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fermented food in hindi , किण्वित भोजन क्या है , किण्वित खाने के लाभ बताइए , परिभाषा किसे कहते हैं
पढ़िए fermented food in hindi , किण्वित भोजन क्या है , किण्वित खाने के लाभ बताइए , परिभाषा किसे कहते हैं ?
भोजन, पेय एवं जैवतकनीकी (Food, Drinks and Biotechnology)
विश्व की बढ़ती हुई आबादी को भोजन उपलब्ध कराना आज मानव समाज की प्रथम आवश्यकता है। इस दिशा में सूक्ष्मजीव प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं। अनेकों जातियों के सूक्ष्मजीव कुछ ही घंटों में प्रजनन कर अपना भार दो गुना या अधिक कर लेते हैं। इस क्षेत्र में सहायक हो सकते हैं। सूक्ष्मजीव एक कोशीय प्रोटीन ( single cell protein) SCP का निर्माण करते हैं, एवं अनेक प्रकार के कार्बोहाइड्रेट्स का संश्लेषण करते हैं जो भोजन के रूप में प्रयुक्त किये जा सकते हैं। कागज उद्योग से बचे अपशिष्ट, कृषि उद्योगों के अवशेषों व पैकिंग के बाद शेष रहे मॉस, फल, सब्जियों आदि को क्रियाधार (substrate) के रूप में उपयोग कर ग्लूकोस बनाया जा सकता है। सेल्यूलोज व लिग्निन से भी यह उत्पाद सूक्ष्मजीवों की जैवतकनीकी क्रियाओं द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। सूक्ष्मजीवों द्वारा उत्पन्न SCP कोशिका का 80% भाग रखता है जबकि सोयाबीन में 45% प्रोटीन ही पाया जाता है । अनेका शैवाल भी इस प्रकार के प्रोटीन का निर्माण करती है जो स्वादहीन होता है किन्तु जीवाण्विक क्रियाओं द्वारा अफ्रीका, अमेरिका व मैक्सिको में यह स्वादयुक्त भोजन के रूप में विक्रय किया जा रहा है । यीस्ट सेकेरोमाइसेज सेरेविसे (Saccharomyces cerevisae) से अत्यधिक मात्रा में न्यूक्लिक अम्ल भोजन संपूरक (food supplement) के रूप में प्राप्त होता है, इसी प्रकार मिथाइलोफिलस मिथाइलोट्रॉपस (Methylophilus methylotrophus) से 70% तक प्रोटीन प्राप्त होता है जो पशु आहार के रूप में इस्तेमाल होता है।
सूक्ष्मजीवों द्वारा की जाने वाली अनेक क्रियाओं द्वारा भोजन एवं पेय पदार्थों की प्राप्ति में प्रमुख भूमिका निभायी जाती है। इनमें किण्वन, नाइड्रोजन स्थरीकरण, वर्णक व खुशबू उत्पन्न करने वाले पदार्थों का उत्पादन महत्त्वपूर्ण है। आदिकाल से ही सूक्ष्मजीवों के द्वारा किण्वन सम्बन्धी क्रियाओं का ज्ञान मनुष्य को था। ईसा से 6000 वर्ष पूर्व भी सू. ेरिया व बेबीलोनिया के निवासी बीयर निर्माण करते थे। ईसा से 4000 वर्ष पूर्व मिश्रवासी खमीरी रोटी यीस्ट से बनाने की जानकारी रखते थे। 19वीं सदी के आरम्भ में भोजन एवं पेय पदार्थों के विकृत होने के कारकों के रूप में अनेक सूक्ष्मजीवों की पहचान की गयी। बीयर व मदिरा के खट्टे होने, दूध के फटने, फलों व सब्जियों को सड़ने से बचाने हेतु अनेक विधियों की खोज की गयी जो सूक्ष्मजीवों से इनकी सुरक्षा कर सकें। 19वीं सदी के पश्य भाग में इन सूक्ष्मजीवों का शुद्ध संवर्धन प्राप्त करने में सफलता मिली जो भोज्य पदार्थों के योगदान में भूमिका रखते हैं। यह काल औद्योगिक सूक्ष्मजैविकी के आरम्भ का समय माना जाता है। भोज्य एवं पेय पदार्थों की गुणवत्ता में सुधार हेतु अनेक जैविक पदार्थों की प्राप्ति की खोज हुई। एल्कोहल, सिट्रिक अम्ल, टारटेरिक अम्ल, अनेकों प्रकार के अमीनों अम्ल एवं एन्जाइम्स की प्राप्ति हेतु सूक्ष्मजीवों से किये जाने की प्रणालियाँ विकसित की गयी हैं। आज लगभग 165000 टन ग्लूटामिक अम्ल सूक्ष्मजीवों से प्राप्त किया जाता है जो मोनोसोडियम ग्लूटामेट नामक रसायन तैयार करने में काम आता है, यह पदार्थ अच्छी गन्ध हेतु भोज्य पदार्थों में डाला जाता है। 35000 टन लाइसिन, सिस्टीन व अन्य उपयोगी अमीनों अम्ल, विटामिन्स व भोजन परिरक्षकों (preservatives) का निर्माण भी सूक्ष्मजीवों की सहायता से किया जाता है।
सूक्ष्मजीवों के अनेक प्रभेद विभिन्न क्रियाओं में भाग लेते हैं जैवतकनीकी द्वारा इनकी जाँच (screening) एवं इन प्रभेदों के सुधार (improvement) के प्रयास किये जा रहे हैं ताकि उत्पाद औद्योगिक मात्रा में एवं उत्तम प्रकृति के प्राप्त किये जा सकें
(I) सूक्ष्मजीवों से भोजन (Food from microbes) : मृदा में उपस्थित लाभदायक जीवाणु व अन्य सूक्ष्मजीव ह्यूमस (humus) की मात्रा मृदा की ऊपरी पर्त में बनाये रहते हैं। ये कार्बनिक व अकार्बनिक उपयोगी पदार्थों की मात्रा को बढ़ाकर मृदा को उपजाऊ बनाये रखने का कार्य करते हैं। ये अपशिष्ट पदार्थों का विघटन करके उन्हें उपयोगी कार्बनिक पदार्थों में परिवर्तित करके खाद में बदल देते हैं। सूक्ष्मजीव पौधों को ऑक्सीजन उपलब्ध कराते हैं। नाइट्रोजन – स्थायीकारक बैक्टीरिया पौधों को आवश्यक नाइट्रोजन यौगिक उपलब्ध कराते हैं और मृदा को उर्वरता प्रदान करते हैं। इन जीवों के द्वारा मृदा में नमी व अकार्बनिक लवण जिनमें जिंक, कॉपर, लौह, मैग्नीशियम, मॉलीबिडनम आदि होते हैं, पौधों को उपलब्ध कराते हैं। अतः पौधे भरपूर भोजन बनाते हैं जिसका उपयोग मानव जाति करती है।
सूक्ष्मजीवों में मुख्य रूप से जीवाणु व नीली हरी शैवाल वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को फिक्स करके मृदा में एकत्रित कर पौधों को प्रदान करते हैं। इनके द्वारा कार्बन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस आदि के चक्र सामान्य रूप से गतिमय रखे जाते हैं।
कुछ प्रकार की कवक व शैवाल तथा छत्रक (mushroom) मनुष्य के द्वारा भोजन के रूप में उपयोगी है। एक कोशीय शैवाल क्लोरेला पाइरेनॉडोसा में प्रोटीन बहुतायत में उपस्थित होता है तथा जापान में यह अच्छे भोज्य पदार्थ के रूप में काम में लाया जाता है।
दक्षिण भारतीय ओडोगोनियम (Odogonium ) एवं स्पायरोगायरा (Spirogyra) से विशेष भोज्य पदार्थ बनाते हैं। यूलोथ्रिक्स और स्पायरोगायरा (Ulothrix and Spirogyra) सूक्ष्मजीव मछलियों, मेंढ़क, कीट आदि का भोजन होते हैं जो इनक द्वारा ग्रहण किये जाते हैं। झींगा एवं मछलियाँ आदि मनुष्य के भोजन के रूप में विश्व के अनेक भागों में काम में लायी जाती हैं। योस्ट में कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन एवं वसा होते हैं इनकी खेती करके विश्व की बढ़ती हुई आबादी को भोजन दिया जा सकता है। यीस्ट में थायमिन, रिबोफ्लेविन, निकोटिनिक अम्ल, पैन्टोथेनिक अम्ल. बायोटिन, पायरिडॉक्सिन एवं पेरा- अमीनों बैन्जॉइक अम्ल जैसे विटामिन होते हैं। सामान्य ब्रेड (डबल रोटी) में 1.5 आउन्स (ounce) यीस्ट मिलाने पर यह 21 / 2 अण्डों या 1/4 पाउण्ड (pound) माँस या 2 आउन्स पनीर के बराबर की कैलोरीज प्रदान करती है। आटे में यीस्ट पाउडर मिलाकर भोजन बनाने से प्रोटीन की अधिक मात्रा भोजन में बढ़ जाती है। यीस्ट एस्कोमाइसिटीज वर्ग की कवक है।
लगभग 2000 जातियाँ मशरूम की भोजन के रूप में जानी जाती है इनमें एगेरिकस केम्पेस्ट्रिस अत्यधिक मात्रा में उपयोग की जाने वाली खाने योग्य मशरूम है। लेन्टीकस, वोलवेरिएला, कालाइ बिया, वाल्यूटिप्स, मोरवेला ट्यूबर तथा लाइकोपरडॉन आदि अन्य पोषक मशरूम हैं।
इनमें 51% प्रोटीन पदाथं होते हैं जो सामान्य सब्जियों व फलों की अपेक्षा बहुत अधिक है। इनमें विटामिन B, C और K भी अत्यधिक मात्र में उपस्थित होता है। कार्बोहाइड्रेट्स की मात्रा मशरूम में 28-76% के लगभग पायी जाती है।
किण्वित भोजन (Fermented food)
किण्वन की क्रिया द्वारा अनेक भोज्य पदार्थ तैयार किये जाते हैं जो जीवाणुओं द्वारा की जाती है, इस क्रिया को अनेक जाति के जीवाणु करने की क्षमता रखते हैं। यह क्रिया भोज्य पदार्थों की विशिष्ट गन्ध, आकृति एवं इन्हें सुरक्षित रखने में सहायक होती है। किण्वन क्रिया द्वारा ही डबल रोटी बनाने की क्रिया होती है, यह भोज्य पदार्थ आधुनिक समाज में बहुतायत से काम में लाया जाता है। किण्वन एक उपापचयी क्रिया है जिसमें अपूर्ण ऑक्सीकरण की क्रिया होती है। आटे में जल मिलाकर गूंदने से पूर्व यीस्ट मिलाकर कुछ घण्टों तक छोड़ देने से यह क्रिया आरम्भ होती है, इसमें कुछ मात्रा शक्कर की भी डाल दी जाती है । यीस्ट शक्कर को एल्कोहॉल एवं कार्बन डाई ऑक्साइड में बदल देता है। कार्बन डाई आक्साइड आटे को फुलाने व बढ़ाने का कार्य करती है।
अनेकों प्रकार के आचार, चटनी एवं मुरब्बे बनाने में भी जीवाणुओं की उपापचयी क्रियाओं की सहायता ली जाती है, जिससे वे स्वादिष्ट व जायकेदार बनते हैं। खट्टी गोभी, सॉस इत्यादि भी जीवाण्विक क्रियाओं द्वारा बनाये जाते हैं। इनके बनाने में लैक्टोबैसिली (Lactobacilli) जीवाणु भाग लेते हैं।
सारक्राट (saurkraut) नामक भोजन पत्ता गोभी से तैयार किया जाता है जो लेक्टोबेसिलस जीवाणुओं की क्रिया से निर्मित होता है, यह जर्मन लोगों द्वारा विशेष चाव से खाया जाता है। एशिया में कोजी (kozi) विशिष्ट भोज्य पदार्थों मुख्यतः चॉवल पर किण्वकों की क्रिया द्वारा बनाया जाता है। जापान में “नाटो” (natto) सोयाबीन के बीजों को भिगों कर बनाया जाता है। इस क्रिया में बेसिलस नाटो (Bacillus natto) नामक जीवाणु भाग लेता है। अफ्रीकन देशों में 20 प्रकार के किण्वित भोज्य पदार्थ मक्का से बनाये जाते हैं जिनमें कार्नीबेक्टीरियम, ऐरोबेक्टर क्लोएके (Aerobacter cloacae), लेक्टोबेसिलस प्लान्टेरम, सेकेरोमाइसेस सेरेवेसे तथा केन्डिडा माइक्रोडर्मा (Candida mycoderma) भाग लेते हैं। चीन में अंगकाक लाल चावल से बनाया जाता है जिसमें मोनेस्ट्स परफ्यूरियम नामक सूक्ष्मजीव भाग लेता है। जापान में कोजी नामक किण्वित भोजन बनाया जाता है जिसमें सकेरोमाइसीज राऊक्सी सूक्ष्मजीव भाग लेता है। इसी प्रकार मिसो सोयाबीन चावल से सूफू सोयाबीन व गेहूँ एवं टेम्पेह सोयाबीन से तैयार किये जाने वाले अन्य किण्वित भोज्य पदार्थ हैं।
दक्षिणी भारत का भोज्य पदार्थ इडली जो चावल के आटे के व चने की दाल में कलौंजी डालकर बनाया जाता है। इन दोनों को पीस कर भिगोने के उपरान्त नमक डालकर 10-12 घण्टे ‘के लिये छोड़ देते हैं, जिससे यह फूल कर खट्टा हो जाता है, इसके उपरान्त विशिष्ट संयन्त्र में रख कर इस मिश्रण को छोटे-छोटे अंशों में भाप द्वारा पकाया जाता है। किण्वन द्वारा लेक्टिक अम्ल व एसिटिक अम्ल बनता है और CO2 गैसे निकलती है। इस क्रिया में ल्युकानोस्टॉक (Leuconostoc), मेसेन्टेरॉइड्स (Mesenteroides), स्ट्रेप्टोकॉकस फिकेलिस (Streptococcus juecalis), तथा पेडोकोकॅस सेरविसे (Pedicoccus cervisiae) जीवाणु भाग लेते हैं। इसी प्रकार के अन्य भोज्य पदार्थों में डोसा, बड़ा, ढोकला व पापड़ प्रमुख हैं।
किण्वित भोजन के निर्माण की विधि (Method of formation fermented food) – प्रत्येक प्रकार के भोजन हेतु भिन्न प्रकार की होती है किन्तु इसके सामान्य पद निम्न होते हैं-
(i) अनाज या क्रियाधार (substrate) पदार्थ को जल में भिगोया जाना ।
(ii) भीगे हुये अनाज को उबाल कर पकाया जाना।
(iii) उपयुक्त सूक्ष्मजीवों के द्वारा अनाज का बीजों को अन्तक्रमित किया जाना । उपयुक्त सूक्ष्मजीवों के संवर्धन को आरम्भन कराने वाले संवर्धन को अरम्भन संवर्धन (starter culture) कहते हैं। इसकी पहचान अच्छी तरह से की जानी चाहिये। अनेकों बार यह संवर्धनकारी पदार्थ अन्य अवांछित सूक्ष्मजीवों युक्त होने पर रोग या विषैले प्रभाव उत्पन्न कर सकते हैं।
(iv) उपयुक्त किण्वन के पश्चात् किण्वित भोजन का तैयार किया जाना उपयोग या संग्रह किया जाना ।
जानवरों के भोजन हेतु साइलेज बनाने में भी कुल एटेक्टरिएसी के जीवाणु भाग लेते हैं। इनके अतिरिक्त क्लोस्ट्रीडियम ब्युट्रिकम (Clostridium butricum) लैक्टोबेसिलस (Lactobacillus ) तथा स्ट्रेप्टोकोकॉस लेक्टिस (Streptococcus lactis) भी साइलेज बनाने में सहायता करते हैं। यह एक प्रकार का पशु आहार होता है जिसके खिलाने से पशुओं द्वारा दुग्ध स्रवण की मात्रा में वृद्धि होती है।
सूक्ष्मजीव अनेकों प्रकार के कार्बनिक अम्लों का उत्पादन करते हैं। ये फफूंद एवं जीवाणुओं द्वारा किण्वन की क्रिया द्वारा बनाये जाते हैं। सिट्रिक अम्ल बनाने में एसपरजिलस नाइगर, सिट्रोमायसेस पेफेरिनर तथा म्युकर की कुछ जातियों जो फफूंद है, भाग लेती हैं। पेनिसिलियम भी शर्करा से सिट्रिक अम्ल उत्पन्न करती है। यह अम्ल, साइट्रेटस व ठण्डे पदार्थों के उत्पादन में अत्यन्त उपयोगी है। एसपरिजलस नाइगर शर्करा से ग्लूकोनिक अम्ल का उत्पादन करता है जो गायों को देने पर अधिक दूध देने लगती है। यह पदार्थ अण्डे में कैल्शियम की मात्रा बढ़ा देता है। एसपरजिलस गेलोमायसेस तथा पेनिसिलियम ग्लेकॅम गैलिक अम्ल का संश्लेषण करते हैं। कॉजिल अम्ल का उत्पादन एसपरजिलस ऑरिजा से किया जाता है। माइकोडर्मा एसीटाई नामक जीवाणु शर्करा के घोल से एसिटिक अम्ल का संश्लेषण करता है, जिससे सिरका बनता है। एसीटोबैक्टर एसिटाई, ए. जाइलिनम तथा ए. रेन्सेस ईथाइल एल्कोहल को एसिटिक अम्ल में बदल देते हैं।
कुछ फफूंद वसा का उत्पादन करते हैं इनमें एसपरजिलस निडूलेन्स, ए. सायडॉवी, ए. फिशरी, पेनिसिलियम पिसकार्म, पे. जेवेनिक्स एन्डोमायसेस बरनेटिस प्रमुख है।
तम्बाकू व चाय की पत्तियों में विशिष्ट गन्ध भी किण्वन की क्रिया द्वारा उत्पन्न की जाती है, यह क्रिया माइक्रोकोकॅस केन्डीसेन्स नामक जीवाणु द्वारा की जाती है। इस क्रिया को पत्तियों का तैयार करना (curing) करते हैं। विशिष्ट जाति के जीवाणुओं द्वारा तैयार की गयी पत्तियों में विशिष्ट स्वाद एवं गन्ध होती है जो इनकी गुणवत्ता को प्रदर्शित करती है। कोको व चाकलेट को तैरूार करने में भी जीवाणुओं द्वारा किण्वन की क्रिया का उपयोग किया जाता है।
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