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आहार श्रृंखला एवं जाल , आहार जाल , आहार शृंखला एवं जाल में अन्तर , उर्जा प्रवाह का 10% का नियम
food chain and food web in hindi आहार शृंखला एवं जाल :-
विभिन्न जैविक स्तरों पर भाग लेने वाले जीवों की शृंखला आहार शृंखला का निर्माण करती हैं। जीवों की वह शृंखला जिसमे हर एक चरण में पोषी स्तर का निर्माण होता है तथा जिसमे जीव एक दुसरे का आहार करते है। इसी प्रकार विभिन्न जैविक स्तर पर भाग लेने वाले जीवो की इस शृंखला को आहार शृंखला कहते है।
आहार जाल
विभिन्न आहार शृंखलाओं की लंबाई एवं जटिलता में बहुत अंतर होता है। आमतौर पर प्रत्येक जीव दो अथवा अधिक प्रकार के जीवों द्वारा खाया जाता है जो स्वयं अनेक प्रकार के आहार बनाते हैं। अतः एक सीधी आहार शृंखला के बजाय जीवों के मध्य आहार संबंध शाखान्वित होते हैं तथा शाखान्वित शृंखलाओं का एक जाल बनाते हैं जिससे ‘आहार जाल’ कहते हैं।
आहार शृंखला एवं जाल में अन्तर
1.आहार शृंखला में कई पोषी स्तर मिलकर इसका निर्माण करते है।
2. इसमें उर्जा के प्रवाह की दिशा एक रेखीय होती है।
3. आहार शृंखला सामान्यतः तीन अथवा चार चरण की होती है।
आहार जाल
1. कई आहार शृंखला मिलकर आहार जाल का निर्माण करती है।
2. इसमें उर्जा का प्रवाह शाखान्वित होता है।
3. यह एक जाल की तरह होता है जिसमे कई चरण होते है।
आहार शृंखला का प्रत्येक चरण अथवा कड़ी एक पोषी स्तर बनाते हैं। स्वपोषी अथवा उत्पादक जो की अपना भोजन स्वय बनाते है प्रथम पोषी स्तर हैं तथा सौर ऊर्जा का स्थिरीकरण करके उसे विषमपोषियों अथवा उपभोक्ताओं के लिए उपलब्ध कराते हैं। शाकाहारी अथवा प्राथमिक उपभोक्ता दूसरा पोषी स्तर बनाते है। छोटे मांसाहारी अथवा दूसरा उपभोक्ता मिलकर तीसरे पोषी स्तर बनाते है तथा बड़े मांसाहारी अथवा तृतीय उपभोक्ता चौथे पोषी स्तर का निर्माण करते हैं।
हम जानते हैं कि जो भोजन हम खाते हैं हमारे लिए ऊर्जा स्रोत का कार्य करता है तथा विभिन्न कार्यों के लिए ऊर्जा प्रदान करता है। अतः पर्यावरण के विभिन्न घटकों की परस्पर अन्योन्य क्रिया में निकाय के एक घटक से दूसरे में ऊर्जा का प्रवाह होता है। स्वपोषी सौर प्रकाश में निहित ऊर्जा को ग्रहण करके उसे रासायनिक ऊर्जा में बदल देते हैं। यह ऊर्जा संसार के संपूर्ण जैव समुदाय की सभी क्रियाओं के संपादन में सहायक होती है। स्वपोषी से ऊर्जा विषमपोषी एवं अपघटकों तक जाती है
जब ऊर्जा का एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तन होता है तो पर्यावरण में ऊर्जा की कुछ मात्रा का अनुपयोगी ऊर्जा के रूप में ह्नास हो जाता है। पर्यावरण के विभिन्न घटकों के बीच ऊर्जा के प्रवाह होता है
एक स्थलीय परितंत्र में हरे पौधे की पत्तियों द्वारा प्राप्त होने वाली सौर ऊर्जा का लगभग 1% भाग ही खाद्य ऊर्जा में परिवर्तित होता हैं। जब हरे पौधे प्राथमिक उपभोक्ता द्वारा खाए जाते हैं ऊर्जा की बड़ी मात्रा का पर्यावरण में ऊष्मा के रूप में ह्नास होता है, कुछ मात्रा का उपयोग पाचन, विभिन्न जैव कार्यों में, वृद्धि एवं जनन में होता है। खाए हुए भोजन की मात्रा का लगभग 10% ही जैव मात्रा में बदल पाता है तथा अगले स्तर के उपभोक्ता को उपलब्ध हो पाता है। अतः हम कह सकते हैं प्रत्येक स्तर पर उपलब्ध कार्बनिक पदार्थों की मात्रा का औसतन 10% भाग ही उपभोक्ता के अगले स्तर तक पहुँचता है क्योंकि उपभोक्ता के अगले स्तर के लिए ऊर्जा की बहुत कम मात्रा उपलब्ध हो पाती है अतः आहार शृंखला सामान्यतः तीन अथवा चार चरण की होती है।
प्रत्येक चरण पर ऊर्जा का ह्नास इतना अधिक होता है कि चौथे पोषी स्तर के बाद उपयोगी ऊर्जा की मात्रा बहुत कम हो जाती है। निचले पोषी स्तर पर जीवों की संख्या अधिक होती है, अतः उत्पादक स्तर पर यह संख्या सर्वाधिक होती है।
उर्जा प्रवाह का 10% का नियम
एक पोषी स्तर से दुसरे पोषी स्तर में जाने पर केवल 10% उर्जा का ही स्थानातरण होता है जबकि 90% उर्जा वर्त्तमान पोषी स्तर में जैव क्रियाओ में उपलब्ध होती है इसे ही उर्जा प्रवाह का 10% का नियम कहते है।
उदाहरण = माना की किसी उत्पादक में 1000J उर्जा है अत: प्राथमिक उपभोक्ता में 1000J का 10% अर्थात् 100J ही पहुच पाता है तथा प्राथमिक उपभोक्ता से दुसरे उपभोक्ता में 100J का 10% अर्थात 1J ही जाता है।
आहार शृंखला में उर्जा प्रवाह चक्रीय न होकर रेखीय होती है क्योंकी उर्जा का प्रवाह एक ही दिशा में होता है अत: इसमें शाखान्वित शृंखलाओं के नहीं बनने के कारण उर्जा का प्रवाह रेखीय होता है।
आहार शृंखला में अपमार्जको की भूमिका
विधटनकारी जीव जो की उत्पादको तथा उपभोक्ताओं के मरे हुए शरीर पर क्रिया करते है तथा इन्हें सरल अकार्बनिक प्रदाथ में परिवर्तित कर देते है। वे जीव जो की मरे हुए जीव, पोधे तथा अन्य कार्बनिक पदार्थ के जटिल कार्बनिक पदार्थों को सरल अकार्बनिक पदार्थों में बदल देते हैं अपमार्जक तथा अपधटक कहलाते है। अपमार्जको कुछ पदार्थ को अवशोषित कर लेते है तथा कुछ पदार्थों को वातावरण में पोषक तत्वों के रूप में छोड़ दिया जाता है जिसका उपयोग उत्पादक दवारा कर लिया है। अत: अपमार्जन कुछ पदार्थों को मुदा में छोड़ देते है जिसके कारण यह उपजाऊ हो जाती है।
आहार शृंखला के तीन चार चरण होने के कारण
जब हम एक पोषी स्तर से दुसरे पोषी स्तर में जाते है इसकी उर्जा कम होती जाती है अत: हर एक चरण पर उर्जा कम होती जाती है। तीन चार चरण तक पहुचते पहुचते उर्जा ख़त्म हो जाती है।
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