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HALF LIFE AND MEAN LIFE in hindi , अर्धायु एवं औसत आयु क्या है , किसे कहते हैं शून्य कोटि , प्रथम द्वितीय अभिक्रिया

अर्धायु एवं औसत आयु क्या है , किसे कहते हैं शून्य कोटि , प्रथम द्वितीय अभिक्रिया HALF LIFE AND MEAN LIFE in hindi ?

अर्धायु एवं औसत आयु (HALF LIFE AND MEAN LIFE)

किसी अभिक्रिया में क्रियाकारक की सान्द्रता आधी होने में लिया गया समय अर्घायु (half life) कहलाता है। इसे t1/2 द्वारा प्रदर्शित करते हैं। प्रत्येक कोटि की अभिक्रिया के लिए इसका मान भिन्न-भिन्न होता है और प्रत्येक कोटि की अभिक्रिया के साथ उनकी अर्धाय की भी व्याख्या की जा चुकी है, यहां प्रत्येक कोटि की अभिक्रिया की अर्धायु के मान दिए जा रहे हैं :

(1) शून्य कोटि अभिक्रिया t1/2 = a/2k0

(2) प्रथम कोटि अभिक्रिया – t1/2 = 0.693/k1

(3) द्वितीय कोटि अभिक्रिया- t1/2 = 1/k2a

अभिक्रियाओं के गतिकीय अध्ययन में एक बहधा एक और पद का उपयोग किया जाता है और वह । है औसत आयु। किसी अभिक्रिया के सम्पन्न होने में लगा औसत समय उसकी औसत आयु कहलाता है, इसे ”, टाउ (Tau) द्वारा प्रदर्शित करते हैं। किसी अभिक्रिया की औसत आय उसके वेग स्थिराक का। व्युत्क्रम होती है, अर्थात्

T = 1/k ………(38)

एक प्रथम कोटि अभिक्रिया के अर्धायु तथा औसत आयु में निम्न सम्बन्ध होता है :

= 1.44 t1/2

उदाहरणार्थ, यदि रेडियम की अर्धाय 1600 वर्ष हो तो उसकी औसत आय = 1.44 X 1000 =2308.8 वर्ष होगी।

अभिक्रिया की कोटि का निर्धारण (DETERMINATION OF ORDER OF REACTION)

किसी अभिक्रिया के कोटि निर्धारण के लिए कई विधियां ज्ञात हैं। कुछ प्रमुख का वर्णन निम्न प्रकार है:

(1) अवकलन विधि (Differential Method) इस विधि में एक क्रियाकारक की भिन्न-भिन्न प्रारम्भिक सान्द्रता लेकर दो बार प्रयोग करते हैं जिनमें अन्य क्रियाकारकों की सान्द्रता को स्थिर रखा जाता है। इसलिए इस विधि को प्रारम्भिक वेग विधि (Initial rate method) भी कहते हैं। माना कि एक n कोटि की अभिक्रिया के लिए किसी एक क्रियाकारक की भिन्न-भिन्न प्रारम्भिक सान्द्रताएं। C1 व C2 हैं। अतः

-dc1/dt = Kc1N …………..(39)

– Dc2 /dt = kCn2 …………………(40)

और समीकरण (39) में (40) का भाग देने पर(-Dc1/dt)/(-Dc2/dt) = (C1/C2)N ………………(41)

इस प्रकार जिस क्रियाकारक की सान्द्रता को परिवर्तित किया गया है उसके सापेक्ष अभिक्रिया की कोटि.n का मान ज्ञात हो जाता है। इसी प्रकार प्रत्येक क्रियाकारक के सापेक्ष अभिक्रिया की कोटि का मान ज्ञात किया जा सकता है और सबको जोड़कर अभिक्रिया की पूर्ण कोटि का परिकलन किया जा सकता है।

अभिक्रिया के प्रारम्भिक वेग( – Dc/dt) को ज्ञात करने के लिए क्रियाकारक की सान्द्रता व समय के मध्य खींचे गए ग्राफ का स्लोप ज्ञात करते हैं। विभिन्न प्रारम्भिक वेग और समीकरण (42) की सहायता से अभिक्रिया की कोटि का निर्धारण करते हैं। प्रारम्भिक वेग तथा सान्द्रता द्वारा भी अभिक्रिया की कोटि । का निर्धारण किया जा सकता है। इस विधि में समय-सान्द्रता के मध्य के वक्र से ज्ञात किए गए प्रारम्भिक वेग (-dC/dt) के log मान परिकलित करके उन्हें log C के विरुद्ध आलेखित किया जाता है। इस प्रकार एक सीधी रेखा प्राप्त होती है (चित्र 7.11) जिसका स्लोप अभिक्रिया की कोटि के बराबर होता है।

पार्थक्य या बिलगन विधि अथवा छदम कोटि विधि Isolation Method or Pseudo Order Method) इस विधि का विस्तृत अध्ययन ओस्टवाल्ड (W.Ostwald) ने 1902 में किया था। इस विधि में एक क्रियाकारक को छोड़कर बाकी सब क्रियाकारकों की सान्द्रता को अधिक मात्रा में लिया जाता है जिससे उस एक क्रियाकारक की सान्द्रता का प्रभाव ज्ञात हो जाता है। इस प्रकार बारी-बारी से सब क्रियाकारको की। सान्द्रता का प्रभाव ज्ञात करके अथवा उनकी छदम कोटि का निर्धारण करके उनके योग द्वारा अभिक्रिया की। कल कोटि का निर्धारण कर लिया जाता है। उदाहरणार्थ, एक अभिक्रिया में क्रियाकारक A के 11 अणु, B के 12 अणु तथा C के ng अणु भाग ले रहे हैं

N1A + n2B + n3c→ उत्पाद

अतः इसका वेग नियम निम्न प्रकार का होगा :dx/dt = k[A]” [B]” [C]”

और इसके लिए अभिक्रिया की कुल कोटि n का मान निम्न होगा :

n= n1 +n2 + n3

अब यदि इस अभिक्रिया में A की सीमित मात्रा लेकर B व C की अधिक मात्रा ले लें और उपर्युक्त वर्णित किसी भी विधि द्वारा अभिक्रिया की कोटि ज्ञात करें तो वह के बराबर होगी और इसका वेग नियम निम्न प्रकार का होगा :

Dx/dt = k [A]n1 …(45)

[:.: [B] व [C] = अधिक मात्रा में, अतः स्थिरांक]

इसी प्रकार A व C की अत्यधिक मात्रा व B की सीमित मात्रा लेकर अभिक्रिया का अध्ययन करें तो वेग समीकरण निम्न प्रकार की होगी :

Dx/dt = k[B]n2 …(46)

[A] व [B] = अधिक मात्रा में, अतः स्थिरांक]

और यदि C की सीमित मात्रा व A तथा B की अधिक मात्रा लेकर अभिक्रिया का अध्ययन करें तो वेग नियम निम्न होगा :

dx/dt = k[B]n2 ….(47)

[::: [A] व [B] = अधिक मात्रा में, अतः स्थिरांक]

इस प्रकार A. B व C के सापेक्ष अभिक्रिया की कोटि n1 , n2 व n3 के मान ज्ञात हो जाएंगे जिनके योग से अभिक्रिया की कोटि n को परिकलित किया जा सकता है।

रेडियोऐक्टिव विघटन प्रथम कोटि प्रक्रम के रूप में (RADIOACTIVE DECAY AS A FIRST ORDER PHENOMENON) रेडियोऐक्टिव विघटन एक प्रथम कोटि का प्रक्रम होता है। किसी रेडियोऐक्टिव पदार्थ के लिए इकाई समय में विघटित हए परमाणओं की संख्या को रेडियोधमी विघटन या क्षय का वेग (rate of radioactive, disintegration or decay rate) कहते है और यह विघटित होने वाले परमाणओं की संख्या पर निर्भर करता है :

– dN/ dt ∞N

अथवा dN/dt =N अथवा – Dn/N = dt …(48)

जहा = विघटन स्थिराक (disintegration constant) | यदि विघटन की मात्रा को समय के साथ आलेखित किया जाए तो चित्र 7.12 जैसा वक्र प्राप्त होता है तथा वक्र से स्पष्ट होता है कि रेडियोऐक्टिव तत्वों के विघटन की प्रक्रिया एक प्रथम कोटि की अभिक्रिया है अतः विघटन स्थिरांक λ = 2.303 /t log N0/N …………………..(49)

समीकरण (49) से स्पष्ट है कि प्रथम कोटि के वेग स्थिरांक की भांति विघटन स्थिरांक की इकाई भी समय (t-1) होती समय है। प्रथम कोटि की अभिक्रियाओं की भांति रेडियोऐक्टिव विघटन भी अनन्त काल तक चलता है जैसा कि चित्र 7.12 से स्पष्ट है, अतः कुल क्षय काल (total decay time) का यहां भी कोई औचित्य नहीं रह जाता है। इसके स्थान पर हम विघटन की अर्धायु (12) पद का प्रयोग करते हैं। विघटन की अर्धायु अर्थात्

N = No/2 हो जाए, N का यह मान समीकरण (49) में रखने पर,

Λ = 2.303/t1/2 log N0/N/2 = 2.303/T1/2 log 2 = 0.693/t1/2

T1/2 = 0.693/λ ………………..(50)

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