JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: sociology

होमरूल आंदोलन क्या है ? होम रूल क्रांति की स्थापना कब हुई कैसे हुई मुख्य नेता संस्थापक home rule movement in hindi

home rule movement in hindi  होमरूल आंदोलन क्या है ? होम रूल क्रांति की स्थापना कब हुई कैसे हुई मुख्य नेता संस्थापक अर्थ का उद्देश्य बताइये ?

होमरूल आंदोलन
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, ऐनी बेसेण्ट व तिलक के नेतृत्व वाले श्होम रूलश् आंदोलन ने बिखरी हुई ताकतों को सक्रिय होने के लिए प्रेरित किया। होम रूल के लिए आयरिश आंदोलन द्वारा प्रेरित होकर, इस आंदोलन ने इस आधार पर गृह-शासन की माँग की कि भारतीय अब वयस्क हो गए हैं। तिलक (1915) व बेसेण्ट (1916) की होम रूल लीगों ने स्वयंसेवक नामजद किए और पर्चे छपवाए जिनमें होम रूल की माँगें, कारण व तरीके स्पष्ट किए गए थे। 1917 तक, कर्नाटक, सैण्ट्रल प्रोविन्सिज, बंगाल व यूनाइटिड प्रोविन्स में तिलक की लीगों में 14,000 स्वयंसेवक थे, जबकि ऐनी बेसेण्ट की लीग, जो न्यू इण्डिया व कॉमवैल्थ की मार्फत विचारों का प्रसार करती थी, के पास 7000 स्वयंसेवक ही थे। जवाहरलाल नेहरू, शंकरलाल बांकर व व्योमकेश चक्रवर्ती समेत भारत के अनेक भावी नेताओं ने इन्हीं लीगों के स्वयंसेवक के रूप में अपना पहला राजनीतिक सबक सीखा। सरकार इस आंदोलन की प्रसिद्धी व उग्र-परिवर्तनवाद से नाखुश थी। विरोध-प्रदर्शन का एक तूफान उठाती बेसेण्ट 1917 में गिरफ्तार कर ली गई। वह सितम्बर में रिहा हुई, और तिलक के आग्रह पर कांग्रेस की अध्यक्षा चुनी गईं।

तिलक और बेसेण्ट कांग्रेस को होल रूल आंदोलन के साथ शामिल करके उसका पुनरुत्थान करना चाहते थे। 1916 में कांग्रेस के इस लखनऊ अधिवेशन में होमरूल स्वयंसेवक बड़ी संख्या में आए, जहाँ कांग्रेस व मुस्लिम लीग मिले। तिलक ने निर्वाचकध्साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व हेतु कांग्रेस लीग संधि कराने में निर्णायक भूमिका निभाई। यह उस समय तक आमूल परिवर्तनवादी समाधान जैसा लगा किन्तु राष्ट्रीय आंदोलन के विकास में पतन का कारण ही सिद्ध हुआ।

अतिवादी राष्ट्रवादी चरण
उन्नीसवीं सदी के अन्तिम दशक में औपनिवेशिक व प्रजातीय अक्खड़पन का एक उच्चीकृत भाव था। यही समय था जब अनेक गैर-यूरोपीय लोग आग्रहिता के संकेत दर्शा रहे थे। 1896 में एबिसीनिया ने इटली को हरा दिया, जबकि 1905 में छोटे-से जापान ने रूस को हरा दिया। भारत में, एनी बेसेण्ट, राजेन्द्रपाल मित्र, बाल गंगाधर तिलक, बंकिमचन्द्र चटर्जी और सबसे ऊपर विवेकानन्द ने भारतीयों की श्रेष्ठता और उनके गौरवमय अतीत को निश्चयपूर्वक कहा। इस नए आत्मविश्वास का प्रतिनिधित्व नेताओं की एक नई पीढ़ी द्वारा किया गया-बंगाल में विपिनचंद्र पाल, अरविंद घोष व अश्विनी कुमार दत्तय पंजाब में अजीत सिंह व लाला लाजपत रायय महाराष्ट्र में बाल गंगाधर तिलक, और मद्रास में जी. सुब्रह्मण्यम्, अय्यर, एन.के. रामास्वामी अय्यर, सी. विजयराघवाचारिअर, टी. प्रकाशम् और एन. कृष्णा राव। उन्होंने कांग्रेस नेताओं की नरमपंथी शैली की आलोचना की । प्रार्थना व याचना की बजाय, उन्होंने विरोध-प्रदर्शन के नए तरीकों के रूप में निष्क्रिय प्रतिरोध, बहिष्कार, स्वदेशी अपनाने और राष्ट्रीय शिक्षा की वकालत की।

भारतीयों का भाईचारा उस वक्त देखने में आया जब 1905 में बंगाल का विभाजन हुआ, और एक नया प्रांत बनाने के लिए असम को पूर्वी बंगाल के साथ सम्मिलित कर लिया गया। यह कहा गया कि कुशल प्रशासन के लिहाज से बंगाल बहुत बड़ा है और अनियन्त्रणीय है। लेकिन 1930 से ही विभिन्न अधिकारियों की लगातार घोषणा ने यह जता दिया कि विभाजन के पीछे वास्तविक कारण था बंगाल में बढ़ते राष्ट्रवादी विचारों को कमजोर करना, खासकर श्बंगाली बाबुओंश् के विचार। विभाजन के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन ने जल्द ही संगठित रूप ले लिया, और अन्ततः 7 अगस्त, 1905 से श्स्वदेशी आंदोलनश् आधिकारिक रूप से शुरू हो गया। विदेशी वस्तुओं और सरकारी स्कूलों का बहिष्कार विरोध का प्रमुख साधन बन गया। अनेक राष्ट्रीय विद्यालय व स्वदेशी उत्पादन इकाइयाँ खोली गईं। 16 अक्टूबर, 1905 को, जब विभाजन प्रभावी होना था, बंगाल में अनेक लोगों ने उपवास किया, और टैगोर के सुझाव पर भाईचारे के संकेतार्थ एक-दूसरे की कलाई पर राखी बाँधी । जुलूसकर्ताओं ने शहर के चारों ओर घूम-घूमकर रवीन्द्रनाथ टैगोर व अन्य द्वारा लिखे गीत गाए । स्वदेशी आंदोलन देश के अन्य भागों में भी फैल गया, और उसने ही असम, उड़ीसा व पंजाब में राष्ट्रवादी गतिविधि की पहली लहर चलाई।

नए नेताओं ने एक अधिक अभिकथनात्मक कांग्रेस की माँग की, जिसको कि पूर्ववर्ती राष्ट्रवादियों ने न सिर्फ कांग्रेस के लिए बल्कि कांग्रेस द्वारा शुरू की गई सुधार प्रक्रिया के लिए भी अनर्थकारी के रूप में देखा। उनकी राजनीतिक शब्दावली में जन-आंदोलन व उपद्रवों में विश्वास रखना शामिल नहीं था। तथापि, यह इसलिए नहीं था कि वे शिक्षितों अथवा मध्यवर्ग से संबंध रखते थे। यह अधिकांशतः औपनिवेशिक राज्य के प्रति उनकी भिन्न धारणा और प्रचलित राजनीतिक मनोदशा की उनकी समझ के अभाव के कारण था।

बनारस में कांग्रेस के वार्षिक सम्मेलन, 1905 में नए नेता स्वदेशी, बहिष्कार व राष्ट्रीय शिक्षा को अपनी नीतियों के रूप में कांग्रेस को स्वीकार कराने में सफल रहे। 1906 में, ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत स्वतंत्र उपनिवेश-स्थिति शर्तों पर स्वराज्य-प्राप्ति को कांग्रेस के लक्ष्य के रूप में स्वीकार कर लिया गया। नए उग्रपंथी नेताओं ने नरमपंथियों को कांग्रेस से निकाल बाहर करने का प्रयास किया। इस अनर्थकारी मुहिम ने अन्ततोगत्वा 1907 में सूरत में कांग्रेस को विभाजन की ओर उन्मुख किया, जहाँ उग्रपंथियों को पार्टी से निकाल दिया गया । औपनिवेशिक राज्य ने उस स्थिति का फायदा उठाते हुए, उग्रपंथी नेताओं को सख्ती से दबाया। तिलक को जेल हुई और उन्हें बर्मा की माण्डले जेल भेज दिया गया। नरमपंथी नेताओं ने जन-सहानुभूति खोनी शुरू कर दी, और इस उम्मीद पर जीने लगे कि वे संवैधानिक सुधारों के माध्यम से देश को मुक्ति की ओर ले जा रहे हैं।

स्वदेशी आंदोलन छात्रों व शहरी युवावर्ग जैसी शक्तियों को राष्ट्रीय आंदोलन में, और असम व उड़ीसा जैसे स्थानों को मुख्यधारा में ले आया। बंगाल, पंजाब व महाराष्ट्र, तथापि, गतिविधियों के केन्द्र बने रहे। खुदीराम बोस, अरविंद व वरिंद्र घोष, रासबिहारी बोस व सचिन सान्याल, अजीत सिंह व मदनलाल धींगरा तथा दामोदर सावरकर द्वारा देशभक्ति व बलिदान की उच्च भावना दर्शाते आतंक व व्यक्तिगत कृत्यों ने युवाओं के देश की छवि परिगृहीत कर ली। खुदीराम को फाँसी दिए जाते समय, खुदीराम बोस व प्रफुल्ल चाकी, जिन्होंने मुजफ्फरपुर के दण्डाधिकारी किंग्सफोर्ड के वाहन पर बम फेंका पर दुर्भाग्यवश दो निर्दोष महिलाएँ मारी गईं थीं, का नाम बच्चे-बच्चे की जुबान पर था। रासबिहारी बोस व सचिन सान्याल (1912) ने एक राजकीय शोभायात्रा पर जम फेंका जिससे वायसरॉय लॉर्ड हार्डिंग घायल हुए जो एक हाथी पर बैठे थे।

देशभक्ति के अपने विशुद्ध भाव के बावजूद उग्रपंथियों ने संगठनात्मक व प्रेरणाप्रद उद्देश्यों हेतु शिवजी, गणेश व काली देवी जैसे सांस्कृतिक संकेत-चिह्नों का प्रयोग किया। उनमें कृषि-वर्ग हेतु गंभीर दिलचस्पी का अभाव था, और बाद में उनके पास कोई भी सामाजिक कार्यक्रम न होने के कारण बाधा उत्पन्न हुई दृ उनके अपने वैचारिक विकास व आंदोलन के विकास, दोनों में।

Sbistudy

Recent Posts

सारंगपुर का युद्ध कब हुआ था ? सारंगपुर का युद्ध किसके मध्य हुआ

कुम्भा की राजनैतिक उपलकियाँ कुंमा की प्रारंभिक विजयें  - महाराणा कुम्भा ने अपने शासनकाल के…

4 weeks ago

रसिक प्रिया किसकी रचना है ? rasik priya ke lekhak kaun hai ?

अध्याय- मेवाड़ का उत्कर्ष 'रसिक प्रिया' - यह कृति कुम्भा द्वारा रचित है तथा जगदेय…

4 weeks ago

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

2 months ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

2 months ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

3 months ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

3 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now