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equilibrium in liquid state in hindi द्रव अवस्थाओं में साम्य नियम क्या है सूत्र परिभाषा

द्रव अवस्थाओं में साम्य नियम क्या है सूत्र परिभाषा equilibrium in liquid state in hindi ?

घनत्व मापन द्वारा वियोजन की मात्रा ज्ञात करना (Determination of Degree of Dissociation by Density Measurements

वियोज्न अभिक्रियाओं में साम्यवस्था पर कुल मोलो की संख्या और आयतन दोनों में वृद्धि हो जाती है । अतः साम्यवस्था में गैसीय मिश्रण का वाष्प घनत्व घट जाता है। अतः वाष्प घनत्व मापन द्वारा वियोजन की मात्रा ∝ की गणना निम्न प्रकार से की जा सकती है।

एक सामान्य अभिक्रिया पर ध्यान दीजिये

A = nB

माना कि प्रारम्भ में A की एक मोल वाष्प का आयतन V है अतः प्रारम्भ में वाष्प घनत्व (D) आयतन (V) का व्युत्क्रमानुपाती होगा ।

यदि साम्यवस्था पर A के वियोजन की मात्रा ० हो तो साम्यवस्था पर A के मोल = 1 – c∝ तथा B के मोल = na प्राप्त होगें ।

यहाँ n = एक मोल अभिकारक से प्राप्त होने वाले उत्पाद के मोलों की संख्या है

द्रव अवस्थाओं में साम्य (Equilibrium in Liquid State)

पदार्थों के जलीय विलयन अथवा उनकी द्रव अवस्थाओं में अभिक्रियायें संभागी हो सकती है। अभिक्रियायें उत्क्रमणीय हों तो साम्यवस्था स्थापित हो जाती है। और उन अभिक्रियाओं में क्रिया नियम लगाया जा सकता है।

उदाहरण के लिए-

उपरोक्त अभिक्रियाओं के Kc के मान की गणना निम्न प्रकार से की जाती है।

x = साम्यवस्था पर अम्ल अथवा एल्कोहॉल के क्रिया करने वाले मोल हैं। यदि कुल आयतन V

साम्यवस्था पर सान्द्रतायें

विषमांगी साम्य (Hetrogeneous Equilirium) द्रव्य अनुपाती क्रिया नियम का उपयोग करके विषमांगी अभिक्रियाओं की साम्यवस्था का अध्ययन भी किया जाता है। विषमांगी अभिक्रियाओं में अभिकारक और उत्पाद एक ही प्रावस्था में नहीं होते हैं।

उदाहरण के लिए

विषमांगी अभिक्रियाओं के साम्यवस्था स्थिरांक के व्यंजक में ठोस की सान्द्रता तथा द्रव की सान्द्रता को सम्मिलित नहीं किया जाता है क्योंकि अभिक्रिया में ठोस और द्रवों की सान्द्रता (मोल प्रति में कोई परिवर्तन नहीं होता है ।

उपरोक्त साम्यवस्था एक बंद पात्र में CaCO3 को गर्म करके की जा सकती है। इस अभिक्रिया के

ला-शातॆलिए का नियम (Le-Chatelier’s Principle)

ला-शातैलिए ने 1884 में एक सामान्य नियम बनाया जो कि प्रत्येक प्रकार की रासायनिक अथवा भौतिक साम्यवस्थाओं पर समान रूप से लागू होता है।

इस नियम को निम्न प्रकार से परिभाषित किया गया है- यदि किसी अभिक्रिया की साम्यवस्था पर ताप, दाब अथवा सान्द्रता में परिवर्तन किया जाता है तो साम्यवस्था उस दिशा में विस्थापित हो जाती है ताकि किये गये परिवर्तन का प्रभाव नष्ट हो सके ।

अर्थात्-

(i) यदि किसी दाब में वृद्धि की जाती है तो साम्यवस्था उस दिशा में विस्थापित हो जाती है ताकि उस पदार्थ की सान्द्रता में कमी हो ।

(ii) यदि दाब में वृद्धि की जाती है तो साम्यवस्था कम दाब की दिशा में विस्थापित होती है।

(iii) यदि ताप में वृद्धि की जाती है तो साम्यवस्था ताप कम होने की दिशा में विस्थापित होती है।

इस नियम को कुछ उदारहणों की सहायता से समझा जा सकता है।

सान्द्रता परिवर्तन का प्रभाव (Effect of change in concentration) :- एक अभिक्रिया की साम्यवस्था पर यदि किसी अभिकारक अथवा उत्पाद की सान्द्रता में वृद्धि की जाती है तो साम्यवस्था उस दिशा में विस्थापित होती है ताकि उस पदार्थ की सान्द्रता में कमी हो ।

उदाहरण के लिए N2 और H2 द्वारा अमोनिया का संश्लेषण निम्न अभिक्रिया द्वारा होता है।

N2(g) + 3H2(g) → 2NH3(g)

यदि साम्यवस्था पर N2 अथवा H2 की सान्द्रता बढ़ाई जाती है तो साम्यवस्था अग्र दिशा में विस्थापित होती है ताकि N2 अथवा H2 की सान्द्रता में कमी हो। इसी प्रकार यदि साम्यवस्था पर NH3 की सान्द्रता बढ़ाई जाती है तो साम्यवस्था पश्च दिशा में विस्थापित होती है।

सामान्यतः यह कहा जा सकता है कि अभिकारकों सान्द्रता में वृद्धि अथवा उत्पादों की सान्द्रता में कमी साम्यवस्था को अग्र दिशा में विस्थापित करती है। अभिकारकों की सान्द्रता में कमी अथवा उत्पादों की सान्द्रता में वृद्धि साम्यवस्था को प्रतीप दिशा में विस्थापित करती है।

दाब परिवर्तन का प्रभाव (Effect of Change in Pressure) :- किसी गैसीय अभिक्रिया की जिस दिशा में गैसों के आयतन में कमी होती है। साम्यवस्था उस दिशा में विस्थापित होती है।

गैसों के आयतन उनके मोलों की संख्या पर निर्भर करते है अतः दाब में वृद्धि से साम्यवस्था उस दिशा में विस्थापित होती है जिस दिशा में मोलों की संख्या में कमी हो ।

(i) वें अभिक्रियायें जिनमें n < 0 अर्थात n ऋणात्मक हो, दाब बढ़ाने पर साम्यवस्था अग्र दिशा में और दाब में कमी करने पर साम्यवस्था पश्च दिशा में विस्थापित होती है।

(ii) वे अभिक्रियायें जिनमें n > 0 अर्थात् n धनात्मक हो दाब बढ़ाने से साम्यवस्था पश्व दिशा में और दाब में कमी करने पर साम्यवस्था अग्र दिशा में विस्थापित होती है।

(ii) वे अभिक्रियायें जिनमें An= 0 अर्थात् अभिकारक और उत्पादों के मोल समान होते हैं अत: साम्यवस्था पर दाब परिवर्तन का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

ताप परिवर्तन का प्रभाव (Effect of Change in Temeprature):- यदि किसी अभिक्रिया क साम्यवस्था पर ताप में वृद्धि की जाती है तो साम्यवस्था उस दिशा में विस्थापित होती है जिस दिशा में ऊष्मा का अवशोषण होता है।

ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया में

A+B = C + ऊष्मा

ताप बढ़ाने पर साम्यवस्था प्रतीप दिशा में विस्थापित होती है क्योंकि अभिक्रिया में प्रतीप की दिश में चलने पर ऊष्मा का अवशोषण होगा-

उपरोक्त सभी अभिक्रियाएं ऊष्माक्षेपी है। ताप बढ़ाने पर साम्यवस्था पश्च दिशा में और ताप घटाने पर साम्यवस्था अग्र दिशा में विस्थापित होती है।

ऊष्माशोषी अभिक्रियाओं के उदाहरण है-

उपरोक्त अभिक्रियायें ऊष्माशोषी है। ताप बढ़ाने पर साम्यवस्था अग्र दिशा में ताप घटाने पर साम्यवस्था पश्च दिशा में विस्थापित होती है ।

साम्यवस्था पर अक्रिय गैस मिलाने का प्रभाव (Effect of Addition of Inert Gas on Equilibrium)

(i) वे अभिक्रियायें जिनमें n = 0 होता है की साम्यवस्था पर अक्रिय गैस मिलाने का कोई प्रभाव नहीं होता क्योंकि Kp का मान कुल दाब पर निर्भर नहीं करता है ।

(i) जिन अभिक्रिया में n का मान शून्य नहीं होता उनकी साम्यवस्था पर अक्रिय गैस मिलाने का प्रभाव निम्न प्रकार होता है

(a) स्थिर आयतन पर (At constant volume) :- यदि आयतन में परिवर्तन हुए बिना कोई अक्रिय गैस मिलाई जाती है तो साम्यवस्था पर कोई प्रभाव नहीं होता है। अक्रिय गैस मिलाने पर यद्यपि कुल में वृद्धि हो जाती है, परन्तु अभिकारकों और उत्पादों के आंशिक दाबों में परिवर्तन नहीं होता है। क्योंकि कुल दाब में वृद्धि अक्रिय गैस के मिलाये गये मोलों के अनुक्रमानुपाती होती है ।

(b) स्थिर दाब पर (At constant Pressure) :- यदि दाब स्थिर रखते हुए अक्रिय गैस मिलाई जाती है तो आयतन में वृद्धि होती है अर्थात् मोलों की संख्या में भी वृद्धि होती है, परिणामस्वरूप अभिकारकों और उत्पादों की आंशिक भिन्न में कमी होती है और अन्ततः उनके आंशिक दाबों में कमी होती है । अतः जिन अभिक्रियाओं में n> 0 अर्थात् धनात्मक होता है साम्यवस्था अग्र दिशा में विस्थापित होती है, उदाहरण के लिए-

जिन अभिक्रियाओं में n< 0अर्थात ऋणात्मक होता है में साम्यवस्था पश्चदिशा में विस्थापित होती है, उदाहरण के लिए

संक्षेप में कहा जा सकता है कि स्थिर दाब पर अक्रिय गैस मिलाने पर साम्यवस्था बढ़े हुए आयतन की दिशा में विस्थापित होती है।

भौतिक साम्य (Physical Equlibrium)

उपरोक्त साम्यवस्थाओं में भी ला – शातैलिए नियम का उपयोग किया जा सकता है।

बर्फ का गलनांक दाब बढ़ाने से घटता है।

जल का क्वथनांक दाब बढ़ाने से बढ़ता है।

बर्फ के अतिरिक्त अन्य ठोसों के गलनांक दाब बढ़ाने से बढ़ते हैं।

KCI की विलेयता ताप बढ़ाने से बढ़ती है जबकि (CH3 COO)2Ca की विलेयता ताप बढ़ाने से घटती है, आदि प्रेक्षणों को ला-शातेलिए नियम द्वारा समझाया जा सकता है।

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