हिंदी माध्यम नोट्स
भारत में सबसे पहले स्थापित लौह इस्पात कंपनी कौन है first iron and steel industry of india in hindi
first iron and steel industry of india in hindi भारत में सबसे पहले स्थापित लौह इस्पात कंपनी कौन है ? was established in which year and by whom ?
लौह और इस्पात उद्योग
भारत में लोहा पिघलाने की यूरोपीय प्रक्रिया शुरू करने का प्रयास उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ में किया गया। बंगाल आयरन एण्ड स्टील कंपनी लिमिटेड पहली सफल कम्पनी थी। टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी ने जमशेदपुर में (तत्कालीन साकची) 1908 में उत्पादन शुरू किया। इसकी सफलता से प्रभावित होकर मेसर्स बर्न एण्ड कम्पनी ने इंडियन आयरन एण्ड स्टील कम्पनी की स्थापना की जिसने अपने हीरापुर कारखाने में 1922 में ढलुआ लोहा (पिग आयरन) का उत्पादन शुरू किया।
द्वितीय विश्व युद्ध के आरम्भ के समय, लौह और इस्पात का मूल्य सरकार के नियंत्रण में आ गया। तथापि, मूल्य निर्धारण में उत्पादन के लागत में वृद्धि का ध्यान रखा जाता था और थोक पूँजी (संघटित पूँजी) पर 8 प्रतिशत के प्रतिलाभ की अनुमति थी। उद्योग ने युद्धकालीन माँग में वृद्धि का लाभ उठाया तथा इस्पात इन्गॉट का उत्पादन 1 मिलियन टन से बढ़ा कर 1.34 मिलियन टन तक कर दिया। किंतु, चूँकि युद्ध के दौरान उत्पादक क्षमता का विस्तार नहीं किया जा सका अतिरिक्त उत्पादन सिर्फ विद्यमान क्षमता का अति दोहन करके ही किया गया। इसके कारण युद्ध के पश्चात् तथा स्वतंत्रता प्राप्ति के समय संयंत्रों और मशीनों की पुनःस्थापना की समस्या आई।
उद्योग की सामान्य संरचना
उद्योगों का वर्गीकरण दो प्रकार से किया जाता है। इसमें से एक सामान्य क्षेत्रगत वर्गीकरण है जैसे खनन् और पत्थर तोड़ना, विनिर्माण, और विद्युत एवं गैस । दूसरा वर्गीकरण सामान्यतया उपयोग आधार (जैसे मूल वस्तुएँ, पूँजीगत वस्तुएँ, मध्यवर्ती (अर्धनिर्मित) वस्तुएँ, उपभोक्ता वस्तुएँ) और आदान आधार (जैसे कृषि आधारित, धातु आधारित, रसायन आधारित, परिवहन उपकरण, विद्युत और संबंधित)।
किंतु स्वतंत्रता प्राप्ति के समय उद्योग इतने विविधिकृत नहीं थे कि उपर्युक्त वर्गीकरण को उन पर लागू किया जा सके जैसा कि हम वर्तमान औद्योगिक संरचना के संबंध में कर सकते हैं। विनिर्माण उद्योगों में, सूती वस्त्र उद्योग, चर्म वस्तुएँ, कागज, सीमेंट और लौह तथा इस्पात सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उद्योग थे। वर्ष 1951 में प्रारम्भ पहली पंचवर्षीय योजना से पहले भारत में औद्योगिक विकास मुख्य रूप से उपभोक्ता वस्तु क्षेत्र तक ही सीमित था। संभवतः सीमेण्ट और लौह तथा इस्पात उद्योग ही एक मात्र महत्त्वपूर्ण मध्यवर्ती (अर्धनिर्मित) वस्तु उत्पादक थे। कोयला, विद्युत, अलौह धातु, रसायन और अल्कोहल जैसे अन्य मध्यवर्ती वस्तु उद्योग भी स्थापित किए गए थे किंतु उनका उत्पादन कम था क्योंकि उत्पादक क्षमता जरूरत से काफी कम थी। जहाँ तक पूँजीगत वस्तु क्षेत्र का संबंध है, स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् एक छोटी शुरुआत की गई थी।
स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व दुर्बल औद्योगिक आधार, जिसका कारण मुख्य रूप से अंग्रेजी शासन द्वारा औपनिवेशिक शोषण था, द्वितीय विश्व युद्ध के समय पूरी तरह से प्रकट हो गया जब उस समय के प्रमुख उद्योगों जैसे वस्त्र, कागज और चर्म, जिन्हें बड़े पैमाने पर रसायनों की जरूरत पड़ती थी, कि आपूर्ति ठप हो गई। ठीक उसी समय, फ्रांस की पराजय के साथ, ब्रिटिश फैक्टरियों पर बमबारी और अनेक ब्रिटिश जहाजों को समुद्र में डुबो देने की घटनाओं से ब्रिटिश शासकों को यह बात समझ में आ गई कि भारत को यथासंभव शीघ्रातिशीघ्र मित्र देशों के लिए औद्योगिक आधार के रूप में विकसित करने की आवश्यकता है। सीमेण्ट और लौह तथा इस्पात जैसे औद्योगिक उत्पादों की माँग कल्पनातीत रूप से बढ़ गई। नई फर्में जिन्हें पहले उत्पादन आधिक्य का खतरा था वहीं अब उनके सामने तैयार बाजार था। पहले से ही स्थापित फर्में भी अपनी बिक्री बढ़ा सकती थीं तथा प्रायः सभी उद्योगों ने पूरी क्षमता का उपयोग किया। युद्धकालीन माँग को भारी सरकारी परिव्यय जिसमें 1939-40 और 1944-45 के बीच 400 प्रतिशत वृद्धि हुई थी, से भी काफी समर्थन प्राप्त हुआ।
पहले से ही स्थापित सीमेण्ट, वस्त्र, लौह तथा इस्पात और चीनी उद्योगों का युद्धकाल में काफी विस्तार हुआ। निर्माण कार्य में उपयोग की जाने वाली सामग्री होने के कारण सीमेण्ट की माँग में वृद्धि और विकास सहज ही समझा जा सकता है। लौह तथा इस्पात उद्योग का भी विकास हुआ किंतु इसकी गति धीमी थी। वर्ष 1942 तक टाटा ने इस्पात इंगॉट क्षमता दस लाख टन तक कर लिया था और स्टील कारपोरेशन ऑफ बंगाल ने 2.7 लाख टन की क्षमता का निर्माण कर लिया था।
जिन नए उद्योगों ने युद्ध काल के दौरान उत्पादन शुरू किया था वे थे लौह मिश्र धातु (फेरो एलॉयज), अलौह धातु (जैसे ताम्बा, ताम्बे की चादरें, तार और केबुल्स), पम्पस, सिलाई मशीन, मशीन टूल्स, साइकिल और रसायन जैसे कॉस्टिक सोडा, क्लोरीन और सुपर फॉस्फेट।
युद्ध-सामग्रियों की भारी माँग और भारत में बृहत् उद्योगों की अपेक्षाकृत लघु क्षमता के कारण छोटे उत्पादकों पर अधिक से अधिक भरोसा किया गया जिन्होंने भारी और बढ़ती हुई मात्रा में कम्बल, तम्बू, पैराशूट, रेशमी वस्त्र, चमड़े और रबर की वस्तु, सुखतल्ला और जुराब की आपूर्ति की।
तथापि, कुल मिलाकर, भारत में युद्धकालीन औद्योगिक विकास संतुलित नहीं था। यह प्रगति मुख्यतः उपभोक्ता वस्तुओं तक ही सीमित रही और पूँजीगत वस्तुओं का अत्यंत अल्प विकास हुआ।
युद्ध समाप्ति के ठीक बाद की अवधि राजनीतिक अनिश्चितता, दंगों, शरणार्थियों के बड़ी संख्या में आगमन और विभाजन की साक्षी थी जिसने न सिर्फ औद्योगिक विकास अपितु, सामान्य आर्थिक विकास को भी अस्त-व्यस्त कर दिया। विभाजन से सूती वस्त्र और जूट वस्त्र को भारी नुकसान हुआ क्योंकि उनके कच्चे मालों के अधिकांश स्रोत पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में चले गए। जूट की सारी मिलें भारत में रह गईं जबकि कच्चे जूट के उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी मात्र 19 प्रतिशत रह गई। दूसरी ओर, सूती वस्त्र के मामले में भारत में 99 प्रतिशत मिलें रह गई थीं जबकि यहाँ मात्र 60 प्रतिशत कच्चा कपास रह गया था। मुद्रास्फीति और राजनीतिक कलह ने औद्योगिक अशांति को पराकाष्ठा पर पहुँचा दिया और हड़ताल तथा तालाबंदी का बोलबाला हो गया। वर्ष 1950 के आसपास, प्रथम पंचवर्षीय योजना की शुरुआत के समय देश की अर्थव्यवस्था में चैतरफा परिवर्तन आया।
बोध प्रश्न 1
1) सही उत्तर ( ) निशान लगाइए:
क) वर्ष 1951 में प्रथम पंचवर्षीय योजना आरम्भ होने से पूर्व भारत में औद्योगिक विकास मुख्य रूप से निम्नलिखित तक सीमित था:
प) उपभोक्ता वस्तु क्षेत्र
पप) मध्यवर्ती वस्तु क्षेत्र
पपप) पूँजीगत वस्तु क्षेत्र
ख) वर्ष 1939-40 से 1944-45 के बीच सरकारी परिव्यय में वृद्धि हुई:
प) 40 प्रतिशत
पप) 400 प्रतिशत
पपप) 100 प्रतिशत
2) युद्धकाल के दौरान पहले से ही स्थापित किन उद्योगों का विस्तार हुआ? (एक वाक्य में उत्तर दीजिए।)
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय प्रमुख उद्योगों का कार्यनिष्पादन
युद्धकाल के दौरान सीमेण्ट, लौह तथा इस्पात, चीनी और कागज जैसे उद्योगों के उत्पादन में आकर्षक वृद्धि के बावजूद भी औद्योगिक विकास का समग्र विस्तार मामूली ही था। तालिका 7.1 में 1937-45 के दौरान कुछ चयनित उद्योगों के औद्योगिक उत्पादन का
तालिका 7.1ः औद्योगिक उत्पादन का सामान्य सूचकांक
उद्योग 1997 1945
इस्पात 100 142.9
रसायन 100 142.9
कागज़ 100 142.9
सीमेण्ट 100 142.9
सूती वस्त्र 100 142.9
कुल 100 142.9
स्रोत: रिपोर्ट ऑफ इंडियन ‘फिस्कल कमीशन‘ 1939-40, खंड-1
सूचकांक दिया गया है। तथापि, औद्योगिक उत्पादन के सामान्य सूचकांक में मात्र 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो यू एस और कनाडा की तुलना में अत्यन्त ही मामूली थी क्योंकि यू एस में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक 1939 में 96 से बढ़ कर 1944 में 208 तथा कनाडा में इसी अवधि के दौरान 101 से बढ़कर 184 हो गया था।
इस भाग में हम स्वतंत्रता प्राप्ति के ठीक पहले और उसके ठीक पश्चात् कुछ चयनित उद्योगों के कार्य निष्पादन की समीक्षा संक्षेप में करेंगे।
रसायन उद्योग
प्रथम विश्व युद्ध से पहले, भारत में शायद ही रसायनों का कोई उत्पादन होता था। सूती वस्त्रों और कागज उद्योगों में आवश्यक रसायनों की सारी आवश्यकताएँ, आयात से पूरी की जाती थी। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान आयात के अस्त-व्यस्त हो जाने के कारण कुछ रसायन संयंत्रों का प्रादुर्भाव हुआ। किंतु इनका नियोजन कौशलपूर्ण नहीं था और परिणामस्वरूप युद्ध के बाद विदेशी प्रतिस्पर्धा के पुनः शुरू होने पर, इनमें से कई संयंत्र आर्थिक रूप से अव्यवहार्य रह गए।
द्वितीय विश्व युद्ध ने एक बार फिर इस उद्योग के विस्तार के लिए अनुकूल वातावरण तैयार कर दिया। घरेलू उत्पादन में वृद्धि होने लगी तथा कुछ रासायनिक मदों में विविधिकरण भी शुरू हुआ। युद्ध के बाद इन नए रसायन संयंत्रों में से कई को 1945 में स्वीकार की गई टैरिफ नीति के अंतर्गत संरक्षण प्राप्त हुआ। स्वतंत्रता-पश्चात् अवधि में देश में रसायनों के उत्पादन में और विविधिकरण हुआ।
बोध प्रश्न 2
1) आप स्वतंत्रता प्राप्ति के ठीक बाद भारत में जूट उत्पादन के खराब कार्य निष्पादन के लिए किन कारणों को उत्तरदायी मानते हैं? (एक वाक्य में उत्तर दें।)
2) बताएँ कि क्या निम्नलिखित वक्तव्य सही हैं या गलत हैं:
क) शुगर सिंडिकेट संयुक्त विपणन व्यवस्था थी।
ख) द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सीमेण्ट उद्योग का विकास मुख्य रूप से घरेलू माँग से प्रेरित था।
ग) स्वतंत्रता प्राप्ति के समय, कच्चे कपास के उत्पादन का 40 प्रतिशत हिस्सा पाकिस्तान में चला गया जबकि 99 प्रतिशत सूती वस्त्र मिलें भारत में रह गई।
3) भारत में पहले सफल लौह और इस्पात कंपनी का नाम बताइए।
4) स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व भारत में सीमेण्ट उद्योग में प्रमुख सीमेण्ट निर्माताओं का नाम बताइए।
5) प्रथम विश्व युद्ध से पहले भारत में रसायन उद्योग नहीं फल-फूल सका, क्यों?
बोध प्रश्नों के उत्तर अथवा संकेत
बोध प्रश्न 1
1) (क) प) (ख) पप)
2) सीमेण्ट, वस्त्र, लौह तथा इस्पात और चीनी, भाग 7.2 पढ़िए।
बोध प्रश्न 2
1) भाग 7.3 पढ़िए।
2द्ध (क) सही (ख) गलत (ग) सही।
4द्ध उपभाग 7.3.3 पढ़िए।
4द्ध उपभाग 7.3.5 पढ़िए।
5) उपभाग 7.3.6 पढ़िए।
Recent Posts
सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है
सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…
मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the
marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…
राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi
sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…
गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi
gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…
Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन
वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…
polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten
get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…