(iv) निकल कैडमियम सेल : यह द्वितीयक सेल है इसकी कार्य अवधि सीसा संचायक सेल की तुलना में अधिक है लेकिन इसकी निर्माण लागत ज्यादा है।
एनोड : Cd
कैथोड : NiO2
विधुत अपघट्य पदार्थ : KOH
इस सेल में होने वाली रासायनिक अभिक्रिया निम्न प्रकार है –
डिसचार्जिंग के समय होने वाली रासायनिक अभिक्रिया :-
एनोड पर : Cd + 2OH– → CdO + H2O + 2e–
कैथोड पर : 2Ni(OH)3 + 2e– → 2Ni(OH)2 + 2OH
कुल सेल अभिक्रिया : Cd + 2Ni(OH)3 → CdO + 2Ni(OH)2 + H2O
डिसचार्जिंग के समय इस सेल में एनोड पर Cd ऑक्सीकृत होकर Cd2+ में बदल जाता है तथा कैथोड पर Ni3+ अपचयित होकर Ni2+ में बदल जाता है।
चार्जिंग के समय होने वाली अभिक्रिया –
H2O + CdO + 2Ni(OH)2 ⇌ Cd + 2Ni(OH)3
इस सेल का सेल विभव 1.4 वोल्ट होता है।
उपयोग : बेतार उपकरण जैसे – टेलीफोन में व विडिओ कैमरे में।
(v) इन्धन सेल (fuel cell) : ऐसे गेल्वेनिक सेल जिनमे आदि H2 , CH4 , CH3OH आदि ईंधन की दहन ऊर्जा को सीधे विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है , ईंधन सेल कहलाते है।
उपयोग : अंतरिक्ष यानो में।
उदाहरण : H2–O2 ईंधन सेल / क्षारीय ईंधन सेल।
H2–O2 ईंधन सेल / क्षारीय ईंधन सेल :
बनावट : इस सेल के तीन प्रभाग होते है , यह प्रभाग प्लेटिनम से लेपित कार्बन के दो सरन्ध्र इलेक्ट्रोडो द्वारा पृथक होते है। यहाँ प्लेटिनम उत्प्रेरक का कार्य करता है। इस सेल के मध्य प्रभाग में KOH या NaOH विद्युत अपघट्य का विलयन भरा होता है तथा इस सेल में एनोड की तरफ से हाइड्रोजन गैस एवं कैथोड की तरफ से ऑक्सीकृत गैस प्रवाहित की जाती है।
इस सेल में होने वाली रासायनिक अभिक्रिया निम्न प्रकार है –
एनोड पर : 2H2 + 4OH– → 4H2O + 4e–
कैथोड पर : O2 + 2H2O + 4e– → 4OH–
कुल सेल अभिक्रिया : 2H2 + O2 → 2H2O
इस सेल अभिक्रिया में अंतिम उत्पाद H2O बनता है।
इस सेल का उपयोग सर्वप्रथम अपोलो अन्तरिक्ष यान में किया गया तथा सेल से प्राप्त जल वाष्प को संघनित करने से बने जल का उपयोग यात्रियों के पेय जल के रूप में किया गया।
ईंधन सेल के लाभ / गुण :
- यह प्रदुषण मुक्त सेल होते है।
- इनकी दक्षता बहुत अधिक होती है (70%)
- इन सेलो में लगातार ईंधन उपलब्ध करवाकर इनसे लगातार विद्युत ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है।
संक्षारण (corrosion)
जब कोई क्रियाशील धातु वातावरण में उपस्थित नमी व गैसों के सम्पर्क में आकर अवांछित पदार्थो जैसे ऑक्साइड कार्बोनेड , सल्फाइड आदि का निर्माण करती है तथा यह पदार्थ धातु की सतह पर चिपक जाते है तो यह घटना संक्षारण कहलाती है।
संक्षारण में धातु का क्षय होता है।
यह रेडोक्स प्रक्रिया है , इसमें धातु ऑक्सीकृत हो जाती है।
संक्षारण के उदाहरण :
- लोहे पर जंग लगना : Fe2O3ऑक्साइड का निर्माण।
- चाँदी का काला पड़ना : सल्फाइड का निर्माण।
- ताम्बे या पीतल पर हरे रंग की परत का जम जाना। (कार्बोनेट का निर्माण)
संक्षारण की क्रियाविधि (लोहे पर जंग लगने की क्रियाविधि) :
लोहे पर जंग लगना एक विद्युत रासायनिक परिघटना है इसमें ऑक्सीजन व कार्बन डाइ ऑक्साइड युक्त नमी की उपस्थित में लोहे की अशुद्ध सतह विद्युत-रासायनिक सेल की भाँती कार्य करती है।
इस लोहे में जिस स्थान पर ऑक्सीकरण होता है , वह एनोड तथा जिस स्थान पर अपचयन होता है , वह कैथोड कहलाता है तथा कार्बन डाइ ऑक्साइड व ऑक्सीजन युक्त नमी विद्युत अपघट्य विलयन का कार्य करती है।
इस लोहे के संक्षारण में होने वाली रासायनिक अभिक्रियाएँ निम्न प्रकार है –
एनोड पर : यहाँ Fe का ऑक्सीकरण होता है –
Fe → Fe2+ + 2e– [समीकरण-1]
इससे बने Fe2+ आयन विद्युत अपघट्य विलयन में चले जाते है तथा त्यागे गए इलेक्ट्रॉन धातु के माध्यम से कैथोड क्षेत्र की ओर गमन करते है।
कैथोड पर : इस क्षेत्र में H2O + CO2 → H+ + HCO3– अभिक्रिया से प्राप्त H+ आयन को ग्रहण करके वायुमण्डल ऑक्सीजन से क्रिया कर लेते है –
4H+ + O2 + 4e– → 2H2O [समीकरण-2 ]
समीकरण 1 को समीकरण-2 से गुणा करके समीकरण-2 में जोड़ने पर –
एनोड पर : 2Fe → 2Fe2+ + 4e–
कैथोड पर : 4H+ + O2 + 4e– → 2H2O
कुल अभिक्रिया : 2Fe + 4H+ + O2 → 2Fe2+ + 2H2O
इस अभिक्रिया में बने Fe2+ आयन वातावरण में उपस्थित नमी व O2 (ऑक्सीजन) से और अधिक ऑक्सीकृत होकर Fe3+ आयन में परिवर्तित हो जाते है अर्थात Fe2O3 का निर्माण करते है।
यह Fe2O3 चूर्ण जलयोजित होकर जंग (Fe2O3.xH2O) का निर्माण करता है।
2Fe2+ + ½ O2 + 2H2O → Fe2O3 + 4H+
Fe2O3 + xH2O → Fe2O3.xH2O (जंग)
लोहे पर जंग का पिला भूरा रंग Fe3+ आयन के कारण होता है तथा जंग के कारण लोहे के भार में वृद्धि हो जाती है।
संक्षारण की रोकथाम : इसके उपाय निम्न है –
(1) रोधको द्वारा सुरक्षा : लोहे की सतह पर पेंट करके।
लोहे की सतह पर ग्रीस या तेल का लेपन करके।
(2) उत्सर्ग रक्षण / बलिदानी सुरक्षा : इस प्रक्रिया में लौहे को जंग से बचाने के लिए इस पर अधिक क्रियाशील धातु जैसे Zn की परत चढ़ाई जाती है इसे यशदलेपन या लोहे का गैल्वेनाइजैसन कहते है।
इस प्रक्रम में जिंक धातु स्वयं संरक्षित हो जाती है लेकिन लोहे को संरक्षित होने से बचाती है।
(3) विधुतीय रक्षण : जमीन में दबी हुई लोहे की पाइपो को संरक्षित होने से बचाने के लिए इसके साथ अधिक क्रियाशील धातु जैसे Mg , Zn को एनोड के रूप में जोड़ देते है। इस कारण लोहे की पाइप का ऑक्सीकरण नहीं होने से यह संरक्षित होने से बच जाती है।
प्रश्न 1 : क्या Zn (जिंक) के पात्र में CuSO4 विलयन रख सकते है ?
उत्तर : जिंक के पात्र में कॉपर सल्फेट का विलयन नहीं रखते क्योंकि जिंक धातु कॉपर की तुलना में अधिक क्रियाशील होने के कारण यह CuSO4 विलयन से Cu2+ आयनों को विस्थापित कर देती है अत: Zn व CuSO4 के मध्य अभिक्रिया होने से Zn के पात्र में छेद हो जाते है।
Zn + CuSO4 → ZnSO4 + Cu
प्रश्न 2 : सीसा संचायक बैटरी का सेल आरेख बनाइए।
उत्तर : Pb/PbSO4 // H2SO4 / PbO2/Pb
प्रश्न 3 : सांद्रता सेल क्या है ?
उत्तर : ऐसे गेल्वेनिक सेल जिनमे भिन्न भिन्न सान्द्रता वाले दो समान विद्युत अपघट्य विलयन एक ही पात्र में रखे होते है और यह परस्पर सीधे सम्पर्क में होते है तथा इनमे एक ही धातु के इलेक्ट्रोड डूबे होते है ऐसे सेल सान्द्रता सेल कहलाते है।
इन सेलों में उच्च सांद्रता से निम्न सांद्रता की ओर पदार्थ का परिवहन होने के कारण विद्युत ऊर्जा उत्पन्न होती है।