हिंदी माध्यम नोट्स
कारखाना अधिनियम 1948 क्या है | factories act 1948 in hindi कारखाना अधिनियम 1948 की विशेषताएं
factories act 1948 in hindi कारखाना अधिनियम 1948 की विशेषताएं प्रावधान कारखाना अधिनियम 1948 क्या है ?
(1) कारखाना श्रमिकों के लिए कारखाना अधिनियम, 1948 (2) खान श्रमिकों के लिए खान – अधिनियम, 1952 (3) रेलवे श्रमिकों के लिए भारतीय रेल अधिनियम, 1890 और 1956 संशोधन (4) पत्तन श्रमिकों के लिए डॉक श्रमिक (नियोजन का विनियमन) अधिनियम 1948 (5) जल-भूतल परिवहन में सम्मिलित श्रमिकों के लिए मोटर परिवहन श्रमिक अधिनियम, 1961 (6) खुदरा व्यवसाय, दुकानों और वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों में श्रमिकों के लिए साप्ताहिक अवकाश दिन अधिनियम, 1942।
इनमें से, निःसंदेह कारखाना अधिनियम, 1948 सबसे महत्त्वपूर्ण है और इसके दायरे में उद्योगों के वार्षिक सर्वेक्षण द्वारा सर्वेक्षण किए गए उद्योगों का बहुत बड़ा हिस्सा सम्मिलित है। इस अधिनियम में ‘कारखाना‘ ‘श्रमिक‘ और ‘कर्मचारी‘ की भी परिभाषा की गई है, जैसा कि इकाई 30 में वर्णित है। तथापि, यह अधिनियम अनेक सेवाओं, जैसे परिवहन, अथवा खुदरा व्यवसाय पर लागू नहीं है। अतएव इन उद्योगों को दायरे में लेने के लिए अलग अधिनियमों की आवश्यकता थी। यहाँ हमें नोट करना चाहिए कि इन अधिनियमों में से प्रत्येक और उनके राज्य स्तरीय प्रतिलेख के, उनके प्रयुक्ति की प्रकृति के स्पष्ट अंतर के कारण अलग-अलग क्षेत्राधिकार विस्तार थे। उदाहरण के लिए कारखाना अधिनियम, 1948 पिछले पूर्ववर्ती बारह महीनों में किसी भी कार्य दिवस को विद्युत का प्रयोग करने वाले और 10 श्रमिकों को (अथवा विद्युत का प्रयोग नहीं करने वाले और 20 श्रमिकों को) नियोजित करने वाले कारखानों पर लागू है जबकि मोटर परिवहन श्रमिक अधिनियम, 1961 पाँच या अधिक श्रमिकों वाले प्रतिष्ठानों पर लागू होता है। फिर यह देखा जा सकता है कि औद्योगिक नियोजन अधिनियम में विनिर्दिष्ट बृहत् आकार अपेक्षाओं के कारण इसके अनेक उपबंध परिवहन श्रमिकों पर लागू नहीं हो सकते हैं। इसी तरह के सदृश मामलों में, अन्य औद्योगिक श्रमिकों के साथ समानता कायम रखने के लिए अलग अधिनियम बनाए गए थे।
अब हम सामाजिक हितों के उद्देश्य से बनाए गए कुछ उपबंधों और अधिनियमों का उल्लेख करते हैं।
(1) कार्य के स्थान पर महिलाओं के संरक्षण के लिए कारखाना अधिनियम, 1948 रात्रि शिफ्ट में महिलाओं को मजदूरी पर रखने से निषिद्ध करता है। (2) बंधित श्रम पद्धति क्ष्उत्सादन (Abolition)द्व अधिनियम, 1976 का उद्देश्य बंधित श्रम की कुख्यात समस्या का उन्मूलन करना है। (3) बाल श्रम को विनियमित करने और अंत्तः इसके समूल विनाश के लिए दो महत्त्वपूर्ण अधि नियम है। बालक (श्रम गिरवीकरण) अधिनियम 1933 और बालक श्रम (प्रतिषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986। पहले अधिनियम (1933 का) ने बाल (15 वर्ष की आयु से कम) श्रम को पूर्णतया गैर कानूनी घोषित कर दिया तथा किसी भी उल्लंघन के लिए माता-पिता अथवा अभिभावकों को दोषी माना। तथापि, चूँकि इस कानून का प्रवर्तन कठिन था और बाल श्रम को मजदूरी पर रखने की प्रथा जारी रही, एक अधिक यथार्थवादी कानून 1986 में पारित किया गया जिसने कतिपय प्रतिबंधों (जैसे कोई रात्रि शिफ्ट नहीं, कोई समयोपरि कार्य नहीं) के अधीन कुछ उद्योगों में बाल श्रम की अनुमति दी। अनेक उद्योगों, जिन्हें बाल स्वास्थ्य के लिए खतरनाक अथवा बाधक माना जाता है, में बाल श्रम नियोजन कठोरतापूर्वक निषिद्ध है। कालीन बुनाई और पटाखे दो ऐसे उद्योग हैं। (4) अंत्तः ठेका श्रम (विनियमन और उत्सादन) अधिनियम, 1970 ने कतिपय प्रकार की श्रम प्रथाओं जो प्रचलन में थी, किंतु जिसे सरकार द्वारा हतोत्साहित किया गया (जिसने सभी नियाजनों को स्थायी करने के लक्ष्य को पोषित किया था) को मान्यता दी। इस अधिनियम ने जहाँ ऐसे कर्मचारियों (जो औद्योगिक नियोजन अथवा सदृश अधिनियमों में विनिर्दिष्ट शर्तों के अलावा पृथक् ठेका संबंधी शर्तों पर कार्य करने के लिए सहमत होते हैं) को कानूनी सुरक्षा देने की आवश्यकता को मान्यता प्रदान करते हुए इस प्रथा की अंत्तः समाप्ति को लक्ष्य बनाया। किंतु जैसा कि हम जानते हैं, इस समय न सिर्फ निजी उद्योगों में अपितु सरकार में भी ठेका श्रमिकों को मजदूरी पर रखने की प्रथा अधिक से अधिक लोकप्रिय होती जा रही है।
बोध प्रश्न 2
1) औद्योगिक नियोजन अधिनियम (स्थायी आदेश), 1946 के मूल उद्देश्य क्या हैं, चर्चा कीजिए?
2) कारखानों, खानों, पत्तन और रेलवे में नियोजन को शासित करने वाले चार अधिनियम लिखिए।
3) सही के लिए ‘हाँ‘ और गलत के लिए श्नहींश् लिखिए।
क) कारखानों में पुरुषों की भाँति महिलाओं को रात्रि शिफ्ट में नियोजित करना कानूनी है।
ख) बाल श्रम सदैव ही गैरकानूनी नहीं हैं।
ग) साप्ताहिक अवकाश दिन अधिनियम, 1942 सरकारी कार्यालयों में अवकाश से संबंधित हैं।
घ) औद्योगिक नियोजन अधिनियम पूरे भारत में लागू है।
बोध प्रश्न 2 उत्तर
1) यह अधिनियम भर्ती की शर्तों, स्थायीकरण, कदाचार, सेवामुक्ति, अनुशासनिक कार्रवाई, छुट्टी, अवकाश इत्यादि का अनुबंध करता है और नियोजकों द्वारा इन शर्तों को अत्यन्त स्पष्ट रूप से कर्मचारियों को बताने की अपेक्षा करता है।
2) (1) कारखाना श्रमिकों के लिए कारखाना अधिनियम, 1948 (2) खान श्रमिकों के लिए खान अधिनियम, 1952 (3) रेलवे श्रमिकों के लिए भारतीय रेल अधिनियम, 1980 और 1956 (संशोधन) (4) पत्तन श्रमिकों के लिए डॉक श्रमिक (नियोजन का विनियमन) अधिनियम, 1948
3) (क) नहीं (ख) हाँ (ग) नहीं (घ) हाँ
सारांश
भारत में औद्योगिक संबंधों का वैधानिक ढाँचा पर्याप्त रूप से व्यापक है और इसमें नियोजक-कर्मचारी संबंधों के सभी महत्त्वपूर्ण आयाम शामिल किए गए हैं। इस ढाँचे के विकास की विशेषता औद्योगीकरण की आरम्भिक अवधियों (स्वतंत्रता पूर्व) से लेकर समीचीन विश्व के श्रमिकों के चिन्ता की निरन्तरता है। इतना ही नहीं, राज्य और केन्द्र के संयुक्त क्षेत्राधिकार के कारण श्रम संबंधों से जुड़े कानूनों की संख्या स्पष्ट रूप से अत्यधिक है । ये अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अधिदेशों और समर्थन के अनुरूप भी हैं।
फिर भी कुछ आपत्तियाँ की जा सकती हैं। अनेक शोधकर्ताओं का मानना है कि अच्छे विधानों के बावजूद प्रवर्तन और राज्य विनियमन संतोषप्रद नहीं है, और औद्योगिक शांति बनाए रखने में भारत का रिकार्ड विशेष रूप से सराहनीय नहीं है। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि न्यायिक और सरकारी हस्तक्षेप में बहुधा समन्वय की कमी होती है और कभी-कभी वे विरोधी उद्देश्यों के लिए कार्य करते हैं। उदाहरण के लिए, एक रुग्ण औद्योगिक इकाई दिवालिया घोषित किए जाने के लिए बी आई एफ आर में आवेदन कर सकती है और वह लंबित न्यायनिर्णयन से किनारा कर सकता है और इस प्रकार श्रम न्यायालय द्वारा दी गई व्यवस्था के अनुपालन से बच सकता है।
यहाँ यह भी उल्लेख करना महत्त्वपूर्ण है कि एक ही अधिनियम के विभिन्न भागों के लिए अलग-अलग आकार की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, औद्योगिक विवाद अधिनियम 50 या अधिक श्रमिकों को नियोजित करने वाले सभी फर्मों के लिए कामबंदी क्षतिपूर्ति को अनिवार्य करता है, किंतु सरकार से कामबंदी अनुमति की तभी आवश्यकता होगी यदि फर्म का आकार 100 श्रमिकों से अधिक है। ऐसी फमें जिसमें 50 से कम श्रमिक हैं कामबंदी क्षतिपूर्ति अनिवार्य नहीं है। इस प्रकार ऐसा प्रतीत होता है कि जहाँ बृहत् फर्मों के लिए विधानों की भरमार है, वास्तव में छोटे फर्मों के लिए इनकी कमी है। वास्तव में अनौपचारिक क्षेत्र, जिसमें 80 प्रतिशत औद्योगिक श्रमिक नियोजित हैं, पूरी तरह से औद्योगिक विवाद और औद्योगिक नियोजन अधिनियमों द्वारा विहित, दायित्वों से मुक्त हैं। इसके परिणामस्वरूप, श्रमिकों को अपने हित साधन के लिए स्थानीय यूनियनों (क्योंकि यूनियन का गठन हर जगह नहीं किया जा सकता है), और न कि सरकारी तंत्र पर, निर्भर करना पड़ा और इसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर राजनीतिक दल अथवा उनके सहायक संगठन की इनमें घुसपैठ हुई। अतएव सामूहिक सौदाकारी तंत्र भी अनौपचारिक और राजनीतिक स्वरूप वाला हो गया। इन बातों के कहने के बाद हमें अवश्य आशा करनी चाहिए कि हमारे विधान सभी प्रकार के फर्मों और सभी श्रमिकों की आवश्यकताओं और धारणीय औद्योगिक शान्ति के आवश्यकतानुरूप होंगे।
Recent Posts
सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है
सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…
मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the
marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…
राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi
sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…
गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi
gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…
Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन
वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…
polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten
get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…