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Experimental Verification of Maxwell’s Velocity Distribution in hindi मैक्सवेल वेग बंटन का प्रायोगिक सत्यापन

 मैक्सवेल वेग- बंटन का प्रायोगिक सत्यापन (Experimental Verification of Maxwell’s Velocity Distribution)
(i) अणु किरणपुंज में वेगों के बंटन के सीधे मापन के लिये अनेक प्रयोग किए गए हैं। चित्र (5.5-1) जार्टमैन और को (Zartman and Ko) द्वारा 1930-34 में प्रयुक्त उपकरण का रेखा चित्र है, यह उपकरण 1920 में स्टर्न (Stern) द्वारा विकसित तकनीक का एक रूपांतरण है। चित्र में, O एक भट्टी है जिसमें चांदी को गर्म कर गैसीय रूप में प्रयुक्त किया जाता है, तथा S1 और S2 अणु पुंज को सीमित करने के लिए रेखाछिद्र हैं। C एक सिलिंडर है जिसे अक्ष A के प्रति लगभग 6000 परिक्रमण प्रति मिनट से घुमाया जा सकता है। यदि सिलिण्डर विराम अवस्था में है, तो अणु पुंज रेखा छिद्र S3 में से सिलिण्डर में प्रवेश करता है और एक वक्र काँच की प्लेट G से टकराता है। अणु काँच की प्लेट पर चिपक जाते हैं और किसी भाग पर पहुँचने वाले अणुओं की संख्या, प्लेट पर परिणामी कृष्णता को माइक्रोफोटोमीटर से माप कर निर्धारित की जा सकती है।


चित्र
जब सिलिण्डर घुमाया जाता है तो अणु सिलिण्डर में केवल उस लघु समयांतरालों की अवधि में प्रवेश कर सकते हैं जब रेखा छिद्र S3 अणु पुंज के सम्मुख आता है। यदि घूर्णन दक्षिणावर्ती है, जैसा कि इंगित किया गया है तो काँच की प्लेट दायीं ओर गति करती है जब अणु सिलिण्डर के व्यास को पार करते हैं। अतः सिलिण्डर की विराम अवस्था में G पर संघट्ट बिन्दु (निर्देश बिन्दु) के सापेक्ष, घृर्णी अवस्था में बायीं ओर टकराते हैं तथा जितने अधिक वे धीरे चलते हैं यह संघट्ट बिन्दु उतनी ही अधि क दूरी पर बायीं ओर होता है। अतएव प्लेट के किसी भाग की कृष्णता का निर्देश- बिन्दु से उस भाग की दूरी की सापेक्ष आलेख अणु-पुंज के ” वेग स्पेक्ट्रम ” का माप है।
(ii) ईस्टरमान सिम्पसन और स्टर्न (Eastermann, Simpson and Stern) ने 1947 में पुंज में अणुओं के निर्वाध पतन का उपयोग कर एक अधिक परिशुद्ध प्रयोग किया। उपकरण का एक सरल आरेख चित्र (5.5-2 ) में दिया है। भट्टी के रेखा छिद्र में से सीजियम (cesium) का अणु-पुंज बाहर निकलता है, जो समांतरकारी छिद्र S में से गुजर कर एक तप्त टंग्स्टन (tungsten) के तार D पर टकराता है। उपकरण में अवशिष्ट गैस का दाब पारे के 10^-8 मिमी. की कोटि का होता है। भट्टी का रेखा छिद्र

रेखाछिद्र S एवं संसूचक तार D तीनों परस्पर समान्तर एवं क्षैतिज होते हैं।
सीजियम अणु जब तप्त तार D से टकराते हैं तो वे आयनित हो जाते हैं और तार के चारों ओर एक ऋण आवेश युक्त सिलिण्डर द्वारा संग्रहीत कर लिए जाते हैं। तार पर टकराने वाले सीजियम अणुओं की संख्या सिलिण्डर की ओर बढ़ने वाली आयनों की धारा के अनुक्रमानुपाती होती है।
ऊष्मागतिकी तथा सांख्यिकीय भौतिकी सीजियम अणुओं पर यदि गुरुत्वीय बल नहीं लग रहा हो तो उस स्थिति में सभी अणु रेखा छिद्र S से गुजर कर स्थिति D पर स्थित संसूचक तार D पर टकरायेंगे चाहे अणुओं का वेग कितना ही हो । परन्तु गुरुत्वीय क्षेत्र के प्रभाव में गतिमान अणु का पथ परवलयिक होता है। अत: रेखाछिद्र O से क्षैतिज दिशा में निकलने वाला अणु रेखाछिद्र S में से होकर नहीं गुजरेगा जैसा कि चित्र (5.5-2) में पथ ( 1 ) द्वारा दर्शाया गया है। परन्तु यदि परमाणु पथ 2 या 3 का अनुसरण करते हैं तो रेखाछिद्र S के गुजर सकते हैं। प्रक्षेप पथ 3 की अपेक्षा प्रक्षेप पथ 2 में परमाणुओं का वेग अधिक है। अत: जब संसूचक स्थिति D से नीचे हटाया जाता है तो प्रक्षेप पथ 2 के अनुदिश गतिशील अणु स्थिति D1 पर संग्रहीत होंगे तथा प्रक्षेप पथ 3 के अनुदिश गतिशील अणु D2 पर संग्रहित होंगे। तब ऊर्ध्वाधर विस्थापन के फलन के रूप में आयनिक धारा के मापन से वेग बंटन प्राप्त होता है।


चित्र (5.5-3) में प्रायोगिक परिणाम एवं मैक्सवेल वेग बंटन से प्राप्त सैद्धान्तिक आलेख प्रादर्शित है। बिन्दु प्रायोगिक मान हैं। प्रायोगिक परिणाम और सैद्धान्तिक वक्र में सहमति से मैक्सवेल के वितरण नियम की पुष्टि होती है।
(iii) एक अन्य अधिक यथार्थ विधि में वेग निर्वाचक ( velocity selector ) का उपयोग कर निश्चित वेगों के अणुओं की आपेक्षिक संख्या ज्ञात की जाती है। इस उपकरण का प्रारूप चित्र (5.5-4) में प्रदर्शित किया गया है। भट्टी से प्राप्त समांतरित अणु-पुंज रेखा छिद्र S से एक निर्वातित कक्ष में प्रवेश करता है जिसके दूसरे सिरे पर एक संसूचक D लगा होता है। रेखा छिद्र S व संसूचक D के मध्य वेग निर्वाचक रखा जाता है। वेग निर्वाचक में एक ही एक्सल (axle) पर दो चकती D1 व D2 लगी होती है। इस चकतीओं में किनारे पर त्रिज्या के अनुदिश खांचे (slots) कटे हुए होते हैं। चकतीओं को ज्ञात कोणीय वेग से घूर्णित किया जा सकता है। रेखा छिद्र S से निकलकर अणु


चित्र 5.5-4
पहली चकती D1 के खांचे को पार करते हैं। इस पुंज में से केवल वे अणु दूसरे चकती D2 में बने खांचे को पार कर संसूचक D तक पहुँच पाते हैं जिनके लिये D1 से D2 तक दूरी तय करने में लगे समय में घूर्णी चकती D2 का खांचा एक अथवा पूर्ण संख्या में चक्कर पूरा कर सामने आये। इस प्रकार चकतीओं के कोणीय वेग को परिवर्तित कर अलग-अलग वेग के अणुओं को संसूचक पर प्राप्त किया जा सकता है। चकतीओं के घूर्णन वेग से अणुओं के वेग की गणना सरलता से की जा सकती है।

तथा संसूचक प्लेट पर निक्षेपित परत की मोटाई से विभिन्न वेगों के अणुओं की आपेक्षिक संख्या ।
इन सब प्रयोगों से मैक्सवैलीय वितरण की पुष्टि समुचित रूप से होती है।

स्वातन्त्र्य कोटि (Degrees of Freedom )
किसी कण की सम्पूर्ण अवस्था या विन्यास (configuration) का निर्धारण करने के लिए आवश्यक स्वतन्त्र राशियों ( independent quantities) या निर्देशांकों (coordinates) की संख्या को उस कण की स्वातन्त्र्य कोटियाँ (degrees of freedom) कहते हैं।
एक कण जो सीधी रेखा में गति कर रहा हो (जैसे चींटी की एक सीधे तार पर गति) तो किसी क्षण उसकी स्थिति को ज्ञात करने के लिए केवल एक निर्देशांक, जैसे x की आवश्यकता होती है। अत: कण की स्वातन्त्र्य कोटि एक है। यदि कण द्विविमीय तल (two dimensional plane) में है तो उसकी स्थिति ज्ञात करने के लिए दो निर्देशांकों x तथा y की आवश्यकता होती है, अतः कण


चित्र 5.6-1
की स्वातन्त्र्य कोटियाँ दो हैं, लेकिन जब कोई कण त्रिविमीय निर्देशाकाश (three dimensional space) में गति करता है तो उसकी स्थिति का पता लगाने के लिए कम से कम तीन निर्देशांकों x, y व 2 की आवश्यकता पड़ती है। अतः कण की स्वातन्त्र्य कोटियाँ तीन होंगी।
एक परमाणुक (monatomic) जैसे He, Ne, A, Kr गैसों के अणु में केवल एक परमाणु होने के कारण यह निर्देशाकाश में कंवल स्थानान्तरण गति करता है। अन्य प्रकार की गति जैसे घूर्णन से इसकी अवस्था में परिवर्तन नही होता है। इसकी स्थानांतरीय गति को तीन परस्पर लम्बवत् अक्षों के समानान्तर वियोजित कर सकते हैं। जैसा कि चित्र (5.6-1) में दर्शाया गया है। अतः एकपरमाणुक अणु की गतिज ऊर्जा उसके तीन स्थानान्तरण वेग घटकों द्वारा निध रित की जाती है। अत: एक परमाणुक अणु की स्थानान्तरण गति के कारण केवल तीन स्वातन्त्र्य कोटियाँ होती है।
अणु ज्यामितीय बिन्दु नहीं है परन्तु वे परिमित आकार के होते हैं। उनमें जड़त्व आघूर्ण तथा द्रव्यमान भी होता है और इसलिए उनमें स्थानांतरण ऊर्जा के साथ घूर्णन गतिज ऊर्जा भी होती है। अन्य अणुओं तथा दीवारों से यादृच्छिक संघट्टों के कारण उनमें घूर्णन गति उत्पन्न होती है। चूंकि एक घूर्णी अणु के कोणीय वेग सदिश के तीनों निर्देशी अक्षों के अनुदिश घटक हो सकते हैं, अत: एक अणु के लिए यह अपेक्षित है कि उसकी तीन घूर्णी स्वतन्त्रता की कोटियाँ हों, अर्थात् एक दृढ़ पिण्ड के लिये कुल छः स्वतन्त्रता की कोटियाँ सम्भव होंगी। किन्तु अणु की संरचनाएँ पूर्णत: दृढ़ नहीं है तथा अन्य अणुओं से संघट्टों के परिणामस्वरूप उनमें दोलन अथवा कम्पन की भी अपेक्षा की जा सकती है, जिससे उनकी कुछ और अधिक स्वतन्त्रता की कोटियाँ हो सकती हैं।
एक द्वि-परमाणुक अणु की संरचना डम्बल आकृति की मानी जा सकती है। इस संरचना में परमाणुओं को मिलाने वाली अक्ष के प्रति निकाय का जड़त्व आघूर्ण इस अक्ष के लम्बवत् अन्य दो अक्षों के प्रति जड़त्व आघूर्ण के सापेक्ष नगण्य होता हैं। अत: द्वि-परमाणुक अणु की प्रभावी रूप से दो घूर्णी स्वातन्त्र्य कोटियां ही होती हैं। निकाय के द्रव्यमान

केन्द्र की स्थानांतरण गति के कारण तीन स्वातन्त्र्य कोटियाँ होती है। इस प्रकार यदि द्वि-परमाणुक अणु में कंपन उत्तेजित न हों जैसा कि सामान्य ताप पर होता है तो उसकी कुल पांच स्वातन्त्र्य कोटियाँ होगी। यदि परमाणवीय बंधन पूर्णतः दृढ़ नहीं है तो परमाणु उनको मिलाने वाली रेखा के अनुदिश कंपन कर सकते हैं। कंपन ऊर्जा अंशत: गतिज व अंशतः स्थितिज होती है जिनको क्रमशः परमाणुओं को मिलाने वाली रेखा के अनुदिश वेग तथा उनके मध्य अंतराल द्वारा निर्दिष्ट किया जाता है। अतएव द्वि- परमाणुक अणु के लिए कंपन से सम्बद्ध दो स्वातन्त्र्य कोटियां होंगी। इस प्रकार द्वि- परमाणुक अणु के लिये कुल सात स्वातन्त्र्य कोटियों की अपेक्षा की जा सकती है। (3 स्थानांतरण गति के लिये 2 घूर्णन गति के लिये तथा 2 कंपन गति के लिये) । बहु परमाणुक अणुओं जैसे H2O, NH3, CH4 इत्यादि में तीन या तीन से अधिक परमाणु होने के कारण आकाश (space) में स्थानान्तरण गति होने के साथ-साथ तीनों अक्षों के परितः घूर्णन गति भी होती है। ऐसे अणुओं की सामान्य ताप पर 3 स्थानान्तरण स्वातन्त्र्य कोटियाँ तथा 3 घूर्णन स्वातन्त्र्य कोटियाँ होती हैं अर्थात् कुल 6 स्वातन्त्र्य कोटियाँ होती हैं। उच्च ताप पर इन अणुओं में भी परमाणु एक दूसरे के सापेक्ष कम्पन करने लगते हैं और इनकी स्वातन्त्र्य कोटियों की संख्या में और वृद्धि हो जाती है।