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आनुवंशिक वंशागति किसे कहते हैं , Genetic Inheritance in plant species hindi मेंडल के प्रयोग

जाने आनुवंशिक वंशागति किसे कहते हैं , Genetic Inheritance in plant species hindi मेंडल के प्रयोग ?

आनुवंशिक वंशागति (Genetic Inheritance)

प्रजनन क्रिया (Reproduction) समस्त जीवधारियों का प्रमुख लक्षण कही जा सकती है। इसमें युग्मकों के द्वारा जनक पीढ़ी (Parental generation) से संतति पीढ़ी (Offspring generation) में विभिन्न लक्षणों का संचरण (Transmission) होता है। इस प्रकार के लक्षण जो जनक पीढ़ी से संतति पीढ़ी में संचरित होते हैं, उनको वंशागतिक लक्षण या आनुवंशिक लक्षण (Hereditary characters) कहते हैं तथा ‘“जनक पीढ़ी से संतति पीढ़ी में लक्षणों के अभिगमन को वंशागति (Heredity) कहते हैं।”

“जीवविज्ञान की वह शाखा जिसके अन्तर्गत भिन्न जीवों में लक्षणों की वंशागति (Heredity) एवं विभिन्नताओं (Variations) का अध्ययन किया जाता है, उसे आनुवंशिकी (Genetics) कहते हैं।”

दूसरे शब्दों में आनुवंशिकी के अन्तर्गत प्राय: आनुवंशिकी के नियमों (Laws of Inheritance) एवं वंशागति (Heredity) को नियन्त्रित करने वाले कारकों का अध्ययन किया जाता है।

शब्द जेनेटिक्स (Genetics) का सर्वप्रथम प्रयोग बेटसन (Bateson, 1906) के द्वारा किया गया था। इस शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के एक शब्द जीन ( Gene) से हुई है इसका शाब्दिक अर्थ है- वृद्धि करना (To grow into ) ।

आनुवंशिकी के क्षेत्र में ऑस्ट्रिया के एक पादरी ग्रेगर जॉन मेण्डल (Gregor John Mendel 1822-1884) द्वारा सम्पादित प्रयोगों एवं इनके आधार पर प्रस्तुत वंशागति के नियमों (Laws of Inheritance) को प्रथम सफल प्रयास (Break through ) माना जा सकता है। इसलिए मेण्डल को आनुवंशिकी विज्ञान का जनक (Father of Genetics) भी कहा जाता है ।

ग्रेगर जॉन मेण्डल का जन्म एक माली के परिवार में ऑस्ट्रिया (Austria ) के हेन्जनडॉर्फ प्रान्त के ग्राम सिलिसिया में 22 जुलाई, 1822 को हुआ। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही हुई, परन्तु मेण्डल को बचपन से ही अपने आस-पास के पेड़ पौधों एवं प्राणियों के बारे में जानने की जिज्ञासा थी। इस अतिरिक्त उनको अपने पिता से बागवानी का शौक विरासत में मिला। स्कूली शिक्षा पूर्ण करने के का अध्ययन मेण्डल ने मारविया के उच्चतर विद्यालय में किया, एवं इसके बाद सन् 1884 में दर्शनशास्त्र का द्विवर्षीय पाठ्यक्रम उत्तीर्ण किया। अक्टूबर 1847 में जब वे 25 वर्ष के थे, तो उन्होंने ब्रून नामक नगर में पादरी का पद ग्रहण किया। वहीं उनको ग्रेगर (Gregor) की धार्मिक उपाधि प्राप्त हुई। मैंण्डल ने सन् 1849 कुछ समय के लिए एक स्कूल में अध्यापन कार्य किया। इसके पश्चात् वे प्राकृतिक विज्ञान एवं गणित के उच्चतर अध्ययन हेतु वियना विश्वविद्यालय गये, वहीं पर उनको सांख्यिकी (Statistics) की महत्ता का में बोध हुआ। कुछ समय के पश्चात् वे वापस ब्रून लौट आये तथा सन् 1854 में विज्ञान के अध्यापक बन गये। मेण्डल में तर्क एवं विश्लेषण के अद्भुत गुण थे। इसी दौरान उन्होंने 1857 से 1865 तक अपने गिरिजाघर के उद्यान में, मटर (Pisum sativum) के पौधों पर आनुवंशिकी सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण प्रयोग किये।

मेण्डल ने अपने प्रयोगों द्वारा प्राप्त निष्कर्ष एवं परिणामों को “ब्रून सोसायटी ऑफ नेचुरल हिस्ट्री” के समक्ष शोध पत्र के रूप में सन् 1865 में प्रस्तुत किया । इस लेख को सन् 1866 में ब्रून सोसायटी की वार्षिकी (Annual Proceedings of the Natural History Society of Brunn) पत्रिका में “पादप संकरण के प्रयोग” (Experiments in Plant Hybridization) नामक शीर्षक से प्रकाशित किया गया। परन्तु तत्कालीन वैज्ञानिकों द्वारा दुर्भाग्यवश मेण्डल के कार्य की महत्ता को अनदेखा कर इसके प्रति उपेक्षा प्रदर्शित की गई। इसका प्रमुख कारण यह था कि उस समय के वैज्ञानिक चार्ल्स रविन (1859) द्वारा प्रस्तुत उद्विकास के सिद्धान्तों के विश्लेषण में लगे रहे। इसके अतिरिक्त उस समय के वैज्ञानिक शायद मेण्डल द्वारा प्रयुक्त संकरण प्रयोगों में गणित के उपयोग को लेकर भ्रमित हो गये एवं इनको भली-भाँति समझने में असमर्थ रहे। इसीलिये मेण्डल के कार्य की अनदेखी हुई होगी। इसी उपेक्षा से ग्रसित एवं इससे उत्पन्न सदमे से व्यथित होकर सन् 1884 में उनका स्वर्गवास हो गया।

मेण्डल के महत्त्वपूर्ण वंशागति सिद्धान्त लगभग 35 वर्ष तक वैज्ञानिक जगत् में उपेक्षित ही रहे, परन्तु इसके बाद सन् 1900 में तीन वैज्ञानिकों क्रमश: हॉलैण्ड के ह्यूगो डिव्रीज (Hugo De vries), जर्मनी के कार्ल कोरेन्स (Karl Correns) तथा ऑस्ट्रिया के एरिक वॉन शरमेक (Eric von Tschermak) ने अलग-अलग शोध कार्य करते हुए मेण्डल के कार्यों की पुनर्खोज (Rediscovery) की ।

मेण्डल से पूर्व प्रयोग (Pre Mendelian Experiments)

मेण्डल के पहले भी अनेक वैज्ञानिकों, जैसे-नाइट (Knight 1799 ) एवं गास (1824) ने मटर के पौधों पर अनेक प्रयोग किये थे। इसी सन्दर्भ में कालर्यूटर (J. Kolereuter, 1733-1806) का विशेष रूप से उल्लेख किया जा सकता है, जिन्होंने तम्बाकू के पौधों पर संकरण के प्रयोग किये तथा जनक पौधों (Parents) एवं संकर संतति पौधों दोनों का तुलनात्मक अध्ययन किया एवं इसके आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि संकर संतति दोनों जनक पौधों में से किसी एक के समान होती है, या दोनों की मध्यवर्ती होती है। इसका अर्थ यह हुआ कि दोनों जनक संतति पौधे के निर्माण में सक्रिय योगदान देते हैं।

कालय़ूटर द्वारा किये गये उपरोक्त प्रयोगों के अतिरिक्त कुछ अन्य वैज्ञानिकों जैसे गार्टनर (Gartner 1772-1850) एवं नादिन (Naudin 1815-1899) के द्वारा भी आनुवांशिकी के क्षेत्र में अनेक प्रयोग किये लेकिन वे किसी सार्थक परिणाम पर पहुँचने में असमर्थ रहे, क्योंकि-

  1. उनके द्वारा आनुवंशिकी सम्बन्धी प्रयोग कुछ ऐसे पोधों पर किये गये जिनका जीवन चक्र लम्बा था, अतः ऐसे प्रयोगों से परिणाम प्राप्त करने के लिए स्वाभाविकतया लम्बे समय तक प्रतीक्षा करनी पड़ती थी ।
  2. गार्टनर एवं नादिन के द्वारा एक पौधे को इकाई मानते हुए, एक साथ इसके अनेक लक्षणों की वंशागति का अध्ययन किया, जिससे परिणाम काफी जटिल हो गये ।
  3. मेण्डल के पूर्ववर्ती वैज्ञानिकों ने प्रयोगों से प्राप्त परिणामों के सांख्यिकी विश्लेषण को महत्त्व नहीं दिया।

मेण्डल का कार्य (Mendel’s work)—मेण्डल ने लक्षणों की वंशागति सम्बन्धी अपने प्रयोग एकवर्षीय शाकीय पौधे मटर (Pisum sativum) को लेकर किये थे। उन्होंने इस पौधे के विपर्यासी लक्षण (Constrasting characters) जैसे पौधे की लम्बाई, या पुष्प की स्थिति, इत्यादि को चिन्हित करके उनमें से केवल 7 जोड़ी विपर्यासी लक्षणों (7 sets or pairs of contrasting characters) को चयनित किया एवं इनको आधार मानते हुए अपने वंशागति के प्रयोग सम्पादित किये। उनके द्वारा एक में केवल एक लक्षण की वंशागति का अध्ययन किया गया। हालाँकि मेण्डल द्वारा आनुवंशिकी के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कार्य किया गया फिर भी लम्बे समय तक इनका कार्य वैज्ञानिक जगत के द्वारा उपेक्षित रहा। उनके कार्य की उपेक्षा के निम्न प्रमुख कारण हो सकते हैं-

  1. उस समय वैज्ञानिक जगत का पूरा ध्यान डार्विन के विकासवाद के सिद्धान्त की ओर आकर्षित था ।
  2. मेण्डल का शोध कार्य उच्चस्तरीय पत्रिका में प्रकाशित नहीं हुआ ।
  3. मेण्डल के द्वारा अपने प्रयोगों के परिणाम व निष्कर्षों को समझाने के लिए सांख्यिकीय एवं गणितीय विश्लेषण का उपयोग किया गया जो आम वैज्ञानिकों की समझ से ऊपर की बात थी ।

अतः हो सकता है कि उपरोक्त तथ्यों के कारण सम्भवत: मेण्डल के कार्य एवं परिणामों को निरन्तर 35 वर्ष तक उपेक्षा एवं तिरस्कार के झटके सहन करने पड़े होंगे ।

मेण्डल की सफलता के कारण (Reasons of Mendel’s success)

मेण्डल के प्रयोगों के सफल होने के विभिन्न कारणों को समग्र रूप से तीन शब्दों (1) दूरदर्शिता, (2) सांख्यिकीय विश्लेषण, (3) वैज्ञानिक अभिरुचि (Scientific attitude) एवं इन सबसे ऊपर भाग्य इनमें समाहित किया जा सकता है। वैसे उनकी सफलता के प्रमुख कारणों का क्रमबद्ध विवेचन निम्न प्रकार से किया जा सकता है-

(A) मेण्डल द्वारा अपनायी गयी अध्ययन प्रक्रिया (Mendel’s study method)

  1. सबसे पहले मेण्डल ने अपने पूर्ववर्ती वैज्ञानिकों की असफलता के कारणों का विश्लेषण किया एवं उसके बाद स्वयं के प्रयोगों को योजनाबद्ध प्रक्रिया के द्वारा पूर्ण किया ।
  2. अपने प्रयोगों के लिए मटर के पौधे का चयन सम्भवत: मेण्डल की सफलता का सर्वप्रमुख कारण कहा जा सकता है।
  3. मेण्डल ने एक समय में केवल एक ही लक्षण की वंशागति का अध्ययन किया ।
  4. अपने प्रयोगों के लिए मेण्डल ने ऐसे पौधों का चयन किया जो कि आनुवंशिकी रूप से शुद्ध थे। उन्होंने लक्षणों की शुद्धता की जाँच स्वपरागण द्वारा की ।
  5. मेण्डल ने शुद्ध लक्षणों वाले पौधों को अलग-अलग क्यारियों में उगाया, तथा उनको पर- परागण (cross-pollination) की सम्भाव ॥ से वंचित किया ।
  6. पौधों में संकरण के लिए मेण्डल द्वारा जनकों (Parents) के रूप में ऐसे पौधों का चयन किया गया जो विपर्यासी लक्षणों (Contrasting characters) के लिए शुद्ध थे जैसे शुद्ध लम्बे (Pure tall) एवं शुद्ध बौने (Pure dwarf) पौधे ।
  7. मेण्डल द्वारा किये गये अपने सभी आनुवंशिकी प्रयोगों का सुव्यवस्थित सांख्यिकीय अभिलेख (Statistical record) संधारित किया गया तथा इस अभिलेख का सावधानीपूर्वक विश्लेषण किया गया। इसके अतिरिक्त उन्होंने F2 पीढ़ी तक लक्षणों की वंशागति का अध्ययन किया।

(B) आनुवंशिक प्रयोगों के लिए मटर के पौधे का चयन (Selection of Pea for Genetical Experiments)

जैसा कि हम जानते हैं, मेण्डल ने गम्भीर मनन के पश्चात् उद्यान मटर (Pisum sativum) के पौधे का अपने प्रयोगों के लिए चयन किया। मेण्डल के प्रयोगों की सफलता में इस सही चयन का विशेष योगदान रहा है । वे प्रमुख कारण, जिनको ध्यान में रख कर मेण्डल ने मटर के पौधे का चयन अपने प्रयोगों के लिए किया निम्न प्रकार से हैं-

  1. मटर के पौधे का जीवन-चक्र अल्पकाल में ही पूर्ण हो जाता है, क्योंकि यह एकवर्षीय (Annual) पादप है । अत: इसमें अनेक पीढ़ियों का अध्ययन आसानी से किया जा सकता है। परिणाम प्राप्त करने के लिए लम्बे समय तक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती।
  2. क्योंकि इसके पुष्प बड़े (Large) एवं उभयलिंगी (Bisexual) होते हैं, अत: इसमें विपुंसन (Emasculation) एवं परपरागण (Cross pollination) आसानी से करवाया जा सकता है।
  3. मटर के पौधे प्रायः समयुग्मजी (Homozygous) होते हैं, क्योंकि इनकी पुष्पीय संरचना स्वपरागण (Self pollination) के अनुरूप है । वैसे आवश्यकतानुसार इनमें पर – परागण भी करवाया जा सकता है ।
  4. मटर के पौधे को सरलता से उगाया जा सकता है।
  5. इसकी विभिन्न किस्मों में कई प्रकार के विपर्यासी लक्षण पाये जाते हैं । फलतः अलग-अलग पीढ़ियों में इन लक्षणों को सही व सटीक रूप से पहचाना जा सकता है।

(C) लक्षणों का चयन (Selection of characters or traits)

मेण्डल के द्वारा मटर की विभिन्न किस्मों में से सात जोड़ी विपर्यासी लक्षणों (Contrasting characters) का चयन किया, जो कि निम्न प्रकार से हैं

 (D) संकरण तकनीक (Hybridization technique)

मटर के पौधे में स्वाभाविकतया स्व-परागण होता है। अतः इस स्वपरागण में बाधा डालने के लिए मादा जनक (Female parent) हेतु निर्धारित पौधों में पुष्प की कलिकावस्था में ही या वर्तिकाग्र (Stigma) के परिपक्व होने से पहले ही पुंकेसरों को हटा दिया जाता है। इस प्रक्रिया को विपुंसन (Emasculation) कहते हैं ।

मेण्डल द्वारा प्रयुक्त संकरण तकनीक में परपरागण के लिए मादा जनक पुष्प के वर्तिकाग्र (Stigmá) पर नर जनक (Male parent) के परागकणों का छिड़काव किया गया।

इन परपरागित पुष्पों को निर्धारित नर जनक के अतिरिक्त अन्य किसी परागकण से बचाने के लिए थैलियाँ बाँधी गई।

इस प्रकार परपरागण एवं परनिषेचन (Cross fertilization) द्वारा प्राप्त बीजों को मेण्डल द्वारा अलग-अलग रखा गया एवं इनके अंकुरण द्वारा प्राप्त पौधों के तने, पुष्प एवं फली आदि के गुणों का अध्ययन किया गया।

जनकों (Parent) के रूप में प्रयुक्त पौधों को जनक पीढ़ी (Parental Generation) कहा गया तथा इनको शब्द P, द्वारा निरूपित किया गया। इन पौधों के क्रॉस (Cross) या संकरण (Hybridization) द्वारा प्राप्त प्रथम संतति पीढ़ी को “प्रथम संकरण संतति” (First Filial Generation) कहते हैं, इसे F, पीढ़ी के नाम से भी प्रदर्शित करते हैं । F, पीढ़ी के स्वनिषेचन (Self-fertilization) द्वारा प्राप्त द्वितीय संतति पीढ़ी को ” द्वितीय संकरण संतति” (Second Filial Generation) कहते हैं एवं इसे F2 पीढ़ी भी कहा जाता है

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