टिड्डे का उत्सर्जी तंत्र और अंग क्या है Excretory System of locust in hindi समझाइये तंत्रिका तन्त्र (Nervoys System)

Excretory System of locust in hindi टिड्डे का उत्सर्जी तंत्र और अंग क्या है समझाइये तंत्रिका तन्त्र (Nervoys System) ?

उत्सर्जी तन्त्र (Excretory System):

टिड्डे में मुख्य उत्सर्जी अंग मेल्पीघी नलिकाएँ (Malpighian tubules) होती है जो मध्य आन्त्र पाच आन्त्र के संगम पर स्थित होती है व आहार नाल में ही खुलती है। मेल्पीघी नलिकाएँ अनेक बी-छोटी महीन पीताभ धागे समान अन्ध नलिकाएँ होती है जिनके स्वतन्त्र सिरे बन्द होते हैं। इन नलिकाओं की भित्ती कोशिकाओं के एक स्तर की बनी होती है जो बाहर से एक आधारी कला और अन्दर की ओर असंख्य सूक्ष्मांकुरों (microvilli) द्वारा आस्तरित रहती है। सुक्ष्मांकरों के कारण भीतर की ओर एक विशेष प्रकर का ब्रश बॉर्डर (brush border) का निर्माण होता है। मेल्पीघी नलिकाओं की ये कोशिकाएँ हीमोलिम्फ से उपापचयी क्रियाओं द्वारा उत्पन्न उत्सर्जी पदार्थों जैसे यरेटस को पृथक कर यूरिक अम्ल में बदल देती है। ये उत्सर्जी पदार्थ आहारनाल में मुक्त कर दिये जाते हैं। जिन्हें अपाचित भोजन के साथ शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है। मेल्पीघी नलिका के समीपस्थ अवशोषी भाग द्वारा जल का पुनः अवशोषण कर लिया जाता है। टिड्डे द्वारा शुष्क उत्सर्जी पदार्थों को त्यागा जाता है जो इनकी विशेषता होती है क्योंकि इनके शरीर में जल की मात्रा वैसे ही कम होती है।

तंत्रिका तन्त्र (Nervoys System)

टिड्डे का तंत्रिका तन्त्र निम्नलिखित संरचनाओं से मिल कर बना होता है

  1. केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र (Central nervous system)
  2. परिधीय तन्त्रिका तन्त्र (Peripheral nervous system)
  3. अनुकम्पी तंत्रिका तन्त्र (Sympathetic nevous system)
  4. केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र (Central nervous system) : इसका केन्द्रीय तन्त्र निम्नलिखित संरचनाओं से मिलकर बना होता है

(a) मस्तिष्क (Brain) : इसका मस्तिष्क पृष्ठ भाग में ग्रसिका के ऊपर स्थित रहता तीन जोड़ी अधिग्रसिका गुच्छिकाओं (supra oesophageal ganglia) के संगलन से निर्मित ही इसमें तीन भाग स्पष्ट रूप से दिखाई देते है (i) आगे की ओर बड़ा भाग आद्य प्रमस्तिष्क । cerebrum) जिसमें दो बडी-बडी दक पालियाँ (optic lobes) पाया जाता है। (ii) दूसरा भाग नि प्रमस्तिष्क (deuto cerebrum) कहलाता है जिसमें छोटी-छोटी दो पालियाँ पायी जाती तीसरा भाग ततीय प्रमस्तिष्क (trito cerebrum) कहलाता ह जा द्विताय प्रमास्तष्क क पीचर छोटी-छोटी पालियों के रूप में पाया जाता है। मस्तिष्क से तंत्रिकाएँ निकलकर नेत्रों, शृगिकाओं तथा सिर के अन्य अंगों को जाती है।

(b) अद्योग्रसिका गुच्छक (Sub oesophageal ganglion) : अद्योग्रसिका गुच्छक ग्रसिका के नीचे स्थित होता है। यह तीन जोड़ी गुच्छकों के संगलन से बनता है (मेन्डीबुली, जम्भिकी एवं लेबियमी)। इससे तंत्रिकाएँ निकल कर मुखांगों का जाती है।

अद्योग्रसिका गुच्छक एक जोडी परिग्रसिका संयोजकों (circum oesophageal connectives) द्वारा मस्तिष्क से जुड़ा रहता है।

अधर तंत्रिका रज्जु (Ventral neve cord) : अद्योग्रसिका गुच्छक से पीछे की ओर एक दोहरी अधर तंत्रिका रज्जू (ventral nerve cord) निकल कर शरीर के पश्च भाग तक फैली रहती है। अधर तंत्रिका रज्जू में वक्ष के प्रत्येक खण्ड में एक-एक युग्मित द्विपालित गुच्छक पाया जाता है इसी तरह उदर में पांच द्विपालित युग्मित गुच्छक पाये जाते हैं। उदर का पांचवा व अन्तिम गुच्छक सबसे बड़ा होता है, क्योंकि यह अन्तिम चार खण्डीय गुच्छकों के संगलन से बनता है। प्रत्येक खण्डीय गुच्छक से तंत्रिकाएँ निकल कर खण्डीय उपांगों को जाती है। अधर तंत्रिका रज्जू सभी खण्डीय गुच्छकों को समन्वित (co-ordinate) करती है।

परिधीय तन्त्रिका तन्त्र (Peripheral nervous system)

केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र के गुच्छकों से तंत्रिकाएँ निकल कर शरीर के विभिन्न भागों में जाती है वे सभी मिलकर परिधीय तंत्रिका तंत्र का निर्माण करती है।

आद्यप्रमस्तिष्क से एक जोड़ी दृढ़ दृष्टि तंत्रिकाएँ (optic nerves) निकल कर संयक्त नेत्रों को जाती है तथा तीन महीन नेत्रक तंत्रिकाएँ (occellary nerves) निकल कर नेत्रकों को जाती है। द्वितीय प्रमस्तिष्क से एक जोड़ी शृंगिकी तंत्रिकाएँ निकल कर शृंगिकाओं को जाती है। जनीय प्रमस्तिष्क से एक जोड़ी ऊोष्ठ ललाट तंत्रिकाएँ निकलती है जिसकी एक (labrum) को जाती है और दूसरी ललाटीय गुच्छिका से जुड़ी रहती है।

अद्योग्रसिका गच्छक से विभिन्न तन्त्रिकाएँ निकलकर अधोग्रसनी, मेन्डिबल जति अधोओष्ठ को जाती है। इसी गुच्छक से कुछ जोड़ी तत्रिकाए निकल कर ग्रीवा भी को जाती है

अधर तंत्रिका रज्जू के प्रत्येक गुच्छक से कई जोड़ी तंत्रिकाएँ निकल कर अपने-अपने खण्ड के विभिन्न उपांगों को जाती है।

अनुकम्पी तंत्रिका तन्त्र (Sympathetic Nervous System) :

अनुकम्पी (sympathetic) या स्वायत्त (autonomic) या आन्तरांगी (visceral) तंत्रिका तन्त्र के अन्तर्गत मस्तिष्क से सम्बन्धित कुछ गुच्छिकाएँ एवं तंत्रिकाएँ आती है।

(i) ललाटीय गुच्छिका (Frontal ganglion) : मस्तिष्क के सामने ग्रसनी के ऊपर स्थित होती है।

(ii) अनुकपालीय गुच्छिका (occipital ganglion) : मस्तिष्क के पीछे एवं ग्रसिका के ऊपर स्थित होती है।

  • खाद्य पुटीय गुच्छिकाएँ (Ingluvial ganglia) : ये जठरीय अन्धनालों के सम्मुख स्थित होते हैं। इन गुच्छकों से तंत्रिकाएँ निकल कर आहारनाल, हृदय, महाधमनी एवं जननांगों को जाती है तथा इन अंगों में होने वाली अनैच्छिक क्रियाओं को नियंत्रित करती है।

ज्ञानेन्द्रियाँ (Sense organs) :

टिड्डे में निम्न संवेदांग पाये जाते हैं

  1. स्पर्शांग (Tactile organ ) : शरीर के विभिन्न भागों विशेषरूप से श्रृंगिकाओं, स्पर्शकों सिरसों और टांगों के दूरस्थ खण्डों पर अनेक स्पर्श संवेदी रोम पाये जाते हैं जो स्पर्श ज्ञान कराते हैं।
  2. घ्राण अंग (Olfactory organs) : घ्राण या गन्ध ग्राही संवेदी अंग श्रृंगिकाओं पर पाये जाते हैं।
  3. स्वाद ग्राही अंग (Gustatory organs) : स्वाद ग्राही अंग विशेष रूप से मुखांगों व स्पर्शकों (palps) पर पाये जाते हैं।
  4. दृष्टि अंग (Visual organs) : टिड्डे में नैत्रक व संयुक्त नेत्र दृष्टि अंगों के रूप में पाये जाते हैं। नेत्रक (ocelli) प्रकाश संवेदी अंग होते हैं। इनके द्वारा केवल निकट की वस्तुओं के अस्पष्ट प्रतिबिम्ब बनते हैं। संयुक्त नेत्र संरचना व कार्य में प्रॉन व कॉकरोच की तरह ही होते हैं। (जिनका वर्णन पूर्व के अध्यायों में किया जा चुका है।)
  5. श्रवण अंग (Auditory organs) : प्रथम उदर खण्ड के पृष्ठक के दोनों पार्श्व तलों पर एक-एक श्रवण अंग उपस्थित होता है। यह एक कर्ण पटह (tymparum) का बना होता है जो लगभग वृत्ताकार काइटिनी वलय पर तना रहता है। इस कर्ण पटह के अन्दर के तल पर एक श्वेताभ संवेदी श्रवण उपकरण (auditory apparatus) या मूलर के अंग ( Muller’s organs) स्थित होता है, जिसकी संरचना में असंख्य तीन कोशिकीय स्तम्भ स्कोलोपीडियम (scolopedia) होते हैं। ये स्कोलोपीडिया श्रवण तंत्रिका द्वारा पश्च वक्षीय गुच्छक से जुड़े रहते हैं। ध्वनि तरंगें कर्ण पटह से टकराती है और उसे तरंगित करती है जिसकी संवेदना श्रवण तंत्रिका के माध्यम से केन्द्रीय तंत्रिक तन्त्र तक पहुँचा दिया जाता है, जिससे टिड्डे को श्रवण ज्ञान होता है। कुछ कीट तो मानव कानों की क्षमता (range) से परे की ध्वनी भी सुन सकते हैं।

टिड्डे अपनी पिछली टांगों के टिबियाई कंटकों को पंख शिरा पर रगड़कर ध्वनि उत्पन्न करते हैं। केवल नर टिड्डों में ही ध्वनि उत्पन्न करने की क्षमता पायी जाती है। प्रयोगात्मक अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि ध्वनि उत्पन्न करने व ध्वनि को सुनने का लैंगिक संगम के लिए कुछ महत्त्व होता है।