JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: 10th science

जीवाश्म , Fossil in hindi , विकास , समजात अंग , समरूप अंग , जीवाश्म की आयु का आंकलन

विकास की प्रारंभिक स्थिति तक पहुँचने के लिए स्पीशीज के ऐसे समूह का निर्माण करते हैं जिनके पूर्वज निकट अतीत में समान थे इसके बाद इन समूह का एक बड़ा समूह बनाते है जिनके पूर्वज अपेक्षाकृत अधिक दूर के होंते है। इस प्रकार से अतीत की कडि़यों जोड़ते हुए हम विकास की प्रारंभिक स्थिति तक पहुँच सकते हैं जहाँ पर मात्र एक ही स्पीशीज थी।

विकास 

जीवो में प्रारंभिक स्थिति से अब तक बहुत ज्यादा परिवर्तन आये है। जीवो में होने वाले एक के बाद एक परिवर्तनों के परिणामो को ही विकास कहते है। यह परिवर्तन लाखो वर्षो पहले आदिम जीवो में होते है जिनसे नयी जातियों का निर्माण होता है। विकास जैव विकास का ही एक भाग है क्योकि विकास जीवित जीवो में ही होता है।

आकृति एवं कार्य के आधार पर जीवो के अंगो को इस प्रकार से बाँटा गया है 

1. समजात अंग = अलग अलग जीवो के वे अंग जो की आकृति और उत्पति में समान होते है परन्तु उनके कार्य अलग अलग होते है समजात अंग कहलाते है। जैसे की पक्षी के पंख , चमगादड के पंख आदि आकृति में समान होते है परन्तु इनके कार्य अलग अलग होते है।

2. समरूप अंग = अलग अलग जीवो के वे अंग जो की आकृति और उत्पति में अलग होते है परन्तु उनके कार्य सामान होते है समरूप अंग कहलाते है। जैसे की तितली के पंख , पक्षी के पंख आदि का कार्य समान होता है परन्तु इनकी आकृति अलग होती है।

जीवाश्म (Fossil in hindi)

अंगों की संरचना केवल वर्तमान स्पीशीज पर ही निर्भर नहीं करती है वरन् उन स्पीशीज पर भी निर्भर करती जो अब जीवित नहीं हैं। विलुप्त स्पीशीज के अस्तित्व को जानने के लिए जीवाश्म का उपयोग किया जाता है। मृत्यु के बाद जीवो के शरीर से बचे परिरक्षित अवशेष जीवाश्म कहलाते हैं। उदाहरण किसी मृत कीट का गर्म मिट्टी में सूख कर कठोर हो जाना।

जीव की मृत्यु के बाद उसके शरीर का धीरे धीरे अपघटन हो जाता है तथा शरीर समाप्त हो जाता है। परंतु कभी-कभी जीव अथवा उसके कुछ भाग का अपघटन पूरी तरह से नहीं हो पाता है। जीवाश्म प्राचीन काल के मृत शरीर के सम्पूर्ण, अपूर्ण अंग होते है तथा इन अंगो के मिट्टी, शैल तथा चटटानो पर बने चिन्ह होते है।

उदाहरण = नाइटिया जीवाश्म मछली , राजासोरस जीवाश्म डायनासोर, अमोनाइट अकशेरुकी आदि।

जीवाश्मो के अधयन्न से उन जीवो जिसके अवशेष मिले है की धरती पर होने की पुष्टि होती है। इन जीवाश्मो की तुलना वर्तमान में स्थित समतुल्य जीवो से करने पर यह अनुमान लगाया जाता है की वर्तमान काल के जीवो में क्या विशेष परिवर्तन आये है।

जीवाश्म की आयु का आंकलन 

1 खुदाई के दवारा = किसी भी स्थान की खुदाई करने पर हमे एक गहराई तक खोदने के बाद जीवाश्म मिलने प्रारंभ होते है। पृथ्वी की सतह के निकट वाले जीवाश्म गहरे स्तर पर पाए गए जीवाश्मों की अपेक्षा अधिक नए होते हैं।

2.फॉसिल डेटिंग = जीवाश्म में पाए जाने वाले किसी एक तत्व के विभिन्न समस्थानिकों का अनुपात के आधार पर जीवाश्म का समय निर्धारित किया जाता है। सजीवो के शरीर में कार्बन का C-14 समस्थानिकों उपस्थित होता है। किसी भी जीव की जीवाश्म में C-14 रेडियोएक्टिवता होती है। समय के साथ साथ इन C-14 की रेडियोएक्टिवता कम होती जाती है और इसी रेडियोएक्टिवता की तुलना करके जीवाश्म की आयु का पता लगाया जाया है।

समजात अंग विकास को दशार्ते है। किसी जीव के समजात अंग यह दर्शाते है इनकी उत्पति सामान पूर्वज से हुई है। समजात अंग जिनकी आकृति समान होती है लेकिन इनके कार्य अलग अलग होते है। इन अंगो में परिवर्तन ही विकास को दर्शाता है। समरूप अंग भी विकास का प्रमाण है। अलग अलग संरचना वाले अंग जो की एक समान कार्य करने के लिए खुद को अनुकूलित बनाते है जो की विकास को दर्शाता है। जीवाश्म भी विकास का प्रमाण है।

डार्विन का विकास सिध्दान्त 

किसी भी जीवधारी की जनसंख्या एक सीमा के अन्दर ही नियंत्रित करती है जबकि इन जीवधारी में प्रजनन की असीम होती है। इसका कारण आपसी संधर्ष होता है जो की किसी एक जाति के सदस्यों और विभिन्न जातियों के सदस्यों क्षमता के बीच होता है। यह संधर्ष भोजन , स्थान आदि के लिए होता है। इस प्रकार के संधर्ष में व्यष्टिया लुप्त हो जाती है और एक नयी जाति का उद्भव होता है। इस सिध्दान्त को डार्विन का विकास सिध्दान्त कहते है। डार्विन के विकास सिध्दान्त को प्राकृतिक वरण का सिध्दान्त भी कहते है।

डार्विन के विकास सिध्दान्त में निमं बातो पर ध्यान दिया गया। 

1. किसी भी स्पीशीज के अन्दर प्राकृतिक रूप से विविधता होती है और उसी स्पीशीज के कुछ जीवो में अनुकूलित और अधिक विविधता अन्य की सापेक्ष ज्यादा होती है।

2. किसी भी जीवधारी की जनसँख्या सीमित ही रहती है अर्थात एक सीमा रेखा के अन्दर नियंत्रित रहती है।

3. जीवधारी की जनसँख्या सीमित रहने का कारण आपसी संधर्ष होता है जो की एक जाति और अन्य प्रकार की जाति के बीच होता है। यह संधर्ष भोजन , माकन आदि के लिए होता है।

4. जो स्पीशीज वातानुकूलित अर्थात् वातावरण में रहने लायक होती है और इन स्पीशीज में अधिक विविधता भी होती है वे ही अपनी उत्तरजीविता को बनाये रखते है और यह विविधता अपनी आने वाली पीढ़ी को देते है।

5. जब यह विविधताए बहुत अधिक हो जाती है तब यह नयी जाति का उद्भव करती है।

Sbistudy

Recent Posts

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

4 weeks ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

4 weeks ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

4 weeks ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

4 weeks ago

चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi

chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…

1 month ago

भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi

first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…

1 month ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now