JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: BiologyBiology

शाक किसे कहते है herb plant in hindi शाक या झाड़ी पौधे की परिभाषा क्या है , पौधा साख पौधों के नाम

(herb plant in hindi) शाक किसे कहते है ? शाक या झाड़ी पौधे की परिभाषा क्या है , पौधा साख पौधों के नाम लिखिए ? प्रकार भी बताइयें ?

पादप स्वभाव में विविधता (diversity in habit) : आवृतबीजी पौधों की बाह्य आकारिकी और प्रारूप , बहुत कुछ उनके तने पर निर्भर करती है। तने का छोटा अथवा बड़ा होना , उसका कोमल अथवा कठोर होना , शाखा विहीन अथवा शाखायुक्त होना आदि पौधे की प्रकृति को निर्धारित करता है। इनकी प्रकृति या स्वभाव के आधार पर आवृतबीजी पौधों को विभिन्न प्रकार से विभेदित किया जा सकता है।

आज से हजारों वर्ष पूर्व एक ग्रीक दार्शनिक थियोफ्रेस्टस ने विभिन्न पौधों का वर्गीकरण तने के आधार पर निम्नलिखित प्रकार से किया था –

1. शाक (herb) : ये छोटे , कोमल और अकाष्ठीय पौधे होते है। भूमि की सतह के ऊपर इनके कोई स्थायी भाग नहीं पाए जाते। इस श्रेणी के पौधों की अधिकतम ऊँचाई 1 मीटर (3.25 फीट) तक हो सकती है। ऐसे शाकीय पादप एक वर्षीय जैसे सरसों , द्विवर्षीय जैसे चुकंदर अथवा बहुवर्षीय जैसे देवकेल हो सकते है।

बहुवर्षीय शाकीय पौधों में प्राय: रूपांतरित तने के रूप में भूमिगत प्रकन्द पाया जाता है , जिसके द्वारा प्रतिवर्ष नयी वायवीय प्ररोह शाखाएँ उत्पन्न होती है। अनेक वनस्पति शास्त्रियों द्वारा केले के पौधों को भी बहुवर्षीय शाक के तौर पर निरुपित किया गया है।

2. क्षुप अथवा झाड़ियाँ (shrubs) : ये अपेक्षाकृत कम ऊँचाई के (1 से 4 मीटर) काष्ठीय पौधे होते है और इनका शाखन आधारीय भाग अथवा इसके पास से होता है। इनमें कोई निश्चित मुख्य तना नहीं पाया जाता। क्षुप मुख्यतया बहुवर्षीय पादप होते है जैसे झाड़ी बोर , गुलाब आदि।

3. वृक्ष (trees) : ऐसे काष्ठीय बहुवर्षीय पौधे , जिनकी ऊँचाई अपेक्षाकृत अधिक हो (4 मीटर से अधिक ) और जिनमें एक मुख्य तना उपस्थित हो उनको इस श्रेणी में रखा जा सकता है। उदाहरण – नीम और पीपल आदि।

वृक्ष निम्नलिखित प्रकार के होते है –

(i) एकलशाखी अथवा बहिवर्धी (excurrent or monopodial) : जब वृक्ष के तने की वृद्धि सीधी होती है , और इसकी शाखाएँ अग्राभिसारी अथवा असीमाक्षी क्रम में व्यवस्थित होती है तो ऐसा वृक्ष सममित विन्यास में बढ़ता है और इसका बाह्य प्रारूप शंकुरुपी हो जाता है , जैसे अशोक।

(ii) युग्मशाखी अथवा बहुशाखी (deliquescent or sympodial) : ऐसे वृक्ष का तना कुछ समय तक तो सीधा बढ़ता है , फिर इसके बाद मुख्य तने से शाखाएँ उत्पन्न होती है तथा इन मुख्य शाखाओं से भी छोटी छोटी शाखाएं पैदा हो जाती है। अत: इस प्रक्रिया में वृक्ष का बाह्य प्रारूप गुम्बद के समान हो जाता है जैसे बरगद।

(iii) अशाखित अथवा शाखाविहीन (caudex) : इस प्रकार के वृक्षों में तना खम्भे के समान सीधा बढ़ता है और इससे कोई शाखा उत्पन्न नहीं होती , तो इस प्रकार के तने को पुच्छकी अथवा अशाखित कहते है। इस प्रकार के वृक्षों में अशाखित खम्भे जैसे तने के शीर्ष पर पत्तियों का एक सघन समूह अथवा किरीट पाया जाता है , इसमें प्रतिवर्ष निश्चित समय पर पत्तियों का एक चक्र विकसित होता है। जीर्ण पत्तियों के गिर जाने पर स्थायी पर्णाधार स्पष्टतया दिखाई देते है , उदाहरण – खजूर , ताड़ और नारियल आदि।

(iv) संधि स्तम्भ (culm) : इस प्रकार के वृक्षों का तना भी प्राय: अशाखित होता है और सीधा ऊपर की ओर वृद्धि करता है। तने पर पर्व और पर्वसंधि स्पष्ट होती है और पर्व सामान्यतया खोखले होते है। उदाहरण : बाँस।

दुर्बल तनों की प्रकृति के आधार पर विविधता (diversity in nature of weak stems)

अनेक आवृतबीजी पौधे ऐसे भी पाए जाते है , जिनके तने दुर्बल अथवा कमजोर होते है। अत: उधर्व दिशा में वृद्धि नहीं कर सकते अथवा सीधे नहीं होते या ये किसी के सहारे अथवा आधार के द्वारा ऊपर की तरफ वृद्धि करते है। तने की इस प्रकृति के आधार पर इन पादपों में निम्नलिखित विविधता पायी जाती है –
(a) प्रसारी पादप (trailers) : इस प्रकार के पौधों के तने अत्यंत दुर्बल और जमीन पर फैले हुए होते है और इनके तने पर जड़े उत्पन्न नहीं होती। यह तीन प्रकार के होते है –
(i) भूशायी (procumbent / prostrate) : यह स्तम्भ पूर्ण रूप से जमीन पर ही रेंगता है। उदाहरण – पोच्र्यूलाका , इवोलवुलस आदि।
(ii) अवरोही (decumbent) : यह भूमि पर कुछ दूर रेंगने के पश्चात् ऊपर को उठने की कोशिश करता है। उदाहरण – ट्राइडेक्स प्रोकम्बेंस।
(iii) डिफ्यूस (diffuse) : इस प्रकार के प्रसारी स्तम्भ की शाखाएँ भूमि पर चारों ओर फैलती है। उदाहरण – बोरहाविया।
(b) विसर्पी पादप (creepers) : इनके तने भी प्रसारी पौधों के समान अत्यंत दुर्बल और जमीन पर फैले हुए क्षैतिज अवस्था में धरती की सतह के समानान्तर पाए जाते है। परन्तु इनके तनों से निश्चित स्थानों पर जड़ें उत्पन्न होकर भूमि में प्रविष्ट हो जाती है।
शाखाओं की आकारिकी और उत्पत्ति के आधार पर यह निम्नलिखित प्रकार के होते है –
(i) उपरी भूस्तारी (runner) : उदाहरण – खट्टी बूंटी , दूब।
(ii) भूस्तारी (stolen) : उदाहरण – स्ट्रोबेरी , कचालू।
(iii) अन्त: भूस्तारी (sucker) : उदाहरण – गुलदाउदी , पुदीना आदि।
(iv) भूस्तारिका (offset) : उदाहरण – जलकुम्भी , पिस्टिआ आदि।
(c) वल्लरी (twinner) : ये पौधे अपने तने और शाखाओं के द्वारा दूसरे वृक्षों पर अन्य किसी आधार पर लिपटते हुए ऊपर की ओर वृद्धि करते है। ऊपर की ओर वृद्धि करने या आधार पर लिपटने के लिए इनमें कोई विशेष संरचनायें जैसे प्रतान आदि , नहीं होती। ऐसे पौधे जब किसी आधार या सहारे के सम्पर्क में आते है तो इनका वृद्धि शीर्ष चक्कर लगाता हुआ अथवा सहारे पर सर्पिलाकार कुंडलित क्रम में ऊपर की ओर बढ़ता है। वृद्धि शीर्ष के पास की पत्तियाँ बहुत छोटी होती है। उदाहरण – विग्ना , आइपोमिया आदि।
(d) आरोही (climbers) : इस प्रकार के पौधों का तना भी दुर्बल होता है लेकिन इनमें ऊपर की ओर वृद्धि करने के लिए और आधार पर पकड़ मजबूत करने के लिए विशेष प्रकार की संरचनायें पायी जाती है , जिनका उपयोग करके ये ऊपर की ओर वृद्धि करते है। उपर्युक्त विशिष्ट संरचनाओं के आधार पर निम्नलिखित प्रकार के आरोही पौधे पाए जाते है –
(i) प्रतान आरोही (tendril climbers) : ये प्रतानों की सहायता से वृद्धि करते है , जैसे पर्णाग्र प्रतान आरोही , उदाहरण – ग्लोरिओसा सुपरबा , पर्ण प्रतान आरोही , उदाहरण – पाइसम , अनुपर्ण प्रतान आरोही , उदाहरण – स्माइलेक्स और पर्णवृन्त प्रतान आरोही उदाहरण – क्लिमेटिस।
(ii) मूल आरोही (root climbers) : इस प्रकार के आरोही पौधे अपस्थानिक जड़ों की सहायता से आरोहण करते है। ये आरोही जड़ें पर्वसंधियों पर उत्पन्न होती है। उदाहरण – पान  पोथोस और फिलडेन्ड्रोन।
(iii) अंकुश आरोही (hook climbers) : इस प्रकार के आरोही पौधों के तनों पर कंटक अथवा कंटिकायें पाए जाते है। ये नुकीली संरचनायें आधार को जकड़कर , पौधे को आगे बढ़ने में मदद करती है। उदाहरण – बोगेनविलिया।
(e) कठलताएँ अथवा काष्ठीय आरोही पादप (lianas or woody climber) : इस प्रकार के आरोही पौधों के तने भी दुर्बल लेकिन काष्ठीय होते है। इस प्रकार के तनों में क्योंकि मृदुतकी कोशिकाओं की मात्रा अधिक और काष्ठीय तत्वों की मात्रा अपेक्षाकृत कम होती है , इसलिए ये कोमल अथवा दुर्बल होते है। उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों में इस प्रकार के पौधे बहुलता से पाए जाते है , उदाहरण – गिलोय और जल जमनी आदि।
Sbistudy

Recent Posts

सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है

सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…

18 hours ago

मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the

marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…

18 hours ago

राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi

sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…

2 days ago

गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi

gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…

2 days ago

Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन

वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…

3 months ago

polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten

get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…

3 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now