ग्रैम अग्राही जीवाणुओं की कोशिका भित्ति (Gram negative bacterial cell wall in hindi)

(Gram negative bacterial cell wall in hindi) ग्रैम अग्राही जीवाणुओं की कोशिका भित्ति ?

जीवाणुओं का कोशिका आवरण

प्रोकैरयोटा की कोशिका भित्ति में पेप्टीडोग्लाईकन (peptidoglycan) पाया जाता है यह विशिष्ट प्रकार का कार्बोहाइड्रेट म्यूकोपेप्टाइड (mucopetide) होता है। यह जटिल कार्बोहाइड्रेट्स एवं एमीनो अम्लों से बना होता है। इसमें दो प्रकार की एसीलेटेड एमीनो शर्कराएँ-

(i) n एसीटाइल ग्लूकोसेमीन (n Acetyl glucosamine) = G

(ii) n- एसीटाइल म्यूरेमिक अम्ल (n Acetyl muramic acid) = M

एवं कुछ एमीनों अम्ल, जिनमें D-ग्लूटेमिक अम्ल (D-glutamic acid) D एवं L एलेनीन (D.L. alanine) तथा लाइसीन (lysine) एवं डाइ अमीनो पिमेलिक अम्ल (diaminopimelic acid) मुख्य हैं, पाये जाते हैं।

पेप्टीडोग्लाइकन में n-एसीटाइल ग्लूकोसेसीन एवं n- एसीटाइल म्यूरेमिक अम्ल की एकान्तरित इकाईयाँ B-1,4 बन्धताओं युक्त पायी जाती हैं। (चित्र 2.8 ) म्यूरेमिक अम्ल से कम से कम 3 अमीनो अम्ल जुड़कर पेप्टाइड श्रृंखला बनाते हुए पाये जाते हैं। इनमें एलीनीन, ग्लूटेमिक अम्ल एवं डाइअमीनो पिमेलिक अम्ल अथवा लाइसीन होता है।

पेप्टीडोग्लाइकन में बहुलकों के मध्य क्रास बन्धों द्वारा दृढ़ता बनी रहती है। विभिन्न जातियों में यह क्रास बन्धता विभिन्न प्रकार की पायी जाती है। इस आधार पर इन्हें पहचानना सम्भव होता है।

जीवाणुओं का एक महत्वपूर्ण लक्षण ग्रैम अभिरंजन के प्रति उनकी अनुक्रिया ( reaction) है। इसका सर्वप्रथम प्रयोग डेनमार्क के जीवाणु वैज्ञानिक क्रिशचियन ग्रैम (Christian Gram, 1884) द्वारा किया गया। ग्रैम या ग्राम अभिरंजन क्रिस्टल वायलट डाइ (crystal voilet dye) तथा आयोडीन घोल (iodine solution) से किया जाता है। जिन जीवाणुओं का रंग इस घोल से हल्का बादामी हो जाये वे ग्रैम घनात्मकं (Gram pisitive) कहलाते हैं तथा जिन जीवाणुओं पर इस अभिरंजन की कोई अभिक्रिया नहीं होती वे ग्रैम ऋणात्मक ( Gram negative) कहलाते हैं। अधिकांश कोकाई (cocci) जीवाणु ग्रैम + Ve व बैसिलाई (bacilli) ग्रैम – Ve होते हैं।

ग्रैम अभिरंजन हेतु

(i) एक स्लाइड पर जीवाणुओं का एक पतला आलेप (semar) बनाकर वायु या लैम्प (lamp) की सहायता से सुखा दिया जाता है।

(ii) जीवाणुओं की सूखी आलेप युक्त स्लाइड पर क्रिस्टल वायलट डाई की कुछ बूँदें ड्रापर द्वारा डाली जाती है।

(ii) 1⁄2 मिनट के पश्चात् इस स्लाइड को जल द्वारा 2-5 मिनट तक प्रक्षालित (rinse) किया जाता है।

(iv) स्लाइड को पुनः सुखाने के पश्चात् इस पर आयोडीन वियलन की कुछ बूँदें डाली जाती हैं।

(v) 20 सेकिन्ड पश्चात् स्लाइड को पुनः जल से 2-5 मिनट तक प्रक्षालित किया जाता है। (vi) इसके उपरान्त स्लाइड को 90% इथाईल एल्कोहल से धोया जाता है।

जो जीवाणु इस अभिक्रिया के पश्चात बैंगनी रंग स्वीकार कर लेते हैं ग्रेम घनात्मक कहलाते हैं जबकि ग्रैम ऋणात्मक प्रकृति के जीवाणु कोई अभिरंजन स्वीकार नहीं करते ।

प्रयोगशाला में अध्ययन हेतु स्लाइड को (v) वे बिन्दु के पश्चात जल से धोकर 1% सेफ्रेनिन (safranin) से अभिरंजित किया जाता है इसके 30 सेकिन्ड बाद पुनः स्वच्छ जल से प्रक्षालित किया जाता है। इस प्रकार ग्रैम ग्राही जीवाणु बैंगनी रंग के तथा ग्रैम अग्राही जीवाणु लाल रंग के दिखाई देते हैं।

ग्रैम अभिरंजन ग्रहण करना अथवा अस्वीकार करना यह क्रिया जीवाणुओं की कोशिका भित्ति की सरंचना पर निर्भर है। अतः उपरोक्त आधार पर यह विभाजन किया गया है। कोशिका भित्ति की संरचना जीवाणुओं में अनेक गुणों के लिये उत्तरदायी है।

ग्रैम अग्राही जीवाणुओं की कोशिका भित्ति (Gram negative bacterial cell-wall)

ग्रैम अग्राही जीवाणुओं में कोशिका आवरण (cell envelope ) 75 एंग्स्ट्रॉम इकाई झिल्लीयों की दो पर्तों द्वारा बना होता है, इनके मध्य 100 एंग्स्ट्राम की दूरी पायी जाती है यह स्थान परिद्रव्य अन्तराल (periplasmic space) कहलाता है। इस रिक्त स्थान में पेप्टीडोग्लाईकन स्तर पाया जाता है। इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी से देखे जाने पर ग्रैम अग्राही जीवाणुओं की कोशिका भित्ति में लगभग 5 स्तर पाये जाते हैं ये बाह्य झिल्ली, लिपोप्रोटीन स्तर, परिद्रव्य अन्तराल, संरचना विहीन मध्यवर्ती स्तर एवं . पेप्टीडोग्लाईकन है। कुछ वैज्ञानिकों ने मध्यवर्ती स्तर उपस्थिति पर संदेह व्यक्ति किया है। अतः उपरोक्त पाँच स्तरों से बनी संरचना कोशिका भित्ति कहलाती है। कोशिका आवरण की भीतरी झिल्ली कोशिकीय झिल्ली या आन्तरिक झिल्ली (cytoplasmic membrane or inner membrane) कहलाती है।

  1. बाह्य झिल्ली (Outer membrane) –

बाह्य झिल्ली की रसायनिक संरचना में निम्नलिखित स्तर एक क्रम में पाये जाते हैं

(1) आधात्री प्रोटीन (Matrix protein)

(2) प्रोटीन 2 (Protein 2 )

(3) दल 3 प्रोटीन (Band 3 protein 2)

(4) लाइपोप्रोटीन (Lipoprotein)

(5) लाइपोपॉलीसेकराइड्स (Lipopolysaccharides)

(6) लिपिड A (Lipid A)

(7) पॉलीसेकेराइड्स (Polysaccharides)

(1) मैट्रिक्स प्रोटीन (Matrix protein)

कोशिका भित्ति में लाइपोपॉलीसेकेराइड (LPS) तथा चार मुख्य प्रकार के प्रोटीन उपस्थित हैं। लाइपोप्रोटीन भी कोशिका भित्ति का एक प्रमुख घटक है। आधात्री (matrix ) भाग में दो भिन्न प्रकार के पेप्टाइड la और lb होते हैं जो लाइपोप्रोटीन तथा पेप्टीडोग्लाईकन के साथ जुड़े रहते हैं। आधात्री प्रोटीन कोशिका- भित्ति के सतह पर फैले रहते हैं। ये प्रोटीन षटकोणीय, जालिकारूपी रचना बनाते हैं। जो 60% से अधिक पेप्टीडोग्लाईकंन भाग को ढकते हैं। प्रयोगों द्वारा इस बात के प्रणाम मिले हैं कि आधात्री प्रोटीन विसरण छिद्र ( diffusion pore) रखते हैं जिनसे छोटे एवं कम अणुभार वाले (MW<650) जलरागी पदार्थ (hydrophilic compounds) आर-पार जा सकते हैं। इन्हीं छिद्रों से छोटे तथा कम अणुभार वाले पोषक पदार्थ जैसे शर्करा, अमीनो अम्ल एवं लवण बाहर से कोशिका झिल्ली तक प्रवेश कर सकते हैं। अधिक अणुभार वाले पोषक पदार्थों के भीतर प्रवेश हेतु अन्य विशिष्ट ग्राही क्षेत्र होते हैं। आधात्री प्रोटीन जीवाणुभोजी हेतु ग्राही (receptor) भाग का कार्य भी करते हैं।

(2) प्रोटीन 2 (Protein 2)

प्रोटीन 2 मेट्रिक्स प्रोटीन के समान ही होते हैं तथा इनका अणुभार भी इनके समान ही होता है। ये पेप्टीडोग्लाईकन स्तर से दृढ़ता के साथ जुड़े रहते हैं। प्रोटीन 2 में मैट्रिक्स में पाये जाने वाले पॉलीपेप्टाइड के भिन्न प्रकार के पॉलीपेप्टाइड रहते हैं।

(3) प्रोटीन दल 3 (Band 3 protein)

प्रोटीन 3 दल (band) के प्रोटीन्स 3a तथा 3b दो प्रकार के होते हैं ये TOLG (protein) के समान होते हैं। ये ऊष्मा को बदलने की क्षमता रखते हैं तथा ट्रिप्सिन संवेदी (trysin sensitive) होते हैं। ये भी सतह तक फैले होते हैं एवं जीवाणुभक्षी होते हैं।

(4) लाइपोप्रोटीन (Lipoprotein)

लाइपोप्रोटीन सहसंयोजक बन्धकता (covalent linkage) से संलग्न तथा मुक्त दोनों अवस्थाओं में कोशिका भित्ति में पाये जाते हैं। लाइपोप्रोटीन का अणुभार लगभग 7000 होता है तथा ये 58 प्रकार के अमीनो अम्लों द्वारा बने होते हैं।

कोशिका भित्ति की रचना में उपस्थित विभिन्न घटकों की उपस्थिति दर्शाने हेतु वैज्ञानिकों द्वारा अनेक मॉडल (model) प्रस्तुत किये गये हैं। डीरिन्जो एवं उनके सहयोगियों (DiRienzo et al., 1978) द्वारा प्रस्तुत मॉडल के अनुसार मैट्रिक्स प्रोटीन तथा लाइपोप्रोटीन परस्पर क्रिया कर जटिल बना लेते हैं जिसमें विसरण छिद्र या नालें (diffusion pores or channels) पायी जाती है। मैट्रिक्स प्रोटीन के तीन अणु एक विसरण छिद्र को घेरे रहते हैं जिनका व्यास 1.5 से 2.0 nm होता है। इन मैट्रिक्स प्रोटीन में से प्रत्येक अणु का लाइपोप्रोटीन के साथ मिलकर जटिल (complex) बनाये रहता है। इन तीन लाइपोप्रोटीन अणुओं में से दो मुक्त अवस्था में तथा एक पेप्टीग्लाईकन स्तर से जुड़ा रहता है।

(5) लाइपोपॉलीसेकराइड्स (Lipopolysaccharides)

लाइपोपॉलीसेकराइड्स (LPS) ग्रैम अग्राही जीवाणुओं (Gram negative bacteria) की कोशिका भित्ति में सतह पर पाये जाते हैं। ये लिपिड A के साथ सहसंयोजी बन्धों द्वारा जुड़कर जटिल बनाते हैं। LPS जल अपघटन (hydrolysis) द्वारा अपने घटकों में विभक्त हो जाता है। लिपिड A में अन्तराविष (endotoxin) के गुण होते हैं जबकि पॉलीसेकेराइड प्रतिजनी (antigenic ) गुण के होते हैं।

(6) लिपिड ए (Lipid A)

लिपिड ए ग्लूकोसेमीन फॉस्फेट और वसीय अम्ल के बने होते हैं। फॉस्फेट व वसीय अम्ल इसे जलरागी गुण (hydrophilic properities) प्रदान करते हैं। वसीय अम्लों की शृंखला ज्वर उत्पन्न करने का गुण रखती है।

(7) पॉलीसेकेराइड (Polysaccharide)

साल्मोनेला ( Salmonella) के LPS का काफी अध्ययन किया जा चुका है। इसमें उपस्थित पॉलीसेकेराइड तीन भाग रखते हैं जिन्हें बाह्य, आन्तरिक तथा O- प्रतिरोधी पार्श्व शृंखला कहते हैं। ग्रैम अग्राही जीवाणुओं में O- प्रतिरोधी पार्श्व श्रृंखला अनुपस्थित होती है भिन्न-भिन्न जातियों में उपस्थित पॉलीसेकेराइड में अनेक अन्तर पाये जाते हैं।

पेप्टीडोग्लाईकन ( Peptidoglycans)

म्यूकोपेप्टाइड्स, ग्लाइकोपेप्टाइड्स, म्यूरिन्स लगभग सभी प्रकार के जीवाणुओं की कोशिका भित्ति में पाये जाते हैं। हेलोबैक्टीरियम (Halobacterium) तथा हेलोकोकॅस ( Halococcus) को छोड़कर अन्य सभी प्रोकैरयोटा में पेप्टीडोग्लाईकन पाये जाते हैं। इसी कारण जीवाणु उच्च सान्द्रता युक्त वातावरण में रह सकते हैं। इन जीवाणुओं को कोशिकाद्रव्य, वातावरण के समान सान्द्रता (iso- osmotic) युक्त होता है। ग्रैम अग्राही प्रकार के जीवाणुओं में इनकी मात्रा 5-10% (कोशिका भित्ति के वजन का) ही होती है।

कोशिका झिल्ली लगभग 75 एंग्स्ट्रॉम मोटी होती है, कोशिका भित्ति एवं पेप्टीडोग्लाईकन स्तर के मध्य 25. एंग्स्ट्रॉम का अन्तराल होता है। पेप्टीडोग्लाईकन स्तर तथा कोशिका झिल्ली के मध्य परिद्रव्य अन्तराल (periplasmic space) प्राया जाता है यह भी 75 एंग्स्ट्रॉम की दूरी रखता है । कोशिका झिल्ली (cell membrance) या आन्तरिक झिल्ली (inner membrane) भी 75 एंग्स्ट्रॉम की मोटाई रखती है।

बाह्य झिल्ली के कार्य (Functions of outer membrane)- बाह्य कला में उपस्थित लाइपोलॉसेराइड्स (LPS) कोशिका द्वारा स्त्रावित किण्वकों को बाहर जाने से रोकते हैं एवं इन्हें परिद्रव्य अन्तराल में सीमित रखते हैं। कुछ किण्वक पोषक पदार्थों के अणुओं के साथ संलग्न होकर चेष्ट आवागमन द्वारा कोशिका के भीतर पहुँचाने में सहायता करते हैं। बाह्य कला में विषाक्त (toxic molecules) भी पाये जाते हैं जो जीवाणु के मृत होने पर पोषक की देह में मुक्त होते हैं। इन जैव-विषों (toxins) को एन्डोटॉक्सिन (endotoxins) कहते हैं।

पेप्टीडोग्लाईकन स्तर जीवाणु कोशिका को दृढ़ता प्रदान करता है। प्रोटीन एवं पेप्टीडोग्लाईकन स्तरकोशिका के आकार को यथावत बनाये रखते हैं। यह स्तर एक निश्चित आमाप के अणुओं को ही विसरण द्वारा प्रवेश करने देता है अतः अवरोधक के रूप में कार्य करता है। विसरण योग्य पदार्थ नालों या छिद्रों (channels or diffusion pores) के द्वारा की प्रवेश करते हैं। अधिक अणुभार वाले पोषक पदार्थ स्वयं के ग्राही क्षेत्रों द्वारा प्रवेश करते हैं। लाइपोपॉलीसेकेराइड् स्तर विशेषत: O- पार्श्व श्रृंखला प्रतिरोधी गुण (antigenic properties) रखता है। यह स्तर जीवाणुओं में उग्रता (virulence) तथा प्रतिरक्षा (immunity) जीवाणुओं में प्रकट करने का कार्य करता है।

ग्रैम ग्राही जीवाणुओं की कोशिका भित्ति (Cell wall of gram positive bacteria) -इनमें बाह्य कला एवं बन्धक किण्वक, अनुपस्थित होते हैं। यह ग्रैम अग्राही जीवाणुओं की कोशिका भित्ति की अपेक्षा मोटी, अक्रिस्टलीय एवं स्तरीय संरचना होती है। इसमें पेप्टीडोग्लाईकन अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में पाया जाता है जिसकी अनेक पर्तें बनी रहती हैं।

ग्रैम अग्राही अर्थात् अवर्णी जीवाणुओं की अपेक्षा ग्रैम ग्राही अर्थात् ग्रैम सवर्णी जीवाणुओं की कोशिका भित्ति की रसायनिक संरचना सरल होती है। इसमें पेप्टीडोग्लाईकन कोशिका भित्ति के शुष्क भार का 46-90% भाग के बराबर पाया जाता है। यह स्तर 30 से 80 nm मोटाई का होता है। टाइकॉइक अम्ल (teichoic acid) या अम्लीय पॉलीसेकेराइड्स (acide polysaccharides) पेप्टीडोग्लाईकन के साथ जुड़े रहते हैं।

ये अणु स्वलयनी (antolysin) प्रकार के किण्वकों की क्रिया का नियमन करते हैं। स्वलयनी किण्वक पेप्टीडोग्लाईकन स्तर के बन्धकों को कोशिका वृद्धि के दौरान ढीला बनाकर अन्य संरचनात्मक संगठक पदार्थों के समावेश का मार्ग बनाते हैं। रोगजनक जीवाणुओं के नष्ट करने हेतु एन्टीबायोटिक दवाओं जैसे पेनिसिलीन एवं साइक्लोसिरीन का उपयोग किया जाता है जो जीवाणुओं की कोशिकाओं की कोशिका भित्ति के निर्माण के समय उपापचयी क्रियाओं में बाधा बहुँचाकर, इन्हें कमजोर बना कर नष्ट करते हैं।

ग्रैम ग्राही जीवाणुओं की कोशिका भित्ति में टाइकॉइक अम्ल पॉलीसेकेराइड्स के स्थान पर पाया जाता है, जिसमें रिब्टॉल (ribotol) अर्थात् रिब्टॉल टाइकॉइक अम्ल तथा ग्लीसरॉल भी उपस्थित होता है। ये सतही प्रतिरोधक का अधिकतर भाग बनाते हैं। टाइकॉइक अम्ल तीन प्रकार के होते हैं : (1) रिब्टॉल टाइकॉइक अम्ल, (2) ग्लीसरॉल टाइकॉइक अम्ल, (3) ग्लूकोसीग्लिसरॉल फॉस्फेट टाइकॉइक अम्ल टाइकॉइक अम्ल जलरागी, लचीले श्रृंखलीय अणु होते हैं जिन पर ऋण (-ve) आवेश होता है, ये पेप्टीडोग्लाईकन से एक अन्यस्थ सहसंयोजक बन्धता द्वारा जुड़े रहते हैं।

माइकोप्लाज़्मा (mycoplasma) को छोड़कर सभी जीवाणुओं की कोशिका भित्ति में पेप्टीडोग्लाईकन पाया जाता है। अधिकतर आर्कोबैक्टीरिया में कोशिका भित्ति पायी जाती है किन्तु पेप्टीडोग्लाईकन नहीं पाया जाता। इनकी कोशिका भित्ति का संगठन यू बैक्टीरिया की अपेक्षा भिन्न होती है। इनकी · भित्ति प्रोटोन्स, ग्लाइकोप्रोटीन्स एवं पॉलीसेकेराइड्स से बनी होती है। मीथेनोबैक्टीरियम की कोशिका भित्ति में स्युडोम्यूरिन (pseudomurein) जाता है जो पेप्टीडोग्लाईकन से भिन्न प्रकार का पॉलीमर है।

ग्रैम-अग्राही एवं ग्रैम-ग्राही प्रकार के जीवाणुओं की कोशिका भित्ती में अन्तर

क्र.सं. ग्रैम-ग्राही

 

ग्रैम-अग्राही
  कम समार्गी अधिक जटिल एवं बहुस्तरीय होती है। अधिक समार्गी, अक्रिस्टलीय एवं एक स्तरीय होती है।

 

  यह अपेक्षाकृत पतली 10-15nm मोटी, लगभग 5 स्तरीय व कोशिका के कुल शुष्क भार का 10-20% भाग होती है। यह अपेक्षाकृत मोटी, 25-30 nm मोटाई की एक स्तरीय व कोशिका के शुष्क भार का 20-40% भाग होती है।
  पेप्टीडोग्लाईकन कोशिका भित्ति का 5-15% फॉस्फोलिपिड्स 35% प्रोटीन्स एवं 15% एवं लिपोपॉलिसेकेराइड्स- 50% भाग बनाते हैं। पेप्टीडोग्लाईकन कोशिका भित्ति का 20-80% भाग बनाते हैं शेष भाग प्रोटीन्स पॉलिसेकेराइड्स एवं टाइकॉइक अम्ल द्वारा बनाया जाता है।
  लिपोपॉलिसेकेराइड्स मुख्य सतही प्रतिजनी पदार्थ होते हैं।

 

टाइकॉइक अम्ल मुख्य सतही प्रतिजनी पदार्थ होते हैं।