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Categories: Biology

जीन प्रतिस्थापन चिकित्सा क्या होता है , Gene replacement therapy in hindi

जाने  जीन प्रतिस्थापन चिकित्सा क्या होता है , Gene replacement therapy in hindi ?

जीन प्रतिस्थापन चिकित्सा (Gene replacement therapy)

आर.एल.ब्रिन्स्टर (R.L.Brinster) आर. इ. हेमर (R.E. Hammer) तथा आर. डी. पामिटर (R.D.palmiter) ने मूसों में वामनता (Warfism) का उपचार मूसे के निषेचित अण्ड में वृद्धि हारमोन के जीन को प्रवेशित (insert ) करा कर करने से सफलता प्राप्त कर ली है। यह उपचारित अण्ड मिथ्या गर्भधारित मादा मूसे में रोपित कर विकसित कराया जाता है। मनुष्य में वामनता का रोग इसी प्रकृति का होता है। रोगी में वह जीन अनुपस्थित होता है जो वृद्धि हारमोन संश्लेषण हेतु है। इस प्रकार प्राणियों में उपापचय की विकृति के कारण होने वाले आनुवांशिक रोगों के उपचार हेतु यह विधि खोजी जा चुकी है। इसका उद्देश्य रोगी में सही जीन का प्रतिस्थापन कर रोग को जड़ से ठीक करना है। जीन प्रतिस्थापन चिकित्सा प्रणाली में रेट्रोवायरस ( retroviruses) वाहक (vector) के रूप में प्रयुक्त किये जाते हैं। यह क्रिया निम्नलिखित पदों के द्वारा समझी जा सकती है-

  1. प्लाज्मिड DNA एवं cDNA का (इच्छित जीन) के द्वारा पुनर्योगज DNA बनाया जाता है।

II पुनर्योगज प्लाज्मिड Ca, PO, अवक्षेप DNA द्वारा कोशिका में स्थानान्तरणकारी संक्रमण (transfection) कराया जाता है, इस प्रकार प्राणी की कोशिकाओं में पुनर्योगज रेट्रोवायरल DNA स्थानान्तरित हो जाता है।

III. पुनर्योगज रेट्रोवायरस का उपयोग अस्थि मज्जा कोशिकाओं को संक्रमणित कराने में किया जाता है। यह क्रिया अस्थि मज्जा कोशिकाओं को संवर्धन माध्यम में रख कर कराई जाती है।

IV संक्रमणित अस्थि मज्जा कोशिकाओं का चयन कर इन कोशिकाओं को पोषक की अस्थि मज्जा में स्थानान्तरित कर दिया जाता है। इस विधि से केन्सर जीन उपचार सम्भव हो गया है। हृदय रोग, यकृत रोगों एवं अनेकों प्रकार के कैन्सर के उपचार हेतु प्रयास जारी हैं।

  1. इस प्रकार इच्छित जीन अपना उत्पाद जैसे इन्टरल्यूकिन II पोषक की कोशिकाओं में उत्पन्न करने लगती है।

यह कार्य निम्नलिखित चरणों में किया जाता है-

(i) विकृत जीन की पहचान करना ।

(ii) ऊत्तक या कोशिकाएं जिनमे सही जीन प्रवेशित कराया जाता है।

(iii) सामान्य या स्वस्थ जीन कहाँ से प्राप्त किया जायेगा अथवा संश्लेषित किया जाता है।

(iv) सामान्य जीन का उन कोशिकाओं में प्रवेशित कराया जाना ताकि रोगी का उपचार हो सके। संवर्धित स्टेम कोशिकाएँ (stem cells) को प्राप्त कर अस्थि मज्जा से प्रत्यारोपण कर रोगों का उपचार सम्भव है। इसके लिये जन्म के समय ही स्टेम कोशिकाएं पृथक कर संग्रहित की जाती है ताकि समय पड़ने पर नये अंग विकसित किये जा सके एवं इनका प्रत्यारोपण किया जा सके। त्वचा के जलने से हुयी हानि को संवर्धित कोशिकाओं से जो किरेटिनोसाइट्स से संवर्धित की जाती है एवं इसके द्वारा ठीक किया जाता है।

मनुष्य में जनसंख्या नियन्त्रण हेतु गोलियाँ व टीके बनाये जा रहे हैं कुछ मामलों में उत्साहजनक सफलता मिली है।

इच्छित प्रकार के लिंग की सन्तान की प्राप्ति भी सम्भव है। इस पर भी अनुसंधान जारी है।

मानव में जीन चिकित्सा प्रणाली का अध्ययन किया जा रहा है। यह अत्यन्त जटिल कार्य है, क्योंकि प्रतिस्थापित जीन (replaced gene) उन्हीं कोशिकाओं में उचित समय पर क्रियाशील होती है, जहाँ वे निर्धारित तन्त्र के नियन्त्रण में कार्य करती है, जैसे त्वचा की कोशिकाओं में इन्सुलिन का जीन प्रतिस्थापित कर देने से ये कोशिकाएँ इन्सुलिन उत्पादन आरम्भ नहीं करेगी। यह क्रिया केवल अग्नाशय की B कोशिकाएँ ही करने में सक्षम होती है। अभी तक मनुष्य में जीन स्थानान्तरण की शुद्ध एवं सही प्रणाली का विकास नहीं हो पाया है। मानव में जीन प्रतिस्थापन चिकित्सा का कार्य 1980 में मार्टिन क्लाइन (Martin Cline ) ने थेलेसेमिआ के दो रोगियों में करने का प्रयास किया। इन्हें ग्लोबिन जीन को क्लोन कराकर अस्थि मज्जा कोशिकाओं में प्रवेशित कराने में तो सफलता मिल गयी किन्तु यह जीन रोगी के सही गुणसूत्र में स्थान नहीं पा सका अत: m-RNA बनाने में असफल रहा। विश्व के अनेक भागों में वैज्ञानिक इस प्रकार के प्रयोग करने में जुटे हुए हैं ताकि आनुवंशिक रोगों का इस विधि से उपचार किया जा सके।

औषधियाँ एवं जैव तकनीकी (Medicines and Biotechnology)

मानव एवं अन्य प्राणियों को रोगों से बचाने हेतु दो प्रकार के प्रयास किये गये हैं प्रथम रोगी की चिकित्सा (treatment) एवं द्वितीय रोगाणुओं की रोकथाम (prevention)। दोनों की क्षेत्रों में जैत्र तकनीकी का अनुप्रयोग अत्यन्त महत्वपूर्ण रहा है। जैव तकनीकी का उपयोग किस प्रकार आनुवंशिक परामर्श हेतु किया जाता है एवं शिशु के जन्म से पूर्व इसमें होने वाले विकारों के बारे में आप अध्याय 15 में पढ़ चुके हैं। इस प्रकार प्राणियों में प्रजनन क्रिया का नियन्त्रण कब व क्यों आवश्यक है यह भी सर्वविदित है। उपचार व चिकित्सा के क्षेत्र में प्रतिजैविक औषधियाँ, किण्वकों, विटामिन्स एवं हॉरमोन्स का प्रयोग पिछले अनेक वर्षों से किया जाता रहा है किन्तु इन्सुलिन वृद्धि हॉरमोन, ऊत्तक प्लैज्मिोजन सक्रियक (tissue plasminogen activator), इन्टरफेरॉन जैसे महत्वपूर्ण जैव रासायनिक उत्पादों की अन्य सूक्ष्मजीवों से प्राप्ति किये जाने को महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जाता है। इसी प्रकार रोग व रोगाणु के निदान ( diagnosis) व पहचान. (detection) के क्षेत्र में जीन क्लोनिंग का उपयोग करने से कैन्सर, एड्स एवं 500 से अधिक आनुवंशिक रोगों जैसे हीमोफिलिया, दाब कोशिका अरक्तता (sickel cell anaemia), पेशीय विकार (muscular dystrophy), पुटीय तन्तुमयता (cystic fibrosis) जो एक अप्रभावी जीन के उत्परिवर्तन से उत्पन्न होते हैं, चिकित्सा के क्षेत्र में नयी क्रान्ति आयी है। आनुवंशिक रोगों से पीड़ित रोगी की कोशिकाओं में नयी जीन का प्रतिरोपण (transplantation) करके उपचार होने लगा है।

रोग निदान परीक्षण (Diagnostic tests )

रोगाणु एवं रोग के निदान हेतु जैवतकनीकी द्वारा अत्यन्त विश्वसनीय व शुद्ध विधियाँ उपलब्ध हो गयी हैं जिनमें त्रुटि की कोई संभावना नहीं रहती। इनके अन्तर्गत रोगाणु को पृथक कर जैव रसायनों द्वारा जाँचा व परखा जाता है। रोगाणुओं की कोशिका कला के घटकों के अनुरूप प्रतिसीरा (antisera) बनवाकर इनकी पहचान (typing) की जाती है। इसी प्रकार रोगाणुओं का संवर्धन कर सूक्ष्मजीवों की संख्या, उत्पन्न प्रतिरक्षी सूक्ष्मदर्शिक पहचान सम्भव है। हाइब्रिडोमा तकनीक द्वारा एक क्लोनी प्रतिरक्षियाँ (monoclonal antibodies) बनाकर विशिष्ट प्रतिजेनिक डिटरमिनेन्ट्स (antigenic determinants) जो रोगाणुओं से सम्बन्धित होते हैं से रोगाणुओं की पहचान करने में सहायता मिलती है। रोगाणु के DNA की पहचान करके भी यह कार्य किया जाता है, इसक लिये रोगाणु के DNA के नमूने (sample) रोगी की देह से अलग कर इसका अन्वेषी (probe) तैयार कर लिया जाता है। यह अन्वेषी DNA की पहचान करने के साथ ही साथ आनुवंशिक रोग संदूषण (contamination) को पहचानने एवं अंग प्रत्यारोपण के दौरान ऊत्तकों के मिलान करने में सहायक होता है। ये अन्वेषी प्रोटोजोआ, हेल्मिन्थस एवं अन्य जीवों के उपलब्ध है। रेडियोधर्मी अन्वेषी अधिक सुरक्षित सिद्ध हुए हैं। लैंगिक रोगों की पहचान हेतु भी यह अत्यन्त उपयोगी है । पुनर्योगज DNA विधि द्वारा पोनेमा पेलेडियम (Treponema paladium) प्रतिरक्षी विशिष्ट परीक्षण प्रयोगशाला में किया जाता है, इसी प्रकार VDRL (veneral disease research laboratory), RPR ( rapid plasma reagin) ART (autonated reagin test) तथा STS (standard test for syphlis), परीक्षण रोगों की पहचान हेतु किये जाते हैं। मनुष्य में केन्सर परीक्षण हेतु परिवर्तित ऑन्कोजीन ( oncogene) या कोशिका आनुवंशिक चिन्हक (cytogenetic marker) अबुर्द्ध (tumour) कारी प्रकृति के खोजे गये हैं। वैज्ञानिकों ने केन्सर कोशिकाओं द्वारा अबुद्ध बनाने की क्रिया को ताप प्रघातक ( heat shock) प्रोटीन का उपयोग कर रोकने में सफलता प्राप्त की है। इसके लिये जीवाणुओं से ताप प्रघातक प्रोटीन प्राप्त कर अबुर्द्ध उत्पन्न करने वाली कोशिकाओं को प्रेषित किये जाते हैं। इसके दो प्रभाव होते हैं, प्रथम ये कोशिकाएँ अबुर्द्ध नहीं बना पाती तथा द्वितीय सामान्य कोशिकाओं को प्रतिरोधक क्षमतायुक् दिया जाता है। मानव भ्रूण में आनुवंशिक रोगों के होने की सम्भावना का पता भी DNA खण्डों के अध्ययन द्वारा समय रहते किया जाना सम्भव हो गया है। इसके लिये सर्दन ब्लास्ट तकनीक (southern blot technique) का इस्तेमाल किया जाता है। एम्रिओसेन्टेसिस (amniocentasis) के अन्तर्गत एम्निओटिक तरल व कोशिकाएँ प्राप्त कर इनका संवर्धन किया जाता है। इनसे DNA पृथक कर यह परीक्षण किया जाता है। B-थेलेसेमिआ (B- Thalassemia) रोगी में हीमोग्लोबिन में प्रयुक्त ग्लोबिन में एक पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला (B) का संश्लेषण करने की क्षमता नहीं पायी जाती। इसके लिये (DNA) खण्ड का अध्ययन किया जा चुका है ‘m RNA का निर्माण कर इस क्रिया में भाग लेता है। रोगी में यह रोग बिन्दु उत्परिवर्तन के कारण होता है जो GT के AT द्वारा स्थानान्तरण किये जाने के फलस्वरूप उत्पन्न होता है। दाब कोशिका अरक्तता (sickel shaped anaemia) के कारण भी खोज लिये गये हैं। AIDS एवं अनेक रोगों की जाँच हेतु ELISA परीक्षण किया जाता है।

रोगों का उपचार (Treatment of diseases)

जैव प्रौद्योगिकी द्वारा रोगों के उपचार हेतु औषधियों का निर्माण किया जाता है। पहले उपचार हेतु औषधियाँ प्राप्त करने हेतु प्राणी के जीवन की बलि चढ़ाई जाती थी किन्तु अब पुनर्योगज तकनीक द्वारा ये औषधियाँ अधिक व शुद्ध मात्रा में बिना प्राणि को हानि पहुँचाये मिल रही है। इन्सुलिन प्राप्त कर मधुमेह रोग का एवं इन्टरफेरान प्राप्त कर अबुर्द्धकारी रोगों का उपचार किया जा रहा है। इन्सुलिन प्राप्त करने की तकनीक का विवरण पूर्व में दिया चुका है। इसी प्रकार लगभग एक दर्जन से अधिक इन्टरफेरान जैवप्रोद्योगिकी की तकनीक द्वारा उपलब्ध हैं एवं व्यापारिक स्तर पर उत्पादित किये जा रहे हैं। अनेकों प्रोटीन्स जैसे यूरोकाइनेज, फेक्टर VII C, मानव वृद्धि हार्मोन जैसी औषधियाँ बहुतायत में उपलब्ध हो रही है।

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