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excretion in invertebrates in hindi , अकशेरूकियों में उत्सर्जन क्या है कशेरूकियों में उत्सर्जन (Excretion in vertebrates)
समझेंगे excretion in invertebrates in hindi , अकशेरूकियों में उत्सर्जन क्या है कशेरूकियों में उत्सर्जन (Excretion in vertebrates) ?
उत्सर्जन की कार्यिकी (Physiology of Excretion)
प्राणियों की जीवित कोशिकाओं में खाद्य पदार्थों के उपाचय (metabolism) के फलस्वरूप ऊर्जा की प्राप्ति होती है जो अनेक शारीरिक क्रियाओं हेतु आवश्यक होती है। इसी के साथ कुछ हानिकारक पदार्थों (harmful substances) का निर्माण भी होता है। कोशिकाओं में कार्बोहाइड्रेट ि एवं (carbohydrates) वसाओं (fats) के उपापचय के फलस्वरूप CO, एवं H, O की प्राप्ति होती है। ये पदार्थ ‘C’, ‘H’, ‘O’ से बने होते हैं। जल शरीर की अनेक क्रियाओं में काम आ जाता है तथ CO2 श्वसन अंगों द्वारा शरीर से बाहर निकाल दी जाती है। इस प्रकार कार्बोहाइड्रेट्स एवं वसाक्ष के उपापचय से प्राप्त पदार्थों को देह से बाहर निकालने हेतु किसी भी विशिष्ट (specific) अ (organ) की आवश्यकता नहीं होती है। प्रोटीन्स का निर्माण ‘C’, ‘H’, ‘O’ के अतिरिक्त ‘N’ द्वारा में होता है। नाइट्रोजन की उपस्थिति के कारण प्रोटीन्स के उपापचय से अमोनिया (ammonia), यूरिया (urea), यूरिक अम्ल (uric acid) इत्यादि का निर्माण होता है। इन पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने हेतु एक विशिष्ट अंग की आवश्यकता होती है। कशेरूकियों में यह क्रिया वृक (kidneys) द्वारा सम्पन्न होती है। इस प्रकार ‘नाइट्रोजन युक्त) (nitrogenous), उपापचर्य (metabolic), अनुपयोगी पदार्थों (waste products) को शरीर से बाहर निकालने की क्रिया को उत्सर्जन (excretion) a ) कहते हैं।” शरीर के वे अंग जो इस क्रिया में सहायता प्रदान करते हैं. उन्हें ‘उत्सर्जी अंग’ (excretory organ) कहा जाता है।
उत्सर्जन की क्रिया शरीर के आन्तरिक वातावरण को (internal enviornment) स्थि (constant) बनाये रखने में मदद करती है। शरीर के आन्तरिक वातावरण को स्थाई अवस्थ (steady state) में बनाये रखने की क्रिया को समस्थिति या होमियोस्टेसिस (homeostasis) कहा जाता है। इस शब्द का उपयोग सर्वप्रथम क्लॉड बरनार्ड (claude Bernard) ने 1855 में किया था। यदि उत्सर्जी पदार्थों को शरीर से बाहर नहीं निकाला जाये तो शरीर का आन्तरिक वातावरण स्थि नहीं रह पाता है तथा साथ ही अम्ल-क्षार संतुलन (acid base blance) विक्षुब्ध (disturb) हो जात है। इस प्रकार उत्सर्जी पदार्थों के लम्बे समय तक शरीर में एकत्रित होने पर प्राणी के आन्तरिक वातावरण के दूषित होने के कारण मृत्यु (death) भी हो सकती है।
उत्सर्जन का महत्व (Significance of excretin)
1. यह क्रिया शरीर में समस्थैतिकता (homeostasis) की दशा बनाये रखने हेतु आवश्यक
होती है।
2. उत्सर्जन द्वारा जन्तुओं के शरीर में उपापचय के फलस्वरूप बनने वाले हानिकारक पदार्थ को शरीर बाहर निकाला जाता है।
3. इसके द्वारा प्लाज्मा, परासरण दाब, pH एवं रक्त संगठन में समस्थैतिकता बनी रहती है।
अकशेरूकियों में उत्सर्जन (Excretion in invertebrates)
मदद अधिकांश एककोशिकीय (unicellular) जन्तुओं में उत्सर्जन की क्रिया प्लाज्मा झिल्ली (plasma membrane) या कोशिका झिल्ली (cell membrane) द्वारा विसरण (diffusion) की विधि से सम्पन्न की जाती है। कुछ जन्तुओं में संकुचनशील रसधानी (contractile vacuole) भी इस क्रिया करती है। स्पंज (sponge) एवं सीलेन्ट्रेट्स (coelenterates) में अनुपयोगी पदार्थ अधिचर्म कुछ (epidermis) की कोशिकाओं से सीधे ही बाहर स्वच्छ जल अथवा समुद्री जल में निष्कासित कर दिये जाते हैं या अन्तचर्म (endodermis) की कोशिकाओं द्वारा नाल तंत्र (canal sy stem) अथवा जठरवाहिनी गुहा (gastrovascular cavity) में भेज दिये जाते हैं। प्लैटिहेल्मिन्थीज (platyhelminthes) अथवा चपटे कृमियों (flatworms) में उत्सर्जी अंगों के रूप में ज्वाला कोशिकाएँ (branched tubules) पाई जाती है जो उत्सर्जी उपशिष्ट पदार्थों को सीधे देह से बाहर निकाल देती है। ऐनेलिड (annelids) जन्तुओं में देहगुहीय तरल (coelomic fluid) से एकत्रित अपशिष्ट पदार्थों को वृक्क (nephridia) के द्वारा बाहर निकाला जाता है। कीटों (insects) में उत्सर्जन हेतु मैलीपीजी नलिकाएं (malpighian tubules) पाई जाती है जो अपशिष्ट पदार्थों को आहारनाल में निष्कासित करती है। अन्य आर्थोपोडा जन्तुओं में, क्रस्टेशिया में उत्सर्जन की क्रिया एन्टेनरी या मैक्सिलरी ( antennary or maxillary) ग्रन्थियों द्वारा होती है। मॉलस्क (mollusces) में उत्सर्जन के लिये एक या अधिक जोड़े वृक्क अथवा वृक्कों के होते हैं जो देहगुहा एवं रूधिर से अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालते हैं। इकार्डनोर्डम (echinoderms) में विशिष्ट उत्सर्जी अंग अनुपस्थिति होते हैं, इनमें उत्सर्जन की क्रिया अमीबोसाइट (amoebocytes) कोशिकाओं द्वारा होती है।
कशेरूकियों में उत्सर्जन (Excretion in vertebrates)
कशेरूकियों में उत्सर्जन हेतु निम्नलिखित रचनाएँ पाई जाती है :
(i) त्वचा (Skin ) : यह जल की अतिरिक्त मात्रा (excess water), लवण (salts) एवं CO2 को शरीर से बाहर निकालती है। स्तनधारियों (mammals) की त्वचा में उपस्थित स्वेद ग्रन्थियाँ (sweat glands) पसीने के रूप में अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निकालती है। (ii) फेफड़े (Lungs) : ये शरीर से मुख्यतया CO, तथा कुछ जल की मात्रा को भाप के रूप में बाहर निकालते हैं।
(iii) यकृत (Liver) : यह पित्त वर्णकों (bile pigments) को बाहर निकालता है। यूरिओटेलिक जन्तुओं में अमोनिया से यूरिया का निर्माण यकृत में किया जाता है तो रूधिर द्वारा वृक्क में पहुँचकर मूत्र के साथ शरीर से बाहर त्याग दिया जाता है।
(iv) आहार नाल (Alimentary canal) : यह अनेक लवणों (जैसे केल्शियम फॉस्फेट आदि को शरीर से बाहर निकालती है। इसके अतिरिक्त प्लीहा (spleen) एवं यकृत (liver) द्वारा अपशिष्ट पदार्थ पित्त रस (bile juice) द्वारा आंत्र (intestine) में पहुँचकर अपचित (undigested) भोजन के साथ बाहर निकाल दिये जाते हैं।
(v) क्लोम (Gills) : ये समुद्री मछलियों (marine fishes) में उपस्थित आवश्यकता से अधिक लवणों (salts) को बाहर निकालते हैं।
(vi) लवण ग्रंथियाँ (Salt glands) : ये कुछ समुद्री पक्षियों (marine birds) एवं सरीसृपों (reptiles) में पाई जाती है जो शरीर में लवणों की मात्रा को नियंत्रित करती है।
(vii) प्लीहा (Spleen) : इसकी एवं यकृत की कोशिकाएँ क्षतिग्रस्त (damaged) RBC को नष्ट करती है। इनमें उपस्थित श्वसन वर्णकों (respiratory pigments) को विखण्डन के फलस्वरूप रूप बिलीरूबिन (bilirubin), बिलिर्डिन (biliverdin) तथा यूरोक्रोम (urochorome) इत्यादि पदार्थ बनाये जाते हैं। इन पदार्थों का निष्कासन पाचन (digestive) एवं उत्सर्जी (excretory) तन्त्रों से किया जाता लिक है।
(viii) वृक्क (Kidneys) : अधिकांश कशेरूकियों में मुख्य उत्सर्जी अंगों के रूप में एक जोड़ी वृक्क पाये जाते हैं। ये आवश्यकता से अधिक जल (excess water), नाइट्रोजनयुक्त अपशिष्ट पदार्थ… (nitrogenous waste products), लवण (salts) एवं अन्य पदार्थों को मूत्र के साथ देह के बाहर
बने निकालते हैं।
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