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Categories: sociology

उत्तराधिकार किसे कहते है | उत्तराधिकार की परिभाषा क्या है अर्थ मतलब बताइए Inheritance in hindi

Inheritance in hindi meaning and definition उत्तराधिकार किसे कहते है | उत्तराधिकार की परिभाषा क्या है अर्थ मतलब बताइए ?

उत्तराधिकार (Inheritance)
पारंपरिक तौर पर भारत के अधिकांश हिस्सों में (बंगाल और असम को छोड़ कर) उत्तराधिकार की “मिताक्षर‘‘ प्रणाली अपनायी जाती थी। इस व्यवस्था के अनुसार पुत्र का अपने पिता की वंशानुगत संपत्ति पर जन्मसिद्ध अधिकार होता है और पिता इस संपत्ति को किसी ऐसे तरीके से बेच या दे नहीं सकता, जिससे पुत्र के हितों को नुकसान पहुँचता हो। लेकिन (बंगाल और असम में प्रचलित) “दायभाग‘‘ (Dayabaga) व्यवस्था में पिता संपत्ति का पूर्ण स्वामी होता है और वह उसे अपनी मर्जी से जैसे चाहे बेच या दे सकता है।

परंपरा के अनुसार स्त्रियों की संपत्ति में साझेदारी नहीं होती। उन्हें केवल भरण-पोषण का अधिकार मिलता है। पितृवंशानुगत समाज में स्त्रियों को ‘‘स्त्रीधन‘‘ के रूप में कुछ चल संपत्ति मिलती है। यह संपत्ति उसे उसके विवाह के समय दी जाती है। स्त्रियों का इस संपत्ति पर पूरा अधिकार होता है।

हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम और हिन्दू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम 1956 के अधीन उत्तराधिकार की समान व्यवस्था कायम की गई है। ये अधिनियम जैन, बौद्ध और सिक्ख धर्मों पर भी लागू होते हैं। इस अधिनियम के अनुसार पति अपनी पत्नी और बच्चों के भरण-पोषण के लिए कानूनी तौर पर जिम्मेदार होता है । कोई हिन्दू पुरुष यदि बिना वसीयत किये मर जाता है तो उसकी व्यक्तिगत संपत्ति में उसके पुत्र-पुत्री और उसकी विधवा पत्नी और माँ का बराबर का साझा होगा। दायप्राप्ति और उत्तराधिकार के मामलों में पुरुष और स्त्री वारिसों को बराबर का दर्जा दिया गया है। इस अधिनियम में स्त्री को अपने पिता और पति से दाय प्राप्ति का भी अधिकार दिया गया है। वैसे स्त्रियों को वंशानुगत संपत्ति में साझेदारी का जन्म के आधार पर कोई अधिकार नहीं है। (अधिक जानकारी के लिए ईएसओ-12 की इकाई 6.4.2 देखें)

 हिन्दू धर्म की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Hinduism in the Historical Settings)
पिछले लाखों वर्षों में हिन्दू धर्म में अनेक बदलाव आये हैं। वैदिक संस्कारों और उपनिषद के दर्शन ने हिन्दू धर्म के उद्विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वास्तव में तो, हिन्दू धर्म में बदलाव की प्रक्रिया भगवद् गीता के संदेश के साथ शुरू हुई। भगवद् गीता से ही हिन्दू धर्म में भक्ति की धारणा जुड़ी। हिन्दू धर्म ने भक्ति संप्रदाय में नए आयाम ग्रहण किए। भक्ति संप्रदाय के अतिरिक्त, हिन्दू धर्म का टकराव इस्लाम और पाश्चात्य धर्म दर्शनों से भी हुआ। अब हम इन व्यापक सामाजिक और ऐतिहासिक प्रक्रियाओं के संदर्भ में हिन्दू धर्म की समीक्षा करेंगे।

बोध प्रश्न 2
प) भगवद् गीता ने हिन्दू धर्म में ईश्वरवादी तत्वों को फिर से कैसे सक्रिय किया? लगभग छह पंक्तियों में उत्तर दीजिए।
पप) हिन्दू धर्म पर इस्लाम के कुछ महत्वपूर्ण प्रभावों का उल्लेख कीजिए। लगभग पांच पंक्तियों में उत्तर दीजिए।
पपप) हिन्दू धर्म पर पश्चिम के जो प्रभाव पड़े निम्नलिखित में से ऐसा कौन सा प्रभाव नहीं है?
क) शिक्षा को बढ़ावा
ख) सामाजिक सुधार और कल्याणकारी गतिविधियों को बढ़ावा
ग) शहरी क्षेत्रों में शुद्धि-अशुद्धि के विचार का कमजोर पड़ना
घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।

बोध प्रश्न 2
प) भगवद् गीता आत्मज्ञान के लिए कर्म, ज्ञान और भक्ति का मार्ग बताती है। भगवद् गीता भक्तों को इन सभी मार्गों को त्याग कर परमेश्वर में शरण लेने का भी उपदेश देती है जिसके माध्यम से तमाम खामियों के बोझ से मुक्त हुआ जा सकता है।
पप) क) तुरंत प्रभाव के रूप में हिन्दू धर्म में रूढ़िवादी और अतिनैतिक प्रवृत्तियों को गति मिली।
ख) हिन्दू धर्म में संप्रदायवादी परंपराओं की संख्या में वृद्धि हुई।
ग) लोकप्रिय हिन्दू मिथकों और संस्कारों में मुस्लिम विषयों का समावेश हुआ।
पपप) 4)

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