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microbial nutrition and culture of bacteria in hindi , जीवाणुओं में पोषण का वर्णन कीजिए क्या है

जानिये microbial nutrition and culture of bacteria in hindi , जीवाणुओं में पोषण का वर्णन कीजिए क्या है ?

जीवाण्विक पोषण एवं जीवाणुओं का संवर्धन (Microbial Nutrition and Culture of Bacteria)

जीवाणुओं की सरलतम संरचना एवं सूक्ष्म आमाप के होने तथा विविध प्रकार की पोषण विधियों को अपनाये जाने के कारण ये सर्वव्यापी प्रकार के होते हैं। ये मृदा की परतों में, कार्बनिक या अकार्बनिक पदार्थों के निकट, वायुमण्डल में, जलीय माध्यम में, पादपों एवं प्राणियों के देह के बाहर तथा भीतर पाये जाते हैं।

ये प्रकृति में विस्तृत रूप में तथा सभी आवास परिस्थितियों में पाये जाते हैं। जीवाणुओं की अनेकों जातियाँ विश्व के अधिकतर भाग में फैली हुई पायी गयी हैं। जीवाणु की कुछ जातियाँ अवश्य ही एक विशेष क्षेत्र में, विशिष्ट परिस्थितियों में पायी जाती हैं। जीवाणुओं का वर्गीकरण भी आरम्भ में पोषण को आधार मान कर ही किया गया था। पोषण तथा अन्य आवश्यक कारक जीवाणुओं की वृद्धि हेतु आवश्यक होते हैं। वे जीवाणु जो अन्य जीवों मृत कार्बनिक पदार्थ से अपना भोजन प्राप्त कर वृद्धि करते हैं, मृतोपजीवी (saprophytes) कहलाते हैं। कुछ जीवाणु अन्य जन्तुओं के उत्तकों में रह कर वृद्धि करते हैं, ये परजीवी (parastities) कहलाते हैं।

विभिन्न आवास परिस्थितियों में रहने वाले जीवाणुओं की आवश्यकताएँ भी भिन्न प्रकार की होती हैं। प्रत्येक जाति को आवश्यक पोषक तत्व एवं ऊर्जा उसके वातावरण से प्राप्त होते हैं। जीवों में उपस्थित किण्वकों द्वारा जैव रासायनिक क्रियाएँ, अनावरत रूप से होती रहती है। इनके द्वारा ही भोजन संश्लेषण किया जाता है, वृद्धि, प्रजनन, श्वसन आदि जैविक क्रियाएँ सम्पन्न होती है। इन सभी क्रियाओं हेतु जैव रासायनिक क्रियाओं द्वारा ऊर्जा उपलब्ध कराई जाती है। सभी सजीवों में उपापचयी क्रियाएँ (metabolic activities) दो प्रकार की पायी जाती है। प्रथम उपपाचनी प्रकार (anabolic type) अर्थात् संरचनात्मक प्रकार की एवं द्वितीय अपपाचनी प्रकार (catabolic type) अर्थात् विघटनकारी प्रकृति की। किसी भी सजीव की वृद्धि एवं सफल प्रजनन हेतु उपपाचनी क्रियाएँ अपपाचनी क्रियाओं की अपेक्षा अधिक होनी आवश्यक है। प्रत्येक प्राणी में उपपाचनी एवं अपपाचनी क्रियाओं में गतिज – संतुलन (dynamic equilibrium) पाया जाता है। अपनी आवश्यकताओं को वातावरण को अनुसार नियमित बनाये रखने की क्षमता प्रत्येक प्राणी में पायी जाती है।

जीवाणुओं की पोषणीय आवश्यकताएँ (Nutritional-requirements of bacteria)

प्रत्येक सूक्ष्मजीव को अपने वातावरण में संतुलित रूप में उपस्थित बने रहने हेतु आधारभूत रूप में तीन प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति करनी होती है। प्रथम ऊर्जा स्त्रोत से ऊर्जा प्राप्ति, द्वितीय उपयोगी कार्बनिक पदार्थों के स्रोत से आवश्यक पदार्थों की प्राप्ति एवं तृतीय उचित वातावरणी कारक जैसे pH, वायु, ताप, नमी आदि। यदि इनमें से कोई भी आवश्यक कारकं उपलब्ध नहीं होता है तो जीवाणु की मृत्यु हो जाती है।

विभिन्न जीवाणुओं की वृद्धि हेतु पोषणीय आवश्यताओं में अनेक विभिन्नताएँ पायी जाती है। जीवाणुओं के रसायनिक विश्लेषण से ज्ञात होता है कि ये O, H, N, C, P, S, K, Mg, Ca, Co, Mn, Zn, Mo एवं Fe आदि तत्त्वों से मिल कर बने हैं।

स्वयंपोषी जीवाणुओं जैसे नाइट्रीफाइंग जीवाणु जो मृदा में रहते हैं इन्हें वृद्धि करने हेतु CO तथा NH, की आवश्यकता होती है जिससे जीवाणु कार्बन तथा नाइट्रोजन ग्रहण करते हैं। जीवाणुओं के जीवद्रव्य के शुष्क भार का लगभग 95% भाग C, H, N, S एवं P द्वारा बना होता है। जीवाणुओं के जीवद्रव्य के शुष्कभार का 50% भाग कार्बन होता है।

विषमपोषी जीवाणुओं के लिये जो परजीवी के रूप में रहते हैं पोषणीय आवश्यकताएँ जटिल ‘प्रकार की होती है। पोषक के ऊत्तकों से परजीवी जीवाणु विशिष्ट अवयव प्राप्त कर स्वयं का जीवद्रव्य बनाते हैं। इन आवश्यक अवयवों से अनेकों संश्लेषी उपापचयी क्रियाओं द्वारा यह जीवद्रव्य का निर्माण कर वृद्धि करते हैं। कुछ जीवाणु नाइट्रोजन के स्रोत हेतु NH, व कुछ अमीनो अम्ल का उपयोग करते हैं। स्टेफाइलोकॉकस जीवाणुओं को अमीनों अम्ल के साथ निकोटीनिक अम्ल की भी सामान्य वृद्धि हेतु आवश्कयता होती है। अतः ऐसे पदार्थ जो किसी विशिष्ट जीवाणु जाति के वृद्धि हेतु आवश्यक होते हैं वृद्धि कारक (growth factor) कहलाते हैं।

जीवाणुओं में अनुकूलता (adaptability) भी उच्च स्तर की पायी जाती है अर्थात् जीवाणु विविध प्रकार के संवर्धन माध्यमों में रह सकते हैं। परजीवी जीवाणु गोनोकॉकस तथा मैनिन्गोकॉकस मनुष्य के उत्तकों में रहते हैं, जहाँ ये अत्यन्त पोषणीय बहुल (enrich) माध्यम में रह कर वृद्धि करते. हैं, किन्तु संवर्धन के दौरान इन्हें सरल प्रकार के संवर्धन माध्यम में रखा जा सकता है। – जीवाणुओं को वृद्धि हेतु प्रकाश, ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइ ऑक्साइड की आवश्यकता भी होती है। विविध प्रकार के जीवाणुओं की वातावरणीय आवश्यकताओं में भी भिन्नता पायी जाती है। जैसे अवायुवीय जीवाणुओं को ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं पड़ती जबकि गोनोकोकस को उचित वृद्धि हेतु 10% कार्बन डाइ ऑक्साइड की आवश्यकता होती है। प्रकाश की भी केवल प्रकाश संश्लेषी प्रकार के जीवाणुओं को ही आवश्यकता होती है।

तापक्रम की एक विशिष्ट उच्चतम एवं निम्नतम सीमा जिसमें रह कर जीवाणु वृद्धि करता है, की आवश्यकता होती है। उच्चतम सीमा से अधिक एवं निम्नतम सीमा से कम तापक्रम होने पर वृद्धि अवरूद्ध हो जाती है। प्रत्येक जीवाणु एक निश्चित तापक्रम पर तेजी से वृद्धि कर अपनी संख्या में वृद्धि करता है। यह तापक्र आदर्श तापक्रम (optimum temperature) कहलाता है। जीवाणुओं की विभिन्न जातियों में तापक्रम की उच्चतम तथा न्यूनतम सीमाएँ एवं आदर्श तापक्रम भी भिन्न-भिन्न पाये जाते हैं। मनुष्य की देह में रहने वाले परजीवी जीवाणुओं के लिये 37°C आदर्श तापक्रम होता है जबकि मृदा में रहने वाले तथा जलीय जीवाणु 20 – 25°C जैसे कम ताप पर ही वृद्धि करते हैं। गर्म झारनों तथा मृदा में रहने वाले जीवाणु 60°C पर ही वृद्धि करते हैं। डिप्थीरिया बेसिली – 2°C जैसे कम ताप पर भी जीवित बने रह सकते हैं। अनेक जीवाणुओं के बीजाणु 100°C पर भी जीवित रहते हैं।

अनेकों जीवाणुओं में वृद्धि हेतु माध्यम में सभी आवश्यक अवयवों के अतिरिक्त कुछ विशिष्ट पदार्थों की आवश्यकता होती है इन्हें वृद्धि कारक (growth factors) कहते हैं। ये विटामिन्स की भाँति कार्य करते हैं। ये जीवाणुओं की उपापचयी क्रियाओं में एन्जाइम व को-एन्जाइम जनित क्रियाओं से जुड़े रहते हैं। इन्हें सहायक कारक (accessory factors) भी कहा जाता है। ई. कोलाई (E. coli) का संवर्धन सामान्य सरल ग्लूकोज लवण युक्त संवर्धन में संभव नहीं है जब तक कि संवर्धन माध्यम में कुछ जटिल कार्बनिक यौगिकों को इसमें मिलाया नहीं जाता जिनका ये संश्लेषण नहीं करते। इन्फ्लूएन्जा बेसिलस में वृद्धि हेतु “X” कारक हिमेटिन (heamatin) के समान आवश्यक होता है जो अधिकतम ताप 120°C पर भी सक्रिय बना रहता है। “V” कारक रक्त, यीस्ट एवं कुछ सब्जियों में पाया जाता है तथा को-एन्जाइम की भाँति कार्य करता है। वैज्ञानिकों द्वारा कुछ महत्त्वपूर्ण वृद्धि कारकों का पता लगाया गया है जिनमें P-अमीनोबेन्जोइक अम्ल, निकोटिनिक अम्ल, फॉलिक अम्ल, बोयोटिन, थायमिन एवं पायरीडॉक्सिन प्रमुख हैं।

पोषण (Nutrition)

वे सभी क्रियाएँ जिनके द्वारा किसी जीव को आवश्यक पदार्थों की आपूर्ति परोक्षत: की जाती है पोषण (nutrition) के अन्तर्गत आती है। वे रासायनिक पदार्थ जो किसी जीव को कच्चे पदार्थ (raw materials) के रूप में कम या अधिक मात्रा में आवश्यक रूप में चाहिये पोषक (nutrient) पदार्थ कहलाते हैं। किसी भी जीव देह में कार्बनिक एवं अकार्बनिक पदार्थ उपस्थित रहते हैं एवं अनेक जैविक क्रियाओं के संचालन हेतु इनका उपयोग अनेक अभिक्रियाओं में किया जाता है। अतः किसी भी जीव को अकार्बनिक एवं कार्बनिक उपापचजों की आवश्यकता निरन्तर बनी रहती है। किसी भी जीव की आवश्यकता की पूर्ति करने वाले उन सभी कार्बनिक उपापचजों को हम भोजन (food) की श्रेणी में रखते हैं।

पोषणीय रूप (Nutritional forms)

अकार्बनिक एवं कार्बनिक उपापचजों को प्राप्त करने की विधियों के आधार पर अनेक प्रकार की पोषणीय विधियाँ जीवाणुओं में पायी जाती हैं। लगभग सभी प्रकार के जीवाणुओं में अकार्बनिक उपापचज जो परिष्कृत ( finished ) एवं पूर्वरचित (prefabricated) अवस्था में वातावरण से ग्रहण किये जाते हैं किन्तु कार्बनिक उपापचजों की अर्थात् भोज्य पदार्थों की प्राप्ति या ग्रहण करने की विधियाँ विभिन्न प्रकार के जीवाणुओं में भिन्न प्रकार की उपयोग में लायी जाती है, जैसे कुछ सूक्ष्मजीवों में अपना भोजन बनाने की क्षमता पायी जाती है। ये अकार्बनिक पदार्थों की आपूर्ति, जो कि इन्हें वातावरण से प्राप्त होती है, से ही अपने भोजन का संश्लेषण करते हैं, स्वपोषी (autotrophs) कहलाते हैं। जबकि अन्य सूक्ष्मजीव अपने वातावरण में कुछ पूर्वरचित कार्बनिक पदार्थों का अवशोषण अपनी कोशिकीय सतह से करते हैं परपोषी (heterotrophs) कहलाते हैं। प्रयोज्य कार्बन एवं ऊर्जा स्रोत (Usable carbon and energy-source)

स्वपोषी सूक्ष्मजीवों को जो कि अकार्बनिक स्रोतों से अपना भोजन संश्लेषित करते हैं। पोषक कच्चे माल के अतिरिक्त बाह्य ऊर्जा स्रोत को भी आवश्यकता होती है। ये ऊर्जा स्रोत दो प्रमुख के होते हैं-

(i) दृश्य प्रकाश (visual light)

(ii) रासायनिक बन्धक ऊर्जा (chemical bond-energv)

वे सूक्ष्मजीव जो दृश्य प्रकाश का उपयोग, अकार्बनिक पदार्थों से अपने भोजन के संश्लेषण में करते हैं प्रकाश संश्लेषणी सूक्ष्मजीव (photo synthesizing bacteria) कहलाते हैं। कुछ सूक्ष्मजीव वातावरण में उपस्थित अकार्बनिक पदार्थों से भोजन संश्लेषण की क्षमता तो रखते हैं, किन्तु microbes) कहते हैं। रासायनिक पदार्थों में रासायनिक बन्ध पाये जाते हैं, जब वे बन्ध टूटते हैं तो रसायनिक पदार्थों से ऊर्जा प्राप्त करते हैं, इन्हें रासायनिक स्वपोषी जीवाणु (chemosynthesizing ऊर्जा प्राप्त होती है। इस ऊर्जा का उपयोग भोजन के संश्लेषण हेतु किया जाता है।

कोशिकाओं में विभिन्न क्रियाओं हेतु निकटतम ऊर्जा स्रोत रासायनिक बन्ध (chemical bonds) ही होते हैं। प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा भी ऊर्जा को रासायनिक बन्धकों के रूप में परिवर्तित किया जाता है। सभी प्रकार की ऊर्जा अन्य प्रकार की ऊर्जा में रूपान्तरित की जा सकती है। इस क्रिया के दौरान कुछ ऊर्जा की हानि होती है अथवा जीवों के उपयोग में न आने योग्य ऊर्जा, ऊष्मा (heat) उत्पन्न होती है। प्रत्येक संजीव को ऊर्जा स्रोत की आवश्यकता निरन्तर बनी रहती है। ऊर्जा-स्रोत के न होने की स्थिति में प्राणी की मृत्यु हो जाती है।

प्रकाश-परपोषी (Photo-heterotrophs) : जीवाणु प्रकाश ऊर्जा का उपयोग कार्बनिक पदार्थों में परिवर्तित कर अपना पोषण प्राप्त करते हैं। रसायन परपोषी ( chemoheterotrophs) जीवाणु रसायनिक ऊर्जा का उपयोग कार्बनिक पदार्थों का ऑक्सीकरण अवकरण अभिक्रियाओं द्वारा कार्बनिक पदार्थों से अपना भोजन प्राप्त करने में करते हैं।.

ऊर्जा के अतिरिक्त कच्चे माल ( raw material) की प्रकृति अर्थात् अकार्बनिक अथवा कार्बनिक पदार्थों को आधार बनाये तो जीवाणुओं का चार संवर्गों में रखते हैं।

(i) प्रकाश अकार्बपोषी (Photo-lithotrophs ) : ये जीवाणु प्रकाश ऊर्जा का उपयोग प्रकाश फॉस्फोलिकरण (photophosphorylation) विधि द्वारा करते हैं। इस क्रिया के अन्तर्गत प्रकाश द्वारा क्लोरोफिल अणुओं को उत्तेजित कर दिया जाता है जो इलेक्ट्रॉन्स के मुक्त होने से होता है। ये • इलेक्ट्रॉन्स एक अवकरण प्रक्रिया द्वारा निम्न रेडाक्स विभव (low redox potential) वाले ग्राहीयों (receptors) द्वारा स्थानान्तरित होते हैं। यह प्राथमिक ग्राही पुनः विऑक्सीकृत (reoxidised) किया जाता है यह क्रिया इलेक्ट्रॉन परिवहन तंत्र के अन्तर्गत होती है एवं ATP का उत्पादन होता है। यह क्रिया ऑक्सीकारी फॉस्फोलिकरण के समान ही होती है। इस प्रकार प्रकाश ऊर्जा का उपयोग करके ये अकार्बनिक पदार्थों से अपना भोजन प्राप्त करते हैं।

(ii) रसायन अकार्बपोशी (Chemo-lithotrophs) : ये जीवाणु रासायनिक पदार्थों को ऊर्जा स्रोत के रूप में प्राप्त करते हैं एवं अकार्बनिक पदार्थों से भोजन प्राप्त करते हैं।

(iii) प्रकाश कार्बनिकपोषी (Photo-organotrophs) : ये जीवाणु प्रकाश ऊर्जा का उपयोग करते हैं एवं अपचयित कार्बनिक पदार्थों से भोजन प्राप्त करते हैं।

(iv) रसायनिक कार्बनिक पोषी (Chemo-organotrophs) : ये जीवाणु कार्बनिक पदार्थों से ही भोजन भी प्राप्त करते हैं।

भोज्य पदार्थों में प्रयोज्य कार्बन हेतु अकार्बनिक व कार्बनिक स्रोत हो सकते हैं। प्रकाश स्वपोषी सूक्ष्मजीवों में CO2 से अकार्बनिक कार्बन प्राप्त करके भोजन का संश्लेषण किया जाता है। रा स्वपोषी सूक्ष्मजीवों में भी CO2 ही कार्बन का स्रोत होती है, जो कि अकार्बनिक स्रोत से प्राप्त की जाती है। प्रकाशपरपोषी (photoheterotrophs) जीवाणुओं में प्रयोज्य CO2 हेतु स्रोत कार्बनिक पदार्थ होते हैं। इन कार्बनिक पदार्थों के ऑक्सीकरण से CO2 प्राप्त की जाती है जिसका उपयोग भोजन के संश्लेषण हेतु किया जाता है। उदाहरण हरित सल्फर रहित एवं बैंगनी सल्फर रहित जीवाणु।