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fermented milk in hindi , किण्वित दुग्ध किसे कहते हैं , दूध डेयरी उत्पाद क्या है (Dairy products)

पढों fermented milk in hindi , किण्वित दुग्ध किसे कहते हैं , दूध डेयरी उत्पाद क्या है (Dairy products) ?

डेयरी उत्पाद (Dairy products)

मवेशियों के थन से प्राप्त प्राकृतिक दुग्ध प्रायः शुद्ध व जीवाणु रहित होता है, यदि मवेशी पूर्णत: स्वस्थ हो। सामान्यतः मवेशियों के रहने के स्थल साफ-सुथरे नहीं होते। इनके थनों पर लेक्टिक अम्ल उत्पन्न करने वाले जीवाणु उपस्थित रहते हैं अतः दुध वातावरण के सम्पर्क में आते ही संक्रमणित होने लगता है। आयुर्वेद में मवेशी के थन से निकले दुग्ध को ” दरोशना दुग्ध” (daroshna milk) कहा गया है, इसमें सभी संगठन तत्व प्राकृतिक अवस्था में होते हैं अतः यदि गर्म जल से थनों को धोकर साफ बर्तन में, दुग्ध निकालने वाला, गर्म जल से हाथों को धोकर दुग्ध निकाले एवं इसका सेवन किया जाये तो उत्तम माना जाता है, इसका pH 6.7 – 6.9 व आपेक्षिक घनत्व 1.035 होता है, इसमें लेक्टोज, वसा, केसिन, एब्यूमिन, लवण तथा विटामिन C एवं D पाये जाते हैं।

दुग्ध में उपस्थित लेक्टोज शर्करा व अन्य संगठक तत्व अनेक जीवाणुओं के वृद्धि उचित माध्यम रखते हैं जो लेक्टोज शर्करा का किण्वन कर लेक्टिक अम्ल में बदलकर खट्टा, गन्ध युक्त बना देते हैं। यद्यपि इस प्रकार इसका pH कम हो जाता है किन्तु इस स्थिति में भी लेक्टिक अम्ल बनाने वाले जीवाणु सक्रिय बने रहते हैं । दुग्ध से अनेकों प्रकार के डेयरी पदार्थ, व्यंजन, मिठाई आदि बनाई जाती हैं। इन क्रियाओं में अनेक जीवाणु भाग लेते हैं किन्तु लेक्टोबेसिलस (Lactobacillus ) एवं स्ट्रेप्टोकॉकस (Streptococcus) के विभेद अधिक महत्वपूर्ण हैं। दुग्ध को अधिक समय तक जीवाणु रहित बनाये रखने हेतु पास्तेरीकरण की क्रिया करते हैं। इसका वर्णन भोजन परीक्षण के अन्तर्गत किया गया है। दुग्ध के मुख्य उत्पादन निम्नलिखित हैं-

( 1 ) किण्वित दुग्ध (Fermented milk) : दुग्ध से अनेकों स्वादिष्ट पेय व उत्पादन बनाने में अनेकों जाति के जीवाणु भाग लेते हैं। बटर मिल्क (butter milk) तथा सॉर मिल्क ( butter milk and sour milk) कुछ देशों में अधिक लोकप्रिय दुग्ध से बने पेय पदार्थ हैं। इन पेय पदार्थों में लैक्टिक अम्ल किण्वन द्वारा उत्पन्न होता है। स्ट्रेप्टोकॉकस (Streptococcus), लेक्टोबेसिलस तथा ल्युकोनोस्टॉक (Leuconostoc) अकेले या मिलकर किण्वन करते हैं अतः इसका स्वाद विशेष प्रकार का हो जाता है। ये सूक्ष्मजीव दुग्ध की लेक्टोस शर्करा को लेक्टिक अम्ल में बदल देते हैं, जिससे दुग्ध खट्टा होकर केसिन का अवक्षेप बनाता है । किण्वित दुग्ध औषधिक महत्त्व का होता है। मैटशिन कॉफ ( Metchin Koff, 1908) ने पाया कि कालीफार्म्स (Coliforms) तथा क्लोस्ट्रिडियम जाति (Clostridium.sp.) के जीवाणु आन्त्र में बीमारियाँ फैलाते हैं और अम्ल उत्पन्न करते हैं। यह क्रिया लेक्टोबैसिलस बलगेरिकस (Lactobacillus bulgaricus) द्वारा भी की जा सकती है। यह प्रोटीन का विघटन नहीं करता तथा शीघ्र ही मर जाता है, अतः उपयोगी हो सकता है। लेक्टोबैसिलय एसिडोफिलस (Lactobacillus acidophyllus) किण्वत दुग्ध को विशिष्ट स्वादयुक्त बना देता है। लेक्टोबैसिलस बैसिलाई (Lactobacillus bacilli) युक्त दुग्ध प्रतिजैविक औषधियों के बाद देने से आन्त्र में पाचन को सामान्य बना देता है । इसी प्रकार केफिर, क्यूमिस, बल्गेरियन, टेयटी, मीठा अम्लीय तथा लेबिन प्रकार के किण्वित दुग्ध का उपयोग विश्व के अनेक भागों में किया जाता है। प्रत्येक प्रकार के दुग्ध में गन्ध एवं स्वाद विशिष्ट प्रकार का होता है जो भाग लेने वाले जीवाणु को जाति एवं लिये गये समय तथा अन्य कारकों ताप, pH आदि पर निर्भर करता है।

(2) दही (Curd) : पास्तेरीकृत दुग्ध में जामन आरम्भकारी संवर्धन (starter culture) मिलाकर दुग्ध से दही बनाने की परम्परा रही है। जामन वास्तव में स्ट्रेप्टोकॉकस थर्मोफिलस (Streptococcus thermophilus ) तथा लेक्टोबैसिलस बलगेरिकस (Lacyobacillus bulgaricus) का संवर्धित मिश्रण होता है। किण्वन की क्रिया अर्थात् परिपक्वन या दही जमाने की क्रिया 42° – 46 °C पर होती है। दही की गन्ध व स्वाद विशिष्ट प्रकार का होता है। यह लेक्टिक अम्ल व ऐसिटेल्डिहाइड बनने के कारण होता है। लेक्टिक अम्ल दुग्ध को स्कन्धित कर केसिन के अवक्षेप के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। अन्य सूक्ष्मजीवों तथा में यीस्ट व फफूंदी के कारण स्वाद में अनेक परिवर्तन हो जाते हैं। दही को इसी रूप में या मठ्ठा अथवा छाछ बनाकर उपयोग में लाते हैं। इससे अनेक प्रकार की मिठाईयाँ भी बनाई जाती हैं। छाछ या मठ्ठा बनाने हेतु मलाई उतारे हुए (skimmed) पास्तेरीकृत दुग्ध का किण्वन किया जाता है। इस क्रिया में लेक्टोबेसिलस जाति के जीवाणु भाग लेते हैं।

व्यापारिक स्तर पर रही निर्माण हेतु उच्च स्तर का आरम्भकारी संवर्धन जिसमें लैक्टोकॉकस लैक्टिंस, ले. डाइएसिटिलैक्टिस तथा ल्यूकोनोस्टक स्ट्रिोवारम होते हैं, काम में लाया जात है। शुद्ध व गर्म कर ठण्डे किये गये दुग्ध में यह जामन 1% डालकर 22-50°C पर 8-10 घण्टे तक रख कर दही प्राप्त किया जाता है। इस जामन का उपयोग क्रीम के परिपक्वन हेतु भी किया जाता है। श्रीखण्ड नाम भोज्य पदार्थ इसी से बनाया जाता है।

(3) योगर्ट (Yoghurt) : यह दुग्ध को उबाल कर गाढ़ा एवं ठण्डा कर लेने के पश्चात् इसमें लेक्टोबेसिलस बलगेरिक्स (Lactobacillus bulgaricus) स्ट्रेप्टोकाकस थर्मोफिलस 1:1 में जीवाणुओं के संवर्धन को मिला कर बनाया जाता है, यह अर्धतरल जैली समान पेय मिश्रण 42°C पर 3-4 घण्टे तक रखने पर तैयार होता है जिसमें एल्कोहल नहीं पाया जाता है। योगर्ट का स्वाद कुछ तीखा होता है अतः इसमें चीनी एवं मेवा मिला कर पेश किया जाता है। पश्चिमी देशों का यह पसन्दीदा पेय पदार्थ है। इसकी आइसक्रीम भी बनायी जाती है।

लेबेन (Leben) गाय अथवा बकरी के दूध से बनाया जाता है। किण्वन हेतु लेक्टोबेसिलि व यीस्ट का उपयोग किया जाता है। लेक्टिक अम्ल व एल्कोहल युक्त यह उत्पाद मिश्र में बड़े चाव से खाया जाता है । क्युमिस (Kumiss) घोड़ी या ऊँटनी के दूध से किण्वन द्वारा तैयार किया जाता है। यह रूस में मन पसन्द भोजन के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। मेटजून (Metzoon) आर्मेनिया में योगर्ट की तरह बनाया जाता है। यह एक प्रकार का खट्टा दूध ही होता है । केफिर (Kefir ) दूध में केफिर के दाने मिलाकर बनाया जाता है जो लगभग 10 दिनों में फूल जाते हैं. इसमें उपस्थित यीस्ट व लेक्टोबेसिलाई किण्वन करते हैं। यह औषधि के रूप में इस्तेमान किया जाता है।

(4) मक्खन (Butter) : खट्टे-मीठे दुग्ध से क्रीम बनाकर मथने के उपरान्त मक्खन बनाने की क्रिया आदिकाल से उपयोग में लायी जा रही है। इस प्रकार दुग्ध से वसा पृथक् हो जाती है एवं छाछ (बटर मिल्क) बची रहती है जो एक उपयोगी भोज्य पदार्थ है। दुग्ध के खट्टा होने पर बसा की मात्रा बढ़ जाती है तथा विशिष्ट खुशबू उत्पन्न होती है। मक्खन को 71°C तक गर्म करने पर लाइपेस नष्ट हो जाता है और मक्खन का संग्रह किया जाता है। इस क्रिया में स्ट्रे. लेक्टिस (Streptococcus lactis) स्ट्रे. क्रेमोरिस (Streptococcus cremoris), ल्यूकोनोस्टॉक सिट्रोवोरम (Leuconostoc sitrovorum) तथा ल्यू. डेक्स्टूनिकम (Leu dextronicum), भाग लेते हैं । मक्खन में नमक डालकर गर्म करने के उपरान्त जीवाणु उत्पन्न नहीं होते हैं। व्यावसायिक तौर पर तैयार मक्खन में वसा लगभग 80%, जल 16%, नमक 2% शेष दही व अन्य पदार्थ होते हैं।

(5) पनीर (Cheese) : किण्वित दुग्ध से बनाया जाता है जिसका उपयोग भी पिछले 2000 वर्षों से किया जा रहा है। पनीर बनाने में अमेरिका अग्रणी है, जहाँ प्रति वर्ष 1.5 टन से अधिक पनीर का उत्पादन किया जाता है। पनीर बनाने में दुग्ध से केसिन को पृथक् कर लिया जाता है, शेष रहे जल में लेक्टोज होता है। पनीर बनाने में लगभग 100 से अधिक प्रकार के जीवाणु भाग लेते हैं किन्तु 18 जाति के जीवाणु अधिक सक्रिय रूप से क्रिया करते हैं। पनीर की गुणवत्ता, इसकी कठोरता, बनाने की विधि एवं बनाने वाले जीवाणुओं तथा फफूंद पर निर्भर करती है। इस क्रिया से अनेकों प्रकार की मिठाइयाँ तथा भोज्य पदार्थ बनाये जाते हैं। इस क्रिया में स्ट्रे. लेक्ट्रिस (Str. lactis) स्ट्रे. क्रेमोरिस (Str. cremoris), स्ट्रे. थर्मोफिलस तथा लैक्टोबैसिलस (Str. thermophilus and Lactobacillus) जाति के जीवाणु भाग लेते हैं।

पनीर निर्माण भी कला के रूप में माना जाता है। विश्व में पनीर की 300-400 किस्में गुणवत्ता, गन्ध, स्वाद, जल की मात्रा, कोमलता, परिपक्वन प्रक्रिया के आधार पर प्रचलित है। पनीर वास्तव में दुग्ध का आशिक परिवर्तन के उपरान्त दुग्ध वसा व केसिन का बना पदार्थ है जिसमें दुग्ध जल की सीमित मात्रा पायी जाती है। पनीर बनाने की आधारभूत विधि लगभग सभी किस्मों के पनीर में समान ही हैं किन्तु प्रत्येक प्रकार के पनीर में भाग लेने वाले सूक्ष्मजीवों के कारण होने वाली जैव रासायनिक क्रियाओं के कारण विशिष्टता पायी जाती है। पनीर निर्माण के चार कारण हैं-

(a) दुग्ध का फाड़ना (Curdling of milk) : इसके लिये दुग्ध में आरम्भिक संवर्धन हल्के गर्म दुग्ध में मिलाते हैं। स्ट्रे. लेक्टिस, स्ट्रे. क्रिमोरिस लगभग 6 घंटे तक 31°C पर किण्वन कर pH 4.6 उत्पन्न कर देते हैं। आरम्भिक संवर्धन हेतु लेक्टोबेसिलस लेक्टिस, लेक्टोबेसिलस बलगेरिकस एवं ले. हेलोटिक्स (Le. heloeticus) एवं रेनिन एन्जाइम का उपयोग करते हैं अतः केसिन का अवक्षेप बन जाता है व दुग्ध फट जाता है। इस प्रकार केसिन अवक्षेप व श्वेत पारदर्शी तरल व्हे (whey) बन जाता है इस क्रिया को स्कंदक निर्माण भी कहते हैं। व्हे में 93% जल व 5% लेक्टोज एवं अन्य पदार्थ होते हैं।

(b) केसिन अवक्षेप में नमी हटाना (Removal of moisture from curd) : विभिन्न किस्मों के पनीर में नमी की मात्रा भिन्न होती है अतः आवश्यकतानुसार इसे कम किया जाता है। अवक्षेप को कपडे में लपेट कर भारी प्रेस के नीचे दबाकर अथवा गर्मी देकर अवक्षेप को इच्छित आकार दिया जाता है। इस क्रिया को दही का पृथक्करण (separation of curd) भी कहते हैं।

(c) नमक लगाना (Salting) : निर्माण के किसी न किसी चरण में नमक (NaCl) मिलाया जाता है जो नमी का निर्धारण तो करता है तथा विशिष्ट गन्ध भी उत्पन्न करता है, इसके उपरान्त अनावश्यक सूक्ष्मजीव भी पनीर पर वृद्धि नहीं करते।

(d) परिपक्वन (Ripening) : ठोस या अर्ध ठोस पनीर को सूक्ष्मजीवो के द्वारा परिपक्वन की क्रिया हेतु बन्द कक्षों में रखते हैं, जहाँ उचित, ताप, pH व विशिष्ट जाति के संवर्धित सूक्ष्मजीव उपस्थित रहते हैं। इस प्रकार अनेक किस्मों के पनीर तैयार किये जाते हैं।

दुग्ध को फाड़ने हेतु प्रयुक्त माध्यम (लेक्टिक अम्ल या रेनिन ) के अनुसार पनीर की दो मुख्य किस्में हैं-

  1. अम्लीय – दही पनीर या कॉटेज पनीर (cottage cheese)
  2. रेनिन – दही पनीर या रेनट पनीर (rennet cheese) नमी के आधार पर पनीर तीन प्रकार के होते हैं-

(i) नर्म पनीर (Soft cheese) : इसमें 50-60% जल की मात्रा होती है, यह अधिक समय तक सुरक्षित नहीं रखा जा सकता है क्योंकि सूक्ष्मजीव इस पर शीघ्रता से वृद्धि करने लगते हैं।

(ii) अर्ध नर्म पनीर (Semi soft cheese) : इसमें जल की मात्रा 45% तक होती है। पनीर को कुछ समय पका कर जल की मात्रा सीमित कर दी जाती है, इसके उपरान्त परिपक्वन व संसधित (processing) कर विशिष्ट प्रकार के पनीर बनाये जाते हैं।

सारणी 27.1: पनीर के विभिन्न प्रकार

निवेशित सूक्ष्मजीव

 

क्र.

 

पनीर की किस्म

 

प्रारम्भिक

 

परिपक्वन

 

नमी के आधार पर विभाजन

 

1. सामान्य पनीर

 

स्ट्रे. लेक्टिस

लेक्टोबेसिली

 

नर्म, परिपक्वत

 

2. रेनट चीज

काममबर्ट चीज

 

रेनिन एन्जाइम

 

जिओट्राइकम केन्डीडम

पेनिसिलयम

कार्मिमबर्टी

 

नर्म, परिपक्वत

 

3. अमेरिकन या चेडर चीज

 

 

स्ट्रे. लेक्टिस

स्ट्रे. क्रेमोरिस

 

लेक्टोबेसिलस

स्ट्रे. ड्यूरन्स

 

कड़ा,

परिपक्वत

 

4. रोकफर्ट

 

स्ट्रे.. ड्यूरन्स

 

पे. रोकफोर्टी

 

अर्ध नर्म, परिपक्वत

 

5. स्विस चीज स्ट्रे. थर्मोफिलस प्रोपिओनिक

जीवाणु

 

छिद्रित पनीर गैस छिद्रों के कारण

 

 

6. पारमेसन चीज लेक्टोबैसिली

 

7. एडम चीज

 

लेक्टोबैसिली

 

प्रोपिओनिक

जीवाणु

 

छिद्रित पनीर गैस छिद्रों के कारण

 

 

 

(iii) कड़ा पनीर (Hard cheese) : पनीर को पका कर जल की मात्रा 40% ही रखी जाती है, यह अधिक समय तक सुरक्षित बना रहता है, इसका परिपक्वन एवं संसाधित कर अन्य प्रकार के पनीर बनाये जाते हैं।

भारत में अमूल डेयरी द्वारा उत्पादित अमेरिकन पनीर का चेडर चीज (cheddar cheese) है जो कड़े पनीर को जीवाण्विक क्रियाओं द्वारा परिपक्वन एवं संसाधित कर बनाया जाता है। स्विस चीज (Swiss cheese) थर्मोफिलिक जीवाणुओं व प्रोपिओनिक अम्ल जीवाणुओं द्वारा बनाया जाता है। रॉकफर्ट चीज Roquefort cheese) भेड़ के दूध से बनाया जाता है जो हरे-नीले रंग का होता है, यह पेनिसिलियम रॉकफोर्टी (Penicillinum requefortii) नामक कवक के द्वारा संसाधिक होता है, इसमें उपस्थित निश्चित आमाप के वसा बन्दकों पर कवक के एन्जाइम क्रिया कर विशिष्ट गंध व रंग उत्पन्न करते हैं। कामिमबर्ट चीज (comembert cheese), जीओट्राइकम केन्डीडम (Geotricum candichum) एवं पेनिसिलियम कामिमबर्टी (P. comemberti) को चीज पर वृद्धि करा कर बनाया जाता है । सारणी 27.1 में पनीर के मुख्य प्रकारों का वर्णन किया गया है।

(6) आइसक्रीम (Ice cream) : आधुनिक समाज में आइसक्रीम का चलन अत्यधिक है, इसे तैयार करने हेतु गर्म दुध में पायसी कारीकारक ग्लिसराल मोनोस्टेरेट एस्टर, स्थायीकारी कारक सेल्यूलोज गम, ग्वार गम, सोडियम एल्जीनेट, क्रीम आदि मिलाकर ठण्डा करते हैं। यह स्वादिष्ट जायकेदार एवं अनेकों प्रकार की खुशबू डालकर बनायी जाती है। इसमें क्रीम शक्कर व कुछ अन्य रंग वाले पदार्थ, चाकलेट, मेवे, खुशबू वाले पदार्थ आदि होते हैं । आइसक्रीम में 8-14% वसीय पदार्थ होते हैं। इसकी खुशबू का कारण इसमें कुछ अहानिकारक जीवाणुओं का उपस्थित होना भी है। क्रीम (cream) दुग्ध से अपकेन्द्रण द्वारा वसा को पृथक कर बनाते हैं जिसका उपयोग आइसक्रीम व अन्य व्यंजन बनाने में किया जाता है। आइसक्रीम को 20 से – 28°C तापमान पर रखा जाता है।

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