JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: Biology

germ theory of fermentation and disease in hindi , रोगों एवं किण्वन का जीवाणु मत क्या है

पढ़िए germ theory of fermentation and disease in hindi , रोगों एवं किण्वन का जीवाणु मत क्या है ?

रोगों एवं किण्वन का जीवाणु मत (Germ theory of fermentation and diseases)

लुईस पास्तेर का जन्म फ्रान्स के डॉल (Dole) नामक कस्बे में 1822 में हुआ था। बचपन में इनकी रुचि कला में थी, इन्होंने विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा विज्ञान में प्राप्त की एवं तत्पश्चात् एक माध्यमिक स्कूल में विज्ञान के अध्यापक बने। 1848 में इन्हें भौतिक विज्ञान तथा बाद में रसायन विज्ञान का प्राध्यापक बनाया गया। 1854 में इन्हें लिली विश्वविद्यालय फ्रांस में विज्ञान का डीन बनाया गया इस दौरान इन्होंने क्रिस्टल संरचना का अध्ययन किया। 1856 में ये एल्कोहल उद्योग में आ रही कठिनाइयों को दूर करने में जुट गये

लुईस पास्तेर (1856) ने सूक्ष्म जैविकी के क्षेत्र में कार्य कर अद्भुत सफलता प्राप्त की। पास्तेर रसायनिक वैज्ञानिक थे, सर्वप्रथम इन्होंने लिली में स्थित मदिरा उद्योग में उपस्थित संकट का हल निकाला। इस उद्योग में अपनायी जा रही गलत किण्वन प्रक्रिया के कारण यह उद्योग प्रभावि रहा था। इन्होंने लैबिग के किण्वन सिद्धान्त को भी गलत प्रमाणित किया जिसके अन्तर्गत किण्वन किसी विशिष्ट प्रकार के मृत प्रोटीन की उपस्थिति के कारण होना बताया गया था। पास्तेर ने किण्वन क्रिया के लिये यीस्ट की उपस्थिति होना आवश्यक बताया। इनके अनुसार किण्वन वह प्रक्रिया है जो शर्करा को एल्कोहल में बदलने हेतु आवश्यक होती है। यह क्रिया पूर्णत: प्रोटीन की अनुपस्थिति में संभव होती है।

पास्तेर ने बीयर व मदिरा के खट्टे होने के कारण के लिए कुछ जर्म्स (germs) का इनमें उपस्थित होना बताया। ये जर्म्स अदृश्य होते हैं जो अनावश्यक रूप से बीयर या मदिरा में उपस्थित होकर इसे खट्टा बना कर खराब कर देते हैं। इनका जर्म्स से तात्पर्य जीवाणुओं से था जो रोग उत्पन्न करने में सक्षम होते हैं। पास्तेर ने किण्वन में जर्म्स की क्रिया में भाग लेने के आधार पर ही किण्वन में जर्म सिद्धान्त की अवधारणा प्रस्तुत की। इन्होंने बीयर व मंदिरा को 50 से 55 डिग्री सेन्टीग्रेड तक गर्म करके बोतल में वायुरोधी विधि से भर कर सुरक्षित रखने की प्रणाली का विकास किया जिसे पास्तेरीकरण (pasteurization) कहते हैं और बीयर व मंदिरा को खराब व खट्टा होने से रोका जा सकता है।

पास्तेर ने किण्वन के जीवाणु मत के अतिरिक्त यह भी दर्शाया कि जीवाणु वातावरण में उपस्थित रहते हैं। इनसे शुद्ध पदार्थों को रूई के डाट लगा कर जीवाणु रहित बर्तनों में रख कर पृथक रखा जा सकता है। इस विधि से वायु तो प्रवेश कर सकती है, किन्तु जीवाणु बर्तनों के भीतर रखे पदार्थों में प्रवेश पाने से असमर्थ होने के कारण पदार्थ शुद्ध व जीवाणु रहित बने रहते हैं। पास्तेर ने अपने प्रयोगों द्वारा यह भी प्रदर्शित किया कि अनेकों रोग जीवाणुओ द्वारा उत्पन्न किये जाते हैं।

लुईस पास्तेर व जॉन टिन्डल का कार्य (The Work of Louis Pasteur and John Tyndal)

लूईस पास्तेर (1822–1895) फ्रान्सिसी रसायनिज्ञ एवं जैव वैज्ञानिक थे। पास्तेर ने सूक्ष्मजैविकी के क्षेत्र में अनेकों महत्त्वपूर्ण खोज की। इन्होंने लैक्टिक अम्ल, ब्यूटेरिक अम्ल और एल्कोकॉल में किण्वन क्रियाओं के लिये जीवाणुओं की उपस्थिति पर प्रयोग किये व प्रमाण प्रस्तुत किये। पास्तेर ने अवायुवीय श्वसन (anaerobic respiration) जो जीवाणुओं द्वारा किया जाता है पर भी प्रयोग किये। इन्होंने मदिरा व बीयर के खट्टा होकर खराब होने के कारणों की खोज की तथा बीयर व मदिरा को उचित विधि से सुरक्षित रखने की प्रणाली विकसित की।

पास्तेर का मत था कि जीवाणु मृदा व वायु में उपस्थित रहते हैं एवं इनके फैलने को रोककर पदार्थों को खराब होने से एवं रोगों से बचाया जा सकता है इसके लिये इन्होंने कुछ प्रयोग किये। प्रथम प्रयोग के अन्तर्गत एक फ्लास्क में निजर्मित मांस सूप रखा व हवा में खुला छोड़ दिया गया इसमें जीवाणुओं की वृद्धि देखी गयी। दूसरे प्रयोग में फ्लास्क में रखे गये निजर्मित मांस सूप के उपरान्त इस फ्लास्क को सील कर दिया गया, इसमें जीवाणु उत्पन्न नहीं हुए। तीसरे प्रयोग में फ्लास्क निर्जमित मांस सूप को रखाने के बाद गर्म किया गया इस फ्लास्क की नलिका को खुला भी रखा गया किन्तु इसमें जीवाणुओं की उत्पत्ति नहीं हुई।

इन्होंने स्वतः जनन के सिद्धान्त को नकारने हेतु विशेष प्रकार के लम्बी नली वाले वक्र ग्रीवा वाले फ्लास्क विकसित किये जिनमें वायु प्रवेश तो कर सकती थी किन्तु नलिका की वक्रता के कारण इनमें रखा गया मांस सूप जीवाणुओं से सुरक्षित बनाये रखा जा सकता था।

पास्तेर ने सिल्क कृमि ” पेबरिन” (pebrine) में बैक्टीरिया द्वारा जनित रोग के कारणों की खोज की तथा सिल्क उद्योग सिल्क कृमि की रुग्णता से मुक्ति दिलाई। फ्रांस का सिल्क उद्योग कई वर्षों से लगातार इस रोग का शिकार होने के कारण घाटे में चल रहा था। पास्तेर ने लगातार पांच वर्षों तक कार्य करके रोग का कारण खोज निकाला। उन्होंने बताया कि सिल्क कृमि में जीवाणु द्वारा उत्पन्न यह रोग एक कृमि से दूसरे कृमि को लगता जाता है इस प्रकार सभी कृमि रोग ग्रस्त होकर सिल्क उत्पन्न करना बन्द कर देते हैं। इस संदर्भ में यह जानकारी देना आवश्यक है कि वास्तव में यह रोग जीवाणु जनित न होकर प्रोटोजोआ जनित था जिसका पता सूक्ष्मदर्शी व रोगाणु में उचित संबंधा स्थापित होने के उपरान्त ही लग पाया।

पास्तेर ने पेय पदार्थों को सुरक्षित रखने की क्रिया पास्तेरीकरण (pasteurization) का विकास किया। आज भी इस विधि का उपयोग अनेक पेय पदार्थों की सुरक्षित रखने में किया जाता है।

पास्तेर के इन प्रयोगों से ग्लास्गो विश्वविद्यालय के शल्य चिकित्सक लिस्टर (Lister) को यह अनुमान लगाने में सहायता मिली कि आपरेशन के तुरन्त बाद घाव न भरने तथा पस पड़ने (मवाद) के कारण सम्भवतः जीवाणु हैं। अनेकों विरोधों का सामना करने के बाद लिस्टर ने रोगाणुरहित तकनीक (antiseptic technique) का विकास किया। लिस्टर ने कार्बोलिक अम्ल का उपयोग कर घाव धोने, पट्टी, रूई व ऑपरेशन के औजारों को रोगाणुमुक्त कर काम में लेने पर शल्य चिकित्सा  के बाद होने वाले रोगों में अचानक कमी आ गयी अतः शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में अभूतपूर्व परिवर्तन आ गये और रोगाणुरहित चिकित्सा पद्धति का विकास हुआ।

एन्थ्रेक्स अर्थात् प्लीहा ज्वर के कारणों की खोज के समय प्रतिरक्षीकरण या असंक्रमीकरण (immunization) की विधि विकसित की जिसके द्वारा जन्तुओं में प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न कर रोग से बचा जाता है।

पास्तेर ने पक्षियों के रोग चिकन कॉलेरा के कारणों की खोज की तथा रोग को रोकने हेतु प्रतिरक्षीकरण की तकनीक का विकास किया। पास्तेर ने पाया कि यदि किसी रोग के संवर्धन को पोषक में प्रवेशित करा दिया जाये तो उस रोग के उग्र संक्रमण से पोषक को संक्रमण से बचाया जा सकता है। इस प्रकार टीके की खोज की गयी जिसके द्वारा अनेक रोगों से छुटकारा पाने में सफलता मिल सकी है।

पास्तेर ने एन्थ्रेक्स रोग के जीवाणु एन्थ्रेक्स बैसिलस (Anthrax bacillus ) पर कार्य करके अनुग्र संवर्धन प्राप्त करने की विधि का विकास किया।

  • कुछ भेड़ों में एन्थ्रेक्स बेसिली की परिवर्तित विभेद को प्रवेशित किया गया (2) पुन: इन्हीं भेड़ों को एन्थ्रेक्स बेसिली के विभेद के प्रवेश कराने पर भी स्वस्थ पाया गया (3) किन्तु वे भेड़ें जो पूर्व में एन्थ्रेक्स बेसिली के विभेद को प्रवेशित कराने से वंचित रही थी अब एन्थ्रेक्स बेलि के विभेद प्रवेश कराये जाने पर मृत हो गयी।

पास्तेर ने 1888 में पास्तेर संस्थान (Pasteur institue) की स्थापना की जिसमें के अनेकों प्रयोग किये गये। रूसी वैज्ञानिक एली मैचिनकॉफ ने घन्टों कार्य करके भक्षाणु क्रिया या कोशिकाशण की खोज की। पास्तेर ने पदार्थों को रोगाणुरहित करने हेतु, हंस कण्ठ फ्ल (swan or goose necked flasks) व कुछ उपकरण भी तैयार किये (चित्र 1.6) जॉन टिन्डल (John Tyndal) ने स्वतः जनन के सिद्धान्त को नकारने में अनेकों प्रयोग किये।

इन्होंने यह भी सिद्ध कर दिखाया कि अनेक जीवाणुओं के बीजाणु उच्च ताप पर भी नष्ट नहीं होते हैं और इनमें उच्च ताप के प्रति प्रतिरोधक क्षमता पायी जाती है। जॉन टिन्डल ने पदार्थों को रोगाणुरहित (sterlization) करने की तकनीक का विकास किया। प्रयोगशालाओं, चिकित्सालयों व अनेक उद्योगों में यह क्रिया अत्यन्त आवश्यक होती है । इन्होंने पदार्थों को रोगाणुरहित बनाने हेतु इन पदार्थों को जल में कुछ घण्टों तक उबालने की तकनीक का विकास किया। इन विधि से रोगाणुरहित करने में बहुत अधिक समय लगता है अतः अनेक नयी विधियों का विकास किया गया। टिन्डलाइजेशन (tyndalization) टिन्डल की असंतत या आन्तरायिक तापन ( discontinuous or intermittent heating) विधि का विकास 1877 में किया गया। जॉन टिन्डल एक अंग्रेज डॉक्टर थे इन्होंने सुझाया कि परखनलियों व फ्लास्क आदि को किसी माध्यम में रखकर भाप द्वारा प्रथम दिन क्वथनांक (boiling point) तर्क गर्म करने से जीवाणु कोशिकाओं को नष्ट किया जाता है। द्वितीय दिन ये उपकरण इसी अवस्था में पुनः गर्म किये जाते हैं। इस प्रकार इस समय के बीच में विकसित हुए जीवाणुओं के बीजाणुओं को नष्ट कर दिया जाता है। तृतीय दिन पुनः इसी प्रकार क्रिया करने ये उपकरण रोगाणुओं से पूर्णतः मुक्त हो जाते हैं। अतः धीमी गति से बनने वाले जीवाणुओं के बीजाणुओं को भी इस प्रकार नष्ट किया जाता है। यद्यपि यह विधि अत्यधिक समय लेने वाली है और असुविधाजनक भी है फिर भी अनेक वर्षों तक इसका उपयोग किया जाता रहा है। इसमें उपकरणों को माध्यम में रखकर 8 घण्टे के अन्तराल पर गर्म करने की आवश्यकता होती है इस विधि से जल या अन्य द्रवों को जीवाणु रहित करने में सफलता नहीं मिल सकी है।

Sbistudy

Recent Posts

सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है

सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…

1 day ago

मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the

marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…

1 day ago

राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi

sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…

3 days ago

गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi

gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…

3 days ago

Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन

वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…

3 months ago

polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten

get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…

3 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now