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फैसिओला हिपैटिका (Fasciola hepatica meaning in hindi) , कॉमन लीवर फ्लूक , common liver fluke in hindi
common liver fluke in hindi , फैसिओला हिपैटिका (Fasciola hepatica meaning in hindi) , कॉमन लीवर फ्लूक क्या होती है ?
फैसिओला हिपैटिका (Fasciola hepatica )
वर्गीकरण
संघ – प्लैटीहेल्मिन्थीस
वर्ग – ट्रीमैटोडा
गण – डाइजीनिया
कुल – फैसिओलिओडी
वंश – फैसिओला
जाति – हिपैटिका
स्वभाव और आवास : फैसिओला वंश के फ्लूक सामान्यतया कशेरुकी जन्तुओ जैसे पालतू पशु , भेड़ , बकरी , खरगोश , कुत्ता , सूअर के यकृत और पित्त वाहिनियों में रहते है |
फैसिओला हिपैटिका सामान्यतया भेड़ का यकृत फ्लूक है | इस फ्लूक का वितरण विश्वव्यापी है | यह जन्तु परजीवी विज्ञान और रोग विज्ञान के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके द्वारा फैसिओलिएसिस नामक रोग उत्पन्न होता है | यह एक अन्त: परजीवी है , जिसका जीवन वृत्त दो परपोषकों में पूरा होता है |
प्रथम परपोषक एक कशेरुकी और द्वितीय या गौण परपोषक एक अकशेरूकी होता है | एक प्राथमिक परपोषक भेड़ के यकृत में प्राय: 200 से अधिक फ्लूक रह सकते है |
इनकी उपस्थिति के कारण यकृत अपना काम करना बंद कर देता है | इस प्रभाव को यकृत विगलन कहते है |
इसका शरीर कोमल , अंडाकार और पत्ती के समान पृष्ठाधारी चपटा होता है |
इसके शरीर का अगला सिरा कुछ चौड़ा और गोल जबकि पिछला सिरा नुकीला होता है |
इसके शरीर का रंग सामान्यतया गुलाबी होता है लेकिन शरीर भित्ति की पारदर्शकता के कारण इसके किनारों पर काली या भूरी पीतक ग्रन्थियाँ दिखाई पड़ती है |
अगले सिरे पर एक स्पष्ट शंकुवत उभार मुखपालि या सिर पालि होती है जिस पर त्रिभुजाकार छिद्र मुख होता है |
इसके शरीर पर दो चूषक – अग्र चूषक तथा अधरीय चूषक पाए जाते है | इन चूषको में हुकों और कंटको का अभाव होता है |
शरीर में मुख के अलावा दो स्थायी छिद्र और पाए जाते है , इनमे से एक जननिक छिद्र या जनन रन्ध्र और दूसरा उत्सर्जी छिद्र होता है | जननकाल में इसके शरीर की उपरी सतह पर एक अस्थायी छिद्र जिसे लोरर की नाल का छिद्र कहते है प्रकट हो जाता है |
इसमें गुदा छिद्र नहीं पाया जाता है इसलिए इसकी आहारनाल अपूर्ण होती है |
इसका सम्पूर्ण शरीर अध्यावारण या क्युटिकिल से ढका रहता है | इसमें अवायु या अनॉक्सीजीवीय श्वसन होता है |
उत्सर्जन अंगो के रूप में आदिवृक्क और ज्वाला कोशिकाएँ पायी जाती है | इसका तंत्रिका तंत्र पूर्ण विकसित होता है लेकिन इसमें ज्ञानेन्द्रियो का अभाव होता है |
यह उभयलिंगी होता है इसकी जनन ग्रन्थियाँ सुविकसित होती है और नर और मादा जननिक वाहिनियाँ एक ही वेश्म , जननिक प्रकोष्ठ में खुलती है |
निषेचन आंतरिक होता है | इसके जीवन वृत्त में सामान्यतया मिरैसिडियम लार्वा , स्पोरोसिस्ट लार्वा , रेडिया लार्वा , सर्केरिया लारवा और मैटासर्केरिया लार्वा प्रवास्थाएं पायी जाती है |
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