पर्यावरण प्रतिरोध किसे कहते है | पर्यावरण प्रतिरोध की परिभाषा क्या है अर्थ मतलब प्रकार Environmental resistance in hindi

Environmental resistance in hindi पर्यावरण प्रतिरोध किसे कहते है | पर्यावरण प्रतिरोध की परिभाषा क्या है अर्थ मतलब प्रकार ?

पर्यावरण प्रतिरोध (Environmental resistance)

यह उन सभी कारकों का सकल योग होता है जो प्रकृति में जीवों की समष्टियों को समाप्त करने अथवा मारने की ओर प्रवृत्त होते हैं। मृत्यु कारकों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है रू
क) भौतिक अथवा अजैविक कारक
ख) जैविक कारक

क) भौतिक अथवा अजैविक कारक (Physical or abioticf actors)
भौतिक कारक जैसे कि तापमान, आर्द्रता, वर्षा, सूर्य का प्रकाश, स्थान आदि सदैव सघनता-निरपेक्ष विधि से कार्य करते हैं। इसकी क्रिया की तीव्रता उन जीवों की समष्टि सघनता से संबंधित नहीं होती जिन पर ये कारक कार्य करते हैं, मृत्युता कम समष्टि पर अधिक हो सकती हैं या अधिक समष्टि घनत्व पर बहुत ही कम हो सकती है। अतरू इन्हें घनत्व-निरपेक्ष मृत्युता कारक अथवा विपद्कारी कारक कहते हैं ।

ख) जैविक कारक (Bioticf actors)
जैविक मृत्युता कारक जैसे कि प्राकृतिक शत्रु (परजीव्याभ, parsaitoids, परभक्षी तथा रोगजनक) या तो घनत्व-सापेक्ष या घनत्व-निरपेक्ष रूप में कार्य कर सकते हैं। घनत्व सापेक्ष मृत्युता कारकों में जिन जीवों पर वे क्रिया करते हैं जीवों की समष्टि में वृद्धि के साथ-साथ उनकी मृत्युता तीव्रता बढ़ जाती है और जब जीव की समष्टि घटती है तब वह भी कम हो जाती है। घनत्व-निर्भर विधि में कार्य करने वाला प्राकृतिक शत्रु जीवों के जैविक नियंत्रण में लाभकारी होता है। घनत्व-निर्भर कारक प्रभाव्य जीवों के समष्टि-घनत्व का नियमन करता है। घनत्व के नियमन का अर्थ है कि वे घनत्व को न तो बहुत ऊँचे स्तर पर पहुँचने देते हैं और न ही उसे विलुप्त होने देते हैं। नियमन के द्वारा प्राकृतिक शत्रु स्वयं अपनी उत्तरजीविता को भी सुनिश्चित करते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि आहार के अभाव में उनकी अपनी समष्टि भी नष्ट हो जाएगी।

 जैविक विभव तथा पर्यावरण प्रतिरोध के बीच परस्पर क्रिया
जैविक विभव तथा पर्यावरण प्रतिरोध के बीच परस्पर क्रिया से प्रकृति का संतुलन निम्नलिखित विधियों द्वारा होता है।
ऽ उच्च जैविक विभव वाले जीवों को प्रकृति में अधिक पर्यावरण प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है। अधिकतर पीड़क-समष्टियों में उच्च जैविक विभव पाया जाता है। इस तरह पीड़कों की अतिसमष्टि का होना अथवा पीड़क महामारियां नहीं हो पातीं। परंतु, कृषि पारितंत्रों में सस्य प्रचलनों एवं पीड़कनाशी अनुप्रयोग के कारण उनके प्राकृतिक शत्रुओं की समष्टियों पर प्रतिकूल असर पड़ता है। इससे पीड़क-समष्टियों के प्रति पर्यावरण प्रतिरोध कम हो जाता है और इस तरह पीड़क महामारियां होती पायी जाती हैं।

ऽ निम्न जैविक विभव वाले जीवों को प्रकृति में कम पर्यावरण प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है। इसके द्वारा सुनिश्चित होता है कि जीवों की प्रजातियां विलुप्त नहीं हो पातीं। अधिकतर उच्चतर प्राणियों और पक्षियों में निम्न जैविक विभव पाया जाता है, परंतु पैतृक रक्षण (चंतमदजंस बंतम) द्वारा वे अपनी संतान की उत्तरजीविता सुनिश्चित करते हैं। परंतु मानवीय हस्तक्षेप द्वारा जब ऐसी प्रजातियों के लिए पर्यावरण प्रतिरोध बढ़ जाता है तब वे विलुप्त हो जाती हैं। अनेक वन्य जीवन एवं अन्य प्राणी प्रजातियां मानवों के आखेटी अथवा चोर-शिकारी क्रियाकलापों द्वारा विलोप का सामना कर रही हैं।

ऽ किसी नए क्षेत्र में आकस्मिक आप्रवेशित प्रजाति वहां पर बहुत उच्च संख्यक समष्टि प्राप्त कर लेती है। जब कोई पीड़क प्रजाति संगरोध लापरवाही के कारण किसी नए देश में प्रवेश कर जाती है तब उसकी प्राकृतिक शत्रु प्राणिजात पीछे छूट गया होता है। अतरू उस नए क्षेत्र में उसे कम पर्यावरण प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है और इस प्रकार उसकी तीव्र संख्या वृद्धि होती है। नए देशों में प्रवेश करने वाले पीड़कों को विदेशागत (exotic) अथवा विदेशी पीड़क कहते हैं। उदाहरणतः आलू का कंद शलभ थोरीमिया ऑपकुलेला (Phthorimaea operculella), ष्डायमंड बैक मॉथ” प्लूटेला जाइलोस्टेला (Plutella rylostella), सेब का रोएंदार एफिड एरियोसोमा लेनिजेरम (Eriosoma lanigerum),सुनहरा पुटी नेमैटोड, आदि भारत में प्रवष्टि हुए विदेशी पीड़कों के कुछ उदाहरण हैं।

बोध प्रश्न 5
प) दो प्रकार के समष्टि वृद्धि स्वरूपों के नाम लिखिए।
पप) जनन विभव किसे कहते हैं?
पपप) पोषण विभव किसे कहते हैं, समझाइए।
पअ) जैविक मृत्युता कारक क्या होते हैं?
अ) विदेशागत पीड़क किन्हें कहते हैं?

उत्तरमाला

5) प) समष्टि वृद्धि J-आकृति की तथा S-आकृति की होती है।
पप) जीवों में वंशागत पायी जाने वाली जनन क्षमता जनन विभव कहलाती है।
पपप) जीवों में प्राकृतिक संसाधनों को आहार के रूप में उपयोग करने की क्षमता पोषण विभव कहलाती है।
पअ) परजीवी, परभक्षी तथा रोगजनकों जैसे सजीव जीवधारियों, जो एक-दूसरे को मारते हैं जैविक, मृत्युता कारक कहा जाता है।
अ) ऐसे पीड़क जो संगरोध में हुई लापरवाही के कारण विदेशों से किसी नए देश में पहुंच जाते हैं बाह्यगत पीड़क कहलाते हैं।

समष्टि आकलन – पीड़क प्रबंधन का मात्रात्मक आधार
पीड़क समष्टि का आकलन इन चार बातों के लिए चाहिएरू
1) यह निर्धारित करना कि क्या पीड़क समष्टि आर्थिक स्तरों पर पहुंच गयी है
2) नियंत्रण उपायों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करना
3) परपोषी पादप प्रतिरोध की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करना
4) समष्टि गतिकी का अध्ययन करना

समष्टियों का आकलन पीड़क के आवास के प्रतिचयन द्वारा किया जाता है। प्रतिचयन आवश्यक है क्योंकि आवास के भीतर पीड़क की प्रत्येक व्यष्टि को गिन सकना असंभव है। अतः पीड़क समष्टि को कुछ चुने हुए पौधों अथवा पौधों के अलग-अलग भागों जैसे पत्ती, स्तम्भ अथवा पुष्पक्रम पर अथवा फसल के भूखण्ड पर गिना जाता है। इसलिए इन इकाइयों अर्थात् पौधे, पौधे के भाग अथवा उस भूखण्ड जिस पर पीड़क समष्टि रिकार्ड की गयी हो, को प्रतिचयन इकाई (sampling unit) कहते हैं। पीड़क समष्टि को आवास के भीतर यादृच्छिक रूप में चुनी गई कई प्रतिचयन इकाइयों पर से रिकार्ड किया जाता है। पीड़क समष्टि के आकलन में इस्तेमाल की गयी प्रतिचयन इकाइयों की संख्या एक प्रतिचयन (sample) होती है। इन प्रतिचयन इकाइयों को यादृच्छिक कहा जाता है क्योंकि प्रतिचयन में प्रत्येक इकाई को शामिल किए जाने के समान अवसर दिए जाते हैं। इन इकाइयों के चयन में हमें अपनी कोई अभिनति या झुकाव नहीं बनाना चाहिए। इसे सांख्यिकीय तकनीकों के अपनाने से सुनिश्चित किया जा सकता है जैसे कि प्रतिचयन इकाई में यादृच्छिक संख्याओं का उपयोग करके। तब समस्त प्रतिचयन इकाइयों की समष्टि का औसत निकालकर औसत समष्टि घनत्व का हिसाब लगाया जा सकता है। इस प्रतिचयन आकलन को खेत की वास्तविक पीड़क समष्टि का प्रतिनिधि स्वरूप लिया जाता है।

समष्टि आकलनों के प्ररूप
समष्टि आकलन के तीन प्ररूप पाए जाते हैं रू
क) निरपेक्ष आकलन
ख) आपेक्षित आकलन
ग) समष्टि सूचकांक

 निरपेक्ष आकलन (Absolute estimates)
निरपेक्ष आकलनों में पीड़क समष्टि को प्रति इकाई क्षेत्रफल में पीड़कों की संख्या के रूप में दर्शाया गया है। ये तीन क्षेत्रों — वनस्पति, वायु तथा मिट्टी से प्राप्त किए जाते हैं।

प) वनस्पति से निरपेक्ष आकलन (Absolute estimates from vegetation) – इसकी सीधी विधि तो यह है कि मृदा सतह के इकाई क्षेत्रफल के ऊपर सभी प्रकार की पादप सामग्री का प्रतिचयन किया जाए। इसकी वैकल्पिक विधि यह होती है कि एक पौधे और पौधे के भाग जैसे कि किसी एक शाखा या पत्ती को प्रतिचयन की इकाई के रूप में लिया जाये। तब हमें यह भी जानना होगा कि प्रति इकाई क्षेत्रफल में कितनी प्रतिचयन इकाइयां ली गयी हैं। उसके बाद प्रति प्रतिचयन इकाई की पीड़क संख्या को प्रति इकाई भूमि क्षेत्रफल की प्रतिचयन इकाइयों की संख्या में गुणा किया जाए। उदाहरणतः गेहूँ के खेत में प्रति इकाई क्षेत्रफल में एफिडों की संख्या का आकलन प्रति तलशाखा (tiller) पर एफिड संख्या को प्रति इकाई क्षेत्र में तलशाखाओं की संख्या से गुणा करके किया जाता है।

पप) वायु से निरपेक्ष आकलन (Absolute estimates from air) – इस कार्य के लिए दो मूलभूत विधियां अपनायी जाती हैं चूषण जाल (suction traps) तथा घूर्णन जाल (rotary traps)। चूषण जाल स्थिर प्रकार के होते हैं। इनमें प्राय: धातु जाली की बनी एक शंक्वाकार संरचना होती है और एक बिजली के पंखे के द्वारा इसके भीतर को हवा खींची जाती है। ऐसे जालों में मात्र कीट ही पकड़े गए होते हैं अत: प्रति प्रतिचयन में गणना करना एक समस्या रहती है। इन पकड़ों में कीट प्रति घंटे का संदर्भ रहता है और इन्हें वायु घनत्व में बदलना होता है।

पपपद्ध मृदा से निरपेक्ष आकलन (Absolute estiimates from soil) – मृदा पीड़कों का प्रतिचयन एक पूर्वनिर्धारित गहराई तक एक इकाई क्षेत्र को खोदकर किया जाता है। यदि प्रतिचयित कीट छोटा है, बड़ी संख्या में है एवं मृदा में गहराई पर है तब क्रोड़ प्रतिचयन सबसे अच्छी युक्ति है। यदि कीट बड़े आकार का है एवं कम घना है एवं करकट के भीतर अथवा 1cm शीर्ष मृदा में है तब प्रतिचयन इकाई बड़े क्षेत्र की लेनी चाहिए। प्रायरू करकट का एक वर्ग मीटर तथा 1cm शीर्ष मृदा की प्रतिचयन इकाई ठीक ही रहती है। उसके बाद पीड़कों को शुष्क विधियों से जैसे कि बर्लीज फनेल (Berlese funnel) द्वारा पृथक किया जाता है (चित्र 7.5)।

 आपेक्षिक आकलन (Relative estimates)
आपेक्षिक आकलन द्वारा किसी आवास में मौजूद वास्तविक पीड़क समष्टि का कुछ अंश ही पता चल पाता है। इन आकलनों से किसी आवास में कालांतर में समष्टि में आने वाले परिवर्तनों के अध्ययन में सहायता मिलती है। निरपेक्ष विधि में अत्यधिक परिश्रम लगाना होता है परंतु, आपेक्षिक विधियां कम खर्चीली होती हैं एवं इनसे नियंत्रण उपायों की प्रभावशीलता में पर्याप्त सूचना मिलती है तथा समय और स्थान के संदर्भ में समष्टि – की तुलना भी हो सकती है। पीड़क मॉनीटरन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी स्थान में मौजूद पीड़क जीवों की संख्या एवं उनकी जीवन अवस्थाओं का पता चल जाता है। कुछ विशिष्ट स्काऊटिंग युक्तियां और तकनीकें नीचे बतायी जा रही हैं।

पद्ध पौधों पर देखकर गिनना (Visual counting onplants) – व्यष्टिगत पीड़कों को पत्तियों, स्तम्भों तथा फलों पर गिना जाता है। उदाहरणतः पादप भागों को काटकर खोला जा सकता है जिनके भीतर से प्रतिस्तम्भ स्तम्भ बेधक लार्यों को तथा प्रतिफल मक्खी-लाओं को अथवा प्रति प्रकंद घुन-लाओं को गिना जा सकता है। कुछ पीड़कों को एक्स-रे द्वारा देखा जाता है जैसे सोरघम में भिन्न लार्वे, स्तम्भों में लेपिडॉप्टेरस लार्वे, अथवा भण्डारित अनाजों में बीटल आदि। इस काम के लिए कीटनाशी का इस्तेमाल करके पौधे से तितर-बितर हो जाने वाले कीटों को भी गिना जा सकता है।

उदाहरणतः, सोरगम की बालों को एक बक्से के भीतर रखकर ऐसे ही कीटनाशकों से उपचारित करके मत्कुण तथा थ्रिप्स बाहर आ जाते हैं जिसके बाद उन्हें गिना जाता है। छोटे कीटों को हाथों से अथवा मशीन से हटाया जा सकता है या उन्हें खुरच कर अलग किया जा सकता है जैसे गन्ने पर से सफेद शल्क कीटों को। एफिडों को जल में डाला जा सकता है और तब प्रति इकाई जल आयतन में उनकी संख्या के आधार पर उनका आकलन किया जा सकता है। पौधों अथवा उनके भागों को पात्रों के भीतर बंद किया जा सकता है और फिर एक चूषण प्रतिचयनक के द्वारा उनके पीड़कों को एकत्रित किया जा सकता है। आपेक्षिक विधियों में प्रति इकाई क्षेत्र में प्रतिचयन इकाइयों की संख्या जाननी आवश्यक नहीं। अत: प्रतिचयन में बहुत बचत होती है।

पप) जल पाश (Water traps) – जल पाश उथली पानी से भरी प्लास्टिक अथवा धातु की बनी ट्रे होती हैं। कभी-कभार ये पेंट की हुई होती हैं जैसे कि पीले रंग की, या इनमें कोई फीरोमोन अथवा आकर्षी डाल दिया जाता है। इन पाशों को मौसम द्वारा खराब होने से बचाया जाना चाहिए। पकड़े गए कीटों को नियमित रूप में हटाया जाता रहना चाहिए तथा उन्हें लगातार भरा जाता रहना चाहिए। यदि पाशों को जमीन स्तर से ऊँचा रखा जाए तो वे ज्यादा प्रभावकारी होते हैं, परंतु कितनी ऊँचाई पर रखा जाए यह इस बात पर निर्भर होता है कि कौन सी स्पीशीज (प्रजाति) का प्रतिचयन किया जा रहा है एवं वर्ष का समय कौन सा है। पाश में खड़े व्यारोध (इिंसिमे) रखने से ज्यादा कीट पकड़ में आते हैं। एफिडों के प्रतिचयन में पीले जल पाशों का उपयोग किया गया है। भारत में जल पाशों को साथ में मछली-आहार चारा रखकर सौरघम की प्ररोह मक्खियों को आकृष्ट करने में इस्तेमाल किया गया है (चित्र 7.6)।

पपप) प्रसी पाश (Seep net) – प्रसी पाश का उपयोग सामान्य समष्टि मूल्यांकन के लिए किया जाता है। यदि पाश के व्यास प्रसों की संख्या एवं तकनीक का मानवीकरण कर लिया जाए तो प्रतिचयन से प्रतिचयन-संगत परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। कितना पकड़ा गया इसको प्रति प्रसर्प औसत पीड़क संख्या के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है।

धरातल कपड़ा (Ground cloth) – सोयाबीन तथा सौरघम जैसी पत्तियों में उगायी जाने वाली फसलों के लिए धरातल कपड़ा विधि सर्वाधिक अपनायी जाती है। झाड़ खरपतवारों के प्राणिजात के प्रतिचयन हेतु भी यह विधि पर्याप्त है। इस विधि में एक मोटा कपडा लिया जाता है जिसे प्रतिचयन किए जाने वाले पौधों के नीचे फैला दिया जाता है। उसके बाद पौधों को हिलाया जाता अथवा लकड़ी के एक डंडे से पीटा जा सकता है। इससे कीट कपड़े पर आ गिरते हैं और उन्हें एकत्रित किया जा सकता है। तीव्र गति से चलने वाले कीटों का प्रतिचयन करते समय ऐस्पिरेटर का उपयोग किया जाना चाहिए।

पअ) विंडोपेन (खिड़की-शीशा) पाश (Windowpane traps) – उड़नशील कोलियोप्टेरा (बीटलों) का प्रतिचयन विंडोंपेन पाशों से किया जा सकता है। इसमें सीधी खड़ी एक कांच की प्लेट होती है जिसके नीचे परिरक्षक भरी एक ट्रफ रखी होती है। (चित्र 7.7)। कांच से टकराने वाला प्रत्येक कीट नीचे गिरता हुआ पकड़ में आ जाता है। यह पाश विशेष तौर पर कीटों की उड्डयन निर्धारण करने में उपयोगी होता है और साथ ही इसके द्वारा फैलाव उड्डयन के समय की सूचना भी उपलब्ध हो सकती है। पाशद्वारा कैसा संग्रहण होगा यह वर्षा तथा मौसमसंबंधी अन्य दिशाओं पर निर्भर होता है एवं इस पर भी कि खेत में पाश का स्थान क्या है एवं उसकी ऊँचाई क्या है।

अ) चिपकन पाश (Sticky traps) – चिपकन पाश विंडोपेन पाश का ही रूपांतरण है। इसमें कांच की अथवा अन्य किसी सतह पर
कोई इतना चिपचिपा पदार्थ पोत दिया जाता है जो टकराने वाले कीट को नीचे परिरक्षक में गिरने की बजाए अपने में चिपका लेता है (चित्र 7.8)। चिपकन पाशों को उन अनेक कीटों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है जिन्हें विंडोपेन पाश से नहीं पकड़ा जा सकता, जैसे सरसों में एफिडों के लिए पीले चिपकन पाश।

पअ) मैलेसे पाश (Malaise traps) – मैलेसे पाश में जाली का बना एक तम्बू होता है जिसमें एक पार्श्व खुला होता है जिसमें उच्चतम बिंदु पर एक छोटा पात्र लगा दिया जाता है (चित्र 7.9)। कीट खुली दिशा से या तो रेंगते जाने अथवा उड़ते हैं। अधिकतर कीट एक बार अंदर पहुंच गए तो रेंगते जाते या उड़ते हैं तथा उन्हें पकड़ा जा सकता हैं। ये जाल सक्रिय प्रजातियों के लिए सर्वोत्तम हैं जैसे कि व्यस्क मक्खियां तथा ततैये आदि। एफिड जैसे कीटों के लिए ये पाश उपयुक्त नहीं रहते क्योंकि जाली के खाने इतने छोटे होने जरूरी हैं कि आश्रय प्रभाव तो पैदा हो मगर पाश में से वायु के प्रवाह में बाधा न आए।

पअ) गढ़ा पाश (Piftall traps) – गढ़ा पाशों का इस्तेमाल ऐसे कीटों को पकड़ने के लिए किया जाता है जो मिट्टी की सतह पर चलते-फिरते हैं जैसे धरती-बीटल, मकड़ियां तथा कोलेम्बोलन। इन्हें बनाना बड़ा आसान है। ये चिकने पाशें वाले पात्र होते हैं जैसे जमीन में को घुसाए गए कांच के जार (चित्र 7.10)। इन्हें परभक्षियों से बचाना जरूरी है अन्यथा वे ही पकड़े गए कीटों को खा जाएंगे। इन्हें वर्षा से भी बचाना जरूरी है।

अपपप) चूषण पाश (Suction traps) – चूषण पाश कीटों को चूसकर कर पकड़ते हैं। इसमें एक मोटर होता है जिससे चूषण पैदा किया
जाता है। चूषण पाश यहां-वहां ले जाया जा सकता है अथवा एक ही जगह पर स्थिर रखा जा सकता है। छोटे कीटों तथा सीमित आवासों वाले कीटों के लिए जैसे कि धान के पौधों के आधार के कीटों के लिए बैटरी चालित हाथ में पकड़ा जा सकने वाला कार-वैकुअम क्लीनर प्रकार का उठाऊ पाश जिसमें 2.5 cm व्यास का नॉजल लगा होता है उपयोगी रहता है। बड़े क्षेत्रों के लिए अनेक प्रकार की बड़ी विद्युत् मशीनें उपलब्ध रहती हैं। बड़ी उठाऊ मशीनों के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं जॉनसन-साऊथवुड सैम्पलर जिसमें 3cm व्यास का रू नॉजल होता है, यूनिवैक सैम्पलर जिसमें 6cm चौड़ा नॉजल होता है तथा D-Vac मशीन जिसमें 13.5 cm व्यास का नॉजल होता है। उड़ते कीटों का प्रतिचयन स्थिर चूषण पाशों द्वारा किया जा सकता है। खड़ी फसलों में से कीटों को पकड़ने हेतु छोटे चूषण पाशों का जानसन (1950) तथा टेलर (1951) ने वर्णन किया है। खुले शंकु प्रकार के पाश (चित्र 7.11) में आमतौर से 30cm का एक पंखा होता है जिसमें से हवा और कीट गुजरते हैं और एक ताम्र गेज शंकु में पहुंचते हैं जिसके सिरे पर एक संग्राहक नलकी लगी होती हैं। छोटे पंखों को केवल अति आश्रयित स्थानों में ही इस्तेमाल किया जा सकता है क्योंकि वहाँ 4m/s से ऊपर की गति से चलने वाली तेज हवाएं पंखे द्वारा लायी जाने वाली हवाओं को काफी हद तक कम कर देती हैं। पकड़े कीटों को एक डिस्क क्रियाविधि द्वारा पूर्वनिर्धारित समयांतरों पर पृथक किया जा सकता है ताकि जिस काल में उड्डयन होता हो उसका अध्ययन किया जा सके। बंद शंकुओं वाले अन्य पाश भी बनाए गए हैं ताकि कीट पंखे में से न गुजर सकें। निस्संदेह चूषण पाश ही सर्वोत्तम अलग-अलग प्रतिचयन विधियां हैं जिनके द्वारा लगभग हर मौसम में निरपेक्ष समष्टि घनत्व मापा जा सकता है।

पग) प्रकाश पाश (Light traps) – कीटों में प्रकाश की ओर आकृष्ट होने की प्रवृत्ति को इस्तेमाल करते हुए उन्हें मैलेसे पाश, चूषण
पाश अथवा किसी भी अन्य प्रकार के पाश में पकड़ा जा सकता है। कीटों की दृष्टि व्यवहार का समुपयोजन करने वाली सर्वसामान्य युक्ति प्रकाश पाश होती है। कृषि पीड़कों के प्रतिचयन में प्रकाश पाशों को बहुत समय से इस्तेमाल किया जा रहा है। मूलत: इनमें एक कीप ऊपर प्रकाश लगा होता है तथा नीचे एक पात्र होता है जिसमें कीट इकट्ठे होते जाते हैं। लैम्पध्बल्ब के चारों ओर एक फनल डैम के ऊपर बैफल (अवरोध प्लेटें) लगा दी जाती हैं। जिसके द्वारा कीट टकरा कर पात्र के भीतर गिर जाते हैं। इस प्रकार के अनेक पाशों का प्रचलन है जैसे रॉथैमस्टेड पाश, रॉबिन्सन पाश आदि (चित्र 7.12)। प्ररूपी प्रकाश पाश में प्रकाश के स्रोत के रूप में एक पराबैंगनी प्रतिदीप्ति (फ्लोरेसेंट) ट्यूब लगा दी जाती है। प्रकाश पाश से कैसे और कितने कीट पकड़े जाएंगे यह कई बातों पर निर्भर करेगा जैसे पाश की जमीन से कितनी ऊँचाई हैं। प्रकाश तीव्रता कितनी है, प्रकाश का कोण कितना है, तथा तापमान, पवन एवं चंद्रमा की प्रकाश-मात्रा आदि प्राकृतिक कारकों पर भी। मच्छरों के प्रतिचयन हेतु आजकल बैटरी-चालित छोटे पाश भी मिलते हैं जिन्हें मुख्य विद्युत आपूर्ति से काफी दूर फसलों के बीच में रखा जा सकता हैं। प्रकाश पाशों का उपयोग मुख्यतरू पीड़क प्रजातियों की संख्या के आकलन, उनके समष्टि आकार में अपेक्षित परिवर्तनों के अनुप्रेक्षण एवं उनका अन्य मूल्यांकन विधियों के साथ तुलना करना, और ये सभी पीड़क प्रबंधन में सहायता करते हैं।

x) आकर्षी पाश (Attractant traps) – जो प्रजातियां प्रकाश की ओर आकृष्ट नहीं होती उन्हें किसी आकर्षी यानी चारे के उपयोग
से फंसाया जा सकता है। आकर्षी पाश स्वयं फसल पर आधारित हो सकता है। प्राकृतिक अथवा संश्लिष्ट रसायनों के अतिरिक्त स्वयं पीड़क से प्राप्त किया गया आकर्षी भी इस्तेमाल किया जा सकता है। केले के घुन का केले के तने के कटे टुकडों का उपयोग कर आकलन किया जाता है। गैंडा भंगों का आकलन नारियल के तने के कटे टुकड़ों का तथा टमाटर के पीड़कों का कटे टमाटरों का उपयोग करके मूल्यांकन किया जाता है। फल-चूषक शलभों को आकर्षित करने हेतु चीनी अथवा शीरे का उपयोग किया जाता है तथा फल-मक्खी पाशों में प्रोटीन हाइड्रोलाइसेट का। कृषि फसलों के अनेक शलभ पीड़कों के प्रबंधन के लिए लिंग-आकर्षियों अर्थात् लिंग फेरोमॉनों का उपयोग किया जाता है।

xi) फेरोमोन पाश (Pheromone traps) – लेपिडॉप्टेरन पीड़कों के लिंग फेरोमोनों का इस्तेमाल आजकल बढ़ता जा रहा है ताकि
पीड़कों द्वारा होने वाले ग्रसन को पहचाना जा सके अथवा पीड़कों की समष्टियों का अनुप्रेक्षण किया जा सके, एवं पीड़कनाशी अनुप्रयोगों को सही समय पर लगाने में मदद मिल सके। प्रकाश-पाशों की तुलना में फेरोमोन पाश अधिक लाभकारी होते हैं क्योंकि इसमें सामान्यतरू केवल लक्ष्य प्रजाति ही आकर्षित होती है तथा एक प्रशिक्षित कीटविज्ञानी को पकड़े गए कीटों की पहचान करने की आवश्यकता नहीं होती। इनमें बिजली की जरूरत नहीं होती अतरू फेरोमोन पाशों का परिचालन आसान होता है और इन्हें सुदूर क्षेत्रों में रखा जा सकता है।

पाश की संवेदनशीलता को अनुकूलतम लाने हेतु कीट की व्यावहारात्मक अनुक्रिया का पाश की आकृति एवं फेरोमोन विमोचन की विधि के संदर्भ के अध्ययन किया जाना जरूरी है। भारत में हेलियोथिस आर्मिजेरा को एक सरलतर पाश द्वारा पकड़ा जाना बहुत कारगर रहा है, इस पाश में एक कीप के ऊपर एक वृत्ताकार घेरा लगा होता है और कीप के नीचे एक पोलीथीन थैला होता है जिसमें शलभ इकट्ठे होते हैं, घेरे के नीचे की सतह पर छोटी कीप लगाने पर पकड़े जाने वाले शलभ ज्यादा संख्या में पाए गए (चित्र 7.13)।

समष्टि सूचकांक (Population indices)
समष्टि सूचकांक प्रत्यक्ष कीट गणनाएं नहीं होतीं, वरन् ये उनके उत्पादों जैसे कि कीटविष्टा (fra) जाले, निर्मोक, घोंसले अथवा उनके प्रभावों जैसे कि पादप क्षति की गणना होती है। ऐसे मामलों में स्वयं समष्टि की गणना की अपेक्षा उनके प्रभावों को दर्ज करना ज्यादा आसान है। सर्वाधिक प्रतिचयन किया जाने वाला पीड़क उत्पाद वनों के लेपिडॉप्टरा पत्तीनाशक होते हैं। कीटविष्टा के संग्रहण के लिए वृक्ष के नीचे कोई एक बक्सा अथवा कीप रखी जाती है। इस विधि द्वारा समष्टि का एक मोटा-मोटा आकलन किया जा सकता है। कीट घोंसलों का भी सरलता से प्रतिचयन किया जा सकता है। केटरपिलरों के घोंसलों को गिनकर पीड़क घनत्व का अनुमान लगाया जा सकता है। पीड़कों का विस्तार उनके द्वारा हुई क्षति के संदर्भ में भी दर्ज किया जा सकता है। उदाहरणतः कटवर्मों अथवा खेत ग्रबों का विस्तार कटे अथवा गायब हुए पौधों के संदर्भ में रिकार्ड किया जाता है। चावल में मृत केन्द्रों अथवा श्वेत शीर्षों से चावल में धान के तना छेदक की तीव्रता की झलक मिलती है। निष्पत्रकों द्वारा पौधों के खाली कर दिए गए पत्र-क्षेत्र को भी मापा जा सकता है। मक्का की गुल्लियों में छेदकों से, चना फली छेदक द्वारा चने की फली में, मिजों द्वारा सौरघम के बीजों में तथा डोडों कृमियों द्वारा कपास के डोडों को होने वाली क्षति सरलता से रिकार्ड की जा सकती है। समष्टि सूचकों का उपयोग तभी तर्कसंगत माना जा सकता है जब उनका सही-सही मान्यकरण हुआ हो और इनसे समय और श्रम दोनों की बहुत बचत होती है।