यथातथ तथा अयथातथ अवकलन क्या है exact and inexact differential in thermodynamics in hindi ?
ऊष्मागतिक गुण एवं यथातथ तथा अयथातथ अवकल (Thermodynamic Properties and Exact and Inexact Differential)
माना कि Z एक तंत्र का मात्रात्मक ऊष्मागतिक गुण (ऊर्जा, एन्थैल्पी, एन्ट्रोपी, मुक्त ऊर्जा आदि) अवस्था फलन है। यह गुण कई चरों x, y, z का एक मानी फलन (single valued function) है अतः इसे निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है।
Z = f (x, y, z…….)………….(1)
चूकि ये चर तंत्र की अवस्था निर्धारित करते हैं, अतः चरों में परिवर्तन के कारण Z के मान में हुये परिवर्तन को निम्न प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है।
यहाँ ZB तथा ZA क्रमशः अन्तिम अवस्था एवं प्रारम्भिक अवस्था में Z के मान है। Z के मान में अनन्त सूक्ष्म परिवर्तन dZ को गणितीय रूप में इस प्रकार लिखा जा सकता है-
यहाँ आंशिक अवकलन संकेत
यह दर्शाता है कि इस पद में x के अतिरिक्त सारे
चर स्थिर रहते हुये के साथ Z में परिवर्तन की दर कितनी है। इसी प्रकार अर्थ अन्य संकेतों का भी होता है। समीकरण (2) Z का एक यथातथ अवकल समीकरण है तथा dZ एक यथायथ अवकल है। यथायथ (exact) अवकल को उपयुक्त सीमाओं के बीच समाकलित किया जा सकता है। यदि Z केवल x एवं चरों का एकमानी फलन हो तो
Z = f(x,y)
पुनः चुकि Z अवस्था फलन है, अतः हम लिख सकते हैं कि-
यथायथ अवकल का एक लाक्षणिक गुण यह भी होता है कि उसका चक्रीय समाकलन (Cyclic integral) शून्य होता है।
किसी चक्रीय प्रक्रम के लिये जिसमें तंत्र विभिन्न परिवर्तनों से गुजरते हुयें वापस अपनी प्राम्भिक अवस्था में आ जाता है तो उसके गुण विशेष में परिवर्तन (dZ) का मान शून्य होता है।
एक निश्चित उदाहरण के लिये, निश्चित संघटन के गेसीय तंत्र पर विचार करते हैं इस तंत्र के ऊष्मागतिक गुण जैसे आन्तरिक ऊर्जा (E), एन्थैल्पी (H) आदि तीन चरों ताप, दाब तथा आयतन में से किन्हीं दो पर निर्भर करते हैं। माना कि तंत्र की आन्तरिक ऊर्जा, दाब तथा ताप पर निर्भर करती है तो
E = f(P,T) …………………….(3)
समीकरण (2) का उपयोग करते हुये हम लिख सकते हैं कि
यदि E दाब (P) तथा आयतन (V) पर निर्भर करे तो
यदि E आयतन (V) तथा ताप (T) पर निर्भर करे तो
E = f(V,T)……………..(7)
इन परिणामों की भौतिक सार्थकता (Physical significance ) को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है। माना की आन्तरिक ऊर्जा आयतन तथा ताप का फलन है अतः आन्तरिक ऊर्जा परिवर्तन के लिए समीकरण (8) सही होगी।
यदि तंत्र के आयतन को ( V+ dV) तथा ताप को (T + dT) कर दिया जाये तो आन्तरिक ऊर्जा (E + dE) हो जायेगी। चूंकि E एक अवस्था फलन है अतः dE का मान आयतन तथा ताप में किये गये परिवर्तन के तरीके (रास्ते) से प्रभावित नहीं होगा परिवर्तन दो पदो में कर सकते हैं प्रथम पद में ताप को स्थिर रखते हुये आयतन को ( V+ dV) किया जाता है। इस प्रकार स्थिर ताप आयतन के साथ आन्तरिक ऊर्जा में परिवर्तन की दर
में चूंकि कुल आयतन परिवर्तन dV है, अतः इस पद
आन्तरिक ऊर्जा परिवर्तन होगी। dV होगा। दूसरे पद में आयतन को स्थिर रखते हुये ताप
(T + dT) किया जाता है। इस प्रकार स्थिर आयतन पद ताप के साथ आन्तरिक ऊर्जा में परिवर्तन की दर
होगी। चूंकि कुल ताप परिवर्तन dT है, अतः इस पद में आन्तरिक ऊर्जा परिवर्तन
होगा। दोनों पदों में आन्तरिक ऊर्जा में हुये परिवर्तन का योग आन्तरिक ऊर्जा में हुये कुल
परिवर्तन (dE) के बराबर होगा । अर्थात्
जो कि समीकरण (8) है।
दूसरी और q तथा w अवस्था फलन नहीं है तथा उनके परिमाण में परिवर्तन प्रक्रम के पथ पर निर्भर करता है। अतः ऊष्मा तथा कार्य के अवकल क्रमशः q तथा w अयथातथ अवकल (Inexact differentials) कहलाते हैं। हांलाकि उनमें अन्तर q- w एक यथातथ अवकल है। अयथावत अवकलों को समाकलित नहीं कर सकते हैं। अयथातथ अवकलन (Inexact differentials) जो अवस्था फलन नहीं होते हैं, के मान शून्य नहीं होते हैं। अतः
कार्य तथा ऊष्मा की धारणा (Concept of Work and Heat)
ऊष्मागतिकी में कार्य एवं ऊष्मा की धारणा अत्यन्त महत्वपूर्ण है इसलिए इनको समझना आवश्यक है। कार्य एवं ऊष्मा के संबंध में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जाना चाहिये
1. कार्य तथा ऊष्मा तंत्र की सीमा (boundary) पर उत्पन्न होते हैं।
2.कार्य तथा ऊष्मा तंत्र की अवस्था परिवर्तन के दौरान उत्पन्न होते हैं।
3. कार्य तथा ऊष्मा को पारिपाश्विक पर हुये प्रभाव द्वारा व्यक्त किया जाता हैं।
4. कार्य तथा ऊष्मा बीजीय राशियाँ (Algebric quantities) है। अतः इनके मानधनात्मक तथा ऋणात्मक दोनों ही हो सकते हैं।
5. कार्य एवं ऊष्मा दोनों ही अवस्था परिवर्तन के पथ पर निर्भर करते हैं अर्थात ये अवस्था फलन नहीं है। इसीलिए इन्हें ऊष्मागतिक राशियाँ नहीं माना जाता है। कुछ विशेष परिस्थितियों को छोड़कर न तो q (ऊष्मा) तथा w (कार्य) का अवकलन ( differentiation) और न ही dq तथा.. dw का समाकलन (integration) किया जा सकता है। इसीलिये dq तथा dw अ अवकल (Inexact Differential) कहलाते हैं। अयथातथ अवकल सामान्यतया का उपयोग करते हुये लिखे जाते हैं, उदाहरणार्थ q तथा w परन्तु प्रस्तुत पाठ्यक्रम में q तथा w स्थान पर dq तथा dw ही उपयोग किये गये हैं।
कार्य की धारणा (Concept of Work)
जब किसी तंत्र की अवस्था में परिवर्तन किया जाता है तो तंत्र की ऊर्जा में भी परिवर्तन होता है। यह ऊर्जा परिवर्तन कार्य द्वारा व्यक्त किया जाता है। यदि तन्त्र द्वारा उसके परिपाश्विक पर कार्य किया जाता है तो तंत्र की आन्तरिक ऊर्जा कम हो जाती है और पारिपाश्विक की ऊर्जा बढ़ जाती है इसके विपरीत यदि पारिपाश्विक तंत्र पर कार्य करता है तो तंत्र की ऊर्जा अधिक तथा परिपाश्विक की ऊर्जा कम हो जाती है तो बशर्ते कि इन परिवर्तनों के दौरान ऊष्मा का स्थानान्तरण नहीं हुआ हो ।
कार्य वास्तव में बल के प्रभाव को प्रदर्शित करता है तथा किसी बाह्यबल (External force) के विरूद्ध होता है यांत्रिक बल के विरूद्ध यांत्रिक कार्य (Mechanical work), वैद्युत बल के विरूद्ध वैद्युत कार्य (Electrical work), गुरुत्व बल के विरूद्ध गुरूत्व कार्य (Gravitational work), दाब के विरूद्ध प्रसार कार्य (Work of expansion) आदि कहलाते हैं। प्रत्येक प्रकार के कार्य दो गुणांकों के बराबर होता हैं एक तीव्रता गुणांक (Intensity factor) दूसरा धारिता गुणांक (Capacity factor) कहलाता है।
तीव्रता गुणांक (Intensity Factor )– जिस बाह्य बल (external force) के विरूद्ध कार्य किया जाता है उसका माप कार्य का तीव्रता गुणांक कहलाता है। उदाहरण के लिए प्रसार कार्य दाब विरुद्ध किया जाता है, अतः प्रसार कार्य का तीव्रता गुणांक दाब है।
धारिता गुणांक (Capacity Factor ) – बाह्य बल के विरूद्ध कार्य करने से तंत्र में हुये परिवर्तन कामाप धारिता गुणांक कहलाता है। दाब के विरूद्ध कार्य करने से आयतन में परिवर्तन होता है, अतः आयतन परिवर्तन धारिता गुणांक है। विभिन्न प्रकार के कार्यों के गुणांक एवं उनकी विमायें सारणी 1.3 में दर्शाये गये हैं।
उपरोक्त सारणी से स्पष्ट है कि कार्य की विमायें ऊर्जा की विमाओं के समान होती है। CGS मात्रक में कार्य की इकाई अर्ग (ergs) या डाइन सेमी (dyne cm) होती है।