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Categories: BiologyBiology

कीट परागण क्या होता है (entomophily in hindi) के कितने प्रकार किसमें होता है meaning definition types

(entomophily in hindi meaning definition types ) कीट परागण क्या होता है  के कितने प्रकार किसमें होता है ?

कीट परागण (entomophily) : इस प्रक्रिया के द्वारा जिन पौधों में परागण होता है। उनमें कीट पतंगों को आकर्षित करने के लिए कुछ विशेषताएँ अथवा संरचनात्मक अनुकूलतायें पायी जाती है जिनको परागण कर्त्ताओं के लिए आकर्षण भी कहते है ये निम्नलिखित है –

(i) रंग : कीट पतंगो को पुष्प की यह संरचनात्मक विशेषता सर्वाधिक आकर्षित करती है। विभिन्न पौधों में पुष्पों के भिन्न भिन्न और अनूठे रंग पाए जाते है। बहुत से फूलों का रंग इतना आकर्षण होता है कि कीट उनको देखते ही , इनकी तरफ चले आते है। कभी कभी पुष्प को रंगीन और आकर्षण बनाने के लिए इनकी संरचना के एक से अधिक चक्र सक्रीय भूमिका निभाते है जो कि निम्नलिखित प्रकार से है –
(अ) सहपत्र : कुछ पौधों में पुष्प तो छोटा और अनाकर्षक होता है लेकिन इनके आसपास उपस्थित सहपत्र , अत्यंत आकर्षण , बड़े और रंगीन होते है जैसे बोगेनविलिया , और युफोर्बिया पल्चेरिमा में। ये आकर्षक सहपत्री संरचनाएँ पुष्प में कीट परागण के लिए विशेष रूप से सहायक होती है।
(ब) बाह्यदल पुंज : कुछ पौधों में बाह्यदल पत्र भी रंगीन और आकर्षक पाए जाते है। उदाहरण के तौर पर , लार्कस्पर में बाह्यदल पत्र दलाभ हो जाते है। म्यूसेन्डा में बाह्यदल पुंज के चक्र में एक बाह्यदल पत्र बड़ा और हल्के पीले रंग का और अत्यंत आकर्षक हो जाता है। एक अन्य पौधे हंसलता अथवा बतख बेल के पुष्प में परिदल नलिकाकार , रंगीन और लम्बा हो जाता है।
(स) दलपुंज : अधिकांश पौधों में पुष्प की सुन्दरता का कारण इनके दलपुंज का बड़ा , रंगीन और आकर्षण होना है। पुष्प के दलपत्र बहुत ही रंग बिरंगे रंगीन और आकर्षक होते है। कभी कभी इनकी सुन्दरता का दूसरा कारण इनकी विशेष बनावट भी होती है जैसे तितल्याकार , द्विओष्ठी अथवा दलपुटयुक्त आदि। कुल स्क्रोफुलेरियेसी के सदस्य कुत्ताफूल अथवा डागफ्लावर और वायोलेसी के सदस्य पैंजी में दलपुंज विशेष बनावट के पाए जाते है। इस प्रकार की विशेष दलपुंज संरचना के कारण कीट पतंगे पुष्प की तरफ आसानी से आकर्षित हो जाते है और कीट परागण क्रिया को सम्पादित करने में उल्लेखनीय भूमिका निभाते है।
(द) किरीट अथवा कोरोना : कीट परागित पुष्पों में पायी जाने वाली ये विशेष प्रकार की संरचनाएँ है जो कि पुष्प के किसी भी हिस्से में विकसित होकर उसे और भी सुन्दर और आकर्षक बना देती है जैसे आक अथवा मदार , पैशन पुष्प , नरगिस , अमरबेल और गार्डन नास्टरशियम आदि में। उपर्युक्त उदाहरणों में ये संरचनाएँ दलपत्रों में उपस्थित होती है और पुष्प के आकर्षण में वृद्धि करती है।
(य) पुमंग : कुछ पुष्पों में विशेष प्रकार की परिस्थितियों में पुमंग भी रंगीन , पुंकेसरों के द्वारा पुष्प की सुन्दरता और आकर्षण में वृद्धि करते है जैसे बबूल और छुईमुई में। कभी कभी पुन्तन्तु और परागकोष भिन्न भिन्न रंगों के होते है अत: इस कारण से पुष्प को और भी अधिक सुन्दरता प्रदान करते है। कुछ पौधों जैसे आंकड़ो में कीट पतंगे परागकोषों का भक्षण करने के लिए पुष्प की तरफ आकर्षित होते है।
(व) जायांग : कुछ पौधों में जायांग भी विशेष संरचना और बनावट के पाए जाते है , और ये कीट पतंगों को पुष्प की तरफ आकर्षित करने के लिए अतिरिक्त रूप से सहायक होते है। उदाहरण के तौर पर आक अथवा मदार में जायांग और कोरोना मिलकर एक पंचकोणीय डिस्क अथवा मंच जैसी संरचना बना लेते है जिस पर कीट पतंगे विश्राम करते है।
(ii) मकरंद : अनेक पुष्पों में विशेष प्रकार का पदार्थ मकरंद निर्मित होता है जो कि कीट पतंगो का भोजन है। मकरंद का निर्माण , विशिष्ट संरचनाओं मकरंद ग्रन्थियो में होता है अत: पुष्प में मकरंद की उपस्थिति भी इसके प्रति कीट पतंगों के आकर्षण का एक कारण है। कुछ कीट जैसे मधुमक्खियाँ तो मकरंद युक्त पुष्प पर ही सामान्यत: भ्रमण करती है। कुछ पुष्पों में मकरंद दलपुट भी पाया जाता है। मकरंद ग्रंथि का आकार सामान्यतया इस प्रकार का होता है कि कीट पतंगे उसके द्वारा आसानी से आकर्षित होकर पुष्प तक पहुँच जाते है तथा साथ ही परागण क्रिया में सहायता करते है।
(iii) सुगन्ध : अनेक प्रकार के कीट पतंगे पुष्प की सुगंध से आकर्षित होकर इस पर पहुँचते है तथा परागण की प्रक्रिया को संचालित करते है। सामान्यतया सुगंध उन पुष्पों में अधिक पायी जाती है जो देखने में कम आकर्षक अथवा छोटे होते है। कुछ पौधों के पुष्पों की सुगंध तो रात्री के समय में भी अर्थात अंधकार में भी कीट पतंगों को पुष्प की तरफ आकर्षित करने का कार्य करती है जैसे रातरानी और हारसिंगार में।
(iv) पुष्पक्रम : अनेक पौधों के पुष्प बहुत छोटे छोटे होते है अत: ये देखने में अधिक आकर्षक नहीं लगते लेकिन जब ऐसे असंख्य पुष्प सम्मिलित रूप से एक पुष्पक्रम का गठन करते है तो यह सम्पूर्ण संरचना अत्यंत आकर्षक और सुन्दर प्रतीत होती है जैसे मुंडक पुष्पक्रम।
(v) परागकण : अधिकांश कीट परागित पौधों में परागकणों का निर्माण वायु परागित पौधों की तुलना में बहुत ही कम होता है। साथ ही इनके परागकण कुछ चिपचिपे भी होते है अत: ये कीट पतंगों के पंखों पर आसानी से चिपक जाते है।
(vi) वर्तिकाग्र : कीट परागित पुष्पों की वर्तिकाग्र भी खुरदरी और चिपचिपी होती है जिसकी वजह से उस पर परागण आसानी से चिपक जाते है। कुछ पौधों के पुष्पों अथवा पुष्पक्रमों में तो कीट परागण की प्रक्रिया विशेष प्रकार की कीट प्रजाति के द्वारा ही संचालित होती है। इनकी अनुपस्थिति में परागण क्रिया भी नहीं होती।
(vii) पत्तियाँ : कुछ पौधों जैसे पंसेटिया में पुष्पक्रम के पास वाली अर्थात ऊपर की पत्तियाँ भी रंगीन , बड़ी और आकर्षक होकर परागण के लिए कीट पतंगों को आकर्षित करने का कार्य करती है।
(viii) उपर्युक्त उदाहरणों और परागण हेतु उपादानों की श्रृंखला की अंतिम कड़ी के रूप में यहाँ एक रोचक , मूल परजीवी पौधे रेफ्लेसिया का उदाहरण देना सर्वथा उचित होगा। यह पौधा सघन उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों में पाया जाता है और इसका पुष्प पादप जगत में सबसे बड़ा होता है। पुष्प का व्यास लगभग 1 मीटर और वजन लगभग सात किलों होता है। अनेक वनस्पति शास्त्रियों के अनुसार रेफ्लेसिया में पुष्प का परागण हाथी के द्वारा होता है लेकिन यह तथ्य सर्वथा त्रुटीपूर्ण और भ्रामक है। वस्तुतः इसके पुष्प में परागण एक मांसभक्षी मक्खी के द्वारा होता है क्योंकि इसके पुष्प से सड़े मांस की जैसी तीखी बदबू आती है जो इन मक्खियों को बहुत अधिक पसंद है। अत: इससे आकर्षित होकर वे रेफ्लेसिया के पुष्प पर आ जाती है , इनके एक पुष्प से दुसरे पुष्प पर जाने की वजह से कीट परागण क्रिया संपन्न होती है।

कीट परागण के प्रमुख उदाहरण (examples of insect pollination)

(A) मटर में परागण : मटर का पुष्प सामान्यतया आड़ी स्थिति अथवा क्षैतिज अवस्था में संलग्न रहता है और इसके वर्तिकाग्र और परागकोष इस प्रकार से अवस्थित होते है कि कीट का अधर भाग इनके सम्पर्क में रहता है। दलपुंज में नौतल तो केवल रक्षा का कार्य करती है लेकिन पंख पुष्प पर भ्रमण करने वाले कीटों को मंच प्रदान करता है। पुष्प से जुड़े हुए 9 पुंकेसर भी इस प्रकार व्यवस्थित होते है कि कीट सुविधापूर्वक इनके ऊपर चल सके तथा कीट के बैठने से नौतल कुछ दब जाता है।
दलपुंज में ध्वजक केवल कीटों को आकर्षित करने का कार्य करता है। मटर के पुष्प में वर्तिका रोमयुक्त होती है तथा नौतल में कुछ खाली स्थान होता है जिसके द्वारा वर्तिका बाहर आ जाती है। पुष्प की कलिकावस्था में ही अर्थात इसके खुलने से पहले ही परागकोष परिपक्व हो जाते है तथा नौतल के अगले सिरे पर एकत्र हो जाते है वर्तिका और वर्तिकाग्र शुरू से ही परागकणों से ढके रहते है। इस अवस्था में जब कोई कीट , किसी पुष्प पर आने के बाद उसके मंच पर बैठता है तो पुंकेसरों पर दबाव बढ़ता है तथा परागकणों से बोझिल नौतल झुक जाता है और उस पर पड़े हुए परागण अपाक्ष भाग पर गिर जाते है। इस पुष्प में मधु भी ऐसी स्थिति में संग्रहित होता है कि मधुमक्खी को उसे प्राप्त करने के लिए अन्दर जाना पड़ता है। चूँकि मटर के पुष्प पुंपूर्वी होते है , अत: इसमें पुंकेसर पुष्प के खिलने के समय तक पूर्णतया परिपक्व हो जाते है और इनका पुंतन्तु अधिक फूला हुआ हो जाता है। इस कारण परागकोष तथा बाहर आ जाते है। परागकण भी अधिक मात्रा में निकलकर इसके अभ्यक्ष तल पर लग जाते है। इस प्रकार कीट के समूचे शरीर पर भली भाँती परागकण लग जाते है। तत्पश्चात यह कीट जब ऐसे पुष्प पर जाता है जिसमें अंडप परिपक्व हो चूका होता है तो वहां परागण हो जाता है।
(B) सालविया में परागण (pollination in saliva) : इस पौधे में पुष्प द्विओष्ठी होता है। इन दोनों ओष्ठो में से एक ओष्ठ ऊपर और दूसरा नीचे की तरफ होता है। ऊपरी ओष्ठ दो दलों के द्वारा बना होता है जो ऊपर की तरफ उठा हुआ और और अन्दर की तरफ मुड़ा रहता है। इसी मुड़ें हुए हिस्से में पुंकेसर और वर्तिका अवस्थित रहते है। पुष्प का निचला ओष्ठ भ्रमण करने वाले कीट पतंगों के लिए मंच का कार्य करता है। यह पुष्प भी मटर के समान ही पुंपूर्वी होता है।
इसमें दो पुंकेसर होते है। प्रत्येक पुंकेसर का पुंतन्तु बहुत ही छोटा होता है। पुंकेसर का योजी बहुत ही बढ़ जाता है और इसके परागकोष का बहुत बड़ा भाग जो कि ऊपरी ओष्ठ के मुड़े हुए हिस्से में रहता है उर्वर होता है परन्तु परागकोष का शेष भाग बन्ध्य हो जाता है। पुंकेसर की बंध्य पालि बहुत ही छोटी होती है और यह पुतंतु से इस प्रकार जुडी रहती है कि उस पर थोडा सा भी दबाव पड़ने से परागकोष का उर्वर भाग निचे की तरफ झुक जाता है।
इस प्रकार परागकोष और पुंतन्तु की यह सम्पूर्ण संरचना एक उत्तोलक क्रियाविधि के समान कार्य करती है। इसमें पुंतन्तु का वह स्थान जहाँ पर दोनों पालियों का जोड़ होता है , आलम्ब के रूप में कार्य करता है। इस पुष्प में मधु अन्दर की तरफ पाया जाता है। पुष्प पर आने वाला कीट नीचले ओष्ठ पर विश्राम करने के बाद जब मधु प्राप्त करने के लिए भीतर की तरफ जाता है तो बंध्य पालि पर होकर इसे गुजरना पड़ता है। परिणामस्वरूप जैसे ही योजी के छोटे भाग पर इसका दबाव पड़ता है तो ऊपर वाला हिस्सा जिस पर परागण लगे होते है , वह कीट की पीठ पर स्पर्श करता है तथा इस प्रकार कीट के इस भाग पर बहुत सारे परागकण चिपक जाते है। जायांग के परिपक्व हो जाने के पश्चात् वर्तिका और वर्तिकाग्र ऊपरी ओष्ठ के बाहर निकल आते है और इसका वर्तिकाग्र निचे की तरफ बहुत अधिक मुड़ जाता है। जब यह कीट के पीठ वाले हिस्से को स्पर्श करता है तो परागण क्रिया पूर्ण हो जाती है।

(C) मदार अथवा आक में परागण (pollination in calotropis)

इस पौधे में कीटों के लिए मंच का कार्य एक पंचकोणीय वर्तिकाग्र चक्रिका अथवा गायनोस्टिजियम के द्वारा वहन किया जाता है जिसके पाँचों कोनों पर परागकोष उपस्थित रहते है। प्रत्येक परागकोष दो थैलिनुमा संरचनाओं अथवा परागपिंडों का बना होता है। प्रत्येक पोलीनियम का अपना एक काडिकल होता है तथा दोनों काडिकल एक मध्यवर्ती कारपसक्युलम पर जुड़े रहते है जो कि चिपचिपी संरचना होती है। प्रत्येक परागकोष के मध्य थोडा खाली स्थान होता है जिससे छोटी छोटी दरारे बन जाती है। जब कोई कीट भ्रमण करता हुआ गायनोस्टीजियम पर आता है तो उसके पैर बीच की खाली दरारों में फंस जाते है और जब कीट अपने पैरों को निकालने की कोशिश करता है तो कारपसक्युलम को भी यह अपने साथ ले जाता है जो कि चिपचिपा होता है। इसके बाद जब कीट उड़कर दुसरे पुष्प पर पहुँचता है तो कारपसक्युलस से संलग्न पोलीनिया या परागपिंड भी इसके साथ दुसरे पुष्प पर पहुँच जाते है तथा इस प्रकार परागण क्रिया संपन्न हो जाती है।

(D) कीट परागण के अन्य उदाहरण (other example of insect pollination)

परागण क्रिया को वनस्पति शास्त्रियों के अनुसार जीवविज्ञान का सर्वाधिक रोमांचक और रोचक आयाम माना गया है। जीव विज्ञानियों ने परागण के अंतर्गत पुष्प और इनके परागण माध्यम कीटों के विशिष्ट गठबन्धन के अनेक उदाहरण प्रस्तुत किये है। अंजीर में ब्लास्टोफेगा वंश के कीट (ततैया) परागण में सक्रीय भूमिका निभाते है। अंजीर का पुष्पक्रम हाइपेन्थोडियम प्रकार का होता है। ततैया , इस हाइपेन्थोडियम के छिद्र द्वारा इसके अन्दर पहुँच जाते है और वहां अंडे भी देते है। इन अण्डों से लार्वा निकलता है और ये व्यस्क ततैया के रूप में बड़े होते है। जब ये वयस्क कीट बाहर आते है तो इनके पंख , हाइपेन्थोडियम के नर पुष्पों से रगड़ खाते हुए निकलते है अत: इन पर परागकण चिपक जाते है। जब इस प्रकार के परागवाहक कीट दूसरे हाइपेन्थोडियम में प्रवेश करते है तो उसके मादापुष्पों में परागण का कार्य संपन्न हो जाता है।
परागण का एक अन्य रोचक उदाहरण आर्किड वंश ओफाइरस का लिया जा सकता है , जिसमें तितली के समान पतंगे के द्वारा परागण क्रिया संपन्न होती है। ओफाइरस के पुष्पों की संरचना अर्थात रंग , बनावट , विन्यास और यहाँ तक कि गंध भी मादा पतंगे के समान होती है। अत: नर पतंगे , स्वाभाविक रूप से मादा के आकर्षण में बंधे , इन पुष्पों की तरफ खींचे चले आते है और इनके भ्रमण के द्वारा यहाँ परागण क्रिया संपन्न हो जाती है।
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