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आनुवांशिक संशोधित फसल के नाम क्या है (Genetically Modified Crops in hindi) आनुवंशिक रूप से परिवर्तित फसलें
(Genetically Modified Crops in hindi) आनुवांशिक संशोधित फसल के नाम क्या है ?
आनुवंशिक रूप से परिवर्तित फसलें (Genetically Modified Crops) – भारत एक कृषि प्रधान देश है साथ ही साथ इसकी जनसंख्या भी अधिक है अतः अगर कृषि को हम जैव प्रौद्योगिकी की मदद से उन्नत कर सके व पैदावर इतनी अधिक हो कि कभी खाद्यान की कमी न हो तब उसके लिये निम्न बिन्दुओं पर विचार किया जा सकता है-
(I) कृषि रसायन आधारित कृषि (Agro chemical based agriculture)
(II) जैविक व कार्बनिक कृषि (Biological and organic agriculture)
(III) आनुवांशिक रूप से रूपान्तरित फसलों पर आधारित कृषि (Genetically modified crops based agriculture) .
विश्व में हरित क्रान्ति (Green revolution) के कारण खाद्यान्न में काफी बढ़ोतरी हुई है किन्तु पैदावर अधिक उन्नत फसलों के उपयोग से भी बढ़ी है। उन्नत फसलों के साथ ही साथ कृषि में बेहतर प्रबंध व्यवस्था तथा खाद पीड़कनाशी (pesticide) का उपयोग भी खाद्यान्न की आशातीत मात्रा बढ़ाने के लिये जिम्मेदार है। विकासशील (developings) देशों में खाद्य व पीड़कनाशी का उपयोग हर किसान नहीं कर पाता है व इसके साथ नई उन्नत फसलों को पुराने, पारंपरिक तरीके से प्राप्त करना संभव नहीं है अतः वैज्ञानिक इस ओर शोध करने में लगे हैं कि कोई ऐसा तरीका निकले जिससे कम कीमत में विकासशील देशों के कृषकों को रासायनिक खाद्य व पीड़कनाशी इस्तेमाल नहीं करने पड़े उसे बावजूद उनकी पैदावार बेहतर हो सके। दूसरा वैज्ञानिकों को यह भी लग रहा था कि रासायनिक खाद्य व पीड़कनाशी के अधिक उपयोग से खेती की जमीन पर खराब अंसर पड़ता है यह भी एक कारण था जिसकी वजह से वैज्ञानिकों ने जैव प्रौद्योगिकी का सहारा लेकर फसलों को आनुवांशिक रूप से परिवर्तित करने की सोची। ऐसे पादप, जीवाणु प्राणी, कवक जिनके जीन को वैज्ञानिकों द्वारा विभिन्न तकनीकों द्वारा रूपांतरित कर दिया जाता है आनुवांशिक रूप से परिवर्तित जीव (Genetically modified organism – GMO) कहलाते हैं। GM पादप कई रूपों में फायदेमंद होते हैं।
GM पादपों की निम्न विशेषताएं होती हैं-
(प) आनुवांशिक रूप से पादपों को रूपान्तरित करके उन्हें ताप, शीत, सूखा व लवण के प्रति प्रतिरोधी बनाया जाता है।
(पप) पीड़कनाशी (pesticide) प्रतिरोधी फसलें तैयार की जाती हैं।
(पपप) कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने में सहायक।
(पअ) पादपों को खनिजों का उपयोग करने में सक्षम बनाते हैं जिससे भूमि में अधिक समय तक उर्वरता बनी रहती है।
(अ) फसलों के पोषण (nutrition) स्तर में वृद्धि की जाती है जैसे चावल में विटामीन । की वृद्धि वाली जाति विकसित की गई। GM पादपों का उद्योगों में वैकल्पिक संसाधन (alternative resource) के रूप में उपयोग करके मंड (starch), ईंधन (fuel) तथा फॉर्मास्यूटिकल की पूर्ति करना।
कृषि में पीड़कनाशी का उपयोग रोकने या कम करने हेतु आनुवांशिक रूप से ऐसे पादप तैयार किये जाते हैं जो कीट प्रतिरोधी होते हैं। इसका सर्वाधिक प्रचलित उदाहरण Bt कपास है। ठज विष एक जीवाणु बैक्टीरियम थूरीनजिएंसिस (Bacillus thringiensis -BT) द्वारा निर्मित होता है। इस Bt विष जीन (toxin gene) को जीवाणु से निकाल कर क्लोन किया गया व जब यह पादपों में अभिव्यक्त (express) होते हैं तब वह कीटों के प्रति प्रतिरोध क्षमता प्रदर्शित करते हैं। इस प्रकार से एक जव पीड़कनाशी (bio-pesticide) का निर्माण हो जाता है जैसे – Bt कपास. Bt मक्का, टमाटर सोयाबीन आलू आदि।
Bt कपास (Bt Coton) बैसीलस थुरीनजिएंसिस के कुछ प्रभेद (strains) कुछ ऐसे प्रोटीन करते है। जो खास कीटों जैसे लैपीडोप्ट्रैन (Lepidopteran), कोलियोप्ट्रेन – भृग (Coleon beetle), डिप्टीरॉन (Dipterans) मक्खी , मच्छर आदि को नष्ट करने में सक्षम होते हैं। यह जीवाणु अपने जीवन काल की एक प्रावस्था में प्रोटीन रवा (Crystal) उत्पन्न करते हैं। इन कि में एक ऐसा विष होता है जो कीटों को नष्ट करने में सहायक होता है। यह Bt विष (toxin) प्रोटिन बैसीलस में निष्क्रिय प्राकविष (Protoxins) के रूप में पायी जाती है। जब कीट इस प्राकति खाता है तब उस कीट की आंत में उपस्थित क्षारीय (alkaline) pH इस प्रोटीन क्रिस्टल को, अवस्था में बदल कर सक्रिय कर देता है जो कीट के मध्य आंत (midgut) की उपकलीय (epithelial) कोशिकाओं की सतह से बंध कर उसमें कई छेद (pores) बना देते हैं, कोशिकाएं फूल कर जाती हैं फलस्वरूप कीट की मृत्यु हो जाती है।
कुछ विशिष्ट प्रकार के ठज विष जीन बैसीलस थूरेनजिंएसिस से पृथक किये गये जिन्हें कई फसलों में समाविष्ट (incorporate) किया गयां जैसे कपास में। किस कीट को नष्ट करना है। किस फसल में ठज विष के जीन स्थानांतरित करने हैं इस आधार पर विशिष्ट जीनों का चयन किया जाता है क्योंकि अधिकतर ठज विष कीट समूह के प्रति अपनी विशिष्टता प्रदर्शित करते हैं। विष (toxin) एक जीन जो क्राई (Cry) कहलाता है उसके द्वारा कोडित होता है। क्राई जीन संख्या में कई व विषिश्ट होते हैं जैसे प्रोटीन जीन क्राई IAC (Cry IA-) व क्राई II b (Cry II b) कपास के मुकुट कृमि को नश्ट करते हैं, इसी प्रकार क्राई i~ ab (Cry Iab) मक्का छेदक (Corn borer) को क्षति पहुंचाते हैं।
(म्) औद्योगिक जैव प्रौद्योगिकी (Industrial Biotechnology)
रसायन उत्पादन कागज, व काष्ठ लुगदी (Paper and Wood pulp) तथा कपड़ा उद्योग में जैव प्रौद्योगिकी की उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल करके इनमें प्रयुक्त प्रक्रियाओं की गुणवता में सुधार लाया जा सकता है व इस के साथ ही साथ पारम्परिक रूप से जो रसायन, कपड़ा, कागज बनाने में वातावरण को नुकसान पंहुचता है उसे रोका जा सकता है। उदाहरण के तौर पर औद्योगिक जैव प्रौद्योगिकी कंपनी जैव उत्प्रेरक बायोकैटेलिस्ट जैसे एंजाइम बनाती है जो रसायनों का उत्पादन कम समय में अधिक मात्रा में व्यवसायिक रूप से कर सकते हैं। जैवप्रौद्योगिकी द्वारा निर्मित कॉटन अधिक मजबूत होती है तथा उसमें रंजक (कलम) अवशोषित करके निहित (retain) करने की क्षमता ज्यादा होती है तथा वह सिकुड़ना व सलवटों (shrink and wrinkle) प्रतिरोधी होती है। डिटरजेट म प्रोटीएज जो स्टार्च व फैटीएसिड के विखंडन (break down) का कार्य करता है उसके स्थान पर ऐसे जैव उत्प्रेरक (biocatalyst) का उपयोग किया जाता है जो कम कीमत पर निर्मित होने के साथ पर्यावरण मित्र (ecofriendly) भी होते हैं। प्रयोग के दौरान वैज्ञानिकों ने यह पाया कि का की लुगदी (wood pulping) में वैद्युत ऊर्जा अधिक खर्च होती है किन्तु यही जब जैव प्रौद्योगिकी का मदद से की जाती है तब 30% तक ऊर्जा कम खर्च होती है।
(थ्) जैवप्रौद्योगिकी का विकास में अनुप्रयोग (Applications of Biotechnology in evolution)
जीवाश्मों के डी एन ए परीक्षणों द्वारा यह निधारित किया जाता है दो अलग स्थलों से, अलग कालों से प्राप्त जीवाश्म आपस में कितने करीबी (related) थे। इस जानकारी से मानव विकास के इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है कि मानव के पूर्वज कौन थे व वह विश्व के किन-किन भागों में जाकर बसे । हिन्दू, अफ्रीकी, अमेरिकी, यूरोपीय मानव समुदायों के डी एन ए का अध्ययन व इनके जीवोश्मों के DNA अध्ययन करके यह पता लगाया जा सकता है कि इनके पूर्वज कहा से आये थे।
(ळ) बायोरेमेडिऐशन (Bioremediation)
पर्यावरणीय जैवप्रौद्योगिकी का यह सर्वाधिक प्रचलित क्षेत्र है जिसका उपयोग पर्यावरणीय इंजीनियर बहुतायत से करते हैं। इस प्रक्रिया में बेकार पड़ी भूमि (waste land) पर कुछ पोषक तत्वों का समायोजन करते हैं जिससे उस भूमि में उपस्थित बेकार तत्वों का पाचन होकर हानिरहित उत्पादों में बदल जाते हैं। एक अन्य विधि में एंजाइम बायोरिएक्टर विकसित किये जाते हैं जो औद्योगिक बेकार (waste) पदार्थो व खाद्य पदार्थो को पाचित करके उनको सीवेज तंत्र से हटा देते हैं जिसमें उनका ठोस अपशिष्ट निस्तारण (Solid waste disposal) नहीं करना पड़ता है। उपरोक्त सभी पहलुओं को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि आने वाले समय में जीवन का कोई भी क्षेत्र ऐसा नही होगा जहां जैवप्रौद्योगिकी का इस्तेमाल नहीं हो रहा हो व उद्योगों को कम कीमत में, तीव्र गति से व अधिक संख्या में उत्पाद बनाने आसान हो जायेंगे।
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