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हिन्दू धर्म कितना पुराना है । सबसे पुराना धर्म कौनसा है , हिन्दू धर्म के संस्थापक कौन हैं हिंदू धर्म की स्थापना कब हुई और किसने की
हिंदू धर्म की स्थापना कब हुई और किसने की हिन्दू धर्म कितना पुराना है । सबसे पुराना धर्म कौनसा है , हिन्दू धर्म के संस्थापक कौन हैं ? founder of hindu religion in hindi ?
हिन्दू धर्म : धर्मशास्त्रीय और आध्यात्मिक आधार
(Hinduism: The Theological and Metaphysical Basis)
भारत के 80 फीसदी से भी अधिक लोग हिन्दू धर्म को मानने वाले हैं। फिर भी हिन्दू धर्म भारत तक ही सीमित नहीं है, हिन्दू धर्म को मानने वाले हिन्दू बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, बर्मा, इंडोनेशिया, पूर्व और दक्षिण अफ्रीका, कैरिवियाई द्वीपसमूह, गुयाना, फिजी, इंग्लैंड, अमेरिका व कनाडा और विश्व के अन्य अनेक देशों में भी फैले हुए हैं।
हिन्दू धर्म अनेक ग्रंथों का निचोड़ है, जैसा कि एम.एन. श्रीनिवास और ए.एम. शाह (1972) ने कहा है, हिन्दू धर्म के सिद्धांत किसी एक अकेले ग्रंथ में से नहीं लिए गये, न ही हिन्दू धर्म का कोई एक अकेला ऐतिहासिक संस्थापक है। हिन्दू धर्म में अनेक धार्मिक ग्रंथ मिलते हैं। ये हैं, वेद, उपनिषद, वेदांत, धर्मशास्त्र, निबोध, पुराण इतिहास, दर्शन, अगानास, महाभारत आदि। हिन्दू धर्म में देवता भी एक नहीं, अनगिनत हैं और हिन्दू होने के लिए यह अनिवार्य नहीं है कि व्यक्ति देवता के सार में विश्वास करे (358)। इसलिए हिन्दू धर्म को धर्मशास्त्रीय, आध्यात्मिक या स्थानीय स्तरों पर मानने के लिए विविध प्रकार के पारस्परिक संपर्क के रूप में देखा जा सकता है।
हमें यह मानना होगा कि हिन्दू धर्म की व्याख्या करना बहुत कठिन है। हिन्दू धर्म विश्वास और व्यवहार के विविध घटकों को जोड़कर उन्हें एक समूचे रूप में प्रस्तुत करता है। इसमें समूचा जीवन आ जाता है। इसमें धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक, साहित्यिक और कलात्मक पक्ष आ जाते हैं। इसलिए हिन्दू धर्म की कोई सटीक व्याख्या या परिभाषा नहीं की जा सकती। लेकिन, हाँ कुछ ऐसी सामान्य विशेषताओं को अवश्य बताया जा सकता है जो अधिकांश हिन्दुओं में पाई जाती हैं। (द न्यू इनसाइक्लोपीडिया ऑफ ब्रिटैनिका 1985: 935)।
हिन्दू धर्म विश्व के तमाम महान धर्मों में सबसे पुराना धर्म है। सामाजिक उदविकास और परिवर्तन की प्रक्रिया में हिन्दू धर्म में विभिन्न संप्रदाय बन गये। प्रत्येक संप्रदाय के अपने अलग देवी-देवता और ग्रंथ हैं। लेकिन, सभी हिन्दू संप्रदायों के मूल में कुछ स्थाई विश्वास पद्धतियाँ मिलती हैं। जो ब्रह्म, आत्मा, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की हिन्दू अवधारणाओं और शुद्धि-अशुद्धि के विचारों पर केंद्रित हैं। आइए हम हिन्दू धर्म को व्यापक सामाजिक संदर्भ में रखकर इन अवधारणाओं पर विचार करें।
उद्देश्य
इस इकाई में हम भारत में धार्मिक बहुलवाद के संदर्भ में हिन्दू धर्म की चर्चा करेंगे। इस इकाई को पढ़ने के बाद, आप,
ऽ हिन्दू धर्म के धर्मशास्त्रीय और आध्यात्मिक आधार की व्यवस्था कर सकेंगे,
ऽ हिन्दू धर्म के मूल संप्रदायों और देवी-देवताओं का विवरण दे सकेंगे,
ऽ हिन्दू सामाजिक संस्थाओं के बारे में विचार कर सकेंगे,
ऽ हिन्दू धर्म की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का विश्लेषण कर सकेंगेय और
ऽ समकालीन वर्तमान समय में हिन्दू धर्म में जुड़ते नये आयामों की समीक्षा कर सकेंगे।
प्रस्तावना
इस इकाई का प्रारंभ, हिन्दू धर्म के धर्मशास्त्रीय और आध्यात्मिक आधार की चर्चा से किया गया है। यह माना जाता है कि हिन्दू धर्म की व्याख्या करना बहुत कठिन है। फिर भी, हम यह कह सकते हैं कि हिन्दू धर्म में कुछ विशिष्ट मूल केंद्रीय विश्वास पद्धतियां हैं, ये हैंय ब्रह्म, आत्मा, कर्म, धर्म, अर्थ, मोक्ष की धारणा, और शुद्धि और अशुद्धि के विचार । प्रारंभ में हम इन विश्वास पद्धतियों पर चर्चा करेंगे। हिन्दू धर्म में अनेक संप्रदाय और देवी-देवता हैं। इस इकाई में हम कुछ मूल संप्रदायों और देवी-देवताओं का विवरण देंगे। हिन्दू जीवन पद्धति के दर्शन इस धर्म की सामाजिक संस्थाओं में होते हैं। इस इकाई में हम हिन्दू धर्म में विवाह, परिवार और उत्तराधिकार की सामाजिक संस्थाओं पर भी विस्तार से चर्चा करेंगे। हिन्दू धर्म विश्व के तमाम महान धर्मों में सबसे पुराना धर्म है। हिन्दू धर्म की ऐतिहासिक पृष्ठभमि को देखा जाए तो उसमें अनेक आंदोलन हुए हैं और अनेक बाहरी और आंतरिक ताकतों से इसका टकराव हुआ है। इसके अतिरिक्त देश में भाषाई और क्षेत्रीय भिन्नताओं के होते हुए भी राष्ट्रीय स्तर पर सभी हिन्दू लोग एक सूत्र में बंधे हुए हैं।
इस इकाई में हम हिन्दू धर्म में भक्ति आंदोलन और इस्लाम और पश्चिमी धर्म दर्शन से उसके टकरावों की भी चर्चा करेंगे। इस इकाई के अंत में हम हिन्दू धर्म के समकालीन समय में जुड़े आयामों की चर्चा करेंगे। इस संदर्भ में हम हिन्दू धर्म के अंतरराष्ट्रीयकरण, हिन्दू धर्म में वैयक्तिक संप्रदायों के उदय और हिन्दू धर्म के राजनीतिकरण के बारे में चर्चा करेंगे।
सारांश
हिन्दू धर्म विश्व के तमाम महान धर्मों में सबसे पुराना धर्म है। इसने विभिन्न ऐतिहासिक पृष्ठभूमियों में विभिन्न शक्तियों का सामना किया है। फिर भी, हिन्दू धर्म की मूल विश्वास पद्धति चिरंतन रही है। इस इकाई में हमने ब्रह्म, आत्मा, धर्म, कर्म, मोक्ष और शुद्धि-अशुद्धि की धारणाओं में परिलक्षित हिन्दू धर्म की केंद्रीय विश्वास पद्धति के बारे में चर्चा की। हमने हिन्दू धर्म के मूलभूत संप्रदायों और और देवी-देवताओं के बारे में भी चर्चा की। विवाह, परिवार और उत्तराधिकार की सामाजिक संस्थाओं के बारे में भी इस इकाई में हमने पढ़ा। हिन्दू धर्म में भक्ति आंदोलन और इस्लाम और पश्चिमी धर्म दर्शनों से हिन्दू धर्म के टकरावों की भी हमने समीक्षा की। अंत में हमने हिन्दू धर्म के उभरते पहलुओं का अध्ययन किया। इस संदर्भ में हमने हिन्दू धर्म के अंतरराष्ट्रीयकरण और हिन्दू धर्म में वैयक्तिक संप्रदायों के उदय और हिन्दू धर्म के राजनीतिकरण पर चर्चा की।
कुछ उपयोगी पुस्तकें
बीसेंट ए., 1985 “सैवन ग्रेट रिलिजंस‘‘ द थियोसोफिकल पब्लिशिंग हाउस, मद्रास ।
मदन, टी.एन. (संपा.) 1991, ‘‘रिलिजंस इन इंडिया‘‘ ऑक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी प्रेसः नई दिल्ली।
प्रभु, पी.एच. 1919, हिन्दू सोशल आर्गनाईजेशन, पीपुल पब्लिशिंग हाऊस: मुंबई ।
श्रीनिवास, एम.एन. और ए.एम. शाह, 1972, ‘‘हिन्दूइज्म‘‘ ‘‘इंटरनेशनल इनसाइक्लोपीडिया ऑफ सोशल साइंसेज” मैकमिलेन एंड फ्री प्रेस: नयूयार्क।
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