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पर्यावरण की परिभाषा क्या है ? पर्यावरण किसे कहते है ? environment definition in hindi , meaning

environment definition in hindi , meaning पर्यावरण की परिभाषा क्या है ? पर्यावरण किसे कहते है ? इसका क्या अर्थ या मतलब है और हमारे जीवन में क्या महत्व है? लाभ और मानव (मनुष्य) से सम्बन्ध पर प्रकाश डाले ?

पर्यावरण : प्रकृति के पांच तत्त्व जल, अग्नि, वायु, आकाश एवं पृथ्वी पर्यावरण के अभिन्न अंग हैं जिनका आपस में गहरा सम्बंध है। इन पांचों तत्वों में किसी एक का भी असंतुलन पर्यावरण के लिये अपूर्णनीय क्षतिकारक और बिनाशकारी है। पर्यावरण को दो प्रमुख घटकों में विभाजित किया जा सकता हैः

* पहला जैविक घटक अर्थात बायोटिक, जिसमें समस्त प्रकार के जीव-जन्तु व वनस्पतियां (एक कोशिकीय से लेकर जटिल कोशिकीय तक) एवं दूसरे प्रकार के घटक में नौतिक अर्थात अजैबिक जिसमें थलमंडल, जलमंडल व वायुमंडल सम्मिलित होते हैं। वस्तुतः आनुवंशिकी एवं पर्यावरण दो महत्वपूर्ण कारक हैं जो मानव जीवन को प्रभावित करते हैं।

* पर्यावरण की छतरी अर्थात ओजोन परत में छेद होना, कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा से उत्पन्न ग्लोबल वार्मिंग की समस्या, घातक बीमारियों का प्रादुर्भाव व स्वास्थ्य संकट- ये सब मानब के समक्ष एक विकराल दानव का रूप ले चुके हैं।

* जलः जैव मंडल में मौजूद संसाधनों में जल सर्वाधिक मूल्यवान है। प्रकृति में जल तीन रूपों में विद्यमान है ढोस, तरल एवं गैस । ठोस के रूप में बर्फ जल का शुद्ध रूप है। इसके बाद वर्षा का जल, पर्वतीय झीलें, नदियां एवं कुंए शुद्धता क्रम में आते हैं। धरातल पर प्रवाहित झीलों तथा तालाबों आदि के रूप में उपलब्ध स्वच्छ जल की मात्रा केवल 7 प्रतिशत होती है।

* मिट्टीः  भूमि या मिट्टी भी सर्वाधिक मूल्यवान संसाधन हैं क्योंकि विश्व के 71 प्रतिशत खाद्य पदार्थ मिट्टी से ही उत्पन्न होते हैं। लेकिन सम्पूर्ण विश्व के मात्र 2 प्रतिशत भाग में ही कृषि योग्य भूमि है जिस पर आधुनिकत्तम टेक्नोलॉजी के प्रयोग, नित नए रासायनिक उर्वरकों, रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग के कारण धरती की उर्वरता कन हो गई है।

वायुमंडल

पृथ्वी के चारों ओर स्थित बायुमंडल विभिन्न प्रकार की गैसों का मिश्रण है जिसमें लगभग 73 प्रतिशत नाइट्रोजन, 21 प्रतिशत ऑक्सीजन और .03 प्रतिशत कार्बन-ऑक्साइड है। ये सभी तत्व पर्यावरण संतुलन को बनाये रखने में सहायक हैं।

* वायुमंडल में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण के तापमान को नियंत्रित करती है।

* पर्यावरण प्रदूषण में मानव की विकास प्रक्रिया तथा आधुनिकता का महत्वपूर्ण योगदान है। इसके अलावा वे सामान्य गतिविधियां भी प्रदूषण कहलाती हैं, जिनसे नकारात्मक फल मिलते हैं। उदाहरण के लिए उद्योगों द्वारा उत्पादित नाइट्रोजन ऑक्साइड प्रदूषक है।

* प्रदूषण दो प्रकार का होता हैः स्थानीय तथा वैश्विक ।

* वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड के होने से भी प्रदूषण होता है यदि वह धरती के पर्यावरण में अनुचित अंतर पैदा करता है।

* ‘ग्रीन हाउस’ प्रभाव पैदा करने वाली गैसों में वृद्धि के कारण भू-मंडल का तापमान निरन्तर बढ़ रहा है। इससे हिमखंडों के पिघलने की दर में वृद्धि होगी तथा समुद्री जलस्तर बढ़ने से तटवर्टी क्षेत्र जलमग्न हो जायेंगे।

* परम्परागत रूप से प्रदूषण में वायु, जल, रेडियोधर्मिता आदि आते है।

* गंभीर प्रदूषण उत्पन्न करने वाले मुख्य स्त्रोत हैंः रासायनिक उद्योग, तेल रिफाइनरीज, आण्विक अपशिष्ट, कूड़ा घर, प्लास्टिक उद्योग, कार उद्योग, पशुगृह, दाहगृह आदि ।

* आण्विक संस्थान, तेल टैंक आदि दुर्घटना होने पर ये सभी बहुत गंभीर प्रदूषण पैदा करते हैं। कुछ प्रमुख प्रदूषक क्लोरीनेटेड, हाइड्रोकार्बन, भारी तत्व लैड, कैडमियम, क्रोमियम, जिंक, आर्सेनिक, बैनजीन आदि भी प्रमुख प्रदूषक तत्व हैं।

* प्रदूषक विभिन्न प्रकार की बीमारियों को भी जन्म देते हैं, जैसे कैंसर, एलर्जी, अस्थमा, प्रतिरोधक बीमारियां आदि। जहां तक कि कुछ बीमारियों को उन्हें पैदा करने वाले प्रदूषक का ही नाम दे दिया गया है। जैसे मरकरी यौगिक से उत्पन्न बीमारी को ‘मिनामटा’ कहा जाता है।

प्रदूषण

पर्यावरण के किसी भी तत्व में होने वाला अवांछनीय परिवर्तन, जिससे जीव जगत पर प्रतिकूल प्रभाव पघ्ता है, प्रदूषण कहलाता है। पर्यावरण प्रदूषण में मानव की विकास प्रक्रिया तथा आधुनिकता का महत्वपूर्ण योगदान है। यहां तक मानव की वे सामान्य गतिविधियां भी प्रदूषण कहलाती हैं, जिनसे नकारात्मक फल मिलते हैं। उदाहरण के लिए उद्योग द्वारा उत्पादित नाइट्रोजन ऑक्साइड प्रदूषक हैं। हालांकि उसके तत्व प्रदूषक नहीं है। यह सूर्य की रोशनी की ऊर्जा है जो कि उसे धुएं और कोहरे के मिश्रण में बदल देती है।

प्रदूषक प्रदूषक विभिन्न प्रकार की बीमारियों को जन्म देते हैं। जैसे कैंसर, इलर्जी, अस्थमा, प्रतिरोधक बीमारियां आदि। जहां तक कि कुछ बीमारियों को उन्हें पैदा करने वाले प्रदूषक का ही नाम दे दिया गया है। जैसे मरकरी यौगिक से उत्पन्न बीमारी को ‘मिनामटार’ कहा जाता है।

वायु प्रदूषण और उसके प्रभाव

वायु में हानिकारक पदार्थो को छोड़ने से वायु प्रदूषित हो जाती है। यह स्वास्थ्य समस्या पैदा करती है तथा पर्यावरण एवं सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाती है।

आधुनिकता तथा विकास ने, बीते वर्षों में वायु को प्रदूषित कर दिया है। उद्योग, वाहन, प्रदूषण में वृद्धि, शहरीकरण कुछ प्रमुख घटक हैं। जिनसे वायु प्रदूषण बढ़ता है। ताप विद्युत गृह,सीमेंट, लोहे के उद्योग, तेल शोधक उद्योग, खान, पेट्रोरासायनिक उद्योग, वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं।

वायु प्रदूषण के कुछ ऐसे प्रकृति जन्य कारण भी हैं जो मनुष्य के वष में नहीं है। प्रदूषण का स्रोत कोई भी देश हो सकता है पर उसका प्रभाव, सब जगह पड़ता है। अंटार्कटिका में पाये गये कीटाणुनाशक रसायन, जहां कि वो कभी भी प्रयोग में नहीं लाया गया, इसकी गम्भीरता को दर्शाता है कि वायु से होकर, प्रदूषण एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंच सकता है।

वायु प्रदूषण रसायनों, सूक्ष्म पदार्थ, या जैविक पदार्थ के वातावरण ऋऋ में, मानव की वह भूमिका है, जो मानव को या अन्य जीव जंतुओं को या पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है।

प्रदूषकों को प्राथमिक या द्वितीयक के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता हैः

(i) प्राथमिक प्रदूषकः ये वे तत्व हैं जो सीधे एक प्रक्रिया से उत्सर्जित हुए हैं जैसे ज्वालामुखी विस्फोट से राख, मोटर गाड़ी से कार्बन मोनो ऑक्साइड गैस, कारखानों से निकलने वाली सल्फर डाइऑक्साइड गैस ।

(ii) द्वितीयक प्रदूषक सीधे उत्सर्जित नहीं होते हैं. बल्कि जब प्राथमिक प्रदूषक आपस में क्रिया या प्रतिक्रिया करते हैं जब वे वायु में बनते हैं। द्वितीयक प्रदूषक का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है जमीनी स्तर की ओजोन- बहुत से द्वितीयक प्रदूषकों में एक जो प्रकाश-रसायनिक धूम कोहरा बनाती है।

कुछ प्रदूषक प्राथमिक और द्वितीयक दोनों हो सकते है, यानी वे सीधे भी उत्सर्जित हो सकते हैं और अन्य प्राथमिक प्रदूषकों से बन सकते हैं।

सामान्य रूपरेखा 

  • कोई भी ऐसी प्रक्रिया जो प्राकृतिक साधनों के मुक्त उपयोग में बाधा उत्पन्न करती है , उसे प्रदूषक कहते है तथा परिणामस्वरूप उत्पन्न स्थिति को पर्यावरण प्रदूषण कहते है।
  • रासायनिक दृष्टिकोण से प्रदूषक निम्न दो श्रेणियों में विभाजित किये जाते है :

जैव विघटनात्मक या जैव निम्नीकरण प्रदूषक : ये पदार्थ बैक्टीरिया अथवा कवक द्वारा सरल रासायनिक अवयवों में टूट कर मिट्टी की उपज बढाने में सहायक होते है लेकिन जब इनका उत्पादन विघटन क्षमता से अधिक होता है , तब यह जल , मिट्टी तथा वायु प्रदूषण का कारण बन सकते है।

अघटनात्मक या अनिम्नीकरणीय प्रदूषक : मानव निर्मित अनेकों औद्योगिक पदार्थ ऐसे है , जिन पर प्राकृतिक विघटकों एवं चक्रों का प्रभाव नहीं होता है। एल्युमिनियम तथा टिन के केन्स , मर्करी (पारा) के लवण , फिनोलिक यौगिक और डी.डी.टी. , बी.एच.सी. , एल्ड्रिन , टोक्साफिन आदि अनेकों जहरीले पदार्थ इस श्रेणी के प्रदूषक है।

  • मुख्य पर्यावरण प्रदूषण :

जल प्रदूषण

वायु प्रदूषण

भूमि अथवा मृदा प्रदूषण

1. जल प्रदूषण

  • जल प्रदूषण : प्रमुख जल प्रदूषक :

लवण : सोडियम , पोटेशियम , कैल्शियम , मैग्नीशियम के क्लोराइड , कार्बोनेट , बाइकार्बोनेट और सल्फेट मुख्य है। इनके अतिरिक्त लोहा , मैंगनीज , सिलिका , फ्लूओराइड , नाइट्रेट , फास्फेट आदि तत्व कम मात्रा में।

रसायन : कीटनाशी तथा पीडकनाशी।

घरेलू कचरा : नहाने धोने का साबुनयुक्त जल , कुओं को विसंक्रमित (कीटाणुरहित) करने के लिए सरल और सस्ती युक्तियाँ , वाहितमल।

औद्योगिक कचरा : शोधन , वस्त्र , ऊन और पटसन के कारखानों वाले व्यर्थ पदार्थो , चीनी मीलों , शराब , लुगदी और कागज बनाने के कारखानों , कृत्रिम रबड़ के कारखानों , कोयला धावनशालाओं से निकलने वाली बारीक राख तथा डी.डी.टी.

खनिज तेल : खनिज तेल मूल रूप से समुद्री तथा महासागरीय जल को गंभीर रूप से प्रदूषित कर रहा है।

कृषि जनित जल प्रदूषक : खरपतवार नाशक , बैक्टीरिया नाशक , कवक नाशी तथा नाशक जीवनाशी।

  • जल प्रदूषण की हानियाँ : टाइफाइड , पैराटाइफाइड अथवा दंडाणुज अतिसार , संक्रामक यकृतशोथ , हुकवर्म , वाईल रोग और सिस्टोटोम , मीथेमोग्लोबिनेमा , केन्सर , गर्भ धारण क्षमता का नष्ट होना।

2. वायु प्रदूषण

  • वायु में उपस्थित हानिकारक पदार्थो की उस मात्रा को जो मानव और उसके पर्यावरण के लिए हानिकारक हो , को वायु प्रदूषक और इस प्रक्रिया को वायु प्रदूषण कहेंगे।
  • वायु प्रदूषकों के स्रोत :

(i) इंधन के जलने से : घरेलू धुंए में कार्बन डाइऑक्साइड , कोयले तथा खनिज तेल के जलने पर अन्य वस्तुओं के साथ सल्फर डाइऑक्साइड भी बनती है। पूर्ण दहन होने पर इंधन कार्बन डाइऑक्साइड तथा पानी , अपूर्ण दहन में कार्बन मोनोऑक्साइड बनती है। अधजले हाइड्रोकार्बन में कई प्रकार के भारी अंश होते है उनमे 3-4 बैंजपाइरीन एक मुख्य कालिख है। उद्योगों की चिमनियाँ सल्फर डाइऑक्साइड , कार्बन मोनोऑक्साइड , हाइड्रोजन सल्फाइड आदि उगलती रहती है।

(ii) मोटर वाहनों से : डीजल इंजन के एग्जास्ट में कार्बन डाइऑक्साइड , कार्बन मोनोऑक्साइड , विभिन्न हाइड्रोकार्बन , नाइट्रोजन तथा गंधक के विभिन्न यौगिक होते है। पेट्रोल इंजन का एग्जास्ट सामान्य अवस्था में रंगहीन होता है पर उसमें कार्बन मोनोऑक्साइड और हानिकारक पदार्थो की मात्रा काफी होती है। अच्छे किस्म के पेट्रोल की ओक्टेन संख्या बढाने के लिए उसमे टेट्राएथिल लैड मिलाये जाते है , इनके विघटन में एग्जास्ट के साथ सीसा (लैड) भी वायुमण्डल में पहुँच जाता है। वायु को प्रदूषित करने में ध्वनि से तेज चलने वाले अतिध्वन विमानों का भी योग है।

(iii) मौसम का योग : धुंए तथा कोहरे (स्मोक + फोग) से मिलकर बना स्मोग यातायात को एकदम ठप कर देता है।  साथ ही हमारी श्वास नलिकाओं पर भी दुष्प्रभाव डालता है। सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में वायुमंडल में मौजूद कार्बनिक यौगिक तथा नाइट्रोजन के ऑक्साइड परस्पर क्रिया करके क्षोभकारी ओजोन तथा परऑक्सी एसिटल नाइट्रोजन यौगिक बनाते है।

(iv) परमाणु परीक्षणों से : अनेक देशो द्वारा समय समय पर किये जाने वाले परमाणु बम परीक्षणों से वायुमण्डल में घातक रेडियोधर्मी कणों की मात्रा बढती जा रही है।

(v) घरेलू बिजली जनरेटर : घरेलू जनरेटर जगह जगह पेट्रोल , मिट्टी के तेल तथा डीजल के जनरेटर वायु प्रदूषण के साथ साथ ध्वनि प्रदूषण भी करते है।

  • मोटर वाहन कानून 1988 के तहत सरकार ने प्रदूषण नियंत्रण के लिए कार्बन मोनोऑक्साइड निकलने की अधिकतम सीमा 3% तथा तिपहिया वाहनों के लिए 4.5% रखी गई है। हर तीन महीने में यह प्रदूषण नियंत्रण प्रमाणपत्र करना भी अनिवार्य कर दिया गया है।
  • महानगरों में पेट्रोल से चलने वाले वाहन वायुमण्डल में 80% नाइट्रोजन ऑक्साइड छोड़ते है। जनवरी-फ़रवरी , 1997 से दिल्ली में कनाडा की वैज्ञानिक समूह के सहयोग से CNG का उपयोग शुरू किया जा रहा है। यह गैस प्रोपेन होती है तथा पेट्रोल के मुकाबले यह 80% प्रदूषण रहित तथा 40% सस्ती है।
  • वायुमण्डल में सबसे अधिक खतरनाक पदार्थ है पोलीसाइक्लिक ऐरोमैटिक हाइड्रोकार्बन। इनसे शीघ्र ही कैंसर हो जाता है। सीसा-विषाक्त के परिणामस्वरूप पेट की एंठन , कब्ज , भूख में कमी , अनिद्रा रोग , उत्तेजनात्मक जैसी शिकायतें हो जाती है।
  • ट्राई इथाइल लेड युक्त वायु फेंफडे , गुर्दे , रक्त तथा मस्तिष्क के अनेकों गंभीर रोगों को जन्म देता है। डीजल का धुआं पेट्रोल से भी अधिक हानिकारक है।
  • स्लेट पेन्सिल कारखानों की धूल से सिलोकोसिस और फ़्लोरिन के कारखानों से फ्लोरोसिस नामक रोग हो जाते है , जिनसे फेंफडों में अवरोध पैदा हो जाने से दम घुट कर मृत्यु हो जाती है।
  • वाहनों द्वारा छोड़े जाने वाले इस धुंए को 50% से भी अधिक मात्रा तक कम किया जा सकता है , यदि “कैटेलिटिक कन्वर्टरस” का इस्तेमाल किया जाए।
  • गैसीय प्रदूषकों को कैटेलिटिक फिल्टर्स के प्रयोग द्वारा रोका जा सकता है। प्रौद्योगिकी संस्थान (आई आई टी) ने स्पंज आयरन पर आधारित इसके कई कम लागत के रूपांतर तैयार किये है , लेकिन अभी तक उन्हें उपयोग में नहीं लाया गया है।

भूमि और मृदा प्रदूषण

  • मृदा के भौतिक , रासायनिक अथवा जैविक गुणों में ऐसा कोई भी परिवर्तन , जिसका प्रभाव मानव और अन्य जीवों पर पड़े या जिससे मृदा की प्राकृतिक दशाओं , गुणवत्ता और उपयोगिता में कमी आये , भूमि प्रदूषण कहलाता है।
  • मृदा प्रदूषण के स्रोत :

औद्योगिक कचरा : जैव अपघट्य , कुछ ज्वलनशील , कुछ विषैले , कुछ दुर्गन्ध युक्त , कुछ अजैविक और कुछ अक्रियाशील एवं स्थायी किस्म के पदार्थ होते है।

नगरपालिका कचरा : घरेलू कचरा और मानव मल , बाजार के (सब्जी और मांस बाजार ) सड़े गले पदार्थ , औद्योगिक केन्द्रों का कूड़ा , उद्योगों की सड़ी और सुखी पत्तियां , पशुओं का चारा।

कृषि जन्य कचरा : यह दो प्रकार का होता है – जैव अपघटनीय और जैव अनअपघटनीय। कृषि उपज के पश्चात् पत्ते , डंठल , घास फूस , बीज आदि पैदा किया गए जैव अपघटनीय कचरे में आता है। कीटनाशी और खरपतवार नाशी मृदा में दीर्घकाल तक बना रहता है। डी.डी.टी. , बी.एच.सी. , एल्ड्रिन , हेप्टाक्लोर , डाइएल्ड्रिन और एल्ड्रिन अन्य कीटनाशी इसी के समान है। मिट्टी में अधिक काल तक बने रहने के कारण उपर्युक्त क्लोरिन यौगिकों के स्थान पर अल्प स्थायी कार्बनिक फास्फोरस कीटनाशियों का प्रारंभ किया गया है। पैराथियान , मैलाथियान , डायजिन आदि ऐसे ही यौगिक है लेकिन ये अत्यंत घातक है।

प्लास्टिक से प्रदूषण : प्लास्टिक चूँकि काफी लम्बे समय तक अपघटित अथवा नष्ट नहीं होता है। सभी देश प्लास्टिक से मुक्ति पाने के लिए सामान्यतया निम्नलिखित उपाय अपनाते है –

(अ) यूँ ही फेंक देना

(ब) पुनः उपयोग करना।

अब लगभग हर नगर छोटी बड़ी प्लास्टिक की सामग्री बनाने वाली इकाइयां कार्यरत है जो कि कूड़े से बीने गए प्लास्टिक का उपयोग वस्तु का निर्माण करने में हिचकिचाती है। लेकिन इस गंदे प्लास्टिक को सामान्य भट्टियो में गलाने से जहाँ दुर्गन्ध पैदा होती है , वही वायु में अनेक प्रकार की विषैली गैसें भी बिना उपचार के छोड़ी जाती है।

घरेलू कचरा : सुखा कचरा मुख्यतः धूल , सुखी टहनियों , पत्तियों , राख , कांच , प्लास्टिक , चीनी मिट्टी , रद्दी कागज और गत्ता , टिन अथवा लोहे के अनुपयोगी कलपुर्जो , टायर ट्यूबों , केबिल्स आदि , रसोईघर में पैदा होने वाले पदार्थो में।

मृदा प्रदूषण के प्रभाव

  • अपरोक्ष प्रभाव : प्रवाहिका , आमातिसार आँव , हैजा , मियादी बुखार अथवा मोतीझरा।
  • प्रत्यक्ष प्रभाव : धूल के अन्त: ग्रहण से एलर्जी उत्पन्न हो जाती है। एलर्जी में साधारणतया नासाशोथ , दमा , पित्ती , त्वचा उद्भेदन , संधिशोथ और आंत्रशोथ आदि रोग उत्पन्न हो जाते है।
घरेलू धुल में रुई , रुआं , पंख और अनेक वस्तुएँ ऐसी होती है जो व्यक्ति को संवेदी बना देती है।
दूर स्थानों से वायु द्वारा लाये गए फंगस बीजाणु भी अन्त: ग्रहण करने पर एलर्जी के लक्षण दिखाते है।
घरेलू धूल से क्षयरोग (TB) होने का अधिक क्षय रहता है।
ठोस कचरे का एकत्रण , परिवहन तथा निराकरण।
नगरों में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 0.4 से 0.5 किलोग्राम की सीमा तक घरेलू कूड़ा उत्पन्न किया जाता है। सामान्यतया वह सामग्री जो पुनर्चक्रित (पुनर्प्रयुक्त) की जा सकती है , जैसे कागज , प्लास्टिक , बोतलें आदि घर में बचा ली जाती है तथा केवल वे वस्तुएं जो किसी भी तरह काम में नहीं आ सकती है , उन्हें कूड़े कचरे की तरह फेंक दिया जाता है।
अनेक नगरों में विभिन्न प्रकार की ठेलागाड़ियाँ घरेलू कूड़े कचरे तथा सडक झाड़न को कूड़ादानी स्थलों तक ले जाने के लिए काम में ली जाती है। कुछ नगरों में कूड़ादानी स्थल छोटे तथा बहुत अधिक नजदीक है।
वर्तमान भवनों में परिवर्तन तथा परिवर्धन होते है। परिणाम यह होता है कि प्रत्येक दिन बहुत सा कूड़ा कचरा पैदा होता है , दुर्भाग्यवश इस कूड़े कचरे को एकत्र तथा हटाने की प्रणालियाँ विकसित नहीं की गयी है।
कई नगरों में औषधालय कूड़ा कचरा सामान्यतया जलाया नहीं जाता तथा अस्वास्थ्यकर ढंग से सामान्य  कचरे के साथ जमा कर दिया जाता है।
अत: नगरीय क्षेत्र में लीटर डिब्बों का प्रावधान आवश्यक है।

कीटनाशक रसायनों द्वारा प्रदूषण

कुछ प्रदूषक ऐसे होते है जो उपरोक्त तीनों प्रकार की श्रेणी में आ सकते है। उदाहरणार्थ , बहुत से कीटनाशक रसायन अविघटनात्मक होने के साथ साथ जल , वायु और भूमि को भी प्रदूषित करते है।
कीटनाशक मिट्टी में संचित रहते है , तथा मृदा को विषैला बना डालते है। इनसे कुओं , नदियों और समुद्रों का जल भी प्रदूषित होता है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार पाँच कीटनाशकों , बी.एच.सी. , डी.डी.टी. , मैलाथियान , इन्डोसल्फान तथा पारथियान का देश में व्यापक तौर पर प्रयोग किया जाता है। भारत में मानवीय वसा में डी.डी.टी. का स्तर सबसे अधिक है।
प्रदूषक का शरीर पर संभावित प्रभाव :
भारत के दो कपास उत्पादक राज्यों के जिलों में कृषि मजदूरों के बच्चो में भी अंधेपन , कैंसर , विकलांगता , जिगर के रोगों आदि के मामलों का पता चला है।
हैदराबाद के मृत प्रसव करने वाली माताओं के रक्त में उपरोक्त कीटनाशक भारी मात्रा में मौजूद थे।
अहमदाबाद स्थित एक अन्य संस्थान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ ओक्यूपेशनल हेल्थ द्वारा किये गए दुसरे अध्ययन में पाया गया है कि पाँच फोर्मुलेशन यूनिटों के 160 पुरुष कामगारों में से 73 प्रतिशत कामगारों में विषाक्त लक्षण मौजूद थे , 35 प्रतिशत पुरुष कामगार “कार्डियो वैस्क्यूलर” तथा गैस्ट्रो इन्टेस्टिनल तकलीफों के शिकार थे।
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