हिंदी माध्यम नोट्स
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History
chemistry business studies biology accountancy political science
Class 12
Hindi physics physical education maths english economics
chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology
English medium Notes
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
Class 12
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
गदर आंदोलन क्या है | गदर क्रांति का मुख्य कारण कब हुआ था के नेता कौन थे ghadar movement in hindi
ghadar movement in hindi गदर आंदोलन क्या है | गदर क्रांति का मुख्य कारण कब हुआ था के नेता कौन थे प्रभाव निम्नलिखित में से किससे सम्बन्धित है ?
गदर आंदोलन
1905-06 से ही, उत्तरी अमेरिका में बसे भारतीयों की मदद से, रामनाथ पुरी, जी.डी. कुमार, तारकनाथ व अन्य मुक्त हिन्दूवाद का समर्थन करते विचारों का प्रसार कर रहे थे। 1911 में लाला हरदयाल के पदार्पण के साथ ही, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के पश्चिमी तट में केन्द्रित गदर (क्रांति) आंदोलन शुरू हो गया जो कि एक समाचार-पत्र के नाम पर था। यह वहाँ और पूर्व-एशियाई देशों में बसी विशाल भारतीय जनसंख्या की उपनिवेशवाद-विरोधी भावनाओं का केन्द्र-बिन्दु बन गया। गदर क्रांतिकारियों ने भारत में बिखरे क्रांतिकारियों को संगठित करने और क्रांति का नेतृत्व करने के लिए रासबिहारी बोस को आमंत्रित किया। बोस पंजाब आए और लोगों को संगठित करने के बाद, क्रांति के लिए तारीख तय की – 21 फरवरी, 1915 जो बाद में 19 फरवरी, 1915 हो गई। लेकिन सरकार को इसकी भनक लग गई और उसने गदर क्रांतिकारियों पर प्रतिबंध लगा दिया। पैंतालीस लोगों को फाँसी हुई जबकि सैकड़ों को जेल । गदर व गदरकारियों की क्रांतिकारी अभिदृष्टि ने तथापि, पंजाब तथा भारत में लोगों के दिलोदिमाग में एक अमिट छाप छोड़ी।
राष्ट्रीय आंदोलन
इकाई की रूपरेखा
उद्देश्य
प्रस्तावना
पूर्वकालिक राष्ट्रवादी गतिविधियाँ
भारतीयों द्वारा औपनिवेशिक मतभेद का अनुभव
भारतीय प्रतिनिधित्व में वृद्धि की माँग
अतिवादी राष्ट्रवादी चरण
गदर और होमरूल आंदोलन
गदर आंदोलन
होमरूल आंदोलन
गाँधी व असहयोग आंदोलन का पदार्पण
गाँधी और कृषि-वर्ग
रोलट एक्ट के प्रति विरोध
असहयोग आंदोलन
कृषि-वर्ग, कामगार वर्गों का वामपंथ का उदय
गाँधी-अम्बेडकर विवाद
मार्क्सवाद का आगमन
सम्प्रदायवाद का विकास
नागरिक अवज्ञा आंदोलन और उसके परिणाम
सायमन आयोग
नागरिक अवज्ञा आंदोलन
विश्वयुद्ध और ‘भारत छोड़ो‘ आंदोलन
युद्धोपरांत लहर
आजाद हिन्द फौज (आई.एन.ए.)
सांप्रदायिक दंगे, स्वतंत्रता और विभाजन
सारांश
कुछ उपयोगी पुस्तकें
बोध प्रश्नों के उत्तर
उद्देश्य
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की विरासत ने भारत में राजनीति को एक नहीं अनेक तरीकों से प्रभावित किया। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की समझ आपको तत्कालीन भारत की राजनीति को समझने में बेहतर मदद करेगी। इस इकाई को पढ़ने के बाद आप इस योग्य होंगे कि:
ऽ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में भिन्न-भिन्न वैचारिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं की भूमिका समझ सकें,
ऽ कृषि-वर्ग व कामगार वर्ग जैसे विभिन्न वर्गों के योगदान को जान सकें,
ऽ स्वतंत्रताप्राप्ति के पूर्वगामी कुछ विकास-परिणामों, और उसमें राजनीति के योगदान के बीच सुस्थापित रेखा खींच सकें, और
ऽ राष्ट्रीय आंदोलन के अधूरे काम का विश्लेषण कर सकें।
प्रस्तावना
विश्व इतिहास में दो महत्त्वपूर्ण जन-आंदोलन थे – ‘भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन‘ और 1949 की ‘चीनी क्रांति‘, जिन्होंने लाखों लोगों का भाग्य ही बदल दिया। पहले ने लाखों भारतीयों की स्वतंत्रता हेतु इच्छा को सुव्यक्त किया, और उपनिवेशित एशिया व अफ्रीका में आंदोलनों को प्रेरित किया। यह भारतीय आंदोलन अनेक चरणों से गुजरा।
पूर्वकालिक राष्ट्रवादी गतिविधियाँ
जैसा कि आप इकाई 1 व 2 में पढ़ चुके हैं, ब्रिटिशों ने भारतीयों का अनेकविध शोषण किया और विभिन्न प्रवर्गों ने इसका नानाविध तरीकों से प्रत्युत्तर दिया ।
भारतीयों द्वारा औपनिवेशिक मतभेद का अनुभव
ब्रिटिश शासन के शोषणवादी और भेदभावपूर्ण लक्षण का अनुभव धीरे-धीरे हुआ। दादाभाई नौरोजी, बदरुद्दीन तैयबजी, के.टी. तेलंग, गोपालकृष्ण गोखले, आर.सी. दत्त व एम.जी. रानाडे ने लेखों द्वारा लोगों में बढ़ती गरीबी व बेरोजगारी के लिए जिम्मेदारी स्पष्ट रूप से औपनिवेशिक राज्य पर डाली। उन्होंने देश के प्रशासन के साथ भारतीयों को न सम्मिलित के लिए भी औपनिवेशिक अधिकारियों की आलोचना की। जब सुरेन्द्रनाथ बनर्जी (1848-1925) को एक सारहीन आधार पर असैनिक सेवाओं में जाने हेतु अयोग्य करार दे दिया गया, उन्होंने देश भर में भ्रमण किया और औपनिवेशिक शासन के भेदभावपूर्ण स्वभाव के विषय में देशवासियों को शिक्षित किया। 1883 में, इलबर्ट विधेयक ने एक पीठासीन भारतीय न्यायाधीश को किसी यूरोपियन के न्याय-विचार मुकदमे हेतु शक्ति प्रदान करने का प्रयास किया। इस विधेयक, जिसे वे मानते थे कि प्रजातीय पदानुक्रम को निष्ठाहीन बना रहा है, के खिलाफ ब्रिटिश व यूरोपीय जनता के प्रबल व संगठित विरोध-प्रदर्शनों ने राज्य के अनिवार्यतः प्रजातीय चरित्र के प्रति भारतीय के एक बड़े प्रवर्ग की आँखें खोली दी । इसने उन्हें उनकी स्थिति के प्रति सचेत कर दिया कि वे आम प्रजा ही हैं, न कि ‘क्वीन‘ की उद्घोषणा (1858) में प्रतिज्ञ समानता के हकदार, अथवा उसके जिसकी उन्होंने शिक्षा के माध्यम से अर्जित कर लेने की आशा की थी।
भारतीय प्रतिनिधित्व में वृद्धि की माँग
इस अनुभव के परिणामस्वरूप, मद्रास नेटिव एसोसिएशन, पूना सार्वजनिक सभा (1870), बंगाल में इण्डियन एसोसिएशन (1977), तथा मद्रास महाजन सभा (1884) बनाई गईं। उन्होंने माँग की कि लेजिस्लेटिव तथा वॉयसराय की एक्जीक्यूटिव कौंसिलों में भारतीय प्रतिनिधित्व बढ़ाया जाए, और सिविल सर्विस परीक्षाओं हेतु योग्यता-आयु तथा शिक्षा व अन्य विकासात्मक गतिविधियों पर सरकारी बजट को बढ़ाया जाए। लोगों के हितों को व्यक्त करने के लिए अमृत बाजार पत्रिका, दि. बंगाली, दि हिन्दू, व द ट्रिब्यून जैसे समाचार-पत्र शुरू किए गए। एलन ऑक्टेविन ह्यूम (1829-1912) द्वारा गठित ‘इण्डियन नैशनल कांग्रेस‘, जो इसी आवश्यकता की उपज थी, ने राष्ट्रीय महत्त्व के मुद्दों को उठाने के लिए 25-28 दिसम्बर, 1885 को बम्बई में अपना प्रथम अधिवेशन किया।
फिरोजशाह मेहता, गोपाल कृष्ण गोखले, एम.जी. रानाडे, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, पी. आनन्द चारुलु, और एस. सुब्रह्मण्यम अय्यर जैसे पूर्ववर्ती राष्ट्रवादी प्रबल रूप से मानते थे कि भारतीयों के सामान्य हित व कल्याण में औपनिवेशिक राज्य के शोषणवादी कृत्यों द्वारा बाधा पहुँचाई जा रही है, जैसे कि भारत से संसाधनों का अपवहन । उन्होंने, तथापि, जोर देकर कहा कि औपनिवेशिक राज्य सकारण संशोधनीय है, और अपनी गलतियों का संज्ञान होने पर वह अन्ततोगत्वा भारतीयों को उनका प्राप्य दे देगा। वे भारत में समुदाय व समाज की विषम जातीयता के विद्यमान होने के प्रति भी सचेत थे। ये ब्रिटिश प्रशासन, नए संचार माध्यम व अंग्रेजी शिक्षा के उपाय ही थे जिन्होंने लोगों का राष्ट्रश् पुकारे जाने वाले एक सामूहिक समुदाय में संगठित होना संभव बनाया। लेकिन यह चेतना आम जनता के सभी हिस्सों में समान रूप से विकसित और दृढ़ नहीं थी। इस प्रकार, जबकि सुधारों के लिए माँग राष्ट्र हेतु उच्चारित की जानी थी, उसी समय, विषम प्रवर्गों का राष्ट्र-धारा में दृढ़ीकरण व समूहीकरण करने के प्रयासों की आवश्यकता थी। राष्ट्रवादियों ने इसी रूपरेखा के साथ जनमत सूचित करने का प्रयास किया।
सारांश
स्वाधीनता उपनिवेशवाद के विरुद्ध एक लम्बे संघर्ष का परिणाम थी। पूर्ववर्ती राष्ट्रवादियों व अतिवादियों ने लोगों के मन में देशभक्ति का एक उच्चभाव जगा दिया। कांग्रेस के तत्त्वावधान में गाँधीजी कृषि-वर्ग, श्रमिक वर्गों व शोषित जनसाधारण को राष्ट्रवाद के दायरे में लाए । राष्ट्रवादियों के सामाजिक कार्यक्रमों का उद्देश्य लोगों की मात्र राजनीतिक स्वतंत्रता से कहीं अधिक था। लेकिन पूर्ववर्ती राष्ट्रवादियों का यह विचार कि भारत एक निर्माणशील राष्ट्र है. सत्य सिद्ध हुआ क्योंकि विभाजन ने भारत राष्ट्र की सशक्त नींव का अभाव दर्शाया। राष्ट्रवाद के जोर, जिसने ब्रिटिशों को भारत छोड़ने पर मजबूर किया, का प्रयोग अब एक लोकतांत्रिक व धर्मनिरपेक्ष नीति की मदद से गरीबी, निरक्षरता व विकास के सामाजिक प्रश्नों को हल करने में किया जाना था।
कुछ उपयोगी पुस्तकें
चन्द्र, विपिन व अन्य (सं.), इण्डियाश्ज स्ट्रगल फॉर इण्डिपेण्डेंस, दिल्ली, 1989।
दत्त, आर. पाल्मे, इण्डिया टुडे, दिल्ली, 1949 ।
नेहरू, जवाहरलाल, एन ऑटोबायोग्राफी, दिल्ली, 1934 ।
प्रसाद, राजेन्द्र, इण्डिया डिवाइडिंड, बम्बई, 1947।
बनर्जी, सुरेन्द्रनाथ, ए नेशन इन् दि मेकिंग, कलकत्ता, 1963 ।
बॉन्ड्यूरांत्, वी० जोन, कॉन्क्वैस्ट ऑव वाइअलन्स्, बरकेली, 1971 ।
वर्मा, शिव (सं.), सेलेक्टिड राइटिंग्स ऑव शहीद भगत सिंह, नई दिल्ली, 1986 ।
सरकार, सुमित, मॉडर्न इण्डिया: 1885-1947, दिल्ली, 1983 ।
बोध प्रश्न 1
नोट: क) अपने उत्तर के लिए नीचे दिए रिक्त स्थान का प्रयोग करें।
ख) अपने उत्तरों की जाँच इकाई के अन्त में दिए गए आदर्श उत्तरों से करें।
1) औपनिवेशिक शासन के शोषक स्वभाव के बारे में भारतीयों के अहसास का क्या परिणाम हुआ?
2) पूर्ववर्ती राष्ट्रवादियों के अनुसार औपनिवेशिक प्रशासन, उनके शोषक व भेदभावपूर्ण स्वभाव का क्या योगदान था?
3) उग्रपंथी नेतृत्व द्वारा सुझाए गए विरोध-प्रदर्शन के तरीके क्या थे?
बोध प्रश्न 1 उत्तर
1) वे अपनी स्थिति के बारे में सचेत हो गए तथा उन्होंने अंग्रेजों का विरोध किया।
2) पूर्ववर्ती राष्ट्रवादियों का मानना था कि औपनिवेशिक राज्य ने भारतीयों के सामान्य हितों एवं कल्याण विशेषकर भारत से श्रोतों के पलायन के कारण, को हानि पहुंचाई।
3) इसने विरोध प्रदर्शन के निम्न प्रकारों का सर्मथन किया: निष्क्रिय प्रतिरोध, बॉयकॉट, स्वदेशी को अपनाना तथा राष्ट्रीय शिक्षा ।
Recent Posts
द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन क्या हैं differential equations of second order and special functions in hindi
अध्याय - द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन (Differential Equations of Second Order…
नियत वेग से गतिशील बिन्दुवत आवेश का विद्युत क्षेत्र ELECTRIC FIELD OF A POINT CHARGE MOVING WITH CONSTANT VELOCITY in hindi
ELECTRIC FIELD OF A POINT CHARGE MOVING WITH CONSTANT VELOCITY in hindi नियत वेग से…
four potential in hindi 4-potential electrodynamics चतुर्विम विभव किसे कहते हैं
चतुर्विम विभव (Four-Potential) हम जानते हैं कि एक निर्देश तंत्र में विद्युत क्षेत्र इसके सापेक्ष…
Relativistic Electrodynamics in hindi आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा
आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा Relativistic Electrodynamics in hindi ? अध्याय : आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी…
pair production in hindi formula definition युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए
युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए pair production in hindi formula…
THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा
देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi…