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guttation in plants in hindi , बिन्दुस्राव किसे कहते हैं , बिंदु स्राव किसके द्वारा होता है , वाष्पोत्सर्जन में अंतर

पढेंगे guttation in plants in hindi , बिन्दुस्राव किसे कहते हैं , बिंदु स्राव किसके द्वारा होता है , वाष्पोत्सर्जन में अंतर ?

वाष्पोत्सर्जन की महत्ता (Significance of transpiration)

अत्यधिक जल के निष्कासन (removal) के अलावा भी वाष्पोत्सर्जन के अनेक लाभकारी प्रभाव भी होते हैं। कुछ प्रभाव निम्न हैं-

  1. जल का अवशोषण (Absorption of water)

मूल द्वारा मृदा से जल अवशोषण वाष्पोत्सर्जन से प्रभावित होता है। तीव्र वाष्पोत्सर्जन की क्रिया दर्शाने वाले पौधों में जायलम कोशिकाओं में हमेशा ऋणात्मक तनाव अथवा कम दाब होता है। इस दाब के प्रभाव से ही मूल मृदा से जल का अवशोषण कर पाती है।

  1. खनिज अवशोषण एवं रसारोहण (Mineral absorption and ascent of sap)

रसारोहरण से पौधों में ऊपर चढ़ने वाले जल में घुलित लवण पाये जाते हैं। यह लवण पौधे की वृद्धि के लिए आवश्यक होते हैं।

  1. पौधे का ताप नियन्त्रण (Regulation of plant temperature)

वाष्पोत्सर्जन का पौधों में शीतलन प्रभाव होता है। लगभग प्रति ग्राम वाष्पीकृत जल से 600 कैलारी ऊष्मा का ह्रास होता है। इससे पौधों का तापमान बढ़ नहीं पाता है।

वाष्पोत्सर्जन के हानिकारक प्रभाव (Harmfull effects of transpiration)

विभिन्न जैविक क्रियाओं के लिए जल एक महत्वपूर्ण यौगिक हैं इस लिए वाष्पोत्सर्जन के द्वारा जल ह्रास हानिकारक हो सकता है। अत्यधिक वाष्पोत्सर्जन से जब पौधे मुरझाते हैं तब वाष्पोत्सर्जन के हानिकारक प्रभाव घातक सिद्ध होते हैं। वाष्पोत्सर्जन से कभी-कभी जल की कमी हो जाती है जिससे शुष्कता (desiccation) के कारण पौधों में क्षति (injury) हो जाती है।

वाष्पोत्सर्जन एक अनिवार्य अहित है (Transpirtion is a necessary evil)

पादपों द्वारा कुल अवशोषित जल का 97% भाग का ह्रास जल वाष्प के रूप में होता है। सिर्फ 3% अथवा उससे कम जल ही पादपों की वृद्धि एवं उपापचयी क्रियाओं में प्रयुक्त होता है। वाष्पोत्सर्जन से मूल द्वारा अवशोषित जल एवं खनिज पत्तियों तक पहुँचते हैं परन्तु अवशोषण से अधिक वाष्पोत्सर्जन होने पर पादप मुरझा जाते हैं तथा उनकी मृत्यु भी हो सकती है।

कर्टिस (Curtis, 1926) ने ठीक ही कहा है कि “वाष्पोत्सर्जन एक अनिवार्य अहित है” तथा स्टीवार्ड के अनुसार “वाष्पोत्सर्जन एक अपरिहार्य अहित है”। पत्ती की सामान्य संरचना के अनुसार रन्ध्र का प्राथमिक कार्य प्रकाश संश्लेषण एवं श्वसन के दौरान गैसीय विनिमय होता है न कि जल ह्रास का नियन्त्रण । जब प्रकाश में प्रकाश संश्लेषण के लिए CO2  के प्रवेश के लिए रन्ध्र खुलते हैं तब आर्द्र पर्णमध्योत्तक कोशिकाओं से वाष्पोत्सर्जन होना अति आवश्यक हो जाता है क्योंकि इसमें जल वाष्प का प्रवणता (gradient) की दिशा में विसरण होता है।

प्रतिवाष्पोत्सर्जक (Antitranspirants)

पादपों पर प्रयुक्त होने वाले वे रसायन जो वाष्पोत्सर्जन को कम करते हैं परन्तु पादपों की अन्य क्रियाओं जैसे प्रकाश संश्लेषण एवं वृद्धि को प्रभावित नहीं करते हैं प्रतिवाष्पोत्सर्जक (antitranspirants) कहलाते हैं। इस कार्य के लिए विभिन्न पदार्थ जैसे रंगहीन प्लास्टिक, सिलिकॉन तेल, कम श्यानता की मोम इत्यादि प्रयुक्त किये जाते हैं। ये पदार्थ पर्ण की सतह पर रंगहीन पारदर्शी परत बनाते हैं। यह परत O2 एवं CO2 के लिए पारगम्य होती हैं परन्तु जल वाष्प के लिए अपारगम्य होती है। फीनायल मरक्यूरिक एसीटेट (PMA), एस्प्रिन एवं एबसिसिक अम्ल (ABA) कुछ ऐसे रसायन है जो रन्ध्रों को आंशिक बन्द कर देते हैं। प्राकृतिक सांद्रता 0.03% से अधिक की सांद्रता पर CO2 भी एक प्रभावी प्रतिवाष्पोत्सर्जक होता है।

बिन्दु स्राव (Guttation)

पौधे पर लगी पत्तियों से बूंदों के रूप में जल का स्राव बिन्दु स्राव (guttation) कहलाता है। यह क्रिया पौधों जैसे नास्टर्शियम (Nasturtium), आलू, बन्दगोभी, टमाटर एवं घास में तीव्र अवशोषण एवं कम वाष्पीकरण की स्थ ‘मुख्यतः में सम्पन्न होती है। इस क्रिया मे जल जलरन्ध्र (water stomata or hydathodes) विशिष्ट रन्ध्रों कहते हैं के द्वारा बाहर निकलता है। यह जल रन्ध्र मध्य शिरा के निकट स्थित होते हैं (चित्र- 21 एवं 22) तथा पत्ती के जीवन काल में दिन रात खुल रहते हैं। बिन्दु स्राव में जल स्राव जायलम तत्वों के उत्पन्न दाब के कारण होता हैं यह दाब मूल दाब के समान होता है। यह स्रावित जल शुद्ध नहीं होता है बल्कि यह तनु लवणीय विलयन होता है। इसकी मात्रा कुछ बूंदों से कई मिली (mil) तक हो सकता है।

बिन्दु स्राव ओस से भिन्न होता हैं ओस में जल की बूँदे पत्ती की सम्पूर्ण सतह पर फिल्म (film) के रूप में उपस्थित होती है परन्तु बिन्दु स्राव में जल पत्ती के कोर एवं शीर्ष पर उपस्थित होता है।

वाष्पोत्सर्जन (Transpiration)

 

बिन्दु स्राव (Guttation)

 

1.    जल का ह्रास जल वाष्प के रूप में होता है।

2.    यह उपचर्म रन्ध्रों एवं वातरन्ध्रों से होता है।

3.    यह क्रिया प्रकाश एवं उच्च तापमान की उपस्थिति में सम्पन्न होती है।

4. जल वाष्प शुद्ध होती है।

5. यह एक नियंत्रित क्रिया है जिसकी अधिकता से पौधा मुरझा जाता है।

 

 

1.    जल का ह्रास जल की बूँदों के रूप में होता है।

2.    यह विशिष्ट रन्ध्रों जल रन्धों (hydathodes), के द्वारा होता है

3.    यह हल्के प्रकाश एवं कम तापमान पर सम्पन्न होता है।

4. स्रावित जल में विभिन्न खनिज, शर्करा एवं अमीनों अम्ल घुलित होते हैं।

5. यह एक अनियंत्रित क्रिया है तथा पौधे मुरझाते नहीं है।-

 

 

 

प्रयोग

  1. वाष्पोत्सर्जन का प्रदर्शन ( बेल जार प्रयोग) (Demonstration of transpiration ( Bell-jar experiment

एक अच्छी तरह से जल से सींचे हुए पौधे युक्त गमले को लेकर उसकी मिट्टी को तैलीय कागज अथवा प्लास्टिक की शीट से ढक देते हैं इससे मृदा से वाष्पीकरण नहीं हो पाता। इस गमले को काँच की प्लेट में रख कर तथा बेलजार से ढककर कर सूर्य के प्रकाश में रख देते हैं। बेलजार के किनारों को वेसलीन से सील कर देते हैं। कुछ समय पश्चात् बेलजार वाष्पकणों से ६ गुंधला (misty) हो जाता है तथा उसकी दीवारों पर जल की बूँदें देखी जा सकती है जो नीचे की ओर बह जाती हैं। यह वही जलवाष्प की बूँदें है जो पौधे के वायवीय भाग से वाष्पोत्सर्जन मुक्त होती है तथा बेलजार के अन्दर की सतह पर संघनित हो जाती है।

  1. वाष्पोत्सर्जन की दर को नापना

बहुत सी विधियों द्वारा वाष्पोत्सर्जन की दर का मापन किया जा सकता है। कुछ विधियों का वर्णन नीचे दिया गया है। विभिन्न प्रयोगात्मक स्थितियों में वाष्पोत्सर्जन की दर की तुलना के लिए प्रयुक्त उपकरण को पोटोमीटर (potometer) कहते हैं। इन विधियों में उपकरण कमरे के अन्दर अथवा तेज सूर्य के प्रकाश में अथवा विद्युत पंखे इत्यादि के नीचे रखा जाता है।

पोटोमीटर मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं यथा गेनोंग्स पोटोमीटर (Ganong’s potometer), फारमर्स पोटोमीटर (Farmer’s potometer), बोस का पोटोमीटर (Bose’s potometer)। इन सभी पोटोमीटर में केशिका नली (जिसके द्वारा जल अवशोषित किया जाता है) में वायु का बुलबुला डाल दिया जाता है। हर स्थिति में प्रयोग प्रारम्भ करने से पहले उपकरण को वायुरोधी बना दिया जाता है। वायु के बुलबुले द्वारा निश्चित समय में तय की गयी दूरी को नापकर वाष्पोत्सर्जन की दर की गणना की जाती है।

(i) गेनोंग्स पोटोमीटर (Ganong’s Potometer)

इसमें एक उर्ध्व काँच की नली होती है जो कि एक जलकुण्ड (reservoir) से जुड़ी होती है। उर्ध्व नली का निचला हिस्सा अंशांकित क्षैतिज (horizontal) नली से जुड़ा होता है।

क्षैतिज नली का एक सिरा ऊपर की ओर मुड़ा रहता तथा दूसरा सिरा लम्बा एवं नीचे की ओर झुका रहता है। इस उपकरण को चित्र (24) की तरह लगा देते हैं। अब अंशांकित नली के सिरों को जल में से थोड़ा उठा कर फिर जल में डुबोकर इसमें पानी का बुलबुला डाल दिया जाता है। वाष्पोत्सर्जन होने से बुलबुला दाँये से बाँयें बढ़ता है। बुलबुले द्वारा तय दूरी एवं समय को रिकार्ड कर लिया जाता है। हर बार एक पाठन के लिए उर्ध्व जल जलाशय की पिचकार्क हटा कर बुलबुलों को शून्य पर ले आते हैं।

(ii) फारमर का पोटोमीटर (Farmer’s Potometer)

इस पोटोमीटर में एक चौड़े मुँह की बोतल के मुख में तीन छिद्रों वाला एक कॉर्क लगा होता है। इसके एक छिद्र में एक टहनी, दूसरे में एक जल का पात्र तथा तीसरे में एक अंशाकित मुड़ी हुई नली लगी होती है। इसमें वाष्पोत्सर्जन होने पर सम्पूर्ण जल स्तम्भ क्षैतिज (horizontal) नली में बांयी ओर खिसक जाता है। हर रीडिंग के लिए जल स्तम्भ की प्रारंभिक स्थिति प्राप्त करने के लिए जल को उर्ध्व जल पात्र से जल को नीचे बोतल में डाल कर किया जाता है (चित्र – 25 ) ।

(iii) बोस का पोटोमीटर (Bose’s potometer)

बोस के पोटोमीटर में जल से 3/4 भरी एक बोतल ली जाती है। इसके मुख पर दो छिद्र युक्त कार्क लगी है। कार्क के एक छिद्र में से पौधे की एक टहनी को बोतल के जल में डुबो देते हैं तथा दूसरे छिद्र में चित्र-26 में दर्शाये अनुसार बल्ब युक्त काँच की नली लगायी जाती है। वाष्पोत्सर्जन हटाने पर वायुरोधी उपकरण में निर्वात बन जाता है तथा वायु बल्ब के खुले मुख से प्रवेश कर जाती है। यह वायु केशिका नली में तेल को उपर की ओर खिसका देती है तथा अन्त में यह वायु के बुलबुले के रूप में बाहर आ जाती है। इस बुलबुले को बल्ब के निचले मुख पर देखा जा सकता है। वायु के बुलबुले के बनने से तेल स्तम्भ नीचे गिर जाता है तथा पुनः एक नया वायु का बुलबुला बन जाता है । वाष्पोत्सर्जन की दर नापने के लिए बुलबुलों की संख्या गिनी जाती है।

  1. रन्ध्री वाष्पोत्सर्जन एवं उपचर्मी-

वाष्पोत्सर्जन की तुलना के लिए प्रयोग

पृष्ठाधारी (dorsiventral) पर्ण में रन्ध्र पर्ण की निचली सतह पर होते हैं तथा उपचर्म उपरी सतह पर इसे दर्शाने के

लिए निम्न प्रयोग किये जाते हैं।

(1) चार पत्तियों वाला प्रयोग (Four leaf experiment)

चार पत्तियों के पर्णवृन्त के कटे भांग को मोम से ढक देते हैं जिससे कि इस स्थान से वाष्पीकरण न हो सके। इसमें पर्ण (A) की दोनों सतहों पर, पर्ण (B) की निचली सतह पर, पर्ण (C) की सिर्फ उपरी सतह पर वेसलीन लगा देते हैं। पर्ण (D) की सतह वैसलीन रहित रखते हैं। पर्ण (B) की निचली सतह पर वेसलीन लगाने से इस सतह से वाष्पीकरण नहीं होता । परन्तु इसमें ऊपरी सतह वाष्पोत्सर्जन होता है इसी प्रकार पर्ण (C) की उपरी सतह पर वेसलीन लगी होने से ऊपरी सतह वाष्पोत्सर्जन रूक जाता है परन्तु निचली सतह से वाष्पोत्सर्जन चालू रहता है। क्योंकि पर्ण (D) पर कहीं भी वेसलीन नहीं लगी है इसलिए इसमें वाष्पोत्सर्जन दोनों सतहों से होता है। इन चारों पत्तियों को चित्र – 27 में दर्शाये अनुसार धूप में लटका दिया जाता है। कुछ समय बाद देखने पर पर्ण A स्फीत (turgid), पर्ण (B) कुछ मुरझाई हुई, पर्ण (C) मुरझाई हुई तथा पर्ण (D) पूर्णतः मुरझाई हुई पायी जाती है।

(ii) कोबाल्ट क्लोराइड पत्र परीक्षण (Cobalt chloride paper test)

चित्र- 28 में दर्शाये अनुसार प्रयोग को व्यवस्थित किया जाता है। इस प्रयोग में सूचकांक कोबाल्ट क्लोराइड पत्र के रंग में परिवर्तन होता है। यह इसकी निर्जल (anhydrous) अवस्था में नीला परन्तु जलयोजित (hydrated) अवस्था में गुलाबी रंग का होता है। प्रयोग में कुछ समय पश्चात पर्ण की निचली सतह का पत्र अधिक गुलाबी हो जाता है जो यह प्रदर्शित करता है पर्ण की निचली सतह से अधिक वाष्पोत्सर्जन होता है। रन्ध्र पर्ण की निचली सतह पर अधिक होते हैं इसलिए रन्ध्री वाष्पोत्सर्जन, क्यूटीक्यूलर (ऊपरी सतह) वाष्पोत्सर्जन से अधिक होता है।

  1. वाष्पीकृत जल की मात्रा मूल द्वारा अवशोषित जल की मात्रा के बराबर होती है के लिए प्रयोग (Experiment to demonstate that water transpired is equivalent to the water absorbed by the roots)

इस प्रयोग के लिए निम्न प्रकार दर्शाये गये उपकरण को सेट (चित्र 29) किया जाता है। सम्पूर्ण प्रयोग का भार सर्वप्रथम ले लिया जाता है। कुछ समय पश्चात काँच की नली में जल का तल कम हो जाता है। तल में कमी मूल द्वारा जल अवशोषण की दर एवं उपकरण के भार में कमी वाष्पोत्सर्जन की दर को दर्शाता है। दोनों की ही दर लगभग बराबर होती है।

  1. बिन्दु स्त्राव का प्रदर्शन (Demonstration of guttation)

नास्ट्रर्शियम (Nasturtium) के एक गमले में लगे पादप को अच्छी तरह से सींचते हैं। अब इस गमले की मृदा से वाष्पीकरण को रोकने अथवा कम करने के लिए एक तेल युक्त कपड़े अथवा कागज (oil cloth) से ढक देते हैं। इस गमले को काँच की प्लेट पर रख कर बेलजार से ढक देते है। बेलजार, के मुख को छिद्र युक्त कार्क से बन्द कर देते हैं। इस छिद्र को काँच की नली द्वारा एस्पारेटर से जोड़ देते हैं। ग्रीस का प्रयोग कर उपकरण को वायुरोधी बना देते हैं। इस उपकरण को कुछ समय के लिए रखा रहने दिया जाता है। बिन्दु स्राव के फलस्वरूप पत्तियों के कोर पर जल की बूंदे देखी जा सकती है । (चित्र – 30) ।

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