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बिच्छू का उत्सर्जी तंत्र क्या है , Excretory System Scorpions in hindi मैल्पिजियन नलिकाएँ (Malpighian tubules)

जाने बिच्छू का उत्सर्जी तंत्र क्या है , Excretory System Scorpions in hindi मैल्पिजियन नलिकाएँ (Malpighian tubules) ?

उत्सर्जी तन्त्र (Excretory System)

बिच्छू का उत्सर्जी तन्त्र निम्नलिखित अंगों से मिलकर बना होता है

  1. मैल्पिजियन नलिकाएँ (Malpighian tubules)
  2. कक्षांगी ग्रन्थियाँ (Coxal glands),
  3. यकृताग्नाशय (Hepatopancrease)
  4. वृक्क कोशिकाएँ (Nephrocytes)
  5. मैल्पिजियन नलिकाएँ (Malpighian tubules) : बिच्छू में मैल्पिजियन नलिकाएँ एक या दो जोड़ी पायी जाती हैं। ये आंत्र के उदरपूर्वी तथा उदर पश्च भागों के संगम स्थल पर पायी जाती है। ये कॉकरोच की मैल्पिजियन नलिकाओं की तरह ही उत्सर्जन का कार्य करती है।
  6. कक्षागी ग्रन्थियाँ (Coxal glands): कक्षांगी ग्रन्थियाँ बिच्छू के मुख्य उत्सर्जी अंग होते ह ये एक जोड़ी होते हैं तथा अग्रकाय (prosoma) में दोनों तरफ स्थित होती हैं। ये ग्रन्थियाँ चमकीली सफेद रंग की होती है। ये पांचवें खण्ड की प्रगुही वाहिनियों (coelomoducts) से व्युत्पन्न हुई सरचनाएं होती हैं। प्रत्येक ग्रन्थि तीन भागों से मिलकर बनी होती है- (i) अन्त कोष या उत्सम कोष (cnasac or saccule) (ii) गहन या कण्डलित नलिका (labyrinth) (iii) आशय (bladder)।अन्तकोष एक फूली हुई संरचना होती है जो कक्षांग ग्रन्थि के लगभग मध्य में स्थित होती है । अन्तकोष के एक किनारे से एक लम्बी कुण्डलित नलिका निकलती है जिस गहन(labyrinth) कहते हैं। गहन का पिछला भाग फूला हुआ होता है तथा आशय (bladder) का निर्माण करता है आशय तासरी जोड़ी चलन टांग के कक्षांग (coxa) की अधर सतह पर एक सूक्ष्म छिद्र द्वारा बाहर खुलता है, जिसे उत्सर्जी छिद्र कहते हैं। बिच्छ की ये ग्रन्थियाँ क्रस्टेशिया वर्ग के प्राणियों में पायी जाना वाली ग्रीन ग्रथियों (green gland) के समजात होती हैं. तथा उत्सर्जन का कार्य करती है।
  7. यकृताग्नाशय (Hepatopancrease) : बिच्छू की यकृताग्नाशयी ग्रन्थि को भी एक उत्सर्जी अंग माना गया है। पावलोव्स्की (Pavlovsky) ने प्रयोग द्वारा यह बताया कि संभवतः यह ग्रन्थि उत्सर्जन में सहायक होती है।
  8. वृक्क कोशिकाएँ (Nephrocytes) : मध्यकाय (mesosoma) की देहभित्ति के नीचे बड़ी-बड़ी वृक्क कोशिकाएँ पायी जाती हैं, जो उत्सर्जन में सहायक होती है।

श्वसन तन्त्र (Respiratory System)

बिच्छू में श्वसन के लिए विशेष संरचनाएँ पायी जाती हैं जिन्हें पुस्त-फुफ्फस (boatiane हैं। ये चार जोडी होते हैं। ये मध्य काय के तीसरे से छठे खण्ड तक एक जोडी प्रतिखण्ट के टिगाव से पाये जाते हैं। प्रत्येक पुस्त-फुफ्फस क्यूटिकल की बनी एक थैलेनुमा संरचना होती है अतः दमे फुफ्फुस कोष (pulmonary sac) भी कहते हैं। प्रत्येक पुस्त-फफ्फस दो भागों का बना होता है (i) परीकोष्ठीप्रकोष्ठ (atrial chamber), तथा (ii) फुफ्फुस प्रकोष्ठ (pulmonary chamber)|

(i) परिकोष्ठी प्रकोष्ठ (Atrial chamber): यह पुस्त-फुफ्फस का अग्र या अधर भाग होता है। यह पृष्ठ से प्रतिपृष्ठ की तरफ चपटा होता है, तथा इसमें वायु भरी रहती है। यह भाग एक तिरछे दरार रूपी छिद्र द्वारा बाहर खुलता है जिसे श्वास छिद्र (stigma) कहते हैं। इससे इस प्रकोष्ठ का बाहरी वायु से सम्पर्क होता है। परिकोष्ठी प्रकोष्ठ की छत पर एक पंक्ति में छोटे-छोटे छिद्र पाये जाते हैं जिन्हें ऑस्टिया (ostia) कहते हैं। ये ऑस्टिया अन्तर पटलिका अवकाशों में खुलते हैं।

(ii) फुफ्फस प्रकोष्ठ (Pulmonary chamber): यह पुस्त-फुफ्फुस का निचला बड़ा भाग होता है। इसमें लगभग 150 पटलिकाएँ (lamellae) पायी जाती है। ये पटलिकाएँ एक-दूसरे के समानान्तर तथा पुस्तक के पन्नों की भांति एक-दूसरे पर व्यवस्थित रहती हैं। ये पटलिकाएँ दो पतली क्यूटिकल की पर्तों की बनी खोखली संरचनाएँ होती हैं। दो आसन्न पटलिकाओं के बीच एक संकरा वायु अवकाश पाया जाता है। ये वायु अवकाश ऑस्टिया द्वारा परिकोष्ठी प्रकोष्ठ में खुलते हैं।

पुस्त-फुफ्फुसों की रूधिर आपूर्ति (Blood Supply of Book-Lungs)

शरीर के विभिन्न भागों से एकत्र अशुद्ध या अन-ऑक्सीकृत रक्त अधर कोटर (ventral sinus) में एकत्र किया जाता है तथा अन्ध प्रवर्षों द्वारा पुस्त-फुफ्फुसों में भेजा जाता है। यह रक्त पुस्त-फुफ्फुसों की पटलिकाओं की गुहा में भर जाता है जहाँ यह ऑक्सीकृत होता है। ऑक्सीकृत रक्त पल्मोनरी शिरा (pulmonary vein) द्वारा हृदयावरणी गुहा में भेज दिया जाता है।

शवसन की क्रियाविधि  (Mechanism of repiration)

पुस्त-फुफ्फुसों में वायु का भीतर आना व बाहर निकलना पृष्ठ अधर पेशियों तथा परिकोष्ठी पेशियों के प्रसार एवं संकुचन से होता है। सामान्य अवस्था में वायु, अन्तर पटलिका वायु अवकाश ‘ में भरी रहती है। जब ये पेशियाँ संकुचित होती है तो इन अवकाशों में भरी वायु परिकोष्ठी प्रकोष्ठ में होती हुई श्वसन रन्ध्र द्वारा बाहर निकल जाती है। जब ये पेशियाँ फैलती हैं तो फुफ्फुस कोष्ठ फूल जाता है तथा वायु श्वसन रन्ध्र में होकर इस प्रकोष्ठ में प्रवेश कर अन्तर पटलिका वायु अवकाश में भर जाती है। फुफ्फुस प्रकोष्ठ में अन-ऑक्सीकृत रक्त तथा वायु पतली क्यूटिकल की पर्त द्वारा पृथक रहते हैं अतः रक्त तथा वायु के बीच गैसों का आदान-प्रदान हो जाता है। इस तरह रक्त ऑक्सीकृत हो जाता है। वायु से ऑक्सीजन ले ली जाती है तथा रक्त से कार्बन-डाइ-ऑक्साइड वायु में छोड़ दी जाती है। यह क्रिया विसरण विधि द्वारा होती है।

परिसंचरण तन्त्र (Circulatory System)

इसका परिसंचरण तन्त्र सुविकसित एवं खुले प्रकार का होता है। यह निम्न लिखित संरचनाओं से मिलकर बना होता है

  1. हृदय (Heart)
  2. हृदयावरण (Pericardium)
  3. धमनियाँ (Arteries)
  4. कोटर (Sinuses)
  5. शिराएँ (Veins)
  6. हृदय (Heart) : हृदय एक हरिताभ लम्बी नलिकाकार संरचना होती है। यह उदर पूर्वी भाग में यकृताग्नाशय की पृष्ठ खांच में पृष्ठक (terga) के नीचे स्थित होता है। आन्तरिक सलवटों द्वारा आठ प्रकोष्ठों में बंटा हाता है। प्रत्येक प्रकोष्ठ की पार्श्व सतह पर एक जोड़ी कपाट युक्त ऑस्टिया या छिद्र पाये जाते हैं।
  7. हृदयावरण (Pericardium) : हृदय के चारों तफ एक पतला झिल्लीनुमा आवरण पाया जाता है, जिसे हृदयावरण (pericardium) कहते हैं। हृदय बहुत से स्नायुओं द्वारा हृदयावरण से जुड़ा रहता है। ये स्नायु इस तरह विन्यासित होते हैं कि ये हृदयावरणी गुहा को एक पृष्ठीय, एक अधरीय तथा दो पाश्र्वय प्रकोष्ठों में बांटते हैं।
  8. धमनियाँ (Arteries) : हृदय से आगे की तरफ अग्र महाधमनी तथा पीछे की तरफ पश्च महाधमनी निकलती है। पार्श्व में हृदय के प्रत्येक प्रकोष्ठ से युग्मित पार्श्व दैहिक धमनियाँ निकलती

हैं।

(i) अग्र महा धमनी (Anterior aorta ) : यह हृदय के अग्र भाग से निकल कर आहारनाल की पृष्ठ सतह पर होती हुई आगे बढ़ती है। इससे एक जोड़ी आन्तरांग धमनियाँ निकल कर यकृताग्नाश्य तथा आंत्र को जाती हैं। यह धमनी डायफ्राम को छेद कर मस्तिष्क तक पहुँचती है। मस्तिष्क के पीछे यह फैलकर यह शिरस्थ प्रकोष्ठ (cephalic chamber) का निर्माण करती है। इस प्रकोष्ठ से धमनियाँ निकल कर सिर तथा वक्षीय उपांगों को जाती हैं। अग्रमहाधमनी से ही एक जोड़ी धमनियाँ निकलकर ग्रसिका को घेरते हुए नीचे जाकर परस्पर मिलकर अधि- तंत्रिका धमनी (supra neural artery) का निर्माण करती है। यह धमनी तंत्रिका रज्जु के ऊपर ही ऊपर पीछे तक चली जाती है।

(ii) पश्च महाधमनी (Posterior aorta):  यह हृदय के पश्च भाग से निकल कर पीछे तक चली जाती है, इससे पुच्छीय धमनी (caudal artery) कहते हैं। यह आंत्र पेशियों तथा पुच्छ खण्डों तक रक्त पहुँचाती है. तथा यह विष ग्रन्थि में समाप्त हो जाती है।

(ii) . दैहिक  धमनियों (Systemic arteries): हृदय के प्रत्येक प्रकोष्ठ से एक जोड़ी दैहिक धमनियाँ निकल कर एक जाल बनाती हैं तथा उदर पूर्वी भागों को रक्त पहुँचाती है।

4.कोटर (Sinuses): बिच्छु में परिसंचरण तन्त्र खुले प्रकार का होता है। धमनियाँ शाखाओं में बंट कर शिराओं का निर्माण नहीं करती हैं बल्कि इनकी अन्तिम शाखाएँ आन्तरांगों के भीतर छोटी-छोटी अवकाशिकाओं (lacunae) में खुल जाती है। इन अवकाशिकाओं से रक्त रक्त-कोटरों (blood sinuses) में एकत्र हो जाता है।

इसके शरीर में पांच रक्त कोटर पाये जाते हैं। इनमें से एक कोटर हृदय के चारों तरफ पाया जाता है जिसे हृदयावरणी कोटर (pericardial sinus) कहते हैं। इसके ऊपर की तरफ एक पृष्ठ कोटर (dorsal sinus) पायी जाती है। दो पार्श्व कोटरें (lateral sinuses) शरीर के पार्श्व में तथा शरीर की अधर सतह पर एक बड़ी अधर कोटर (ventral sinus) पायी जाती है। यहाँ से अन्ध -प्रवर्धा (diverticula) द्वारा रक्त शुद्ध होने के लिए पुस्त फुफ्फुसों (book lungs) में भेजा जाता है।

  1. फुफ्फुसीय शिराएँ (Pulmonary veins) :

प्रत्येक पुस्त फुफ्फुस से शुद्ध रक्त (ऑक्सीजिनेटेड रक्त) एक फुफ्फुसीय शिरा द्वारा हृदयावरणी कोटर (pericardial sinus) में भेज दिया जाता है। इस तरह बिच्छु में चार फुफ्फुसीय शिराएँ पायी जाती हैं। इनकी भित्ति पतली होती है

रक्त (Blood):

इसका रक्त या होमोलिम्फ रंगहीन होता है जिसमें थोड़ी नीला है। यह नीलाभ आभा रक्त या हीमोलिम्फ में उपस्थित हीमोसाइनिन । नाक के कारण होती है। इसमें हीमोग्लोबिन नहीं पाया जाता है बल्कि उसके स्थान पर हीमोसाइनिन पाया जाता है। हीमोसाइनिन की आणविक संरचना हीमोग्लोबिन की तरह ही होती है, केवल इतना अन्तर होता है कि हीमोसाइनिन में लोह प्रोटीन न होकर तांबे का प्रोटीन होता है। अर्थात् इसमें धात्विक आधार (metallic base) लोह के स्थान पर ताम्बा (copper) होता है। यह प्लाज्मा में घुली हई अवस्था में पाया जाता है। इसके अलावा रक्त या हीमोलिम्फ में अनेक केन्द्रकित कणिकाएँ पायी जाती हैं।

रक्त परिसंचरण मार्ग (Course of Blood Circulation) :

हृदय की बाहरी सतह से देहभित्ति तक लचीले स्नायु पाये जाते हैं। इनके संकचन से हृदय की गुहा फैल जाती है तथा ऑस्टिया खुल जाते हैं। ऑस्टिया के खुलने से हृदयावरणी गुहा में भरा रक्त तेजी से हृदय गुहा में भर जाता है। जब हृदय संकुचित होता है तो ऑस्टिया बन्द हो जाते हैं तथा रक्त पर दबाव पड़ता है जिससे हृदय गुहा में भरा. रक्त, धमनियों के द्वारा शरीर के विभिन्न भागों में भेज दिया जाता है। ये धमनियाँ अन्तरांग कोटरों में खुल जाती हैं तथा इन कोटरों में एकत्र रक्त अन्धप्रवर्धा (diverticula) .. द्वारा पुस्त फुफ्फुसों में शुद्ध होने के लिए जाता है। पुस्त फुफ्फुसों से शुद्ध रक्त फुफ्फुस शिराओं द्वारा हृदयावरणी कोटर में भेज दिया जाता है। जहाँ से रक्त .फिर हृदय द्वारा शरीर के विभिन्न भागों में भेज दिया जाता है। बिन्छू में रक्त परिसंचरण के मार्ग को निम्न आरेख द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है

 

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