मधुमक्खी की बाह्य आकारिकी , शरीर के भाग सिर ,वक्ष , उदर external morphology of honey bee in hindi

external morphology of honey bee in hindi मधुमक्खी की बाह्य आकारिकी , शरीर के भाग सिर ,वक्ष , उदर ?

मधुमक्खी की बाह्य अकारिकी (External morphology)

मधुमक्खियों की कॉलोनी में श्रमिक मधुमक्खियों की संख्या सबसे अधिक होती है तथा इनके शरीर में फूलों से पराग व मधु एकत्रित करने हेतु विशिष्ट प्रकार के अनुकूलन पाये जाते हैं। अतः यहाँ प्रारूपी मधुमक्खी की संरचना के रूप में श्रमिक मधुमक्खी की संरचना का अध्ययन करेंगे। यह काले या गहरे भूरे रंग की होती है इसके सम्पूर्ण शरीर पर रोम पाये जाते हैं। मधुमक्खी का सम्पूर्ण शरीर से काइटिन निर्मित क्यूटिकल से ढका रहता है जो इसका बाह्य कंकाल बनाता है । शरीर खण्ड युक्त होता है तथा प्रत्येक खण्ड पर पृथक-पृथक कठोर कंकाली प्लेटें पायी जाती है जिन्हें कठक (sclerites) कहते हैं। खण्डों के मध्य लचीली झिल्ली पायी जाती है जिसे सूचर या सीवन (suture) कहते हैं जिससे खण्डों व उपांगों में गति हो सकती है।

इसका शरीर तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है।

(i) सिर (ii) वक्ष (iii) उदर

(i) सिर (Head) : यह शरीर का सबसे अग्रभाग होता है जो सूचनाओं को एकत्रित करने का केन्द्र होता है। इसका सिर नाशपाति के आकार का व अधोहनु (hypognathus) प्रकार का होता है। यह वक्ष से ऊर्ध्वाधर रूप से इस प्रकार से जुड़ा रहता है कि मुख वाला भाग नीचे की ओर लटका रहता है। सिर का बहिकंकाल या सिर सम्पुट दृढ़ता से जुड़ी काइटिनी प्लेटों का बना होता है। सिर के पार्श्व में एक जोड़ी संयुक्त नेत्र, सामने की ओर तीन सरल नेत्र या नेत्रक (ocelli) व एक जोड़ी बहुखण्डीय शृंगिकाएँ तथा नीचे की ओर मुख के चारों तरफ मुखांगों का एक समुच्य पाया जाता है।

(a) संयुक्त नेत्र (Compound eyes) : सिर के दोनों पृष्ठ पार्श्व सतह पर एक-एक बड़ा संयुक्त नेत्र स्थित होता है। प्रत्येक संयुक्त नेत्र लगभग 4,000 से 6,000 नेत्रांशों या ऑमेटिडिया (ommatidia) से मिल कर बना होता है। संरचना में ये नेत्र कॉकरोच या प्रॉन के समान ही होते हैं। दोनों नेत्र सिर के एक बड़े क्षेत्र में सिर के दायें व बांये पार्श्व भाग से स्थित होते हैं तथा विस्तृत क्षेत्र पर दृष्टि रखते हैं। इन नेत्रों में मनुष्य की तरह उच्च आवर्धन वाले प्रतिबिम्ब नहीं बनते हैं बल्कि मोजेइक (mosaic) प्रतिबिम्ब बनता है। प्रकाश के पोलेराइजेशन के कारण ये आसानी से खाद्य स्रोत तक पहुँच कर पुनः छत्ते में लौट आती है।

(b) सरल नेत्र या नेत्रक (Ocelli) : नेत्रक सिर के सामने वाले भाग में दोनों संयुक्त नेत्रों के मध्य तीन सरल नेत्रक स्थित होते हैं। नेत्रकों में एकल लैन्स पाया जाात है जो UV किरणों को ग्रहण करती है। UV किरणें मधुमक्खी को पराग की स्थिति का पता लगाने में सहायक होती है जिससे ये सही स्थान पर पहुँच सके।

(c) शृंगिकाएँ (Antennae): सिर पर एक जोड़ी बहुखण्डीय शृगिकाएँ पायी जाती शृगिकाओं पर हजारों संवेदांग पाये जाते हैं जिनमें से कुछ यांत्रिक स्पर्शग्राही (mechano recent कुछ गन्ध ग्राही (olfactory receptors) तथा शेष स्वाद ग्राही (gustatory receptors) के रूप विशेषीकृत होते हैं।

मधुमक्खी की शूगिका में 170 प्रकार के गन्ध ग्राही संवेदांग पाये जाते हैं जो मधुमक्खी के सुविकसित गन्ध ज्ञान कराने की क्षमता प्रदान करते हैं। मधुमक्खियाँ आपस में एक-दूसरे से शृंगिकाओं के स्पर्श द्वारा सूचनाओं का सम्प्रेषण करती है। यहाँ यह तथ्य जानना भी मजेदार है कि मधुमक्खियाँ अपनी दाहिनी शूगिका पर अधिक भरोसा करती हैं।

मधुमक्खियों में श्रवण अंग जैसे कर्णपटह आदि नहीं पाये जाते हैं अतः यह माना जाता था कि मधुमक्खियों में श्रवण क्षमता नहीं पायी जाती है। वैज्ञानिक इस बात से परेशान थे कि जब मधुमक्खियाँ सुन नहीं पाती है तो साथी श्रमिक मधुमक्खियों के उदर अभिदोलन नृत्य (tail wagging dance) द्वारा उत्पन्न गुजायमान (buzzing) ध्वनि कैसे ग्रहण कर लेती है। कुछ वर्षों पूर्व यह ज्ञात हो पाया की मधुमक्खियों की शूगिकाओं में उपस्थित रोम समान यान्त्रिक स्पर्शग्राही अंग वायु कणों में उत्पन्न कम्पन्नों या गतियों को ग्रहण कर वायु जनित्र ध्वनि को सुनने की क्षमत रखती

(d) मुखांग (Mouth parts) : मधुमक्खी में चवर्ण एवं लेहनकारी प्रकार या चबाने एवं चाटने के उपयुक्त (chewing and lapping type) मुखांग पाये जाते हैं। इस प्रकार के मुखांग गण हाइमेनोप्टेरा के सदस्यों जैसे मधुमक्खियों, बम्बिल मक्खियों, ततैयों आदि में पाये जाते हैं। इस प्रकार के मुखांग फूलों से मकरन्द या फूलों का मकरन्द, मधु व पराग, संग्रह करने तथा मोम निर्माण के लिए उपयुक्त व रूपान्तरित होते हैं। ये मुखांग भोजन को चबाने व लेहन के उपयुक्त होते हैं। इस प्रकार के मुखांग निम्न संरचनाओं से मिल कर बने होते हैं।

(i) ऊपरी ओष्ठ या लेब्रम (Labrum): यह एक प्लेट समान संरचना होती है जो क्लाइपियस (clypeus) के नीचे स्थित होता है। लेब्रम के भीतर की ओर पेशीय अधिग्रसनी लम्बी जिव्हा के रूप में स्थित होती है।

(ii) चिबुक या मेन्डिबल (Mandibles) : ये एक जोड़ी मुखांग होते है जो लेब्रम के दोनों ओर स्थित होते हैं। ये चिकने व चम्मचाकार होते हैं। श्रमिक मधुमक्खियाँ इनका उपयोग छत्ते के निर्माण में करती है।

(iii) जम्भिका या मेक्सिला (Maxillae) : ये एक जोड़ी समेकित व सुविकसित मखांग होते हैं। दोनों जम्भिकाएँ कार्डों में समेकित होती है। इनमें लेसिनिया अनुपस्थित होता है। जम्भिका स्पर्शक (maxillary palp) अल्पविकसित होते हैं परन्तु गेलिया (galea) लम्बी व चप्प (bladeसमान टोती

(iv).अधर ओष्ठ या लेबियम (Labium): यह सुविकसित तथा गतिशील होता है। यह निम्न भागों से मिल कर बना होता है-पूर्व पादांश (protopodite) यह त्रिकोणिय पोस्टमेन्टम (nost mentum) या सबमेन्टम (sub mentum) तथा पेशीय प्रिमेन्टम (prementum) या मेन्टम (mentime का बना होता है। लेबियल पेल्प लम्बे होते हैं। अन्तःपादांश (endopodite) में पेराग्लोसी (paraglossae) अल्प विकसित होते हैं जबकि ग्लोसी (glossac) लम्बी होती है। दोनों ग्लोसी परस्पर संयुक्त होकर जिव्हा या लिंगुला (lingula) का निर्माण करती है। लिगुंला लम्बी, रोमिल व खींचने योग्य ( retractile) होती है। लिंगुला के अन्तिम सिरे पर चम्मच के आकार की संरचना पायी जाती है जिसे ओष्ठक या व्यंजनक (lebellum) या शहद चम्मच (honey spoon) कहते हैं। अधोग्रसनी या हाइपोफेरिन्क्स अनुपस्थित होती है।

भोजन ग्रहण करते समय जम्भिका (maxillae) के गेलिया, लेबियल पेल्प (labial palps ) मिलकर एक नलिका समान अस्थाई भोजन वाहिका का निर्माण करते हैं जिसे पुष्प के भीतर गहराई तक घुसाया जा सकता है। इस नलिका के अन्तिम सिरे पर जिव्हा पर ग्लोसी स्थित होती है जो पराग को एकत्रित करती है तथा पुष्प रस या पुष्प मधु को ऊपर की ओर खींच लेती है। इस क्रिया में ग्रसनी की पम्पिंग क्रिया सहायक होती है। लेब्रम व चिबुक या मेन्डिबल भोजन को चबाने में सहायक होते हैं।

वक्ष (Thorax) : यह शरीर का मध्य भाग होता है तथा तीन खण्डों का बना होता है। वक्ष मुख्यतः गमन (locomotion) का केन्द्र होता है। वक्ष के प्रत्येक खण्ड की अधर सतह पर एक जोड़ी श्वसन रन्ध्र (spiracles) पाये जाते हैं जो वायु के प्रवाह को नियंत्रित करते हैं। वक्ष में दो जोड़ी पंख तथा तीन जोड़ी टांगें पायी जाती है।

(a) टाँगें (Legs) : मधुमक्खी में तीन जोड़ी टांगें पायी जाती है, प्रत्येक टांग 5 खण्डों की बनी होती है। ये खण्ड सन्धि युक्त व गतिशील होते हैं ये खण्ड है- (i) कक्षांग (coxa) (ii) शिखरक (trochanter) (iii) फीमर (femur ) (iv) टिबिया ( tibia), तथा (v) पांच खण्डीय गुल्फ या टारसस (tarsus) । टारसस के अन्तिम सिरे पर एक मध्यवर्ती गद्दी या पदतल्प (pulvillus ) पायी जाती है जिसके दोनों ओर एक जोड़ी नखर (claws) पाये जाते हैं। पदतल्प द्वारा स्रावी चिपचिपे पदार्थ के  कारण मधुमक्खी चिकनी सतह पर भी आसानी से बैठ सकती है । सम्पूर्ण टांगों पर घने रोम पाये जाते हैं जो पराग संग्रह करने में सहायक होते हैं। टांगों पर स्पर्शग्राही रोम भी पाये जाते हैं।

वक्ष के अग्रवक्ष खण्ड (prothorax) पर उपस्थित अग्र वक्षीय टांगों या अग्र टांगों पर नीचे व आगे की ओर कुछ कठोर रोम पाये जाते हैं जो पराग ब्रश (pollen brush) का निर्माण करते हैं। जा आंख पर चिपके पराग कणों को साफ करता है जबकि पश्च सतह की ओर एक गतिशील प्लेट नुमा प्रवर्ध या वेलम (velum) पाया जाता है जो प्रथम गुल्फ खण्ड (tarsomere ) के ऊपरी सिरे पर स्थित एक वृत्ताकार गर्त में समाया रहता है। इस गर्त में कठोर रोम पाये जाते हैं जो मिलकर श्रृंगिका साफ करने वाली संरचना बनाते हैं, जो श्रृंगिका को साफ करने का कार्य करते हैं।

प्रत्येक मध्यवक्षीय खण्ड पर उपस्थित टांग के मध्य में एक पराग ब्रश (pollen brush ) तथा एक कटिका समान पराग उभार (pollen spur) पाया जाता है। पराग उभार (pollen spur) पराग करण्ड (pollen basket ) से पराग हटाने का कार्य करता है। साथ ही उदर की अधर सतह पर उपस्थित मोम कोटर (wax pockets) से मोम हटाने का भी कार्य करता है। प्रत्येक पश्च वक्षीय खण्ड पर उपस्थित टांग की टिबीया की बाहरी सतह पर एक गर्त पाया जाता है जिसे पराग करण्ड (pollen basket) कहते हैं। पराग करण्ड, इसके किनारों से निकलने वाले लम्बे मुड़े हुए रोमों से ढ़की रहती है। नीचे की ओर टिबिया एक कटिकाओं की श्रृंखला या पेक्टेन (pecten) के रूप में समप्त होती है जबकि प्रथम गुल्फ खण्ड पर एक अवतल प्लेट या ओष्ठ या ऑरिकल (auricle) उपस्थित होता है। पेक्टेन व ऑरिकल दोनों मिलकर एक साथ कार्य करते हुए पराग करण्ड में पराग भरने का कार्य करते हैं। प्रथम गुल्फ खण्ड की आन्तरिक सतह पर अनुप्रस्थ रूप से पंक्तिबद्ध कठोर रोम पाये जाते हैं जो पराग कंधी (pollen comb) का निर्माण करते हैं। जब श्रमिक मक्षिका पुष्प दर पुष्प उड़ती तो इसके शरीर रोमों पर कई परागकण चिपक जाते हैं जिन्हें इस पराग कंघी द्वारा साफ किया जाता है। पेक्टेन परागकंघी से परागकण खुरचता है तथा ऑरिकल इन खुरचे हुए पराग कणों को पराग करण्ड में धकेलता है। जब पराग करण्ड भर जाती है तो मधुमक्खी छत्ते की और लोट जाती है जहाँ पराग उभार (pollen spur) द्वारा (जो मध्य वक्षीय टाँग पर पाया जाता है।) पराग को छत्ते के कक्षों में खाली कर दिया जाता है।

(b) पंख (Wings) : मधुमक्खी के वक्ष की पृष्ठ सतह पर दो जोड़ी पंख पाये जाते हैं। पंख लम्बे पारदर्शी व संकरे होते हैं । अग्र पंख पश्च पंखों की तुलना में अधिक लम्बे होते हैं। पंखों को गति देने के लिए या उड़ने के लिए मजबूत पेशियाँ पायी जाती है जो वक्षीय भित्ति से चिपकी रहती है। पंखों के दोनों तरफ आपस में जुड़ने के लिए हुक्स की शृंखला या पंक्ति पायी जाती है जिन्हें हेमुली (hamuli) कहते हैं। इन हुक्स के कारण उड़ते समय दोनों पंख एक साथ कार्य करते हैं। विश्राम की अवस्था से हेमुली वापस एक-दूसरे से पृथक हो जाती है।

(iii) उदर (Abdomen ) : मधुमक्खी का उदर रोमिल व छः उदर खण्डों का बना होता है। उदर में कोई विशिष्ट बाहरी संरचनाएँ नहीं पायी जाती है। 6-12 दिन की श्रमिक मधुमक्खी में उदर के अन्तिम चार खण्डों की अधर सतह पर मोम ग्रन्थियाँ ( wax glands) पायी जाती है। इनसे मोम का स्रावण होता है जो सूक्ष्म छिद्रों से बाहर निकलता है। मोम ग्रन्थियों से स्रावित मोम मोम शल्कों ( wax scales) के रूपमें उदर खण्डों पर देखा जा सकता है।

दश उपकरण (Sting Apparatus) : श्रमिक मधुमक्खी में अण्डनिक्षेपक ( ovipositors) अपना मूल कार्य त्याग कर दंश उपकरण के रूप में रूपान्तरित हो जाते हैं मधुमक्खियों को इस बात का श्रेय दिया जा सकता है कि इन्होंने सर्वप्रथम सीरिंज (अद्योत्वचीय इन्जेक्शन) का विकास किया। यह मधुमक्खी का रक्षा उपकरण होता है। मधुमक्खी इसका उपयोग तभी करती है जब इसे अत्यधिक परेशान किया जाये। क्योंकि इसके उपयोग के बाद मधुमक्खी की मृत्यु हो जाती है ।

दश उपकरण निम्नलिखित संरचनाओं से मिल कर बना होता है।

डंक (Sting) : मधुमक्खी के डंक में विष नाल (poison canal) बन्द रहती है। यह तीन संरचनाओं से घिरा रहता है एक पृष्ठीय कटारीय आवरण (stylet sheath) तथा दो अधरीय कटारनुमा प्रवर्ध । तीक्ष्ण कटारनुमा प्रवर्धी की पूरी लम्बाई में पृष्ठ की तरफ एक खांच पायी जाती है जिसमें विषनाल फिट रहती है। डंक का अन्तिम तीक्ष्ण सिरा (जिसमें तीक्ष्ण कटारनुमा प्रवर्ध व कटारीय आवरण सम्मिलित होता है) कटिकाओं या दांतेदार प्रवर्षों से ढका रहता है जिससे डंक को शिकार की पेशियों में मजबूती से गडाया जाता है। कटारीय आवरण का आधारी भाग फूल कर एक गांठ (bulb) नुमा संरचना का निर्माण करता है जबकि डंक एक जोड़ी भुजाओं में सतत रहता है। डंक में दोनों ओर तीन-तीन प्लेट्स का समच्य पाया जाता है जो उत्तोलक (lever) का कार्य करती है। डंक से सम्बन्धित दो ग्रन्थियाँ पायी जाती है एक विष ग्रन्थि जो एक अम्लीय पदार्थ का स्रावण कर विष थैले में संचित करती है। यह विष थैला दंश घुण्डी (sting bulb) में आगे की ओर खुलता है। एक छोटी क्षारीय ग्रन्थि (alkaline gland) भी पृथक रूप से दंश घुण्डी में खुलती है।

डंक मारते समय कटारीय आवरण घाव करता है, टिकाएँ डंक को घाव में थामें रखती है तथा कटार नुमा संरचना डंक को और गहराई तक धकेलती है। तत्पश्चात् विष थैले से खोखले डंक द्वारा विष शिकार की पेशियों में इन्जेक्ट कर दिया जाता है। यह प्रक्रिया मधुमक्खी के उड़ जाने के बाद भी जारी रहती है। कटिका युक्त डंक केवल श्रमिक मक्षिका में ही पाया जाता है। एक बार डंक मनुष्य की त्वचा में घुसाने के बाद मधुमक्खी डंक को वहीं छोड़ कर उड़ जाती है परन्तु उसके बाद सामान्यतया मधुमक्खी मर जाती है। साथ ही मधुमक्खी एलार्म फीरोमोन भी छोडती है जो शिकार को चिन्हीत करती है व अन्य मधुमक्खियों को सिग्नल प्रेषित करती है जिससे और मधुमक्खियाँ शिकार पर आक्रमण कर देती है। रानी मक्षिका के डंक में कटिकाएँ नहीं पायी जाती है अतः वह डंक का उपयोग कई बार कर सकती है परन्तु रानी मक्षिका इसका उपयोग यदा-कदा ही करती है। नर मक्षिका या ड्रोन में डंक नहीं पाया जाता है।