WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

परिसंचरण तंत्र पथ , मनुष्य (मानव) में परिसंचरण तंत्र , human circulatory system in hindi , रुधिर वाहिकाएँ

मानव में परिसंचरण तंत्र , human circulatory system in hindi , परिसंचरण तंत्र पथ किसे कहते है ? परिभाषा क्या है ? रुधिर वाहिकाएँ |

विभिन्न परिसंचरण पथ :

  1. एकल परिसंचरण पथ : मछलियों में दो कोष्ठीय ह्रदय एक आलिन्द व एक निलय युक्त होता है | इसमें अशुद्ध रुधिर (co2 युक्त) को बाहर पम्प किया जाता है जो क्लोम द्वारा ऑक्सीजनित होकर शुद्ध रूधिर (o2 युक्त) उसी मार्ग से शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचाया जाता है इसे एकल परिसंचरण पथ कहते है |
  2. अपूर्ण दोहरा परिसंचरण पथ : उभयचरों व सरीसृप प्राणियों में ह्रदय तीन कोष्ठीय (दो आलिंद , एक निलय) होता है | इन जन्तुओ में बाएँ आलिंद में फेफडो से शुद्ध रुधिर (o2 युक्त) आता है तथा दाहिने आलिन्द में अंगो से अशुद्ध रूधिर (co2 युक्त) आता है , परन्तु निलय में शुद्ध व अशुद्ध रुधिर मिश्रित हो जाते है इसे अपूर्ण दोहरा परिसंचरण पथ कहते है |
  3. पूर्ण दोहरा परिसंचरण पथ : मगरमच्छ , पक्षियों व स्तनधारियों में पूर्ण चार कक्षीय ह्रदय (दो आलिन्द व दो निलय) पाया जाता है , इन जन्तुओं में शुद्ध रुधिर (o2 युक्त) बाएँ आलिन्द में व अशुद्ध रुधिर (co2 युक्त) रुधिर दायें आलिंद में आता है तथा उसी क्रम में निलयों में जाता है , निलयो में बिना मिश्रण के रुधिर को शरीर के अंगो में तथा अशुद्ध रुधिर को फेफडो में पहुँचाया जाता है इसे दोहरा परिसंचरण पथ कहते है |

मनुष्य (मानव) में परिसंचरण तंत्र (human circulatory system in hindi)

ह्रदय (Heart) : ह्रदय एक पेशीय अंग है , यह वक्षगुहा में कुछ बायीं ओर दोनों फेफडो के मध्य स्थित होता है | ह्रदय दोहरी झिल्ली से निर्मित ह्रदय आवरण से घिरा होता है | ह्रदय आवरण की गुहा में परिद्रव भरा होता है | ह्रदय की भित्ति तीन स्तरों से निर्मित होती है , बाहरी स्तर एपिकार्डियम , मध्य स्तर मायोकार्डियम व आन्तरिक स्तर एंडोकार्डियम कहलाता है | मानव ह्रदय में चार कक्ष होते है , पतली भित्ति वाले दो आलिन्द व मोटी भित्ति वाले दो निलय होते है | आलिन्दो व निलयो के मध्य स्थित दरार को कोरोनरी सल्कस कहते है | आलिन्द व निलय आपस में कपाटो द्वारा प्रथक रहते है , दोनों आलिन्दो के मध्य अंतर आलिन्द पट होता है , इसी प्रकार दोनों निलयों के मध्य अन्तर निलय पर होता है | बाएँ आलिन्द व बाएँ निलय के मध्य द्विपट तथा दाएँ आलिन्द व दायें निलय के मध्यत्रिवलन कपाट होता है |

ह्रदय की कार्यप्रणाली (working of heart)

  1. ह्रदय स्पन्दन (heart beat) : ह्रदय के लयबद्ध संकुचन को ह्रदय स्पंदन कहते है | यह एक तंत्र के रूप में होता है , ह्रदय चालन तंत्र में कोटर आलिन्द पर्व संधि (SAN) आलिन्द-निलय पर्व संधि (AVN) हिन्ज बंडल व पुरकिन्जे तन्तु शामिल है | SAN की विशिष्ट पेशी कोशिकाएँ स्वउत्तेजना के कारण स्वत: विध्रुवित होकर सक्रीय विभव उत्पन्न करती है , SAN से सक्रीय विभव का संचरण शीघ्र ही दोनों आलिन्दो की भित्तियों में फैल जाता है जिससे आलिन्द एक साथ संकुचित हो जाते है | सक्रीय विभव का संचरण SAN से AVN में हो जाता है , AVN से आवेग का संचरण हिन्ज बण्डल व पुरकिन्जे तन्तुओं द्वारा दोनों निलयो की भित्ति में हो जाता है , फलस्वरूप दोनों निलयों का एक साथ संकुचन हो जाता है | SAN के ह्रदय का गति निर्धारक अथवा पेस मेकर कहते है |
  2. ह्रदय चक्र (heart cycle) : ह्रदय के एक स्पन्दन के पूर्ण होने के समय ह्रदय में होने वाली घटनाओ को ह्रदय चक्र कहते है | ह्रदय चक्र पूर्ण होने में 0.8 sec का समय लगता है |
  3. ह्रदय ध्वनियाँ (heart sounds) : ह्रदय ध्वनियां स्टेथो स्कोप द्वारा सुनी जा सकती है , ह्रदय के कपाटो के बंद होने से ध्वनियाँ उत्पन्न होती है , निलय प्रन्कुचन के समय आलिंद-निलय कपाटो के बन्द होने के कारण उत्पन्न ध्वनी को प्रथम ह्रदय ध्वनी कहते है | यह ‘लब’ होती है , इसी प्रकार निलय अनुशीतलन के बंद होने से उत्पन्न ध्वनी को द्वितीय ह्रदय ध्वनी कहते है , यह “डब” होती है |

रुधिर वाहिकाएँ (blood vessels)

  1. धमनी व धमनिकाएँ : रुधिर को ह्रदय से दूर ले जाने वाली वाहिकाएं धमनी कहलाती है , इनका व्यास अधिक होता है , इनमे रुधिर तेजी से बहता है , इनमें कपाट नहीं पाये जाते है | महाधमनी शरीर की सबसे बड़ी धमनी है जो रूधिर को शरीर के सभी भागों में लेकर जाती है , धमनियों की पतली शाखाएँ धमनिकाएँ कहलाती है |
  2. शिरा व शिराकाएँ : ये रुधिर को ह्रदय की ओर ले जाती है , इनकी पतली शाखाएँ शिराकाएं कहलाती है | इनका व्यास धमनियों की तुलना में कम होता है , इनमे कपाट पाये जाते है , इनमें रक्त मंद गति से बहता है , शरीर की सबसे बड़ी शिरा महाशिरा कहलाती है |
  3. रुधिर केशिकाएँ : ये सबसे पतली होती है , इनका आन्तरिक स्तर उपकला का बना होता है , रुधिर कोशिकाएं शरीर में वृहत जाल बनाती है , इनमे से जल व घुलित पदार्थो का परिवहन होता है इनमें रुधिर धीमी गति से बहता है |

ह्रदय दर का नियंत्रण

ह्रदय में प्रति मिनट होने वाले स्पंदनो की संख्या को ह्रदय दर कहते है , ह्रदय दर का नियमन तीन प्रकार से होता है |

  1. तंत्रिकीय नियंत्रण : ह्रदय नियंत्रण केन्द्र मेडुला में होते है , मेडुला के ह्रदय संदमक केन्द्र से अनुकम्पी तंत्रिका तन्तु SAN में आते है | जब आवेग तन्तुओं द्वारा ह्रदय में आते है टो ह्रदय दर कम हो जाती है | मेडुला के “ह्रदयी त्वरण केन्द्र ” से अनुकम्पी तन्त्रिका तन्तु SAN में आते है जो ह्रदय दर को बढ़ा देते है |
  2. हार्मोनल नियंत्रण : एड्रीनल ग्रन्थि से स्त्रवित होने वाले एपीनेफ्रिन व नॉर-एपिनेफ्रिन ह्रदय दर को बढ़ाते है , थायराइड ग्रन्थि से स्त्रवित थोयरोक्सिन हार्मोन भी ह्रदय दर को बढ़ता |
  3. रासायनिक नियंत्रण : ताप की अधिकता , गुस्सा , डर , कम pH व अधिक co2 से भी ह्रदय गति बढ़ जाती है | कम pH व कम ताप तथा कैल्शियम आयनों की अधिकता के कारण ह्रदय दर बढ़ जाती है इसके अतिरिक्त पोटेशियम व सोडियम आयनों की अधिकता से ह्रदय दर कम हो जाती है |

परिसंचरण तंत्र

छोटे-बड़े सभी जंतुओं के शरीर के भीतर ऑक्सीजन, भोजन, हॉर्मोन्स आदि पदार्थों को आवश्यकतानुसार उपयुक्त अंगों में पहुंचाने के लिए एक सुविकसित परिसंचारी तंत्र होता हैं, जिसे परिसंचरण तंत्र कहते हैं। परिसंचरण तंत्र वाहनियों और नलियों के जाल द्वारा बना होता है। परिसंचारी तंत्र को दो भागों में विभाजित किया जा सकता हैः रूधिर तंत्र और लसिका तंत्र। रक्त परिसंचरण तंत्र को शरीर का परिवहन तंत्र माना जाता है। यही तंत्र भोजन, ऑक्सीजन, पानी और दूसरे सभी जरूरी पदार्थों को ऊतक में कोशिकाओं तक पहंचाने का और वहां के बेकार पदार्थ साथ में वापस लाने का कार्य करता है। इसी तंत्र के अंतर्गत रक्त, हृदय एवं रक्त वाहिनियां होती हैं।

खुला परिसंचरण तंत्र

* यह एक निम्न चाप तंत्र है।

* सामान्यतः निश्चित रूधिर वाहनियों का अभाव होता है। रूधिर अवकाश अवनमित देहगुहीय अवकाशों के रूपांतर होते हैं।

* हृदय द्वारा रूधिर या रूधिर लसिका को धीरे-धीरे दबाव के साथ निकाला जाता है परंतु यह हृदय में बिल्कुल धीरे से लौटता है।

* इसमें रूधिर लगभग स्वतंत्र रूप से ऊत्तकों के बीच घूमता है और अंत में हृदय में लौट आता है।

बन्द परिसंचरण तंत्र

* हृदय इस तंत्र का सबसे अच्छा उदाहरण है।

* यह एक उच्च ताप तंत्र है।

* निश्चित रूधिर वाहिनियां विद्यमान होती हैं।

* कशेरूकी, शीर्षपादी और एकाइनोडर्म प्राणियों में बंद परिसंचरण तंत्र पाया जाता है।

* इस तंत्र में रूधिर हृदय से धमनियों द्वारा विभिन्न भागों में जाकर कोशिकाओं द्वारा ऊत्तकों तथा कोशिकाओं में जाता है तथा ऊत्तकों व कोशिकाओं में स्वतंत्र रूप से खुले बिना ही शिराओं द्वारा इकट्ठा होकर हृदय में लौट आता है।

* मनुष्य में विकसित बन्द तथा दोहरा परिसंचरण तंत्र पाया जाता है।

रुधिर नलिकाएं

यद्यपि हृदय परिसंचरण तंत्र का केन्द्रीय भाग है लेकिन पूरे शरीर में रक्त का संचारण रक्त-वाहिनियों के द्वारा ही होता है। रक्त वाहिनियां निम्न प्रकार की होती हैं:

 

 

Ø महाधमनी और धमनियां

Ø धमनिकाएं

Ø कोशिकाएं

Ø शिरिकाएं

Ø शिराएं और महाशिराएं

* हृदय के बाएं निलय (वेन्ट्रिक्ल) से शुद्ध रक्त को लेकर सबसे पहले महाधमनी आगे जाती है। इससे अनेकों धमनियां निकलती हैं। जिनकी उपशाखाएं भी होती हैं जिन्हें धमनिकाएं कहते हैं।

* धमनियों की इस जटिल श्रृंखला के माध्यम से शरीर के अलग-अलग भागों की कोशिकाओं को पोषण और ऑक्सीजन की पूर्ति के लिए उनमें शुद्ध रक्त पहुंचता है।

इसके बाद रक्त शिरिकाओं में जमा हो जाता है। ये छोटी वाहिनियां मिलकर शिराएं बनाती हैं, जो एक-दूसरे से जुड़कर महाशिराएं बनाती हैं। ये महाशिराएं अशुद्ध रक्त को हृदय के दाएं अलिन्द में पहुंचाती हैं।

परिसंचरण तंत्र

छोटे-बड़े सभी जंतुओं के शरीर के भीतर ऑक्सीजन, भोजन, हॉर्मोन्स आदि पदार्थों को आवश्यकतानुसार उपयुक्त अंगों में पहुंचाने के लिए एक सुविकसित परिसंचारी तंत्र होता हैं, जिसे परिसंचरण तंत्र कहते हैं। परिसंचरण तंत्र वाहनियों और नलियों के जाल द्वारा बना होता है। परिसंचारी तंत्र को दो भागों में विभाजित किया जा सकता हैः रूधिर तंत्र और लसिका तंत्र। रक्त परिसंचरण तंत्र को शरीर का परिवहन तंत्र माना जाता है। यही तंत्र भोजन, ऑक्सीजन, पानी और दूसरे सभी जरूरी पदार्थों को ऊतक में कोशिकाओं तक पहंचाने का और वहां के बेकार पदार्थ साथ में वापस लाने का कार्य करता है। इसी तंत्र के अंतर्गत रक्त, हृदय एवं रक्त वाहिनियां होती हैं।

खुला परिसंचरण तंत्र

* यह एक निम्न चाप तंत्र है।

* सामान्यतः निश्चित रूधिर वाहनियों का अभाव होता है। रूधिर अवकाश अवनमित देहगुहीय अवकाशों के रूपांतर होते हैं।

* हृदय द्वारा रूधिर या रूधिर लसिका को धीरे-धीरे दबाव के साथ निकाला जाता है परंतु यह हृदय में बिल्कुल धीरे से लौटता है।

* इसमें रूधिर लगभग स्वतंत्र रूप से ऊत्तकों के बीच घूमता है और अंत में हृदय में लौट आता है।

बन्द परिसंचरण तंत्र

* हृदय इस तंत्र का सबसे अच्छा उदाहरण है।

* यह एक उच्च ताप तंत्र है।

* निश्चित रूधिर वाहिनियां विद्यमान होती हैं।

* कशेरूकी, शीर्षपादी और एकाइनोडर्म प्राणियों में बंद परिसंचरण तंत्र पाया जाता है।

* इस तंत्र में रूधिर हृदय से धमनियों द्वारा विभिन्न भागों में जाकर कोशिकाओं द्वारा ऊत्तकों तथा कोशिकाओं में जाता है तथा ऊत्तकों व कोशिकाओं में स्वतंत्र रूप से खुले बिना ही शिराओं द्वारा इकट्ठा होकर हृदय में लौट आता है।

* मनुष्य में विकसित बन्द तथा दोहरा परिसंचरण तंत्र पाया जाता है।

रुधिर नलिकाएं

यद्यपि हृदय परिसंचरण तंत्र का केन्द्रीय भाग है लेकिन पूरे शरीर में रक्त का संचारण रक्त-वाहिनियों के द्वारा ही होता है। रक्त वाहिनियां निम्न प्रकार की होती हैं:

Ø महाधमनी और धमनियां

Ø धमनिकाएं

Ø कोशिकाएं

Ø शिरिकाएं

Ø शिराएं और महाशिराएं

* हृदय के बाएं निलय (वेन्ट्रिक्ल) से शुद्ध रक्त को लेकर सबसे पहले महाधमनी आगे जाती है। इससे अनेकों धमनियां निकलती हैं। जिनकी उपशाखाएं भी होती हैं जिन्हें धमनिकाएं कहते हैं।

* धमनियों की इस जटिल श्रृंखला के माध्यम से शरीर के अलग-अलग भागों की कोशिकाओं को पोषण और ऑक्सीजन की पूर्ति के लिए उनमें शुद्ध रक्त पहुंचता है।

इसके बाद रक्त शिरिकाओं में जमा हो जाता है। ये छोटी वाहिनियां मिलकर शिराएं बनाती हैं, जो एक-दूसरे से जुड़कर महाशिराएं बनाती हैं। ये महाशिराएं अशुद्ध रक्त को हृदय के दाएं अलिन्द में पहुंचाती हैं।

धमनियां

धमनियां मोटी दीवार वाली वाहिनियां होती हैं। वयस्क व्यक्तियों में फुफ्फुसीय धमनियों के अलावा सारी धमनियां शुद्ध (ऑक्सीकृत) रक्त ले जाती हैं। दाईं और बाईं फुफ्फुसीय धमनियां दाएं निलय (वे न्ट्रि क्ल) से अशुद्ध (डिऑक्सीजिनेटेड) रक्त को फेफड़ों में ले जाती हैं। धमनियों के संकुचन और शिथिलन के गुण से रक्त आगे बढ़कर हमेशा प्रवाहित होता रहता है।

वाहिनियां

ऽ ये सबसे पतली रूधिर नलिकाएं हैं जो धमनियों को शिराओं से जोड़ती हैं।

ऽ प्रत्येक वाहिनी चपटी कोशिकाओं की एक परत से बनी होती है।

ऽ ये पोषक पदार्थों, वर्ण्य पदार्थों, गैस आदि पदार्थों को रूधिर एवं

कोशिका के बीच आदान-प्रदान करने में सहायक होता है।

शिराएं

ऽ छोटी शिराएं वेनुलस कहलाती हैं।

ऽ ये पतली तथा कम लचीली भित्ति वाली रूधिर नलिकाएं हैं जो विभिन्न अंगों से रूधिर को हृदय तक ले जाती हैं।

ऽ इनमें रूधिर की विपरीत गति को रोकने हेतु कपाट (अंसनम) पाये जाते हैं। इनमें रूधिर कम दाब एवं कम गति से बहता है।

ऽ शिराओं की गुहा बड़ी होती है।

ऽ शिराएं रूधिर को एकत्रित करने का कार्य करती हैं।