अर्थात अभिकारक की सांद्रता को जितना गुना बढाया जाता है अभिक्रिया का वेग भी उतने गुना ही बढ़ जाता है।
माना एक सामान्य रासायनिक अभिक्रिया निम्न है –
A → उत्पाद
चूँकि यह प्रथम कोटि की अभिक्रिया है इसलिए इस अभिक्रिया का वेग क्रियाकारक की सांद्रता के प्रथम घात के समानुपाती होता है।
वेग = d[A]/dt ∝ [A]1
अत: इस अभिक्रिया का वेग निम्न होगा
यहाँ ऋणात्मक चिन्ह यह दर्शाता है कि क्रियाकारक की सांद्रता समय के साथ कम होती जाती है , तथा t समय पर क्रियाकारक की सांद्रता [A] है। यहाँ k वेग नियतांक है जिसे समानुपाती नियतांक या स्थिरांक भी कहते है।
इस समीकरण को प्रथम कोटि की अभिक्रिया की अवकल वेग समीकरण कहते है।
इस समीकरण को पुन: व्यवस्थित करने पर
माना अभिक्रिया में क्रियाकारक की प्रारंभिक सांद्रता अर्थात t = 0 पर [A]O है और t = t समय पर अभिक्रिया के क्रियाकारक की सांद्रता [A] है।
इस समीकरण का समाकलन करने पर –
समाकलन को हल करने पर
यहाँ समीकरण 3 , सीधी रेखा की लाइन y=mx+c के समान प्राप्त होती है अत: जब समय t और log([A]O/[A]) के मध्य ग्राफ खींचने पर यह एक सीधी रेखा में निम्न अनुसार प्राप्त होती है –
यहाँ इसका ढाल k/2.303 होता है।
प्रथम कोटि की अभिक्रिया के वेग नियतांक या स्थिरांक k की इकाई min–1 or s-1 होती है।