JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History

chemistry business studies biology accountancy political science

Class 12

Hindi physics physical education maths english economics

chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology

Home science Geography

English medium Notes

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Class 12

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Categories: BiologyBiology

एंग्लर एवं प्रेंटल की वर्गीकरण पद्धति  (engler and prantl system of classification in hindi) ऐंग्लर और प्रेन्टल

(engler and prantl system of classification in hindi) एंग्लर एवं प्रेंटल की वर्गीकरण पद्धति  : यह वर्गीकरण पद्धति डार्विन के विकासवाद के सिद्धान्त के प्रतिपादन के पश्चात् प्रस्तुत की गयी थी।

उपर्युक्त पद्धति को दो प्रसिद्ध जर्मन वनस्पतिशास्त्रियों एडोल्फ एंग्लर (1844-1930) और कार्ल प्रेन्टल (1849-1893) द्वारा अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “डाई नेचुरलाइकेन फ्लेन्जनफेमिलिएन” में प्रस्तुत किया गया था। यह पुस्तक 23 खण्डों में सन 1887 से 1915 के मध्य प्रकाशित हुई थी , जिसमें सम्पूर्ण पादप जगत अर्थात शैवाल से लेकर आवृतबीजी पौधों का वर्गीकरण किया गया। ऐंग्लर और प्रेंटल की वर्गीकरण पद्धति वस्तुतः आइक्लर (1875) द्वारा प्रस्तुत पादप वर्गीकरण का विस्तृत और संशोधित प्रारूप है। आगे चलकर एन्ग्लर और प्रेंटल ने अपनी वर्गीकरण पद्धति को एक तथा पुस्तक “सिलेबस दर फ्लेन्जनफेमिलिएन ” में संशोधित किया। यह पुस्तक एक खण्ड में छपी है और इसके अब तक अनेक संस्करण प्रकाशित हो चुके है। इसके नवीनतम संस्करण का प्रकाशन सन 1964 में हुआ था।
एंग्लर और प्रेंटल वर्गीकरण पद्धति की प्रमुख विशेषता यह है कि इसके अंतर्गत द्विबीजपत्री पौधों को एकबीजपत्री पौधों के बाद में रखा गया है और सम्भवत: उपर्युक्त अवधारणा इस पद्धति की सर्वाधिक महत्वपूर्ण त्रुटी भी कही जा सकती है। इसके अतिरिक्त इस पद्धति में आर्किड्स को ग्रेमिनी से अधिक प्रगत मानना , नवकणीश पुष्पक्रम युक्त और दल रहित द्विबीजपत्री पौधों अर्थात एमेन्टीफेरी वर्ग को आद्य अथवा पुरोगामी पादप समूह के रूप में स्थापित करना इस वर्गीकरण पद्धति की अन्य उल्लेखनीय अवधारणाए है। हालाँकि आधुनिक जातिवृत वनस्पतिशास्त्री उपर्युक्त अवधारणाओं को स्वीकार नहीं करते फिर भी इतना अवश्य है कि इस वर्गीकरण पद्धति ने यूरोप और अमेरिका में बैन्थम और हुकर पादप वर्गीकरण पद्धति को पूर्णतया प्रतिस्थापित कर दिया था। इसमें विभिन्न पादप समूहों की जातिवृतीयता और पुष्पों की उत्तरोतर जटिलता पर प्रकाश डाला गया है। इस पद्धति के बारे में एक तथा महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इसमें बैंथम हुकर पद्धति के विपरीत यहाँ पोलीपेटली और ऐपेटली (मोनोक्लेमाइडी) दोनों पादप वर्गों का एक वर्ग में विलय कर दिया गया है।
उपर्युक्त पद्धति निम्नलिखित आधारभूत सिद्धान्तों के अनुसार प्रस्तुत की गयी है –
(1) परिदल रहित पुष्प , परिदल युक्त पुष्प की तुलना में पुरोगामी है और एक परिदल चक्रयुक्त पुष्प द्विपरिदल चक्र युक्त पुष्प की तुलना में पुरोगामी या आद्य है।
(2) पौधों में वायु परागण प्रवृत्ति की तुलना में कीट परागण प्रवृत्ति अधिक प्रगत है।
(3) संयुक्तदलीय पुष्प युक्त पौधे पृथक दलीय पौधों की तुलना में प्रगत है।
(4) पुष्प में उच्चवर्ती अंडाशय आद्य अथवा पुरोगामी और अधोवर्ती अंडाशय प्रगत अवस्था है।
(5) एकलिंगी पुष्प पुरोगामी है और उभयलिंगी पुष्प प्रगत है।
(6) बाह्य दलाभ परिदली युक्त पुष्प पुरोगामी है और दलाभ परिदली युक्त पुष्प प्रगत है।
(7) एकबीजपत्री पादप पुरोगामी और द्विबीजपत्री पादप प्रगत है।
(8) पुष्प में निश्चित संख्या में पुन्केसरों और अंडपों की उपस्थिति प्रगत लक्षण है , जबकि असंख्य पुंकेसरों और अंडपों की उपस्थिति पुरोगामी लक्षण है।
इस वर्गीकरण पद्धति के अन्तर्गत बीजधारी पौधों को प्रभाग का दर्जा दिया गया है और इनको दो उप प्रभागों क्रमशः एन्जियोस्पर्मी (आवृतबीजी) और जिम्नोस्पर्मी (अनावृतबीजी) में बाँटा गया है और उप प्रभाग एंजियोस्पर्मी को 2 वर्गों क्रमशः मोनोकोटीलिडनी और डाइकोटीलिडनी में बाँटा गया है।
वर्ग मोनोकोटीलिडनी (एकबीजपत्री पादप) में 11 गण और 45 कुल है और डाइकोटीलिडनी (द्विबीजपत्री पादप) में 40 गण और 241 कुल सम्मिलित किये गए है। इस पद्धति के अनुसार एकबीजपत्री पौधों का आरम्भ टाइफेसी कुल से और समाप्ति आर्किडेसी कुल पर होती है। इसके साथ ही द्विबीजपत्री पौधों का आरम्भ केसुराइनेसी कुल से और समाप्ति कम्पोजिटी कुल पर होती है। इससे स्पष्ट होता है कि एंग्लर और प्रेंटल के अनुसार कुल केसुराइनेसी जिसके सदस्यों में नतकणिश पुष्पक्रम , एकलिंगी और दलविहीन पुष्प पाए जाते है , सर्वाधिक आद्य द्विबीजपत्री पादप कुल माना जाता है।
ऐंग्लर एवं प्रेन्टल वर्गीकरण पद्धति की संक्षिप्त रूपरेखा –

 

अत: इस पद्धति के अनुसार आवृतबीजी पौधों या उपप्रभाग एन्जियोस्पर्मी में कुल 51 गण और 286 कुल है।

1. वर्ग : मोनोकोटीलिडनी (Monocotyleddonae)

ये एकबीजपत्री पादप 11 गण और 45 कुलों से मिलाकर गठित पादप समूह को निरुपित करते है .इनके प्रमुख लक्षण निम्नलिखित प्रकार से है –
(1) बीजपत्र संख्या केवल एक।
(2) पौधों में झकड़ा जड़ों अथवा रेशेदार मूल की उपस्थिति।
(3) पत्तियों में समानान्तर शिरा विन्यास।
(4) संवहन बंडल बिखरे हुए।
(5) पुष्प त्रितयी।
इस वर्ग का प्रारंभ गण पेंडेनेल्स से होता है , जिसका प्रथम पादप कुल टाइफेसी है और इसकी समाप्ति गण माइक्रोस्पर्मी के अंतिम कुल आर्किडेसी पर होती है अर्थात इस वर्गीकरण पद्धति के अनुसार एकबीजपत्री पौधों में टाइफेसी सर्वाधिक पुरोगामी और आर्किडेसी सर्वाधिक प्रगत कुल है।

2. वर्ग : डाइकोटीलिडनी (dicotyledonae)

इस पादप संवर्ग में 40 गण और 241 कुल सम्मिलित किये गए है। इसके मुख्य लक्षण निम्नलिखित है –
1. बीजपत्र संख्या दो।
2. पौधों में मूसला जड़ की उपस्थिति।
3. पत्तियों में जालिकावत शिराविन्यास।
4. संवहन बंडल वलय में व्यवस्थित।
5. पुष्प चतुष्तयी अथवा पंचतयी।
(A) उपसंवर्ग – आर्चीक्लेमाइडी : इस उपवर्ग का प्रमुख लक्षण यह है कि इसके पुष्प में परिदल पुंज अनुपस्थित अथवा एकचक्रिक , यदाकदा द्विचक्रिक होता है। लेकिन यदि परिदलपुंज द्विचक्रिक होता है तो इसका आंतरिक चक्र अर्थात दलपुंज सदैव पृथकदली होता है।
इसमें 30 गण और 189 कुल सम्मिलित किये गए है और इसका प्रारंभ गण वर्टिसिलेटी के कुल केसुराइनेसी से होकर समापन गण अम्बेलीफ्लोरी के कुल कॉर्नेसी पर होता है। छत्रक पुष्पक्रम द्विलिंगी और उपरिजायांगी पुष्प की उपस्थिति , कुल कॉर्नेसी के प्रमुख लक्षण है अर्थात इस संवर्ग में केसुराइनेसी सर्वाधिक आद्य और कॉर्नेसी सर्वाधिक प्रगत कुल के रूप में स्थापित है।
(B) उपसंवर्ग – मेटाक्लेमाइडी अथवा सिम्पेटेली : परिदलपुंज की सदैव द्विचक्रीय अवस्था में उपस्थिति इस उपवर्ग का प्रमुख लक्षण है। इस द्विचक्रीय परिदल पुंज का आंतरिक चक्र अथवा दलपुंज कुछ अपवादों को छोड़कर सदैव संयुक्त दलीय अवस्था प्रदर्शित करता है। इस उपवर्ग का प्रारंभ गण इरीकेल्स के कुल क्लिथ्रेसी से होकर समापन गण केम्पेनुलेटी के कुल कम्पोजिटी पर होता है। इससे स्पष्ट होता है कि इस पद्धति के अनुसार क्म्पोजिटी कुल कम्पोजिटी पर होता है। इससे स्पष्ट होता है। इससे स्पष्ट होता है कि इस पद्धति के अनुसार कम्पोजिटी कुल द्विबीजपत्री पौधों में सर्वाधिक प्रगत माना जाता है। यही नहीं , इस पद्धति के अंतर्गत क्योंकि द्विबीजपत्री पौधों को एकबीजपत्री पौधों की तुलना में प्रगतिशील माना गया है अत: परोक्ष रूप से कम्पोजिटी कुल आवृतबीजियों में इस वर्गीकरण प्रणाली के अनुसार सर्वाधिक प्रगत कुल के रूप में स्थापित है।
इस वर्गीकरण पद्धति के अन्तर्गत उपप्रभाग एंजियोस्पर्मी का विवरण निम्नानुसार है –
1. वर्ग – मोनोकोटीलिडनी (monocotyledonae) :
1. गण – पेंडेनेल्स – कुल संख्या 3
टाइफेसी से कुल स्पार्गेनियेसी
2. गण – हेलोबी – कुल संख्या 7
1. पोटामोजिटोनेसी से 7. हाइड्रोकेरिटेसी
3. गण – ट्राइयूरिडेल्स – कुल संख्या – 1
ट्राइयूरिडेसी
4. गण – ग्लूमीफ्लोरी – कुल संख्या – 2
1. ग्रेमिनी 2. साइपेरेसी
5. गण – प्रिन्सेप्स – कुल संख्या – 1
पामी
6. गण – साइनेन्थी – कुल संख्या – 1
साइक्लेन्थेसी
7. गण – स्पेथीफ्लोरी – कुल संख्या – 2
1. ऐरेसी 2. लेम्नेसी
8. गण – फेरीनोसी – कुल संख्या – 13
1. फ्लेजिलेरिएसी से 13 फिलीड्रेसी
9. गण – लिलीफ्लोरी – कुल संख्या – 9
1. जेन्केसी से 9. आइरिडेसी
10. गण – साइटेमिनी – कुल संख्या – 4
1. म्यूसेसी से 4. मेक्सेन्टेसी
11. गण – माइक्रोस्पर्मी – कुल संख्या – 4
1. बर्मीनियेसी से 4 आर्किडेसी
2. वर्ग – डाइकोटीलिडनी (dicotyledonae) :
(A) उपवर्ग – आर्चीक्लेमाइडी (archichlamydae)
1. गण – वर्टिसिलेटी – कुल संख्या – 1
केसुराइनेसी
2. गण – पाइपेरेल्स – कुल संख्या – 4
1. साउरूरेसी से 4. लेसीस्टिमेसी
3. गण – सेलीकेल्स – कुल संख्या – 1
सेलीकेसी
4. गण – गैरिएल्स – कुल संख्या – 1
गैरिएसी
5. गण – माइरीकेल्स – कुल संख्या – 1
माइरीकेसी
6. गण – बेलेनोप्सीडेल्स – कुल संख्या – 1
बेलेनोप्सिडेसी
7. गण – लिट्नेरियेल्स – कुल संख्या – 1
लिट्नेरियेसी
8. गण – जगलेन्डेल्स – कुल संख्या – 1
जगलेन्डेल्स
9. गण – बेटीडेल्स – कुल संख्या – 1
बेटीडेसी
10. गण – जूलीऐनीएल्स – कुल संख्या – 1
जूलीऐनिएसी
11. गण – फेगेल्स – कुल संख्या – 2
1. बेटूलेसी 2. फेगेसी
12. गण – अर्टिकेल्स – कुल संख्या – 3
1. अल्मेसी से अर्टिकेसी
13. गण – प्रोटिएल्स  – कुल संख्या – 1
1. प्रोटिऐसी
14. गण – सेन्टेलेल्स – कुल संख्या – 8
1. माइजोड़ेंड्रेसी से 8. बेलेनोफोरेसी
15. गण – एरिस्टोलोकियेल्स – कुल संख्या – 3
1. एरिस्टोलोकियेसी से हिडनोरेसी
16. गण – पोलीगोनेल्स – कुल संख्या – 1
पोलीगोनेसी
17. गण – सेन्ट्रोस्पर्मी – कुल संख्या – 9
1. चीनोपोडिऐसी से 9. केरियोफिल्लेसी
18. गण – रेनेल्स – कुल संख्या – 18
1. निम्फियेसी से 18. हर्नेन्डीयेसी
19. गण – रोइएडेल्स – कुल संख्या – 6
1. पेपेवरेसी से 6. मोरिन्गेसी
20. गण – सारासिनिऐल्स – कुल संख्या – 6
1. सारासिनिएसी से 6. ड्रोसेरेसी
21. गण – रोजेल्स – कुल संख्या – 18
1. पोड़ोस्टिमेसी से 18. लेग्यूमिनोसी
22. गण – पेन्डेल्स – कुल संख्या – 1
पेन्डेसी
23. गण – जिरेनियेल्स – कुल संख्या – 20
1. जिरेनिऐसी से 20. कैलीट्राइकेसी
24. गण – सेपिन्डेल्स – कुल संख्या – 21
1. एम्पीट्रेसी से 21. बालसेरिनेसी
25. गण – रेम्नेल्स – कुल संख्या – 2
1. रेम्नेसी 2. वाइटेसी
26. गण – माल्वेल्स – कुल संख्या – 8
1. इलियोकारपेसी से 8. साइटोपेटेलेसी
27. गण – पेराइटेल्स – कुल संख्या – 29
1. डिलिनियेसी से 29. एन्सीस्ट्रोक्लेडेसी
28. गण – ओपीन्शीयेल्स – कुल संख्या – 1
केक्टेसी
29. गण – मिर्टीफ्लोरी – कुल संख्या – 19
1. जिस्सोलोमेटेसी से 19. साइनोमोरिएसी
30. गण – अम्बेलीफ्लोरी – कुल संख्या – 3
1. ऐरेलियेसी से कोर्नेसी

(B) उपवर्ग – मेटाक्लेमाइडी अथवा सिम्पेटेली (metachlamydae or sympetalae)

31. गण – इरिकेल्स – कुल संख्या – 6
1. क्लिथ्रेसी से डायेपेन्सीयेसी
32. गण – प्राइमुलेल्स – कुल संख्या – 3
1. थियोफ्रेस्टेसी से 3. प्राइमुलेसी
33. गण – प्लम्बेजिनेल्स – कुल संख्या – 1
प्लम्बेजिनेसी
34. गण – इबेनेल्स – कुल संख्या – 4
1. सेपोटेसी से 4. स्टाइरेकेसी
35. गण – कोन्टोरटी – कुल संख्या – 5
1. ओलिएसी  से 5. एस्क्लेपिऐडेसी
36. गण – ट्यूबीफ्लोरी – कुल संख्या – 20
1. कोन्वोल्वुलेसी से 20. फ्राइमेसी
37. गण – प्लेंटेजिनेल्स – कुल संख्या – 1
प्लेन्टेजिनेसी
38. गण – रुबिएल्स – कुल संख्या – 5
1. रूबिऐसी से 5. डिप्सेसी
39. गण – कुकुरबिटेल्स – कुल संख्या – 1
कुकुरबिटेसी
40. गण – केम्पेनुलेटी – कुल संख्या – 6
1. केम्पेनुलेसी से 6. कम्पोजिटी

एंग्लर एवं प्रेंटल पद्धति के गुण (merits of engler and prantl system of classification)

1. इस पादप वर्गीकरण पद्धति का सर्वाधिक महत्वपूर्ण गुण यह है कि इसमें डी जस्यू द्वारा स्थापित पादप समूहों ऐपेटेली और पोलीपेटेली का एक पादप समूह के रूप में विलय कर दिया गया।
2. इस विलय के परिणामस्वरूप बैंथम और हुकर द्वारा द्विबीजपत्री पौधों में गठित कृत्रिम पादप वर्ग मोनोक्लेमाइडी को पूर्णतया समाप्त कर द्विबीजपत्रियों को आर्चीक्लेमाइडी (ऐपेटली + पोलीपेटेली ) और मेटाक्लेमाइडी अथवा सिम्पेटेली में विभाजित किया गया है।
3. यह वर्गीकरण पद्धति आइक्लर द्वारा प्रस्तुत पद्धति का विस्तृत रूप है और यह कई प्रकार से इसका अनुसरण भी करती है।
4. यह वर्गीकरण पद्धति पौधों की जातिवृतीयता और पुष्पों में बढती जटिलताओं की व्याख्या भी करती है।
5. इस पद्धति के अन्तर्गत पौधों की पहचान के लिए कुंजियों के साथ साथ प्रत्येक पादप वंश और प्रजाति के आवश्यक चित्र दिए गए है।
6. कम्पोजिटी और आर्किडेसी को क्रमशः द्विबीजपत्री और एकबीजपत्री पौधों के सर्वाधिक प्रगत कुलों के रूप में मान्यता दी गयी है।

ऐंग्लर एवं प्रेन्टल पद्धति के दोष (demerits of engler and prantl system of classification)

1. एकबीजपत्री पौधों को द्विबीजपत्रियों से पहले रखना जातिवृतीयता की आधुनिक अवधारणा के सर्वथा विपरीत है क्योंकि यह सिद्ध हो चूका है कि एकबीजपत्री पौधों का विकास द्विबीजपत्री पादपों से हुआ है। एकबीजपत्रियों को पहले रखा जाना संभवतः इस पद्धति का सबसे बड़ा दोष है।
2. ऐमेन्टीफेरी कुलों जैसे केसुराइनेसी , बेटुलेसी और सेलिकेसी आदि को पुरोगामी मानते हुए पहले रखा गया है जो सर्वथा अनुचित है।
3. वनस्पतिशास्त्रियों के अनुसार रेनेलियन कुलों जैसे रेननकुलेसी और मेग्नोलियेसी को आवृतबीजियों में सर्वाधिक पुरोगामी माना गया है और ये अमेंटीफेरी कुलों से व्युत्पन्न नही हो सकते , फिर भी रेनेलियन कुलों को ऐमेन्टीफेरी के बाद रखा गया है जो पूर्णतया गलत है।
4. गण हीलोबी को पेंडेनेल्स और गण ग्लूमीफ्लोरी के मध्य रखना युक्तिसंगत नहीं है।
5. गण स्पेथीफ्लोरी के सदस्य कुलों ऐरेसी और लेम्नेसी को लिलियेसी कुल से पहले रखा गया है जो वास्तव में गलत है क्योंकि स्पेथीफ्लोरी गण के दोनों कुल लिलियेसी से व्युत्पन्न हुए है।
Sbistudy

Recent Posts

द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन क्या हैं differential equations of second order and special functions in hindi

अध्याय - द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन (Differential Equations of Second Order…

8 hours ago

four potential in hindi 4-potential electrodynamics चतुर्विम विभव किसे कहते हैं

चतुर्विम विभव (Four-Potential) हम जानते हैं कि एक निर्देश तंत्र में विद्युत क्षेत्र इसके सापेक्ष…

3 days ago

Relativistic Electrodynamics in hindi आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा

आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा Relativistic Electrodynamics in hindi ? अध्याय : आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी…

5 days ago

pair production in hindi formula definition युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए

युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए pair production in hindi formula…

1 week ago

THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा

देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi…

1 week ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now