जब अयस्क के कणों का घनत्व बहुत अधिक होता है और आधात्री के कणों का घनत्व बहुत कम होता है तो यह विधि काम में ली जाती है।
इस विधि में तेजी के साथ बहते हुए पानी में अयस्क को डाला जाता है जिसका सांद्रण करना है , चूँकि इस अयस्क में अशुद्धियो या आधात्री के कणों का घनत्व बहुत कम है इसलिए आधात्री के कण जल के प्रवाह के साथ बह जाते है दूसरी तरफ अयस्क या धातु के कणों का घनत्व बहुत अधिक होता है इसलिए ये कण पानी के प्रवाह के साथ नहीं बहते है और नीचे बैठने लगते है।
या आधात्री के कण पानी के साथ बहकर आगे निकल जाते है जबकि अयस्क या धातु के कण पीछे रह जाते है।
चित्र में दिखाया गया है कि एक ढलवा प्लेटफोर्म पर हाईड्रौलिक की सहायता से इस पर धीरे धीरे अयस्क को डाला जाता है जिसका सांद्रण करना है , पीछे से जल की प्रबल धारा प्रवाहित करते है , आधात्री के कणों का घनत्व कम होने के कारण वे इस पानी के बहाव के साथ बहकर आगे चले जाते है जबकि अयस्क या धातु के कणों का घनत्व अधिक होने के कारण वे आसानी से बहकर नही जाते है और पीछे ही रह जाते है इस प्रकार आधात्री के कणों और अयस्क के कणों का अलग अलग ढेर लग जाता है और इस प्रकार अयस्क का सांद्रण हो जाता है इस विधि में कणों के घनत्व का महत्व है अर्थात इन पर कार्यरत गुरुत्वीय बल का महत्व है या यह विधि गुरुत्व पर आधारित है इसलिए इस विधि को गुरुत्व पृथक्करण कहते है और चूँकि इसमें पानी के बहाव या पानी की प्रबल धारा का इस्तेमाल किया जाता है इसलिए इसे द्रवीय धावन विधि भी कहते है।
इस विधि द्वारा भारी अयस्कों जैसे टिन-स्टोन और लोहा स्टोन आदि का सांद्रण किया जाता है।