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जीवाणुओं हेतु आवश्यक तत्व क्या है , स्रोत एवं उपयोग , essential elements for bacteria uses and sources in hindi

essential elements for bacteria uses and sources in hindi जीवाणुओं हेतु आवश्यक तत्व क्या है , स्रोत एवं उपयोग ?

नाइट्रोजन एवं खनिज (Nitrogen and minerals)

सभी सूक्ष्मजीवों के लिये कार्बन की भाँति नाइट्रोजन भी आवश्यक होती है। यह प्रोटीन एवं न्यूक्लिक अम्लों के निर्माण हेतु आवश्यक है। यह कुछ जीवाणुओं जैसे नाइट्रीकारी जीवाणुओं (nitrifying bacteria) में यह ऊर्जा स्रोत का कार्य भी करती है। नाइट्रोजन वातावरण में गैसीय अवस्था में वायु के 78% भाग के रूप में पायी जाती है, किन्तु कुछ ही जीवाणु इसे गैसीय अवस्था में प्रयोज्य अवस्था में बदलने की क्षमता रखते हैं। नाइट्रोजन जीवाणुओं द्वारा अमोनियम नाइट्रेट्स, नाइट्रइट एवं अमीनों अम्ल जैसे नाइट्रोजन युक्त कार्बनिक यौगिकों से प्राप्त की जाती है।

जीवाणु दो विधियों के द्वारा नाइट्रोजन प्राप्त करते हैं, एवं अन्य सजीवों को भी उपलब्ध कराते हैं। (i) सहजीवी नाइट्रोजन यौगिकीकरण जीवाणुओं द्वारा (By Symbiotic nitrogen- fixing bacteria) : कुछ सहजीवी जीवाणु जैसे राइजोबियम ( Rhizobium) लेग्युमिनस (Leguminous) कुल के पौधों अर्थात् फलीदार पादपों की जड़ों में उपस्थित गाँठों (root-nodules) में रहते हैं। ये आण्विक नाइट्रोजन को नाइट्रोजिनेस नामक किण्वक की उपस्थिति में अमोनिया में बदल देते हैं एवं इसका उपयोग अमीनों अम्लों के निर्माण में करते हैं। ये अमीनों अम्ल उपयोगी प्रोटीन्स के संश्लेषण में भाग लेते हैं अतः मुक्त नाइट्रोजन संजीव तंत्र के भीतर प्रवेशित होकर लाभकारी पदार्थों में परिवर्तित की जाती है।

(ii).कुछ स्वतंत्र रूप में रहने वाले जीवाणु नाइट्रोजन यौगिकीकरण की क्रिया द्वारा आण्विक नाइट्रोजन को अपचयित करके उपयोगी प्रकार जैसे अमोनिया में परिवर्तित कर देते हैं। ये मृदा में  उपस्थित रहते हैं जैसे- क्लोस्ट्रीडियम (Clostridium), एन्टेरोबैक्टर (Enterobacter), रोडोस्पिरिलम (Rhodospirillum) एवं क्लोरोबियम (Chlorobium) इन्हें भी नाइट्रोजन यौगिकीकरण जीवाणु कहते हैं।

कुछ रासायनिक स्वपोषी जीवाणु (chemo autotrophie bacteria) अमोनिया को उपयोग प्राप्त करने हेतु करते हैं। जैसे नाइट्रोसोमोनेस (Nitrosomonas ) अमोनिया को इसके आण्विक रू अमोनियम (NH+) में ऑक्सीकृत कर देते हैं। इस क्रिया के फलस्वरूप नाइट्राइट आयन (NO2) तथा ऊर्जा प्राप्त होती है-

NH3  +O नाइट्राइट जीवाणु → NO2 + Energy

कुछ सूक्ष्मजीव एवं अन्य प्राणी भी नाइट्राइट का कुछ मात्रा का उपयोग करने की क्षमता रखते हैं जिसका उपयोग ये अपनी उपापचयी क्रियाओं में करते हैं। नाइट्राइट की अधिक मात्रा मृदा में उपस्थित जैसे नाइट्रोबैक्टर (Nitrobacter) नाइट्रेट आयन (NO3) में ऑक्सीकृत कर देते हैं। क्रिया द्वारा भी उन्हें ऊर्जा उपलब्ध होती है-

NH3 +O   नाइट्राइट जीवाणु → NO + Energy

‘जिन नाइट्रेट्स का उपयोग नहीं हो पाता वे अमोनिया में अपचयित कर दिये जाते हैं। यह क्रिया डिनाइट्रीकरण (denirification) कहलाती है। थायोबेसिलस (Thiobacillus ) एवं सूडोमोनेस (Psuedomonas) जैसे मृदा जीवाणुओं द्वारा की जाती है –

NOडिनाइट्रीकरण जीवाणु → NH4

इस प्रकार नाइट्रोजन मुक्त अवस्था में सजीव तंत्र में प्रवेश कर उपयोग में लायी जाती है।

खनिज (Minerals) : सूक्ष्मजीवों को नाइट्रोजन एवं कार्बन के अतिरिक्त अनेक खनिजों जैसे सल्फर, फॉस्फोरस, पोटेशियम, कैल्शियम की अधिक मात्रा में एवं बोरॉन, मॉलिबिडनम, जिंक, कॉपर, कोबाल्ट, निकल, आयोडिन, ब्रोमीन, मैग्नीशियम, मैंगनीज, आयरन आदि की सूक्ष्म मात्रा में आवश्यकता होती है इन्हें सूक्ष्म मात्रिक तत्व (micro elements) कहते हैं। इनका उपयोग ये अपनी जैव रासायनिक क्रियाओं हेतु करते हैं।

गन्धक या सल्फर (Sulphur) सभी जीवों में महत्वपूर्ण तत्व है। यह अनेक संश्लेषणीय क्रियाओं में अपचयनित रूप (R-SH) में भाग लेता है। यह निर्जलीकरण द्वारा R-S-S-R गुट परिवर्तित हो जाता है जिससे अनेक जटिल यौगिकों का संश्लेषण किया जाता है। इनका जलीयकरण द्वारा अपचयन भी होता है। इन क्रियाओं द्वारा जीवाणुओं में ऑक्सीकरण अपचयन क्रियाओं का नियमन होता है। इस प्रकार बने उत्पाद सल्फेट का अपचयन निम्नलिखित पथ के द्वारा होता है- SO4  SO3        SO2   SO  H2S

सल्फर जीवाणु तथा थायोबैक्टीरिया सल्फर का उपयोग अपचयनित यौगिकों H2S या S2  क रूप में करते हैं। इस क्रिया में आण्विक ऑक्सीजन का उपयोग किया जात है तथा ऊर्जा उपलब्ध होती है जिसका उपयोग भोजन संश्लेषणी क्रियाओं में किया जाता है । उपोत्पाद के रूप में आण्विक सल्फर (S2 ) या सल्फेट आयन (SO4 ) बनते हैं।

H2S or S2 +O ऊर्जा S2 or SO4

यदि उपोत्पाद गन्धक होता है तो इसके कण कोशिकाओं के भीतर या बाहर एकत्रित हो जाते हैं जैसे रोगजनक जीवाणुओं में तथा यदि SO4 होता है तो खनिज उपोत्पादों के रूप में कोशिकाओं से बाहर उत्सर्जित किये जाते हैं।

फॉस्फोरस (Phosphorus) न्यूक्लिक अम्लों, अनेक किण्वकों, फॉस्फोलिपिड्स तथा अनेक कार्बनिक यौगिकों में उपस्थित रहता है। यह ऑक्सीजन के साथ संयोजित होकर कार्बन अणुओं में संलग्न होता है। यह कोशिकओं में ऊर्जा-उपापचयी क्रियाओं ( ATP ADP) में भाग लेता है। यह जीवाणु कोशिका के शुष्क भार के लगभग 5% भाग के रूप में P2O5 अवस्था में पाया जाता है। यह न्यूक्लिओ प्रोटीन्स, न्यूक्लिक अम्लों एवं फॉस्फोलिपिडस के रूप में अनेक आवश्यक क्रियाओं में भाग लेता है।

सूक्ष्मजीवी में होने वाली अनेक उपापचयी क्रियाओं में अनेक धातु भाग लेते हैं ये आयनिक अवस्थाओं में जीवद्रव्य में पाये जाते हैं। इनमें लौह, मैग्नीशियम, कैल्शियम, सोडियम, पोटेशियम, जिंक, बोरोन, कोबाल्ट, कॉपर, मॉलिबिडनम आदि महत्त्वपूर्ण है। लौह हीमिन (haemin) नामक रंगा पदार्थों में एवं साइटोक्रोम (cytochrome) नामक गुट में पाया जाता है। इसकी मात्रा में वृद्धि या कमी होने पर जीवाणुओं में उपापचयी क्रियाओं में परिवर्तन होने लगते हैं। जैसे डिप्थीरिया बैसीलस के माध्यम में जहाँ यह वृद्धि करता है, लौह की मात्रा में कमी या वृद्धि होने पर विभिन्न प्रकार के जैवविष (toxins) स्रावित होते हैं। एक अध्ययन के अनुसार ए. इन्डोलोजेनिस को लौह की न्यूनतम 0.025 भाग प्रति मिलियन की आवश्यकता होती है।

ब्राउन एवं गिबन्स (Brown and Gibbons, 1955) के अनुसार लवणरागी जीवाणुओं की वृद्धि हेतु Na, Mg, K एवं Fe अनिवार्य है। शंकर तथा बार्ड (Shankar and Bard, 1952) के अनुसार क्लोस्ट्रिडियम प्रोफजेल्स की वृद्धि के लिये Ca, Mg, Fe, Na तथा K की आवश्यकता होती है। यदि जीवाणुओं को Co काबोल्ट रहित माध्य में संवर्धित करते हैं तो ये समुचित अवस्था में तथा Mg एवं K की न्यूनता के फलस्वरूप तन्तुकीय रूप में उत्पन्न होते हैं। मौलिबिडनम् व बोरोन नाइट्रोजन यौगिकीकरण जीवाणु हेतु आवश्यक पाये गये हैं। Mg+ न्यून माध्यम में संवर्धित जीवाणु शलाका रूपी गोलाभ स्वरूप के उत्पन्न होते हैं।

सारणी – जीवाणुओं हेतु आवश्यक तत्वं इनके स्रोत एवं उपयोग

तत्व प्रमुख स्रोत जीवाणु हेतु उपयोग
C कार्बन CO2 वायु स्वपोषी जीवाणु CO2 को C में अपचयित कर आवश्यक सभी कार्बनिक अणुओं के मूल तत्व के रूप में उपयोग करते हैं। परपोषी जीवाणु पूर्वनिर्मित कार्बनिक पदार्थों के रूप में ग्रहण कर इन्हें CO2 में ऑक्सीकृत कर उपयोग में लाते हैं।
H हाइड्रोजन H2 जल कार्बनिक अणुओं एव अपचयन हेतु आवश्यक पदार्थों में उपस्थित होता है ।
O ऑक्सीजन

 

O2 वायु अधिकांश कार्बनिक अणुओं में उपस्थित वायुवीय श्वसन के दौरान इलेक्ट्रॉन ग्राही के रूप में उपयोगी तत्व होते है। अनेक क्रियाओं के उपोत्पाद रूप में उत्पन्न होती है।
P फॉस्फोरस

 

PO4 खनिज लवण एवं चट्टानें

 

न्यूक्लिक प्रोटीन, न्यूक्लिक अम्ल, प्रोटीन, किण्वकों, सह-किण्वकों एवं ऊर्जा संवहनीय अणुओं (ATP, ADP) आदि में उपस्थित ।

 

N नाइट्रोजन N2. वायु

 

अकार्बनिक अवस्थाओं NH3, NO2, NO3 के रूप में एवं कार्बनिक अवस्था में अमीनों अम्ल, न्यूक्लिओटाइड में उपस्थित होती है। यह न्यूक्लिक अम्लों, प्रोटीन्स एवं इलेक्ट्रॉन-वाहकों FAD + आदि के संश्लेषण हेतु उपयोगी होती है।

 

S सल्फर

 

SO4 मृदा

 

अनेक अमीनो अम्लों जैसे सिस्टीन मेथियोनीन आदि में उपस्थित होती है। सल्फर जीवाणु अपचयित अवस्था अथवा ऑक्सीकृत अवस्था में ऊर्जा स्रोत का इलेक्ट्रॉन ग्राही के रूप में उपयोग करते हैं। यह प्रोटीन के साथ मिलकर इलेक्ट्रॉन वाहक अणु के रूप में कार्य करते हैं ।

 

Fe लौह Fe+” या Fe++ मृदा इलेक्ट्रॉन ग्राही रूप में एवं साइटोक्रोम के रूप में उपस्थित ।

 

Mg मैगनीशियम Mg++ मृदा

 

स्वपोषी जीवाणुओं के क्लोरोफिल में एवं ATP उपापचय हेतु आवश्यक पदार्थ के रूप में उपस्थित
Ca कैल्शियम Ca++ मृदा

 

कोशिका भित्ति, गति, कोशिकीय विभाजन हेतु आवश्यक तत्व के रूप में उपस्थित, अन्तः बीजाणु निर्माण हेतु DPA के साथ भित्ति बनाने हेतु उपयोगी ।
Co कोबाल्ट

 

आयनिक अवस्थाओं में

उपस्थित

वृद्धि हेतु उपयोगी।
Zn जिन्क

 

मृदा वृद्धि हेतु उपयोगी ।
Bo बोरॉन
Cu कॉपर
Na सोडियम
K पोटेशियम
CI क्लोराइड
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