससे मानव रोग संबंधित DNA अनुक्रमों को जानने में काफी मदद मिली है। इसके साथ-साथ मानव विकास के इतिहास को जानने में भी यह सहायक है।

एच.जी.पी. का उपयोग एवं भविष्य की चुनौतियाँ (Applications of HGP and future challenges)

जैविक तंत्र (Biological system) को अच्छी तरह से समझे में मानव जीनोम की जानकारी बहुत मददगार साबित हुई। DNA अनुक्रमों की सही जानकारी एवं इससे संबंधित अन्य प्रकार के शोधों से जीवों के विभिन्न कार्यों एंव इनमें पाई जाने वाली विभिन्नताओं को समझने में काफी सहुलियत हुई। इस वृहद कार्य में विश्वभर के सार्वजनिक एवं असार्वजनिक क्षेत्रों के हजारों विशेषज्ञों ने अपने अनुसंधनों से योगदान किया। इस परियोजना के बाद जैविक अनुसंधानों में नए आयामों का समावेश संभव हो पाया। पहले शोधकर्त्त एक समय में एक या कुछ जीनों का ही अध्ययन कर सकते थे। मानव जीनोम की जानकारी होने के बाद व्यापक स्तर पर एवं सुव्यवसिति तरीके से जीनों का अध्ययन करना संभव हो पाया है। इस कार्य में नई तकनीकों का भी योगदान रहा है। वैज्ञानिक अब एक साथ जीनोंम के सभी जीनों का अध्ययन कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, अब यह जानना संभव हो गया है कि विशेष ऊत्तक या अंग या अर्बुद (Tumour) में पाए जाने वाले हजारों जीन एवं प्रोटीन आपस में जुड़कर किस प्रकार कार्य करते हैं इस प्रकार के जीनोम

परियोजना के अनेक उपयोग है। भविष्य में अनेक चुनौतियाँ भी आनेवाली हैं खासकर मानव की क्लोनिंग से संबंधित ।

 

विजातीय जीन उत्पाद प्राप्त करना (Obtaining Foreign Gene Product)

जब भी विजातीय डीएनए खंड को क्लोनिंग संवाहक (Vector) में प्रवेश करवाकर इसे जीवाणु, पादप या जंतु कोशिका में स्थानांतरित किया जाता है तब वह विजातीय डीएनए उसमें गुणन (Multiply) करने लगता है। सभी पुनर्योगज तकनीकों में उद्देश्य वांछित प्रोटीन प्राप्त करना होता है। इस कार्य के लिये पुनर्योगज डीएनए को अभिव्यक्त (Express) करना होता है तथा यह विजातीय डीएनए समुचित परिस्थितियों में ही अभिव्यक्त हो सकता है। विजातीय डीएनए की अथवा जीन की अभिव्यक्ति परपोषी कोशिकाओं में कई तकनीकी बातों पर निर्भर करती है।

वांछित जीन की क्लोनिंग तथा चयनित प्रोटीन प्राप्त करने हेतु इच्छित इष्टतम परिस्थितियाँ उत्पन्न करने के पश्चात् इसका व्यापक स्तर पर उत्पादन करते हैं। अगर कोई प्रोटीन एनकोडिंग (Encoding) जीन किसी विषमजात (Heterologous) परपोषी में अभिव्यक्त होता है तब वह पुनर्योगज प्रोटीन कहलाता है। जिन कोशिकाओं में वांछित क्लोन जीन उपस्थित होती हैं उनकी छोटे पैमाने पर प्रयोगशाला में वृद्धि करवाते हैं। इन संवर्धन (Culture) द्वारा वांछित प्रोटीन का निष्कर्षण करके विलगन तकनीक द्वारा उन्हें परिशुद्ध कर लेते हैं। इन कोशिकाओं की सतत् संवर्धन माध्यम पर भी वृद्धि करवाई जा सकती है। इसमें पुराने माध्यम को एक ओर से हटा कर इसमें नया माध्यम डाल दिया जाता है जिससे कोशिकाएं लम्बे समय तक सक्रिय रह सकती हैं। वृद्धि की यह अवस्था लॉग / चरघांताकी (Log/exponential) प्रावस्था कहलाती है। इस प्रकार के संवर्धन द्वारा अधिक जैवभार (Biomass) उत्पन्न होता है जिससे वांछित प्रोटीन का अधिक उत्पादन हो जाता है।

सवंर्धन (Cultures) को छोटे पैमाने पर करने से उत्पाद की मात्रा कम प्राप्त होती है अतः बड़े पैमाने पर उत्पाद प्राप्त करने के लिये बायोरिक्टर काम में लिये जाते हैं जिनकी संवर्धन उत्पादन करने की क्षमता 100 से 1000 लीटर तक होती है। बायोरिक्टर एक बड़े बर्तन जैसा होता है जिसमें सूक्ष्मजीवों, पादपों, प्राणी कोशिकाओं को कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल करके जैव रूप से खास उत्पादों (Specifc Products) व्यष्टि विकर (Individual Enzymes) में रूपांतरित किया जा सकता है। बायोरिक्टर इच्छित उत्पाद प्राप्त करने के लिये इष्टतम (Optimum) परिस्थितियाँ प्रदान करता है । वृद्धि के लिये अनुकूल pH, क्रियाधार ( Sostrate), ऑक्सीजन, तापमान, लवण (Salts), विटामिन (Vitamins) आदि आवश्यक होते हैं। सबसे प्रचलित बायोरिक्टर विलोडन (Stirring) प्रकार का होता है।

विलोडन-टैंक रिएक्टर (Stirred Tank Reactor) सामान्यतः एक बेलनाकार बर्तन होता है जिसका पैदा घुमावदार (Curved) होता है जिससे मिश्रण भली-भांति मिश्रित हो जाता है तथा इसे ऑक्सीजन भी पूरी मिलती रहती है। अगर आवश्यकता होती है तब ऑक्सीजन को बुलबुले के रूप में बायोरिएक्टर में प्रवेश करवाया जा सकता है। बायोरिएक्टर में एक प्रक्षोभक तन्त्र (Agitator System), ऑक्सीजन भेजने का तन्त्र तथा सभी हिस्सों में pH व ताप को नियंत्रण करने के तन्त्र उपस्थित होते हैं। इसमें कुछ छिद्र बने होते हैं जिनसे समय-समय पर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में सवंर्धन को निकाला जा सकता है।

DNA फिंगरप्रिंटिंग (DNA Finger Printing)

मनुष्यों के DNA में पाए जाने वाले क्षार अनुक्रम (Base sequence) लगभग समान होते हैं। मनुष्य के जीनोम में 3 × 10 क्षार के जोड़े पाए जाते हैं। किसी जनसंख्या के विभिन्न लोगों के बीच आनुवंशिक विभिन्नता को पता लगाने केलिए DNA अनुक्रम की जानकारी आवश्यक है। इतनी बड़ी संख्या के क्षार अनुक्रमों का पता लगाना बहुत महँगा एवं कठिन कार्य है। दो मनुष्यों के DNA अनुक्रमों का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिए DNA फिंगरप्रिंटिंग एक त्वरित एवं अच्छी विधि है । इसमें DNA अनुक्रम में अवस्थित पुनरावृत्ति DNA ( Repetitive DNA) का उपयोग किया जाता है। ये DNA के छोटे खंड कई बार पुनरावृत्त होते हैं। ये सामान्यतः उच्चश्रेणी की बहुरूपता (High degree of polymorphism) प्रदर्शित करते हैं जो DNA फिंगरप्रिंटिंग का आधार है किसी भी व्यक्ति के विभिन्न ऊत्तकों, जैसे त्वचा, बाल, शुक्राणु, लार, रक्त, हड्डी आदि से प्राप्त DNA में एक जैसी बहुरूपता मिलती है । बहुरूपता उत्परिवर्तन (Mutation) के चलते उत्पन्न होती है । जनन कोशिकाओं में उत्परिवर्तन होने से यह लैंगिक जनन द्वारा जनकों से संतति में चला आता है। धीरे-धीरे एकत्रित होकर विभिन्नता या बहुरूपता उत्पन्न होती है। DNA फिंगरप्रिंटिंग तकनीक का प्रारंभिक विकास एलेक जेफरीज (Alec Jeffreys) ने किया।

जीन (Gene) DNA का एक छोटा हिस्सा होता है। मानव क्रोमोसोम के प्रायः 90 DNA का कार्य ज्ञात नहीं है, क्योंकि यह प्रोटीन को कोड (Code) नहीं करता है। इन कतारबद्ध (Sequence) ज्ञान रहित DNA का प्रभाव बाह्य आकार (Phenotype) पर नहीं पड़ता है और व्यक्तिगत जीव (Indivdual organism) ज्ञानरहित DNA का नया पंक्तिबद्ध स्वरूप अर्जित कर लेता है। ये लम्बाई में अलग-अलग होते हैं, लेकिन प्रायः 9-40 या 200-300 या लगभग 1000 क्षारीय जोड़े (Base pairs) का बना है।

आपसी विभिन्नता रखने वाले ये विशिष्ट और वास्तविक में अनोखे लम्बाई वाले कार्य शून्य (Nonfunctional) DNA की श्रृंखला सभी आवश्यकता जीन्स (Genes) के साथ संतानों में आनुवंशिकता के तहत चले जाते हैं। DNA का यही वह हिस्सा होता है, जिसका व्यवहार ‘फिंगरप्रिंटिंग में किया जाता है। छोटे पुनरावृत्तिवाले श्रृंखलाबद्ध DNA की खोज B-ग्लोबीन जीन (B-globin gene) में हुई या जिसे मिनिसैटेलाइट्स (Minisatellites) के नाम से जाना जाता है तथ ये दो अनात्मीय व्यक्ति (Unrelated individuals) में अलग-अलग प्रकार के होते हैं। DNA की यह बहुरूपता उत्परिवर्तन (Mutation) क्रिया के कारण DNA के वास्तविक खंडों के हास तथा नए खंडों के जुटने के – फलस्वरूप होता है। इसे वैकल्पिक रूप में VNTR (Variable number tandem repeats) के नाम से भी जाना जाता है।

आधुनिक अनुसंधान के क्रम में ऐसा देखा गया है कि दो अनात्मीय (Unrelated) व्यक्तियों में DNA के खंडों की संख्या अलग-अग होती है जिसके फलस्वरूप उनकी लम्बाई में भी विभिन्नता होती है। यह जेल इलेक्ट्रोफोरेसिस (Gel Electrophoresis) की क्रिया के द्वारा अलग किया जा सकता है। ऐसे दो DNA पूर्णतः अलग-अलग नमूने (Patterns) के होते हैं, क्योंकि इसमें खंडों क संख्या भिन्न होती है। इसके विपरीत अलग किसी दो व्यक्तियों में DNA की संरचना समान होती है तो ऐसे व्यक्तियों के DNA की समानता उसके आपसी संबंधों की स्थिति पर आधारित होती है। DNA संरचना की यह समानताएँ एवं विभिन्नताएँ साउदर्न ब्लॉटिंग टेक्निक (Southern blotting technique) द्वारा सिद्ध किया जा सकता है।

DNA फिंगरप्रिंटिंग के लिए थोड़ी-सी रूधिर कोशिकाएँ अथवा त्वचा कोशिकाएँ अथवा वीर्य अथवा किसी भी प्रकार की शारीरिक कोशिकाओं का नमूना लिया जा सकता है। प्रायः 1,00,000 कोशिकाओं या लगभग एक माइकोग्रा अच्छे नतीजे के लिए उपयुक्त माना जाता है। इसके लिए निम्नलिखित विधि आजकल अपनायी गई है।

(i) एक उच्च गतिवाले रेफ्रीजेरेटेड सेंट्रीफ्यूज (High-speed refrigerated centrifuge) की सहायता से DNA की आवश्यक मात्रा रूधिर कोशिका या किसी भी अन्य प्रकार की शारीरिक कोशिकाओं से प्राप्त की जाती है।

(ii) आवश्यकता पड़ने पर निकाले गए DNA की अनेक प्रतिलिपि (Many copies) PCR (Polymerase chain reaction) विधि द्वारा तैयार कर ली जाती है।

(ii) DNA को सीमाबद्ध लंबा रखने हेतु इसे रेसट्रिक्शन एंजाइम से काटकर छोटे-छोटे खंडों में विभक्त किया जाता है।

(iv).DNA के टुकड़े को इलेक्ट्रोफोरेसिस में जेल (Gel) से निकाला जाता है।

(v) छोटे लंबाई वाला DNA अने बड़े लंबाईवाले की तुलना में आगे निकल पाता है। इस अवस्था में धारियाँ (Bands) अदृश्य होती है।

(vi) अब दोहरे स्ट्रैंडवाले DNA क्षारीय रासायनिक पदार्थ की सहायता से एकधागीय DNA में अलग किया गया है।

(vii) अलग किए गए सभी एकधागीय DNA को नाइलोन झिल्ली या नाइट्रोसेल्यूलोज परत पर स्थानांतरित कर जल के ऊपर रखा जाता है। इसे ही साउदर्न ब्लॉटिंग विधि (Southern blotting process) कहते हैं।

(viii) खंडों की संरचना को जानने के लिए एक एक्स-रे फिल्म (X-ray film) को नाइलोन झिल्ली के साथ रखा जाता है।

(ix) अब नाइलोन सीट के एक जलपात्र में डुबाया जाता है एवं प्रोब्स या मार्कर (Probes or Markers) जो रेडियोऐक्टिव संश्लेषित DNA खंडों में है, उन्हें मिलाया जाता है।

(x) प्रोब्स का लक्ष्य एक विशिष्ट न्यूक्लिओटाइड की क्रमबद्ध संरचना है, तो VNTR का पूरक हैं। ये उन्हें संकर में बदलता है।

(xi) अंत में X-ray फिल्म को नाइलोन झिल्ली जो रेडियोऐक्टिव प्रोब्सयुक्त होते हैं, उस पर खोला जाता है।

(xi) इस प्रकार की क्रिया के अंत में परिणामस्वरूप DNA फिंगर प्रिंट्स के काले धब्बे (Dark bands) प्रोब्स के स्थान पर बन जाते हैं जिसे अध्ययन कर आवश्यक जानकारी आसानीपूर्वक प्राप्त की जा जाती है।

DNA फिंगरप्रिंटिंग के उपयोग (Uses of DNA fingerprinting)

आज के सामाजिक और सांसारिक परिस्थितियों में फिंगरप्रिंटिंग की प्रक्रिया विज्ञान की एक अदभूत एवं उपयोगी देन है। इस विधि पर व्यवहार निम्नांकित अनेक प्रकार के जटिल उलझनों को सुलझाने में होता है।

(i) फौरेनसिक प्रयोगंशालाओं (Forensic laboratories) में इसका उपयोग अपराधियों (Criminals) को पहचानने में किया जाता है।

(ii) समरूपी जुड़वाँ (Identical twins) को छोड़कर DNA की संरचना किसी भी दो व्यक्तियों में एक जैसी नहीं होती है। अतः इसके सहारे किसी का भी पहचान किया जा सकता है।

(ii) संदिग्ध माता-पिता के बच्चे के DNA फिंगरप्रिंटिंग के आधर पर सही माता-पिता की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। देशांतर में बसने वाले लोगों के जीवन में ऐसी विधि का उपयोग उसके संतन की जानकारी हेतु काफी कारगर होती है।

(iv) मृत व्यक्तियों (Dead persons) की सही-सही जानकारी उनके मृत अंगों के DNA संरचना क द्वारा भी की जाती है। ऐसी परिस्थिति में मृत व्यक्ति क DNA फिंगरप्रिंटिंग उसके नजदीकी संबंधियों के DNA संरचना से मिलाया जाता है।

  • किसी संतन के सही माता-पिता का ज्ञान भी इसी विधि के द्वारा प्राप्त किया जता है।

(vi) न्यायालय में पैतृत्व – निर्धारण के मामले में इसका उपयोग किया जाता है।

(vii) मानव जीनोम के आनुवंशिक नक्शे को तैयार करने में लाभदायक है।

प्रश्न (Questions)

निम्नलिखित के अतिलघु उत्तर दीजिये

Give very short answer of the following

  1. एक जीव के डी.एन.ए. के साथ दूसरे जीव का डी. एन. ए. जोड़ देने पर जो डी. एन. ए. प्राप्त होता है, वह क्या कहलाता है ?

When DNA of one organisam is cloned to DNA of Jepeercele organism the DNA obtained by this way werat it is called?

  1. जीवाणुओं में गुणसूत्र के अतिरिक्त कौनसी आनुवंशिक रचना पायी जाती है ?

In bacteria other than chromosome which hereditary structure is found?

  1. प्रतिबन्धित एन्जाइम की खोज किस वैज्ञानिक ने की ?

By which scientist discovery of restriction enzyme was done?

  1. रेस्ट्रिक्शन एन्डोन्यूक्लिएज का क्या अर्थ है ?

What do you mean by Restriction Endornuclease.

  1. किसी डी.एन.ए. के एक सिरे पर नये नाइट्रोजनी क्षारक जोड़ने हेतु जिस किण्वक का उपयोग किया जाता है, उसका नाम बताइये ?

Name the enzyme which is used to add new nitrogenous base on one terminal.

  1. लगभग कितने प्रतिबंधित एन्जाइम्स प्राप्त किये जा चुके हैं ?

Approximately how many restriction enzymes are obtained?

  1. जीन के नये संयोग बनाने की क्रिया किस नाम से जानी जाती है ?

By which name new combination of gene formation is known.

  1. एक जीवाणु के DNA में 3 से 5 हजार जीन्स हो सकते हैं इसमें पुनर्लिपिकरण जीन कितने होंगे ?

In a bacteria there may be 3 to 5 thousands genes in it, how many will be the gene of replication ?

  1. एक्सोन्युक्लिएज एन्जाइम DNA को कहाँ व किस बिन्दु पर विदलित करता है ?

Exonuclease enzyme from where and at which point cleaves DNA.

  1. एन्डोक्युक्लिएज एन्जाइम DNA को कहाँ व किस बिन्दु पर विदलित करता है ?

Endonuclease enzyme from where and at which point cleaves DNA.

  1. लघु उत्तर वाले प्रश्न

Short answer questions

  1. पुनर्योगज डी.एन.ए. से क्या अभिप्राय है इसके बनाने की विधि का वर्णन कीजिये ।

What do you mean by recombinant DNA, describe a method of its formation.

  1. प्रतिबन्धित एन्जाइम व इनके उपयोग पर टिप्पणी कीजिये ।

Write a short note on restriction enzymes and their use.

  1. निम्नलिखित पर टिप्पणी कीजिये-

Write shot note on-

(i) क्लोनिंग (cloning)

(ii) लाइगेज (ligase)

(iii) पेसेन्जर डी एन ए बाह्य डी.एन.ए. (Passenger DNA foreign DNA)

(iv) रिकॉम्बीनेन्ट डी.एन.ए. (Recombinant DNA)

(v) पुनर्योगज तकनीक के उपयोग

(Application of recombinant technique)

(Synthetic genes and DNA chip)

(vi) संश्लेषित जीन व डी. एन. ए. चिप

(vii) पी.सी.आर. (PCR)

(viii) डी ए एफ क्या है ?

What is DAF.

III. दीर्घ उत्तर वाले प्रश्न (Long answer questions)

  1. पुनर्योगज डी. एन. ए. तकनीक क्या है इसके अनुप्रयोगों पर विस्तार से लेख लिखिये ।

What is recombinat DNA technology? Write a detailed account on its applications.

  1. डी. एन. ए. पुनर्योगज तकनीक क्या है ? इसके प्रमुख चरणों को लिखिये । PCR डी.एन.ए., तकनीक की अपेक्षा अधिक उपयोगी क्यों है ?

What is recombinant DNA technology? Write major steps used in it why PCR in more useful than recombinant technology.

  1. डी. एन. ए. पुनर्योगज तकनीक क्या है ? इसमें प्रयुक्त प्रमुख चरणों को लिखिये इस तकनीक के अनुप्रयोग पर टिप्पणी कीजिये ।

What is recombinant DNA technology? Write major steps use in it add a not on its application.

  1. पुनर्योजी डी. एन.ए तकनीक का महत्त्व समझाइये ।

Explain the significance of recombinant DNA technology.

  1. पुनर्योगज डी.एन.ए. तकनीक को समझाइये।

Explain the Recombinant DNA technology.